गोष्ठसूक्त

अथर्ववेद के तीसरे काण्ड के १४वें सूक्त में गौओं को गोष्ठ (गोशाला) -में आकर सुखपूर्वक दीर्घकाल तक अपनी बहुत-सी संतति के साथ रहने की प्रार्थना की गयी है। इस सूक्त के ऋषि ब्रह्मा तथा प्रधान देवता गोष्ठदेवता हैं। गौओं के लिये उत्तम गोशाला, दाना-पानी एवं चारा का प्रबन्ध करना चाहिये। गौओं को प्रेमपूर्वक रखना चाहिये। उन्हें भयभीत नहीं करना चाहिये। इससे गौ के दूध पर भी असर पड़ता है। गौओं की पुष्टि और नीरोगता के संदर्भ में भी पूरा ध्यान रखना चाहिये- यही इस सूक्त का सार है।

सं वो गोष्ठेन सुषदा सं रय्या सं सुभूत्या ।
अहर्जातस्य यन्नाम तेना वः सं सृजामसि ॥ १ ॥
सं वः सृजत्वर्यमा सं पूषा सं बृहस्पतिः ।
समिन्द्रो यो धनञ्जयो मयि पुष्यत यद्वसु ॥ २ ॥
संजग्माना अबिभ्युषीरस्मिन् गोष्ठे करीषिणीः ।
बिभ्रतीः सोम्यं मध्वनमीवा उपेतन ॥ ३ ॥
इहैव गाव एतनेहो शकेव पुष्यत ।
इहैवोत प्र जायध्वं मयि संज्ञानमस्तु वः ॥ ४ ॥
शिवो वो गोष्ठो भवतु शारिशाकेव पुष्यत ।
इहैवोत प्र जायध्वं मया वः सं सृजामसि ॥ ५ ॥
मया गावो गोपतिना सचध्वमयं वो गोष्ठ इह पोषयिष्णुः ।
रायस्पोषेण बहुला भवन्तीर्जीवा जीवन्तीरुप वः सदेम ॥ ६ ॥
[ अथर्व० ३ । १४]

गौओं के लिये उत्तम, प्रशस्त और स्वच्छ गोशाला बनायी जाय। गौओं को अच्छा जल पीने के लिये दिया जाय तथा गौओं से उत्तम सन्तान उत्पन्न कराने की दक्षता रखी जाय। गौओं से इतना स्नेह करना चाहिये कि जो भी अच्छा-से-अच्छा पदार्थ हो, वह उन्हें दिया जाय ॥ १ ॥
अर्यमा, पूषा, बृहस्पति तथा धन प्राप्त करने वाले इन्द्र आदि सब देवता गायों को पुष्ट करें तथा गौओं से जो पोषक रस (दूध) प्राप्त हो, वह मुझे पुष्टि के लिये मिले ॥ २ ॥
उत्तम खाद के रूप में गोबर तथा मधुर रस के रूप में दूध देनेवाली स्वस्थ गायें इस उत्तम गोशाला में आकर निवास करें ॥ ३ ॥
गौएँ इस गोशाला में आयें। यहाँ पुष्ट होकर उत्तम सन्तान उत्पन्न करें और गौओं के स्वामी के ऊपर प्रेम करती हुई आनन्द से निवास करें ॥ ४ ॥
(यह) गोशाला गौओं के लिये कल्याणकारी हो । ( इसमें रहकर ) गौएँ पुष्ट हों और सन्तान उत्पन्न करके बढ़ती रहें। गौओं का स्वामी स्वयं गौओं की सभी व्यवस्था देखे ॥ ५ ॥
गौएँ स्वामी के साथ आनन्द से मिल-जुलकर रहें। यह गोशाला अत्यन्त उत्तम है, इसमें रहकर गौएँ पुष्ट हों। अपनी शोभा और पुष्टि को बढ़ाती हुई गौएँ यहाँ वृद्धि को प्राप्त होती रहें। हम सब ऐसी उत्तम गौओं को प्राप्त करेंगे और उनका पालन करेंगे ॥ ६ ॥

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