August 22, 2019 | aspundir | Leave a comment शिवमहापुराण – द्वितीय रुद्रसंहिता [द्वितीय-सतीखण्ड] – अध्याय 33 श्री गणेशाय नमः श्री साम्बसदाशिवाय नमः तैंतीसवाँ अध्याय गणोंसहित वीरभद्र और महाकाली का दक्षयज्ञ-विध्वंस के लिये प्रस्थान ब्रह्माजी बोले — [हे नारद!] महेश्वर के कहे गये इस वचन को आदरपूर्वक सुनकर वीरभद्र बहुत सन्तुष्ट हुए । उन्होंने महेश्वर को प्रणाम किया ॥ १ ॥ तत्पश्चात् त्रिशूलधारी उन देवाधिदेव की आज्ञा को शिरोधार्य करके वीरभद्र वहाँ से शीघ्र ही दक्ष के यज्ञ की ओर चल पड़े । भगवान् शिव ने प्रलयाग्नि के समान करोड़ों महावीर गणों को [केवल] शोभा के लिये उनके साथ भेज दिया ॥ २-३ ॥ वे बलशाली तथा वीर गण वीरभद्र के आगे और पीछे भी चल रहे थे । कौतूहल करते हुए वीरभद्रसहित जो लाखों गण थे, वे काल के भी काल शिव के पार्षद थे, वे सब रुद्र के ही समान थे ॥ ४-५ ॥ शिवमहापुराण महात्मा वीरभद्र शिव के समान ही वेशभूषा धारण करके रथ पर बैठकर उन गणों के साथ चल पड़े । उनकी एक हजार भुजाएँ थीं, उनके शरीर में नागराज लिपटे हुए थे । वे प्रबल और भयंकर दिखायी पड़ रहे थे ॥ ६ ॥ उनका रथ आठ लाख हाथ विस्तारवाला था । उसमें दस हजार सिंह जुते हुए थे, जो प्रयत्नपूर्वक रथ को खींच रहे थे ॥ ७ ॥ उसी प्रकार बहुत-से प्रबल सिंह, शार्दूल, मगर, मत्स्य और हजारों हाथी उनके पार्श्वरक्षक थे ॥ ८ ॥ इस प्रकार जब दक्ष के विनाश के लिये वीरभद्र ने प्रस्थान किया, उस समय कल्पवृक्षों से फूलों की वर्षा होने लगी । सभी गणों ने शिवजी के कार्य के लिये चेष्टा करनेवाले वीरभद्र की स्तुति की और उस यात्रा के उत्सव में कुतूहल करने लगे ॥ ९-१० ॥ उसी समय काली, कात्यायनी, ईशानी, चामुण्डा, मुण्डमर्दिनी, भद्रकाली, भद्रा, त्वरिता तथा वैष्णवी — इन नौ दुर्गाओं तथा समस्त भूतगणों के साथ महाकाली दक्ष का विनाश करने के लिये चल पड़ीं ॥ ११-१२ ॥ शिव की आज्ञा के पालक, डाकिनी, शाकिनी, भूत, प्रमथ, गुह्यक, कूष्माण्ड, पर्पट, चटक, ब्रह्मराक्षस, भैरव तथा क्षेत्रपाल आदि वीर दक्ष के यज्ञ का विनाश करने के लिये तुरंत चल दिये ॥ १३-१४ ॥ उसी प्रकार चौंसठ गणों के साथ योगिनियों का मण्डल भी सहसा कुपित होकर दक्षयज्ञ का विनाश करने के लिये निकल पड़ा ॥ १५ ॥ हे नारद ! उन सभी गणों के धैर्यशाली तथा महाबली मुख्य गणों का जो समूह था, उसकी संख्या को सुनिये ॥ १६ ॥ शंकुकर्ण [नामक] गणेश्वर दस करोड़ गणों के साथ, केकराक्ष दस करोड़ गणों के साथ तथा विकृत आठ करोड़ गणों के साथ चल पड़े ॥ १७ ॥ हे तात ! हे मुने ! विशाख चौंसठ करोड़, पारियात्रिक नौ करोड़, सर्वांकक छ: करोड़, वीर विकृतानन भी छः करोड़, गणों में श्रेष्ठ ज्वालकेश बारह करोड़, समदज्जीमान् सात करोड़, दुद्रभ आठ करोड़, कपालीश पाँच करोड़, सन्दारक छ: करोड़, कोटि और कुण्ड एक-एक करोड़, गणों में उत्तम विष्टम्भ चौंसठ करोड़ वीरोंके साथ, सन्नाद, पिप्पल एक हजार करोड़, आवेशन तथा चन्द्रतापन आठ-आठ करोड़, गणाधीश महावेश हजार करोड़ गणों के साथ, कुंडी बारह करोड़ और गणश्रेष्ठ पर्वतक भी बारह करोड़ गणों के साथ दक्षयज्ञ का विध्वंस करने के लिये चल पड़े ॥ १८-२३ ॥ काल, कालक और महाकाल सौ-सौ करोड़ गणों को साथ लेकर दक्षयज्ञ की ओर चल पड़े ॥ २४ ॥ हे तात ! अग्निकृत् सौ करोड़, अग्निमुख एक करोड़, आदित्यमूर्धा तथा घनावह एक-एक करोड़, सन्नाह सौ करोड़, गण कुमुद एक करोड़, गणेश्वर अमोघ तथा कोकिल एक-एक करोड़ और गणाधीश काष्ठागूढ, सुकेशी, वृषभ तथा सुमन्त्रक चौंसठ-चौंसठ करोड़ गणों को साथ लेकर चले ॥ २५–२७ ॥ हे तात ! गणों में श्रेष्ठ काकपादोदर साठ करोड़, गणश्रेष्ठ सन्तानक साठ करोड़, महाबल तथा पुंगव नौ-नौ करोड़, गणाधीश मधुपिंग नौ करोड़ और नील तथा पूर्णभद्र नब्बे करोड़ गणों को साथ लेकर चल पड़े । गणराज चतुर्वक्त्र सौ करोड़ गणों को साथ लेकर चला ॥ २८-३१ ॥ हे मुने ! गणेश्वर विरूपाक्ष, तालकेतु, षडास्य तथा गणेश्वर पंचास्य चौंसठ करोड़, संवर्तक, स्वयं प्रभु कुलीश, लोकान्तक, दीप्तात्मा, दैत्यान्तक एवं शिव के परम प्रिय गण श्रीमान् श्रृंगी, रिटि, अशनि, भालक और सहस्रक चौंसठ करोड़ गणों के साथ चले ॥ ३२-३४ ॥ महावीर तथा वीरेश्वर वीरभद्र भी शिवजी की आज्ञा से बीसों, सैकड़ों तथा हजारों करोड़ गणों से घिरे हुए वहाँ पहुँचे ॥ ३५ ॥ वीरभद्र हजार करोड़ भूतों तथा तीन करोड़ रोमजनित श्वगणों के साथ शीघ्र ही वहाँ पहुँच गये ॥ ३६ ॥ उस समय भेरियों की गम्भीर ध्वनि होने लगी । शंख बजने लगे । जटाहर, मुखों तथा शृंगों से अनेक प्रकार के शब्द होने लगे । उस महोत्सव में चित्त को आकर्षित एवं सुखानुभूति उत्पन्न करनेवाले बाजों के शब्द चारों ओर व्याप्त हो गये ॥ ३७-३८ ॥ हे महामुने ! सेनासहित महाबली वीरभद्र की उस यात्रा में अनेक प्रकार के सुखदायक शकुन होने लगे ॥ ३९ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराण के अन्तर्गत द्वितीय रुद्रसंहिता के द्वितीय सतीखण्ड में वीरभद्र की यात्रा का वर्णन नामक तैंतीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ३३ ॥ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe