February 13, 2025 | aspundir | Leave a comment ब्रह्मवैवर्तपुराण-गणपतिखण्ड-अध्याय 17 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ सत्रहवाँ अध्याय कार्तिकेय का अभिषेक तथा देवताओं द्वारा उन्हें उपहार प्रदान श्रीनारायणजी कहते हैं — नारद ! तदनन्तर जगदीश्वर विष्णु प्रसन्नमन से शुभ मुहूर्त निश्चय करके कार्तिकेय को एक रमणीय रत्नसिंहासनप र बैठाया और कौतुकवश नाना प्रकार के झाँझ- मँजीरा तथा यन्त्रमय बाजे बजवाये। फिर अमूल्य रत्नों के बने हुए सैकड़ों घड़ों से, जो वेदमन्त्रों द्वारा अभिषिक्त तथा सम्पूर्ण तीर्थों के जलों से परिपूर्ण थे, कार्तिकेय को हर्षपूर्वक स्नान कराया। तत्पश्चात् कार्तिकेय को प्रसन्नमन से बहुमूल्य रत्नों द्वारा निर्मित किरीट, दो माङ्गलिक बाजूबंद, अमूल्य रत्नों के बने हुए बहुत-से आभूषण, अग्नि में तपाकर शुद्ध किये हुए दो दिव्य वस्त्र, क्षीरसागर से उत्पन्न हुई कौस्तुभमणि और वनमाला दी । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ब्रह्मा ने यज्ञसूत्र, वेद, वेदमाता गायत्री, संध्या-मन्त्र, कृष्ण-मन्त्र, श्रीहरि का स्तोत्र और कवच, कमण्डलु, ब्रह्मास्त्र तथा शत्रुविनाशिनी विद्या प्रदान की । धर्म ने दिव्य धर्मबुद्धि और समस्त जीवों पर दया समर्पित की। शिव ने परमोत्कृष्ट मृत्युञ्जय-ज्ञान, सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञान, निरन्तर सुख प्रदान करनेवाला परम मनोहर तत्त्वज्ञान, योगतत्त्व, सिद्धितत्त्व, परम दुर्लभ ब्रह्मज्ञान, त्रिशूल, पिनाक, फरसा, शक्ति, पाशुपतास्त्र, धनुष और संधान-संहार के ज्ञान सहित संहारास्त्र अर्पित किया। वरुण ने श्वेत छत्र और रत्नों की माला, महेन्द्र ने गजराज, अमृतसागर ने अमृत का कलश, सूर्य ने मन के समान वेगशाली रथ और मनोहर कवच, यम ने यमदण्ड और अग्नि ने बहुत बड़ी शक्ति प्रदान की । इसी प्रकार अन्यान्य सभी देवताओं ने भी हर्षपूर्वक नाना प्रका रके शस्त्र उन्हें भेंट किये। कामदेव ने हर्षमग्न होकर उन्हें कामशास्त्र और क्षीरसागर ने अमूल्य रत्न तथा रत्नों के बने हुए विशिष्ट नूपुर दिये । पार्वती का मन तो उस समय परमानन्द में निमग्न था, उन्होंने मुस्कराते हुए महाविद्या, सुशीलाविद्या, मेधा, दया, स्मृति, अत्यन्त निर्मल बुद्धि, शान्ति, तुष्टि, पुष्टि, क्षमा, धृति, श्रीहरि में सुदृढ़ भक्ति और श्रीहरि की दासता प्रदान की । नारद! प्रजापति ने देवसेना को, जो रत्नाभरणों से विभूषित, परम विनीत, उत्तम शीलवती, मन को हरण कर लेने वाली अत्यन्त सुन्दरी थी, जिसे विद्वान् लोग शिशुओं की रक्षा करने वाली महाषष्ठी कहते हैं, वैवाहिक विधि के अनुसार वेद-मन्त्रोच्चारणपूर्वक कार्तिकेय के अर्पित कर दिया । इस प्रकार कुमार का अभिषेक करके सभी देवता, मुनिगण और गन्धर्व जगदीश्वरों को प्रणाम करके अपने-अपने घर चले गये । नारद! इसके बाद शंकर ने नारायण, ब्रह्मा और धर्म की स्तुति की और फिर धर्म का आलिङ्गन करके परमप्रिय श्रीहरि को मस्तक झुकाया । तदनन्तर शंकर द्वारा सत्कृत होकर शैलराज हिमालय गणों सहित प्रेमपूर्वक वहाँ से बिदा हुए। इस प्रकार जो-जो लोग वहाँ आये थे, वे सभी आनन्दपूर्वक प्रस्थान कर गये। तब महेश्वर देवी पार्वती के साथ बड़े आनन्द से वहाँ रहने लगे। कुछ समय बीतने के बाद शंकर ने पुनः उन सभी देवों को बुलाकर विवाह-विधि के अनुसार पुष्टि को महात्मा गणेश के हाथों समर्पित कर दिया। इस प्रकार दोनों पुत्रों तथा गणों के साथ रहती हुई पार्वती का मन बड़ा प्रसन्न था । वे सम्पूर्ण कामनाओं के देनेवाले स्वामी के चरणकमलों की सेवा करती रहती थीं। नारद! इस प्रकार मैंने देवताओं का समागम, पार्वती को पुत्र-प्राप्ति, कुमार का अभिषेक, उनका पूजन और विवाह तथा गणेश का विवाह — यह सारा वृत्तान्त तुमसे वर्णन कर दिया। अब तुम्हारे मन में कौन-सी अभिलाषा है ? फिर और क्या सुनना चाहते हो ? (अध्याय १७) ॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे तृतीये गणपतिखण्डे नारदनारायणसंवादे कुमारगणेशविवाह कुमाराभिषेककथनं नाम सप्तदशोऽध्यायः ॥ १७ ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related