शिवमहापुराण — कोटिरुद्रसंहिता — अध्याय 24
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥
श्रीशिवमहापुराण
कोटिरुद्रसंहिता
चौबीसवाँ अध्याय
त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंगके माहात्म्य — प्रसंगमें गौतमऋषिकी परोपकारी प्रवृत्तिका वर्णन

सूतजी बोले— हे श्रेष्ठ ऋषियो ! मैं पापोंका नाश करनेवाली कथा कहता हूँ, जैसा कि मैंने [ अपने] श्रेष्ठ गुरु व्यासजीसे सुना है, आपलोग सुनिये ॥ १ ॥

पूर्वकालमें प्रसिद्ध गौतम नामक श्रेष्ठ ऋषि थे, उनकी परम धार्मिक अहल्या नामकी पत्नी थी ॥ २ ॥ दक्षिण दिशामें जो ब्रह्मगिरि नामक पर्वत है, वहाँ उन्होंने दस हजार वर्षतक तप किया ॥ ३ ॥ हे सुव्रतो! किसी समय वहाँपर सौ वर्षतक भयानक अनावृष्टि हुई, जिससे सभी लोग संकटमें पड़ गये। पृथ्वीतलपर [एक भी ] हरा पत्ता नहीं दिखायी पड़ता था, तब फिर प्राणियोंको जिलानेवाला पानी कहाँसे दिखायी दे सकता था ! ॥ ४—५ ॥ उस समय वे मुनिगण, मनुष्य, पशु, पक्षी और मृग [उस स्थानको छोड़कर] दसों दिशाओंमें चले गये ॥ ६ ॥ हे विप्रो ! तब उस [ अनावृष्टि ] — को देखकर कुछ ऋषि प्राणायाममें तत्पर होकर ध्यानपूर्वक उस भयंकर कालको बिताने लगे ॥ ७ ॥

महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।
गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥


महर्षि गौतमने स्वयं भी वरुणदेवताको प्रसन्न करनेके लिये प्राणायामपरायण होकर छः महीनेतक उस स्थानपर उत्तम तप किया ॥ ८ ॥ [उनकी तपस्यासे प्रसन्न हुए ] वरुणदेव उन्हें वर देनेके लिये आये और यह वचन बोले— मैं प्रसन्न हूँ, वर माँगो, मैं तुम्हें [वर] दूँगा ॥ ९ ॥ तब गौतम ऋषिने उनसे वर्षाके लिये प्रार्थना की। हे द्विजो ! इसपर उन वरुणने मुनिसे कहा—॥ १० ॥

वरुण बोले— [ हे महर्षे ! ] मैं दैवकी आज्ञाका उल्लंघनकर किस प्रकार वृष्टि करूँ ? आप तो बुद्धिमान् हैं, अतः कोई अन्य प्रार्थना कीजिये, जिसे मैं आपके लिये [प्रदान] कर सकूँ ॥ ११ ॥

सूतजी बोले— उन महात्मा वरुणका यह वचन सुनकर परोपकार करनेवाले महर्षि गौतमने यह वाक्य कहा—॥ १२ ॥

गौतम बोले— हे देवेश ! यदि आप [ मुझपर ] प्रसन्न हैं और मुझे वर देना ही चाहते हैं, तो मैं आज जो प्रार्थना करता हूँ, उसे पूर्ण कीजिये । चूँकि आप जलराशिके स्वामी हैं, इसलिये हे सर्वदेवेश ! मुझे अक्षय, दिव्य तथा नित्य फल प्रदान करनेवाला जल दीजिये ॥ १३—१४ ॥

सूतजी बोले— उन गौतमके इस प्रकार प्रार्थना करनेपर वरुणने उनसे कहा— आप एक गड्ढा खोदिये ॥ १५ ॥ उनके ऐसा कहनेपर गौतमने एक हाथका गड्ढा खोदा, तब वरुणने उस गड्ढेको दिव्य जलसे भर दिया । इसके बाद जलके स्वामी वरुणदेवने परोपकारी तथा मुनियोंमें श्रेष्ठ गौतम ऋषिसे कहा— ॥ १६ — १७ ॥

वरुण बोले – हे महामुने ! यह जल आपके लिये अक्षय एवं तीर्थस्वरूप होगा और पृथ्वीपर आपके नामसे प्रसिद्ध होगा। इस स्थानपर दान, होम, तप, देवताओंके लिये किया गया यज्ञ — पूजन तथा पितरोंके लिये किया गया श्राद्ध—यह सब अक्षय होगा ॥ १८—१९ ॥

सूतजी बोले— ऐसा कहकर उन महर्षिसे स्तुत होकर वरुणदेव अन्तर्धान हो गये और महर्षि गौतमने भी दूसरोंका उपकारकर सुख प्राप्त किया ॥ २० ॥ बड़े लोगोंका आश्रय मनुष्योंके गौरवका हेतु होता है, इसलिये महापुरुष ही उनके स्वरूपको देख पाते हैं, नीच लोग नहीं ॥ २१ ॥ मनुष्य जिस प्रकारके पुरुषका सेवन करता है, वह वैसा ही फल प्राप्त करता है, बड़ोंकी सेवासे बड़प्पन तथा छोटोंकी सेवासे लघुता प्राप्त होती है ॥ २२ ॥ सिंहकी गुफाके पास रहना गजमुक्ताकी प्राप्ति करानेवाला कहा गया है और सियारकी माँदके पास रहना अस्थिलाभ करानेवाला कहा गया है ॥ २३ ॥

सज्जन पुरुषोंका ऐसा स्वभाव होता है कि वे दूसरोंका दुःख सह नहीं सकते । वे स्वयं अपने दुःख सह लेते हैं, किंतु दूसरोंके दुःखको दूर करते हैं ॥ २४ ॥ वृक्ष, सोना, चन्दन और ईख — ये पृथ्वीपर दूसरोंके उपकारमें कुशल होते हैं, ऐसे अन्य कोई नहीं हैं ॥ २५ ॥

दयालु, अभिमानरहित, उपकारी एवं जितेन्द्रिय— इन चार पुण्यस्तम्भोंने पृथ्वीको धारण किया है ॥ २६ ॥ [हे महर्षियो!] तदनन्तर गौतमने अत्यन्त दुर्लभ जल प्राप्तकर विधिपूर्वक नित्य नैमित्तिक कर्म सम्पन्न किये ॥ २७ ॥ तत्पश्चात् मुनीश्वरने वहाँपर हवनके लिये व्रीहि, यव, नीवार आदि अनेक प्रकारके धान्योंको बोवाया । इस प्रकार विविध धान्य, अनेक प्रकारके वृक्ष, भिन्न—भिन्न प्रकारके पुष्प एवं फल आदि भी वहाँ उत्पन्न हो गये ॥ २८—२९ ॥ यह सुनकर वहाँ अन्य हजारों ऋषि भी आ गये। अनेक पशु—पक्षी एवं बहुत—से जीव भी पहुँच गये ॥ ३० ॥

इस प्रकार पृथ्वीमण्डलपर वह वन अत्यन्त सुन्दर प्रतीत होने लगा, जलके अक्षय होनेके कारण वहाँ दु:ख देनेवाली अनावृष्टि नहीं रह गयी ॥ ३१ ॥ उस वनमें अनेक ऋषिलोग भी उत्तम कर्मोंमें तत्पर होकर शिष्य, भार्या तथा पुत्रादिके साथ वहाँ निवास करने लगे ॥ ३२ ॥ उन्होंने अपना जीवन बितानेके लिये धान्योंका वपन किया। इस प्रकार [महर्षि] गौतमके प्रभावसे उस वनमें पूर्ण आनन्द व्याप्त हो गया ॥ ३३ ॥

॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत चतुर्थ कोटिरुद्रसंहिताके त्र्यम्बकेश्वरमाहात्म्यमें गौतमप्रभाववर्णन नामक चौबीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ २४ ॥

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