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भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय २००
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय २००
कपास पर्वत दान विधि का वर्णन

श्रीकृष्ण बोले — अब मैं तुम्हें कपास (रुई) पर्वत के दान का विधान बता रहा हूँ, जो समस्त दानों में उत्तम एवं समस्त देवों को अत्यन्त प्रिय है । धनागम होने पर देश काल के अवसर पर श्रद्धा समेत अपने कुलोद्धार के निमित्त यह महादान सुसम्पन्न करना चाहिए । पूर्वोक्त विधान द्वारा सम्मत कर्मों को सम्पन्न करते हुए विधान पूर्वक कपास पर्वत की रचना करे ।om, ॐ जो विद्वानों के कथनानुसार बीस भार का उत्तम, दश का मध्यम और पाँच भार का निकृष्ट बताया गया है । कृपणता रहित होकर निर्धन मनुष्य को भी एक भार कपास से इस पर्वत का निर्माण एवं दान करना चाहिए । नृपपुङ्गव ! पर्वत की भाँति सम्पूर्ण कार्य करते हुए जागरण और अधिवासन भी सुसम्पन्न कर पुनः प्रातःकाल इस मंत्र द्वारा प्रार्थना करे —

त्वमेवावरणं यस्माल्लोकानामिह सर्वदा ।
कार्पासाचल नस्तस्मादघौघध्वंसनो भव ॥
(उत्तरपर्व २०० । ७)
कार्पासाचल ! तुम्हीं सदैव समस्त लोकों का आवरण रूप रहते हो, अतः हमारे पाप समूहों का विध्वंस करो ।

किसी पर्व काल में इस मंत्र के उच्चारण पूर्वक कपास शैल का दान करने वाला मनुष्य रुद्वलोक में एक कल्प तक सुखानुभव करने के अनन्तर यहाँ आकर रूपवान् राजा होता है । इस के दान से स्त्री भी पाँच जन्म तक वही सुखानुभव प्राप्त करती है । नरनाथ ! कपास ही जगत् का एक मात्र बन्धु हैं क्योंकि उसके बिना उत्तम वस्त्र का योग किसी को प्राप्त नहीं होता है अतः मनुष्यों को नित्य अपने सुखार्थ और पापसमूह को नष्ट करने के लिए कपास पर्वत का दान अवश्य करना चाहिए ।
(अध्याय २००)

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