शिवमहापुराण – शतरुद्रसंहिता – अध्याय 002
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥
श्रीशिवमहापुराण
शतरुद्रसंहिता

दूसरा अध्याय
भगवान् शिवकी अष्टमूर्तियोंका वर्णन

नन्दीश्वर बोले

हे प्रभो ! हे तात! हे मुने ! अब महेश्वरके समस्त प्राणियोंको सुख प्रदान करनेवाले तथा लोकके सम्पूर्ण कार्योंको सम्पादित करनेवाले अन्य श्रेष्ठतम अवतारोंको सुनें ॥ १ ॥ यह सारा संसार परेश शिवकी उन आठ मूर्तियोंका स्वरूप ही है, उस मूर्तिसमूहमें व्याप्त होकर विश्व उसी प्रकार स्थित है, जैसे सूत्रमें [ पिरोयी हुई ] मणियाँ ॥ २ ॥ शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव—ये [शंकरकी] आठ मूर्तियाँ विख्यात हैं ॥ ३ ॥ भूमि, जल, अग्नि, पवन, आकाश, क्षेत्रज्ञ, सूर्य एवं चन्द्रमा – ये निश्चय ही शिवके शर्व आदि आठों रूपोंसे अधिष्ठित हैं । महेश्वर शंकरका विश्वम्भरात्मक [शर्व ] रूप चराचर विश्वको धारण करता है – ऐसा ही शास्त्रका निश्चय है ॥४-५॥

महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।
गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥


समस्त संसारको जीवन देनेवाला जल परमात्मा शिवका भव नामक रूप कहा जाता है ॥ ६ ॥ जो प्राणियोंके भीतर तथा बाहर गतिशील रहकर विश्वका भरण-पोषण करता है और स्वयं भी स्पन्दित होता रहता है, सज्जनोंद्वारा उसे उग्र स्वरूप परमात्मा शिवका उग्र रूप कहा जाता है ॥ ७ ॥ भीमस्वरूप शिवका सबको अवकाश देनेवाला, सर्वव्यापक तथा आकाशात्मक भीम नामक रूप कहा गया है, वह महाभूतोंका भेदन करनेवाला है ॥ ८ ॥ जो सभी आत्माओंका अधिष्ठान, समस्त क्षेत्रोंका निवासस्थान तथा पशुपाशको काटनेवाला है, उसे पशुपतिका [ पशुपति नामक ] रूप जानना चाहिये ॥ ९ ॥ सूर्यनामसे जो विख्यात होकर सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है और आकाशमें भ्रमण करता है, वह महेशका ईशान नामक रूप है ॥ १० ॥ जो अमृतके समान किरणोंसे युक्त होकर चन्द्ररूपसे सारे संसारको आप्यायित करता है, महादेव शिवजीका वह रूप महादेव नामसे विख्यात है ॥ ११ ॥ उन परमात्मा शिवका आठवाँ रूप आत्मा है, जो शिवके प्रसिद्ध आठ स्वरूपों का वर्णन किया, अन्य सभी मूर्तियोंकी अपेक्षा सर्वव्यापक है । इसलिये यह समस्त चराचर जगत् शिवका ही स्वरूप है ॥ १२ ॥

जिस प्रकार वृक्षकी जड़ (मूल) – को सींचनेसे उसकी शाखाएँ पुष्ट होती हैं, उसी प्रकार शिवका शरीरभूत संसार शिवार्चनसे पुष्ट होता है ॥ १३ ॥ जिस प्रकार इस लोकमें पुत्र, पौत्रादिके प्रसन्न होनेपर पिता प्रफुल्लित हो जाता है, उसी प्रकार संसारके प्रसन्न होनेसे शिवजी प्रसन्न रहते हैं ॥ १४ ॥ यदि किसीके द्वारा जिस किसी भी शरीरधारीको कष्ट दिया जाता है, तो मानो अष्टमूर्ति शिवका ही वह अनिष्ट किया गया है, इसमें संशय नहीं है ॥ १५ ॥ अतः अष्टमूर्तिरूपसे सारे विश्वको व्याप्त करके सर्वतोभावेन स्थित परमकारण रुद्र शिवका सर्वभावसे भजन कीजिये । [ हे सनत्कुमार!] हे विधिपुत्र ! इस प्रकार  मैंने आपसे अपना कल्याण चाहनेवाले मनुष्योंको सभीके उपकारमें निरत इन रूपोंकी उपासना करनी चाहिये॥ १६-१७॥

॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत तृतीय शतरुद्रसंहितामें शिवाष्टमूर्तिवर्णन नामक दूसरा अध्याय पूर्ण हुआ ॥ २ ॥

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