श्रीगणेशपुराण-क्रीडाखण्ड-अध्याय-090
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
नब्बेवाँ अध्याय
बालक गुणेश के द्वारा बारहवें मास में नूपुर तथा अविपुत्र नामक दैत्यों का वध
अथः नवतितमोऽध्यायः
अविजयवध

ब्रह्माजी बोले — बारहवें मास की बात है। एक दिन देवी पार्वती विविध अलंकरणों से अलंकृत करके अपने अद्भुत पुत्र बालक गुणेश को गोद में लेकर अपनी सखियों के साथ बैठी हुई थीं ॥ १ ॥ उस समय गुणेश की आभा करोड़ों सूर्यौं की प्रभा से सम्पन्न थी और वे करोड़ों आभूषणों से विभूषित थे। उस समय माता को पुत्र के नृत्य के दर्शन की महान् उत्कण्ठा हुई। अन्य बालकों तथा भगवान् शिव की भी नृत्य- दर्शन की इच्छा जानकर वे गिरिजापुत्र गुणेश ‘थेयि थेयि’ शब्दों का उच्चारण करते हुए नृत्य करने लगे ॥ २-३ ॥ बालक गुणेश के उस प्रकार के शब्द को सुनकर भगवान् शिव भी नृत्य करने के लिये वहाँ आ पहुँचे। भगवान् शिव को नृत्य करते हुए देखकर श्रीविष्णु स्वयं भी नृत्य करने लगे । तदनन्तर इन्द्र आदि सभी देवता भी नृत्य की अभिलाषा से वहाँ आ पहुँचे। वह बालक जिस प्रकार से नृत्य कर रहा था, उसी प्रकार से वे सब भी नाचने लगे ॥ ४-५ ॥

वह गुणेश जिस भाव को प्रकट कर रहा था, वे सभी भी वैसा ही भाव प्रदर्शित करने लगे। सभी मनुष्य, पशु, वृक्ष, यक्ष, राक्षस, पन्नग, मुनिजन, मनुगण, राजालोग, चौदहों भुवन और इक्कीस स्वर्गों के निवासी तथा सभी चेतन और अचेतन प्राणी उस बालक गुणेश के प्रभाव से नृत्य करने लगे। उस गुणेश की इच्छा के अनुसार भूतल के समस्त प्राणी, मुनिजनों की पत्नियाँ, देवताओं की पत्नियाँ भी उन गिरिकन्या पार्वती के साथ नृत्य करने लगीं ॥ ६-८ ॥

हे मुनिवर व्यासजी ! उस समय नूपुरों की ध्वनि से, छोटी-छोटी घण्टियों के शब्दों से तथा पैरों के आघात की थाप से दिशाएँ एवं विदिशाएँ और आकाश तथा पर्वत भी निनादित हो उठे। धरती, शेषनाग, सूर्य, चन्द्र तथा तारागण कम्पित हो उठे ॥ ९-१० ॥ तब नृत्य की अत्यन्त पराकाष्ठा देखकर देवी पार्वती ने और आगे नृत्य न करने की आज्ञा प्रदान की, तब भी बालक गुणेश ने गौरी द्वारा कहे गये वचन का पालन नहीं किया ॥ ११ ॥

उसी समय की बात है, नूपुर नामक महान् दैत्य वहाँ आया। उसका शरीर काले रंग का और अत्यन्त कठोर था । उसके पैर पाताल तक लम्बे थे और उसका सुदृढ़ मस्तक आकाश को छूने वाला था ॥ १२ ॥ वह दुष्ट राक्षस अत्यन्त सूक्ष्म रूप धारण करके शिशु गुणेश के नूपुरों के अन्दर प्रविष्ट हो गया। बालक गुणेश ने भी उस अत्यन्त बलवान् दैत्य को शीघ्र ही अपनी माया से उसी प्रकार बाँध लिया, जैसे कि मदस्रावी चार दाँतों वाले हाथी को जंजीरों से बाँध दिया जाता है। तभी पर्वतराजपुत्री पार्वती ने अपने बालक उस गुणेश को पुनः गोद में ले लिया ॥ १३-१४ ॥ उस समय उस गुणेश के भार से वे पार्वती उसी प्रकार पीड़ित हुईं, जैसे कि पृथिवी का ही भार गोद में आ गया हो। तब गौरी कहने लगीं — तुम अभी-अभी इतने भारी कैसे हो गये हो ? अतः तुम मेरी गोद से उतर जाओ, अरे बालक ! तुम्हारे भार के कारण तो मेरे प्राण ही निकल जायँगे! ॥ १५-१६ ॥

ब्रह्माजी बोले — माता के ये वचन कि ‘वह भार से अत्यन्त पीड़ित हो रही है’ सुनकर बालक गुणेश माता की गोद से उतर गये और उन्होंने बलपूर्वक अपने दोनों पैरों को जोर से झटका मारा ॥ १७ ॥ फलस्वरूप वह दैत्य नूपुर से निकलकर पक्षी की भाँति आकाश में चक्कर काटने लगा। उसके विस्तृत शरीर से सूर्य के ढक जाने के कारण सम्पूर्ण पृथ्वी में अन्धकार छा गया ॥ १८ ॥ अकस्मात् वह दुष्ट दैत्य पृथ्वी पर गिर पड़ा और उसके सौ टुकड़े हो गये। यह देखकर सभी मुनिगण तथा देवता परम आनन्द में निमग्न हो गये और वे उन बालरूपी अविनाशी परमात्मा की स्तुति करने लगे ॥ १९१/२

देवता तथा ऋषि बोले — हे देव ! हम लोग आपके विविध स्वरूपों, आपके तेज तथा दैत्यों और दानवों का विनाश करने वाली आपकी अनेकों प्रकार की लीलामयी माया को नहीं जानते हैं। आपने सूर्यमण्डल को आच्छादित कर देने वाले दैत्य नूपुर को अपने चरणों से झटक दिया । वह आकाश में बार-बार चक्कर काटता हुआ पुनः पृथ्वी पर गिरकर सौ टुकड़े हो गया। गिरते समय उसने अनेक प्राणिसमूहों, वृक्षों, आश्रमों तथा पर्वतों को विनष्ट कर डाला। आपको नृत्य करते देखकर अन्य सभी लोग भी बाद में नृत्य करने लगे ॥ २०-२२१/२

ब्रह्माजी बोले — तदनन्तर उन सभी ने विश्वरूपी उन बालक गुणेश की पूजा की। नृत्योत्सव के पूर्ण हो जाने के अनन्तर देवी पार्वती ने गौतम आदि महर्षियों को विदा किया और वे बालक गुणेश को गोद में लेकर दुलार करती हुई उन्हें अपना स्तनपान कराने लगीं । फिर उन्होंने सभी स्त्रियों को विदाकर अपने भवन में प्रवेश किया ॥ २३-२४१/२

कुछ दिनों के बाद की बात है, एक दिन वे गुणेश मुनिबालकों के साथ घर से बाहर क्रीडा करने के लिये गये और लीलापूर्वक क्रीडा करने लगे। उन सभी बालकों ने दो-दो का जोड़ा बनाकर अनेक प्रकार से बहुत बार परस्पर मल्लयुद्ध किया ॥ २५-२६ ॥ वे परस्पर चोटी पकड़कर एक-दूसरे को गिराने लगे। वे कभी एक-दूसरे के सिर में सिर भिड़ाकर, कभी घुटनों-से-घुटना टकराकर, कभी कोहनी-से-कोहनी में मारकर तो कभी पैर से दूसरे के पैर में चोट मार [करके क्रीडा कर] रहे थे। वे कभी एक-दूसरे की पीठ पर चढ़ जाते, तो कभी कन्धे पर चढ़ जाते ॥ २७-२८ ॥ वे बालक कभी-कभी नियत समय के लिये हाथ फैलाकर दौड़ लगाते और कभी मुट्ठी में धूलि भरकर एक-दूसरे पर फेंकने लगते। वे परस्पर कभी एक-दूसरे के पेट में लात से मार रहे थे, तो कभी सिर पर मार रहे थे। कुछ बालक गन्ध, पुष्प तथा अक्षत आदि के द्वारा उन गुणेश का पूजन कर रहे थे ॥ २९-३० ॥

कुछ बालक उन गुणेश को अपने आश्रम में ले जाकर अन्न आदि का भोजन करा रहे थे। कोई उनके चरणयुगल में प्रणाम करके सुन्दर माला चढ़ा रहे थे। उसी समय सिन्धुदैत्य द्वारा भेजा हुआ भेड़ के बच्चे का रूप धारणकर एक दैत्य वहाँ आ पहुँचा, जिसे देखकर हाथ में दण्ड धारण करने वाले भयानक यमराज भी भयभीत हो जाते थे ॥ ३१-३२ ॥ तीखी धार से युक्त नखों वाला वह बलशाली भेड़ा अपने पराक्रमसे शत्रुओं का वध कर देता था । उसने सभी को जीतकर अपने बाहुदेश में विजयपत्र बाँध रखा था। उसकी आँखें बहुत बड़ी-बड़ी थीं। सींग उसके बहुत विशाल थे। बड़े-बड़े पर्वतों को वह चूर-चूर कर डालता था। वह भेड़रूप दुष्ट दैत्य अपनी पूँछ के आघात से प्राणियों को मार डालता था ॥ ३३-३४ ॥ वह अपने सींगों के आघात से वृक्षों तथा पर्वतों को उखाड़ डालता था। वह बलवान् भेड़ा मनुष्यों का पीछा करता हुआ बलपूर्वक उन्हें मार डालता था ॥ ३५ ॥

वह महान् असुर पार्वती के पुत्र गुणेश को मारने के लिये आया। वह पीछे से दौड़कर जबतक उसको मारता, उससे पहले ही बालक गुणेश ने अपने हाथों से उसके सींग पकड़ लिये और उसकी पीठपर वे उसी प्रकार चढ़ गये, जैसे घोड़े की पीठ पर कोई बालक चढ़कर बैठ जाता है ॥ ३६-३७ ॥ उस समय कुछ मुनिबालक उस दैत्य भेड़े की पूँछ पकड़कर खींचने लगे और कुछ लाठियों तथा डण्डों से उस महान् दैत्य को पीटने लगे ॥ ३८ ॥ किंतु उस दैत्य ने उन सबकी अवहेलना करते हुए उन्हें शीघ्र ही पूँछ के आघात से आहत किया। तब वे पूँछ के आघात से पीड़ित होकर भूमि पर गिर पड़े ॥ ३९ ॥ उस दैत्य के वैसे पराक्रम को देखकर बालक गुणेश उसकी पीठ से उतर गये और उसे पकड़कर देरतक घुमाकर सहसा उसकी पीठ में प्रहार किया। जिससे वह असुर हजार टुकड़ों में खण्डित होकर सहसा मर गया, मरते समय उसके द्वारा किये गये शब्द से तीनों लोक भयभीत हो उठे ॥ ४०-४१ ॥ वह अपने विकृत मुख को फैलाकर उस मुख से रक्त बहाने लगा। तदनन्तर वे मुनियों के बालक पर्वतपुत्री पार्वती से कहने लगे — भेड़े के रूप में स्थित इस महान् असुर को, जो हमको मारने के लिये आ रहा था, उसे इस बलशाली बालक ने खेल-खेल में ही मार डाला है ॥ ४२-४३ ॥

ब्रह्माजी बोले — तब देवी पार्वती ने मरे हुए महादैत्य तथा अपने पुत्र गणेश को देखा तो वे परम आश्चर्य करने लगीं और फिर वे बालक गुणेश को अपने भवन में ले गयीं । वहाँ ले जाकर उन्होंने उसके सिर के ऊपर जल के साथ दही तथा भात घुमाकर उसे घर से बहुत दूर ले जाकर फेंका तथा बालक को स्तनपान कराया ॥ ४४-४५ ॥ गणों ने दैत्य के शरीर के उन टुकड़ों को दूर ले जाकर फेंक दिया। उस समय मुनिगणों, मुनिपत्नियों, मुनिबालकों तथा अन्य स्त्रियों ने पार्वती के पुत्र की प्रशंसा की। देवताओं ने बालक गुणेश पर पुष्पों की वर्षा की। ब्राह्मणों ने उसे आशीर्वाद प्रदान किया और अप्सराएँ नृत्य करने लगीं ॥ ४६-४७ ॥

॥ इस प्रकार श्रीगणेशपुराण के क्रीडाखण्ड में ‘नूपुर तथा अविपुत्र नामक दैत्यों के वध का वर्णन’ नामक नब्बेवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ९० ॥

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