November 1, 2025 | aspundir | Leave a comment श्रीगणेशपुराण-क्रीडाखण्ड-अध्याय-091 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ इक्यानबेवाँ अध्याय बालक गुणेश द्वारा कूट तथा मत्स्य आदि रूप धारण करने वाले दैत्यों के वध की लीला-कथा अथः एकनवतितमोऽध्यायः वत्सशैलासुरवध ब्रह्माजी बोले — गुणेश के दूसरे वर्ष की अवस्था की बात है, बालक गुणेश असंख्य बालकों के साथ वाटिका में क्रीड़ा कर रहे थे, वह वाटिका विविध प्रकार के वृक्षों तथा लताओं से व्याप्त थी ॥ १ ॥ वे गुणेश खजूर तथा कटहल के फलों को स्वयं खा भी रहे थे और बलशाली होने से बहुत-से फलों को गिराकर उन बालकों को भी दे रहे थे ॥ २ ॥ उसी समय कूट नामक एक महान् दैत्य उन बालकों के पानी पीने का समय जानकर वहाँ आया। वह दैत्य अत्यन्त दुष्ट, कपटी एवं मायावी था । उस दुर्बुद्धि दैत्य ने उन सब बालकों को मारने की इच्छा से सरोवर के जल में ऐसी विषराशि को हिलाकर मिला दिया, कि जिसके स्पर्श करने मात्र से प्राणी क्षणभर में मर जाते थे और जिन विषों से उठी हुई वायु से आकाशचारी पक्षी भूमि पर गिर पड़ते थे । कुछ समय बीतने के बाद कूट नामक वह दैत्य उन बालकों की मृत्यु को देखने की इच्छा से वहाँ जाकर प्रतीक्षा करने लगा ॥ ३-५ ॥ तदनन्तर वे बालक, जिन्हें पता नहीं था कि जलमें विष मिला हुआ है, जल पीने के लिये वहाँ गये, वहाँ उनमें से किसी ने चुल्लू से तथा किसी ने अंजलि में जल लेकर पिया ॥ ६ ॥ जल में मरी हुई मछलियों को लेकर वे बालक जब बाहर आये तो विषपान करने से स्वयं भी मर गये। यह देखकर रक्षक ने गाँव में जाकर बालकों की मृत्यु का समाचार उच्च स्वर में सुनाया ॥ ७ ॥ तब महान् हाहाकार करते हुए सभी नागरिक वहाँ आये। वे अपने हाथों से अपनी छाती पीट रहे थे और कुछ पत्थरों से अपना सिर पीट रहे थे ॥ ८ ॥ उस समय पुरुषों तथा स्त्रियों का महान् कोलाहल व्याप्त हो गया। उन सभी के क्रन्दन को सुनकर पार्वतीपुत्र ने भी अपने दृष्टिपात के द्वारा पुर में रहने वाले उन सभी बालकों को जीवित कर दिया और अपनी क्रूर दृष्टि द्वारा देखने मात्र से मरे हुए उस कूट नामक दैत्य को भूमि पर गिरा दिया ॥ ९-१० ॥ उस दैत्य के गिरने से पाँच योजन विस्तारवाली वह वाटिका चूर-चूर हो गयी । यह दृश्य वहाँ उपस्थित सभी नगरवासियों ने देखा। कुछ लोग भयभीत होकर भाग गये थे। बालक गुणेश ने सभी जलचर जीवों को जिला दिया और उस सरोवर को विष से रहित कर दिया। सभी नगरनिवासी अपने-अपने बालकों को लेकर अपने-अपने घर चले आये ॥ ११-१२ ॥ सभी ने पार्वती के पुत्र उन गुणेश की प्रशंसा की, किंतु जो नास्तिक और दुष्ट थे, वे उनकी निन्दा करने लगे। कुछ दूसरे लोग कहने लगे कि इसके साथ होने से सभी अरिष्ट विनष्ट हो जाते हैं । तदनन्तर तीसरे वर्ष की बात है, एक दिन प्रातःकाल के समय पार्वतीपुत्र गुणेश सबकी नजरों से बचते हुए बाहर चले गये, मुनियों के बालक भी उनके पीछे-पीछे निकल गये ॥ १३-१४ ॥ एक रात-दिन तक अलग-अलग रहने के बाद जब वे पुनः परस्पर मिले तो एक-दूसरे को गले लगा लिया, उन्होंने गुणेश से कहा — हे देव ! हम सभी सर्वदा आपको रात्रि में स्वप्न में देखा करते हैं । हे प्रभो! आपको देखे बिना हमें एक रात्रि का समय एक युग के समान प्रतीत होता है। इस समय आपका दर्शन करके हम सभी बहुत प्रसन्न हो गये हैं ॥ १५-१६ ॥ हे महासत्त्वसम्पन्न गुणेश! आज हम सब लोग दो दल बनाकर सुखपूर्वक क्रीड़ा करते हैं। तदनन्तर बालक एक ओर हो गये और शेष आधे बालक दूसरी ओर। तब कीचड़ से गोले बनाकर उनसे वे बालक पृथ्वी और आकाश को निनादित करते हुए एक-दूसरे पर प्रहार करने लगे। वे आह्लादपूर्वक इस प्रकार युद्ध करते हुए परस्पर एक-दूसरे को खींचने लगे ॥ १७-१८ ॥ इस प्रकार आनन्दपूर्वक क्रीड़ा करते हुए दूर एक मुनि के आश्रम में पहुँच गये। वहाँ पर विद्यमान एक योजन विस्तारवाले एक सरोवर में जाकर वे क्रीड़ा करने लगे। पूर्व की भाँति पुनः दो भागों में बँटकर अपने-अपने हाथ की अंजलि में जल लेकर एक-दूसरे पर उछालने लगे। वे कभी जल में गोते लगाकर, पुनः किसी दूसरे के कन्धे पर चढ़कर उसे बलपूर्वक जल में डुबो दे रहे थे ॥ १९-२० ॥ उसी समय की बात है, एक दैत्य मत्स्य का रूप धारणकर उन सभी के साथ वैसी ही क्रीड़ा करने लगा। वे बालक अपने हाथों के आघात से उस सरोवर के जल को छपछपाने लगे और वह भी अपनी पूँछ के द्वारा उनपर जल छिड़कने लगा। उस सरोवर के कलुषित जल की लहरें बार-बार तट पर टकरा रही थीं। सरोवर के किनारे पर स्थित पार्वतीपुत्र गुणेश को देखकर वह मत्स्य उनके समीप में गया ॥ २१-२२ ॥ उसने अपना मुख फैलाया और गुणेश के दोनों पैरों को अपने मुख में भर लिया और फिर ‘दौड़ो -दौड़ो’ इस प्रकार से चिल्लाते हुए उन गुणेश को वह खींचते हुए सरोवर के गहरे जल में ले गया ॥ २३ ॥ वह मत्स्यरूपी महादैत्य उन गुणेश को लेकर बहुत समय तक जल में निमग्न रहा । गिरिजापुत्र गुणेश को जल में डूबा हुआ देखकर मुनियों के बालक रोने लगे ॥ २४ ॥ वे अपने हथेली के पृष्ठभाग को अपने होठों से लगाकर हाहाकार करने लगे। कुछ बालकों ने उस सरोवर में डुबकी भी लगायी, किंतु वहाँ उन्होंने उस बालक को नहीं देखा। पार्वती के द्वारा पीटे जाने के भय से भयभीत कुछ बालक भाग खड़े हुए। उनमें से कुछ बालकों ने पार्वती के पास जाकर उस बालक के सरोवर में डूबने का समाचार उन्हें बताया कि खेल रहे हम सभी बालकों को छोड़कर बालक गुणेश को लेकर एक मत्स्य जल में चला गया ॥ २५-२६१/२ ॥ ब्रह्माजी बोले — बालकों का वचन सुनकर गौरी मूर्च्छित होकर भूमि पर गिर पड़ीं। एक मुहूर्त के अनन्तर जब चेतना को प्राप्त हुईं तो रोती हुई बाहर निकल पड़ीं। उस समय उनके नेत्रों से आँसू निकल रहे थे, मस्तक पर से आँचल गिर गया था ॥ २७-२८ ॥ वे लड़खड़ाती तथा लम्बी श्वास लेती और भूमि पर गिरती हुई जा रही थीं। कुछ सखियाँ अपना काम-धाम छोड़कर शीघ्र ही उनके पीछे दौड़ पड़ीं ॥ २९ ॥ देवी पार्वती अपनी सखियों के साथ शीघ्र ही वहाँ पहुँच गयीं। मुनिगण भी वह समाचार पाकर सरोवर की ओर चल पड़े ॥ ३० ॥ उनमें से कुछ ने अगाध जल में गोता लगाया, किंतु वे उमापुत्र गणेश को खोज नहीं पाये । कुछ मुनियों ने गुणेश की माता से कहा — हमारे बालकों ने जल में डुबकी लगायी, किंतु उन्होंने मत्स्य के उदर में प्रविष्ट आपके बालक को नहीं देखा। उनके वचनों को सुनकर गौरी ने पुनः रोना आरम्भ कर दिया ॥ ३१-३२ ॥ उमा बोलीं — उस सर्वांगसुन्दर बालक को देखे बिना मेरे प्राण निकल जायँगे। मैंने बड़े ही कष्ट से उस अत्यन्त पराक्रमी ईश्वर को प्राप्त किया है। वह समस्त चराचर जगत् का गुरु है, माया से परे है, परम मायावी है, अनन्त कोटि ब्रह्माण्डों का नायक है और विश्व की सृष्टि करने वाला है ॥ ३३-३४ ॥ ऐसा कहते हुए वे अपने हाथ से बार-बार अपना माथा और वक्षःस्थल पीटने लगीं। उस प्रकार से विलाप करती हुई उन पार्वती को देखकर मुनिगण भी रोने लगे । तदनन्तर उन दयालु देव गुणेश ने उनके कारुणिक वचन सुनकर स्वयं भी मत्स्य का रूप धारण कर लिया। तदनन्तर मत्स्यरूपधारी गुणेश और मत्स्यरूपधारी दैत्य में परस्पर युद्ध होने लगा ॥ ३५-३६ ॥ उन दोनों के परस्पर आघात से जलचर जीव मरकर तटपर गिर रहे थे। वे दोनों दाँतों से एक-दूसरे को काट रहे थे और पूँछ के आघात से एक-दूसरे पर प्रहार कर रहे थे ॥ ३७ ॥ वे अपने-अपने पेट से पेट पर तथा पीठ से पीठ पर मार रहे थे। इस प्रकार बहुत देर तक बलपूर्वक भयंकर युद्ध करके मत्स्यरूप धारण किये गुणेश ने बड़े जोर से अपने मुख से उसके मुख पर आघात किया । उस प्रबल आघात से उसका मुख फूट गया, आँखें फूट गयीं और उसका घमण्ड चूर-चूर हो गया ॥ ३८-३९ ॥ तदनन्तर वह मत्स्यरूपधारी दैत्य जल के अन्दर चला गया, मत्स्यरूपधारी उमापुत्र वे गुणेश भी उसके पीछे-पीछे जल के अन्दर चले गये। वह दैत्य जहाँ-जहाँ जाता, वे गुणेश भी वहीं-वहीं उसके पीछे जाते ॥ ४० ॥ उस दैत्य को कहीं छिपा हुआ जानकर मत्स्यरूपी गुणेश ने अपनी पूँछ से उसपर प्रहार किया और वे उसकी पूँछ को अपने मुख से पकड़कर वहाँ से बाहर निकल पड़े। तदनन्तर गुणेश ने उसे अपने भार से दबाकर चूर-चूर कर दिया। अपने मुख से रक्त बहाता हुआ और महान् चीत्कार करता हुआ वह दैत्य प्राणहीन हो गया, तब गणेश ने उसे छोड़ दिया ॥ ४१-४२ ॥ उस दैत्य के द्वारा की गयी भयंकर ध्वनि ने तीनों लोकों को प्रकम्पित कर डाला । तदनन्तर वे गुणेश जल से बाहर आ गये। उस समय देवी पार्वती ने उनका आलिंगन किया। आनन्द में निमग्न पार्वती ने बड़ी ही प्रसन्नतापूर्वक उन्हें स्तनपान कराया और वे कहने लगीं — मुझसे पूछे बिना तुम बालकों के साथ कहाँ चले गये थे?॥ ४३-४४ ॥ तुम्हारे ऊपर जो-जो भी विघ्न आता है, वह सौभाग्यवश महर्षि द्वारा किये गये रक्षा-विधान के द्वारा और जगदीश्वर भगवान् शम्भु की कृपा से विनष्ट हो जाता है। तुम इतने चंचल क्यों हो गये हो, मैं तुम्हारी रक्षा कैसे करूँ ? हे प्रिय पुत्र ! तुम्हारे वियोग में तो मेरे प्राण ही निकल जायँगे ॥ ४५-४६ ॥ ब्रह्माजी बोले — तदनन्तर मुनिगणों ने कहा — हे प्रभो! आपके बिना हम बड़े ही दुखी थे, अब इस समय आपका दर्शन प्राप्तकर हमें पहले जैसा ही आनन्द प्राप्त हो रहा है । तदनन्तर सभी मुनियों, देवी पार्वती की सखियों तथा अन्य स्त्रियों ने भी अनेक प्रकार के द्रव्यों से उनका पूजन किया, फिर गुणेश को प्रणाम करके वे सभी उनकी प्रार्थना करने लगे ॥ ४७-४८ ॥ हे देवेश्वर ! हम सब आपके शरणागत हैं, आप हमारा परित्याग न करें। इसके बाद देवी उमा बालक गणेशको लेकर अपने श्रेष्ठ स्थानपर चली गयीं ॥ ४९ ॥ इसके साथ ही सभी गण, सखियाँ तथा मुनिजन हर्ष से निमग्न हो अपने स्थानों को चल पड़े। उसी समय मार्ग में एक शैल नामक महाबली दूसरा दैत्य आ पहुँचा। वह दैत्य सभी शत्रुओं का विनाश करने वाला, मगरमच्छ के समान कठोर शरीर वाला और वज्र को भी विनष्ट कर देने वाला था। उसकी शब्दध्वनि से क्षणभर में ही पर्वत विदीर्ण हो जाते थे ॥ ५०-५१ ॥ आकाश को छूता हुआ वह रास्ता रोककर सहसा खड़ा हो गया। उसका मस्तक दो योजन विस्तृत था और वह नीचे की ओर बारह योजन लम्बा था ॥ ५२ ॥ उस दैत्य शैल के विस्तृत शरीर में सरोवर, वृक्ष तथा लताएँ सुशोभित थीं और वहाँ सिंह, शार्दूल, हाथी, यक्ष तथा राक्षस विचरण किया करते थे ॥ ५३ ॥ इस प्रकार के उस शैल दैत्य को देखकर वे सभी मुनिगण, स्त्रियाँ आदि विह्वल हो गये और कहने लगे कि यह कौन-सा विघ्न आ खड़ा हुआ। उस समय देवी पार्वती भी उनके पास खड़ी हो गयीं और तब वे सब मुनिगण भी वहीं खड़े हो गये ॥ ५४ ॥ तदनन्तर वे मुनिगण बोले — हम अपनी स्त्रियों को तथा सन्तानों को कब देखेंगे ? देव गुणेश अब कब यहाँ पराक्रम दिखलायेंगे ? ॥ ५५ ॥ हम लोगों का होम तथा तर्पण – श्राद्ध आदि करने का यह समय व्यर्थ ही चला जायगा । तब देवी गौरी उन सबसे बोलीं — आपलोग दुःख न करें। इस समय मुझे भी शंकर की चिन्ता हो रही है ॥ ५६१/२ ॥ ब्रह्माजी बोले — उन सभी के वचनों को सुनकर अत्यन्त बुद्धिमान् गुणेश ने तत्क्षण विराट् रूप धारण किया और अपने श्वास की फूँकमात्र से उस दैत्य शैल को दूर पछाड़ दिया, वे मुनिगण भ्रमित हो जाने के कारण गुणेश [विराट् ] स्वरूप को देख न सके ॥ ५७-५८ ॥ उस समय गुणेश के श्वास के संयोग से वह दैत्य शैल आकाशमण्डल में चक्कर काटने लगा। यह सब देखकर वे सभी मुनिगण आश्चर्यचकित हो गये और गुणेश की प्रशंसा करने लगे ॥ ५९ ॥ जिस प्रकार आँधी किसी पत्ते को उड़ा डालती है, वैसे ही वह दैत्य आकाश में उड़कर भूमि पर गिर पड़ा। उस दैत्य शैल के हजारों टुकड़े हो गये, उसने गिरते समय अनेकों वृक्षों को चूर-चूर कर डाला ॥ ६० ॥ तदनन्तर वे मुनिगण कहने लगे – हे गुणेश्वर ! आपको साधुवाद है, साधुवाद है। आपने हमारा अरिष्ट दूर कर दिया है, आपकी कृपा से अब हम अपने-अपने आश्रम में सुखपूर्वक रह सकेंगे और अपने-अपने नित्यकर्मों को पूर्ववत् पुनः कर सकेंगे ॥ ६११/२ ॥ ब्रह्माजी बोले — इस प्रकार कहकर उन्हें प्रणाम करके और उनसे अनुमति लेकर तथा उनका पूजन करके वे सभी मुनिगण चले गये ॥ ६२ ॥ देवी पार्वती ने उन गुणेश को लेकर अपने भवन में प्रवेश किया, उनकी सखियाँ तथा मुनिपत्नियाँ भी उनकी आज्ञा लेकर अपने घरों को गयीं। जो मनुष्य इस आख्यान का श्रवण करता है, वह सर्वत्र सुख, दीर्घ आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य तथा सर्वत्र विजय प्राप्त करता है ॥ ६३-६४ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीगणेशपुराण के क्रीडाखण्ड में ‘कूटासुर, मत्स्यासुर तथा शैलासुर के वध का वर्णन’ नामक इक्यानबेवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ९१ ॥ Content is available only for registered users. 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