ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 26 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ छब्बीसवाँ अध्याय सावित्री – धर्मराज के प्रश्नोत्तर, सावित्री को वरदान भगवान् नारायण कहते हैं — नारद! सावित्री के वचन सुनकर यमराज के मन में बड़ा आश्चर्य हुआ। वे हँसकर प्राणियों के कर्म विपाक कहने के लिये उद्यत हो गये… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 25 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ पच्चीसवाँ अध्याय सावित्री और यमराज का संवाद भगवान् नारायण कहते हैं — मुने! पतिव्रता सावित्री ने यमराज की बात सुनकर परम भक्ति के साथ उनका स्तवन किया; फिर वह उनसे पूछने लगी । सावित्री ने पूछा — भगवन्! कौन… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 24 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ चौबीसवाँ अध्याय राजा अश्वपति द्वारा सावित्री की उपासना तथा फलस्वरूप सावित्री नामक कन्या की उत्पत्ति, सत्यवान् ‌के साथ सावित्री का विवाह, सत्यवान् की मृत्यु, सावित्री और यमराज का संवाद भगवान् नारायण कहते हैं — नारद! जब राजा अश्वपति ने… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 23 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ तेईसवाँ अध्याय सावित्री देवी की पूजा-स्तुति का विधान नारदजी ने कहा — भगवन् ! अमृत की तुलना करने वाली तुलसी की कथा मैं सुन चुका। अब आप सावित्री का उपाख्यान कहने की कृपा करें । देवी सावित्री वेदों की… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 22 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ बाईसवाँ अध्याय तुलसी पूजन, ध्यान, नामाष्टक तथा तुलसी-स्तवन का वर्णन नारदजी ने पूछा — प्रभो! तुलसी भगवान् नारायण की प्रिया हैं, इसलिये परम पवित्र हैं । अतएव वे सम्पूर्ण जगत् के लिये पूजनीया हैं; परंतु इनकी पूजा का क्या… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 21 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ इक्कीसवाँ अध्याय शङ्खचूड़-वेषधारी श्रीहरि द्वारा तुलसी का पातिव्रत्य भङ्ग, शङ्खचूड़ का पुनः गोलोक जाना, तुलसी और श्रीहरि का वृक्ष एवं शालग्राम-पाषाण के रूप में भारतवर्ष में रहना तथा तुलसी महिमा, शालग्राम के विभिन्न लक्षण तथा महत्त्व का वर्णन नारदजी… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 20 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ बीसवाँ अध्याय भगवान् शंकर और शङ्खचूड़ का युद्ध, शंकर के त्रिशूल से शङ्खचूड़ का भस्म होना तथा सुदामा गोप के स्वरूप में उसका विमान द्वारा गोलोक पधारना भगवान् नारायण कहते हैं — नारद! भगवान् शिव तत्त्व जानने में परम… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 19 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ उन्नीसवाँ अध्याय भगवान् शंकर और शङ्खचूड़ के पक्षों में युद्ध, भद्रकाली का घोर युद्ध और आकाशवाणी ‘सुनकर काली का ‘शङ्खचूड़ पर पाशुपतास्त्र न चलाना भगवान् नारायण कहते हैं — मुने! प्रतापी दानवराज शङ्खचूड़ सिर झुका भगवान् शिव को प्रणाम… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 18 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ अठारहवाँ अध्याय शङ्खचूड़का पुष्पभद्रा नदीके तटपर जाना, वहाँ भगवान् शंकरके दर्शन तथा उनसे विशद वार्तालाप भगवान् नारायण कहते हैं — नारद! राजा शङ्खचूड़ श्रीकृष्ण का भक्त था। वह मन में भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करके ब्राह्ममुहूर्त में ही अपनी… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 17 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ सत्रहवाँ अध्याय पुष्पदन्त का दूत बनकर शङ्खचूड़ के पास जाना और शङ्खचूड़ के द्वारा तुलसी के प्रति ज्ञानोपदेश भगवान् नारायण कहते हैं — नारद! तदनन्तर ब्रह्मा दानव के संहार कार्य में शंकर को नियुक्त करके स्वयं उसी क्षण अपने… Read More