February 19, 2025 | aspundir | Leave a comment ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 01 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ पहला अध्याय नारदजी के प्रश्न तथा मुनिवर नारायण द्वारा भगवान् विष्णु एवं वैष्णव के माहात्म्य का वर्णन नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् । देवीं सरस्वतीं चैव ततो जयमुदीरयेत् ॥ भगवान् नारायण, नरश्रेष्ठ नर तथा देवी सरस्वती को नमस्कार करके जय ( इतिहास- पुराण आदि ) – का पाठ करना चाहिये । नारदजी ने कहा — ब्रह्मन् ! मैंने सबसे पहले पूज्यपाद पिता ब्रह्माजी के मुखारविन्द से ब्रह्मखण्ड की मनोहर कथा सुनी है, जो अत्यन्त अद्भुत है । तदनन्तर उन्हीं की आज्ञा से मैं तुरंत आपके निकट चला आया और यहाँ अमृतखण्ड से भी अधिक मधुर प्रकृतिखण्ड सुनने को मिला। तत्पश्चात् मैंने गणपतिखण्ड श्रवण किया, जो अखण्ड जन्मों का खण्डन करनेवाला है। परंतु मेरा लोलुप मन अभी तृप्त नहीं हुआ। यह और भी विशिष्ट प्रसङ्ग को सुनना चाहता है। अतः अब श्रीकृष्णजन्मखण्ड का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये, जो मनुष्यों के जन्म-मरण आदि का खण्डन करने वाला है । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय वह समस्त तत्त्वों का प्रकाशक, कर्म-बन्धन का नाशक, हरि-भक्ति प्रदान करनेवाला, तत्काल वैराग्यजनक, संसार-विषयक आसक्ति का निवारक, मुक्ति-बीज का कारण तथा भवसागर से पार उतारने वाला उत्तम साधन है। वह कर्मभोगरूपी रोगों का नाश करने के लिये रसायन का काम देता है । श्रीकृष्णचरणारविन्दों की प्राप्ति के लिये सोपान का निर्माण करता है। वैष्णवों का तो वह जीवन ही है । तीनों लोकों को परम पवित्र करनेवाला है। मैं आपका शरणागत भक्त एवं शिष्य हूँ । अतः आप मुझे श्रीकृष्णजन्मखण्ड की कथा को विस्तारपूर्वक सुनाइये । किसकी प्रार्थना से एकमात्र परिपूर्णतम परमेश्वर श्रीकृष्ण अपने सम्पूर्ण अंशों से इस भूतल पर अवतीर्ण हुए ? किस युग में, किस हेतु से और कहाँ उनका आविर्भाव हुआ ? उनके पिता वसुदेव कौन थे अथवा माता देवकी भी कौन थीं? बताइये। किसके कुल में भगवान् ने माया द्वारा जन्म-ग्रहण की लीला की ? श्रीहरि ने किस रूप से यहाँ आकर क्या किया ? मुने! सुना जाता है कि श्रीकृष्ण कंस के भय से सूतिकागृह से गोकुल को चले गये थे । जो स्वयं भय के स्वामी हैं, उन्हें कीटतुल्य कंस से क्यों भय हुआ ? उन श्रीहरि ने गोप-वेष धारण करके गोकुल में कौन- सी लीला की ? वे तो जगदीश्वर हैं । फिर उन्होंने गोपाङ्गनाओं के साथ क्यों विहार किया ? गोपाङ्गनाएँ कौन थीं? अथवा वे ग्वाल-बाल भी कौन थे ? यशोदा कौन थीं? नन्दरायजी कौन थे ? उन्होंने कौन-सा पुण्य किया था ? श्रीहरि की प्रेयसी गोलोकवासिनी पुण्यवती देवी श्रीराधा क्यों व्रज में व्रजकन्या होकर प्रकट हुईं? गोपियों ने किस प्रकार दुराराध्य परमेश्वर को प्राप्त किया ? श्रीहरि उन सबको छोड़कर मथुरा क्यों चले गये ? महाभाग ! पृथ्वी का भार उतारकर कौन-सी लीला करने के पश्चात् भगवान् श्रीकृष्ण पुनः परमधाम को पधारे ? आप उनकी लीला-कथा सुनाइये; क्योंकि उसका श्रवण और कीर्तन पुण्यदायक है । श्रीहरि की कथा अत्यन्त दुर्लभ है । वह भवसागर से पार उतारने के लिये नौका के तुल्य है । प्रारब्धभोगरूपी बेड़ी तथा क्लेशों का उच्छेद करने के लिये कटार है । पापरूपी ईंधन-राशि का दाह करने के लिये प्रज्वलित अग्नि-शिखा के समान है। इसे सुनने वाले पुरुषों के करोड़ों जन्मों की पापराशि का यह नाश कर देती है । भगवान् की कथा शोक-सागर का नाश करने वाली मुक्ति है। वह कानों में अमृत के समान मधुर प्रतीत होती है। कृपानिधे ! मैं आपका भक्त एवं शिष्य हूँ । आप मुझे श्रीहरिकथा का ज्ञान प्रदान कीजिये । तप, जप, बड़े-बड़े दान, पृथ्वी के तीर्थों के दर्शन, श्रुतिपाठ, अनशन, व्रत, देवार्चन तथा सम्पूर्ण यज्ञों में दीक्षा ग्रहण करने से मनुष्य को जो फल मिलता है, वह सब ज्ञान-दान की सोलहवीं कला के बराबर भी नहीं है। पिताजी ने मुझे आपके पास ज्ञान प्राप्त करने के लिये भेजा है। सुधा-समुद्र के पास पहुँचकर कौन दूसरी वस्तु (जल आदि) पीने की इच्छा करेगा ? भगवान् नारायण बोले — कुल को पवित्र करने वाले नारद! मैं तुम्हें अच्छी तरह जानता हूँ । तुम धन्य हो । पुण्य की मूर्तिमती राशि हो । लोकों को पवित्र करने के लिये ही तुम इनमें भ्रमण करते हो । वाणी से मनुष्यों के हृदय की तत्काल पहचान हो जाती है। शिष्य, कलत्र, कन्या, दौहित्र, बन्धु-बान्धव, पुत्र-पौत्र, प्रवचन, प्रताप, यश, श्री, बुद्धि, वैरी और विद्या- इनके विषय में मनुष्यों के हार्दिक अभिप्राय का पता चल जाता है । तुम जीवन्मुक्त और पवित्र हो । भगवान् गदाधर के शुद्ध भक्त हो । अपने चरणों की धूल से सबकी आधारभूता वसुधा को पवित्र करते फिरते हो । समस्त लोकों को अपने स्वरूप का दर्शन देकर पवित्र बनाते हो । भगवान् श्रीहरि की कथा परम मङ्गलमयी है, इसीलिये तुम उसे सुनना चाहते हो । जहाँ श्रीकृष्ण की कथाएँ होती हैं, वहीं सब देवता निवास करते हैं। ऋषि, मुनि और सम्पूर्ण तीर्थ भी वहीं रहते हैं। वे कथा सुनकर अन्त में अपने निरापद स्थान को जाते हैं। जिन स्थानों में श्रीकृष्ण की शुभ कथाएँ होती हैं, वे तीर्थ बन जाते हैं। सैकड़ों जन्मों तक तपस्या करके जो पवित्र हो गया है, वही इस भारतवर्ष में जन्म पाता है । वह यदि श्रीहरि की अमृतमयी कथा का श्रवण करे, तभी अपने जन्म को सफल कर सकता है। भगवान् की पूजा, वन्दना, मन्त्र जप, सेवा, स्मरण, कीर्तन, निरन्तर उनके गुणों का श्रवण, उनके प्रति आत्मनिवेदन तथा उनका दास्यभाव — ये भक्ति के नौ लक्षण हैं । अर्चनं वन्दनं मन्त्रजपं सेवनमेव च । स्मरणं कीर्तनं शश्वद् गुणश्रवणमीप्सितम् ॥ निवेदनं तस्य दास्यं नवधा भक्तिलक्षणम् । (श्रीकृष्णजन्मखण्ड १ । ३३-३४) नारद! इन सबका अनुष्ठान करके मनुष्य अपने जन्म को सफल बनाता है। उसके मार्ग में विघ्न नहीं आता और उसकी पूरी आयु नष्ट नहीं होती । उसके सामने काल उसी तरह नहीं जाता है, जैसे गरुड़ के सामने सर्प । भगवान् श्रीहरि उस भक्त का सामीप्य एक क्षण के लिये भी नहीं छोड़ते हैं । अणिमा आदि सिद्धियाँ तुरंत उसकी सेवामें उपस्थित हो जाती हैं । भगवान् श्रीकृष्ण की आज्ञा से उसकी रक्षा के लिये सुदर्शन चक्र दिन- रात उसके पास घूमता रहता है। फिर कौन उसका क्या कर सकता है ? यमराज के दूत स्वप्न में भी उसके निकट वैसे ही नहीं जाते हैं, जैसे शलभ जलती हुई आग को देखकर उससे दूर भागते हैं । उसके ऊपर ऋषि, मुनि, सिद्ध तथा सम्पूर्ण देवता संतुष्ट रहते हैं। वह भगवान् श्रीकृष्ण की कृपा से सर्वत्र सुखी एवं निःशंक रहता है। श्रीकृष्ण की कथा में सदा तुम्हारा आत्यन्तिक अनुराग है । क्यों न हो? पिता का स्वभाव पुत्र में अवश्य ही प्रकट होता है । विप्रवर! तुम्हारी यह प्रशंसा क्या है ? तुम्हारा जन्म ब्रह्माजी के मानस से हुआ है। जिसका जिस कुल में जन्म होता है, उसकी बुद्धि उसके अनुसार ही होती है। तुम्हारे पिता श्रीकृष्ण के चरणारविन्दों की सेवासे ही विधाता के पद पर प्रतिष्ठित हैं । वे नित्य-निरन्तर नवधा भक्ति का पालन करते हैं । जिसका श्रीकृष्ण की कथा में अनुराग हो, कथा सुनकर जिसके नेत्रों में आँसू छलक आते हों और शरीर में रोमाञ्च छा जाता हो तथा मन उसी में डूब जाता हो; उसी को विद्वान् पुरुषों ने सच्चा भक्त कहा है। जो मन, वाणी और शरीर से स्त्री-पुत्र आदि सबको श्रीहरि का ही स्वरूप समझता है, उसे विद्वानों ने भक्त कहा है। जिसकी जीवों पर दया है तथा जो सम्पूर्ण जगत् को श्रीकृष्ण जानता है, वह महाज्ञानी पुरुष ही वैष्णव भक्त माना गया है। जो निर्जन स्थान में अथवा तीर्थों के सब सम्पर्क में रहकर आसक्तिशून्य हो बड़े आनन्द के साथ श्रीहरि के चरणारविन्द का चिन्तन करते हैं, वे वैष्णव माने गये हैं। जो सदा भगवान् के नाम और गुण का गान करते, मन्त्र जपते तथा कथा-वार्ता कहते-सुनते हैं, वे अत्यन्त वैष्णव हैं । मीठी वस्तुएँ पाकर श्रीहरि को प्रसन्नतापूर्वक भोग लगाने के लिये जिसका मन हर्ष से खिल उठता है, वह ज्ञानियों में श्रेष्ठ भक्त है । जिसका मन सोते, जागते, दिन-रात श्रीहरि के चरणारविन्द में ही लगा रहता है और जो बाह्य शरीर से पूर्व कर्मों का फल भोगता है, वह वैष्णव है। तीर्थ सदा वैष्णवों के दर्शन और स्पर्श की अभिलाषा करते हैं; क्योंकि उनके सङ्ग से उन तीर्थों के वे सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, जो उन्हें पापियों के संसर्ग से मिले होते हैं। जितनी देर में गाय दुही जाती है, उतनी देर भी जहाँ वैष्णव पुरुष ठहर जाता है, वहाँ की धरती पर उतने समय के लिये सम्पूर्ण तीर्थ निवास करते हैं। वहाँ मरा हुआ पापी मनुष्य निश्चय ही पापमुक्त हो श्रीहरि के धाम में वैसे ही ‘चला जाता है, जैसे अन्तकाल में श्रीकृष्ण की स्मृति होने पर अथवा ज्ञान-गङ्गा में अवगाहन करने पर मनुष्य परम पद को प्राप्त हो जाता है। तथा जैसे तुलसी-वन में, गोशाला, श्रीकृष्ण – मन्दिर में, वृन्दावन में, हरिद्वार में एवं अन्य तीर्थों में भी मृत्यु होने पर मनुष्य को परम धाम की प्राप्ति होती है। तीर्थों में स्नान करने या गोता लगाने से पापियों के पाप धुल जाते हैं । फिर उन तीर्थों के पाप वैष्णवों को छूकर बहने वाली वायु स्पर्श से नष्ट होते हैं। जो भगवान् हृषीकेश की और उनके पुण्यात्मा भक्त की निन्दा करते हैं, उनके सौ जन्मों का पुण्य निश्चय ही नष्ट हो जाता है । वैष्णवों के स्पर्शमात्र से पातकी मनुष्य पातक से मुक्त हो जाता है । पातकी के स्पर्श से उस भक्त में जो पाप आता है, उसका नाश उसके अन्तः- करण में बैठे हुए भगवान् मधुसूदन अवश्य कर देते हैं। ब्रह्मन् ! इस प्रकार मैंने भगवान् विष्णु और वैष्णव भक्त के गुणों का वर्णन किया है। अब मैं तुम्हें श्रीहरि के जन्म का प्रसङ्ग सुनाता हूँ, सुनो। (अध्याय ०१) ॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखंडे नारायणनारदसंवादे विष्णुवैष्णवयोर्गुणप्रशंसाप्रस्ताववर्णनं नाम प्रथमोऽध्यायः ॥ १ ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ Content is available only for registered users. 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