June 2, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 003 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ तीसरा अध्याय समुद्र मन्थन, कूर्म तथा मोहिनी अवतार की कथा अग्निदेव कहते हैं — वसिष्ठ! अब मैं कूर्मावतारका वर्णन करूँगा। यह सुनने पर सब पापों का नाश हो जाता है। पूर्वकाल की बात है, देवासुर संग्राम में दैत्यों ने देवताओं को परास्त कर दिया। वे दुर्वासा के शाप से भी लक्ष्मी से रहित हो गये थे। तब सम्पूर्ण देवता क्षीरसागर में शयन करने वाले भगवान् विष्णु के पास जाकर बोले — ‘भगवन्! आप देवताओं की रक्षा कीजिये।’ यह सुनकर श्रीहरि ने ब्रह्मा आदि देवताओं से कहा — ‘देवगण! तुम लोग क्षीरसमुद्र को मथने, अमृत प्राप्त करने और लक्ष्मी को पाने के लिये असुरों से संधि कर लो। कोई बड़ा काम या भारी प्रयोजन आ पड़ने पर शत्रुओं से भी संधि कर लेनी चाहिये। मैं तुम लोगों को अमृत का भागी बनाऊँगा और दैत्यों को उससे वञ्चित रखूँगा । मन्दराचल को मथानी और वासुकि नाग को नेती बनाकर आलस्यरहित हो मेरी सहायता से तुम लोग क्षीरसागर का मन्थन करो।’ भगवान् विष्णु के ऐसा कहने पर देवता दैत्यों के साथ संधि करके क्षीरसमुद्र पर आये। फिर तो उन्होंने एक साथ मिलकर समुद्र मन्थन आरम्भ किया। जिस ओर वासुकि नाग की पूँछ थी, उसी ओर देवता खड़े थे । दानव वासुकि नाग के नि:श्वास से क्षीण हो रहे थे और देवताओं को भगवान् अपनी कृपादृष्टि से परिपुष्ट कर रहे थे। समुद्र मन्थन आरम्भ होने पर कोई आधार न मिलने से मन्दराचल पर्वत समुद्र में डूब गया ॥ १-७ ॥ ‘ तब भगवान् विष्णु ने कूर्म (कछुए ) का रूप धारण करके मन्दराचल को अपनी पीठ पर रख लिया। फिर जब समुद्र मथा जाने लगा, तो उसके भीतर से हलाहल विष प्रकट हुआ। उसे भगवान् शंकर ने अपने कण्ठ में धारण कर लिया। इससे कण्ठ में काला दाग पड़ जाने के कारण वे ‘नीलकण्ठ’ नाम से प्रसिद्ध हुए। तत्पश्चात् समुद्र से वारुणीदेवी, पारिजात वृक्ष, कौस्तुभमणि, गौएँ तथा दिव्य अप्सराएँ प्रकट हुईं। फिर लक्ष्मीदेवी का प्रादुर्भाव हुआ। वे भगवान् विष्णु को प्राप्त हुई । सम्पूर्ण देवताओं ने उनका दर्शन और स्तवन किया। इससे वे लक्ष्मीवान् हो गये। तदनन्तर भगवान् विष्णु के अंशभूत धन्वन्तरि जो आयुर्वेद के प्रवर्तक हैं, हाथ में अमृत से भरा हुआ कलश लिये प्रकट हुए। दैत्यों ने उनके हाथ से अमृत छीन लिया और उसमें से आधा देवताओं को देकर वे सब चलते बने। उनमें जम्भ आदि दैत्य प्रधान थे। उन्हें जाते देख भगवान् विष्णु ने स्त्री का रूप धारण किया। उस रूपवती स्त्री को देखकर दैत्य मोहित हो गये और बोले — ‘सुमुखि ! तुम हमारी भार्या हो जाओ और यह अमृत लेकर हमें पिलाओ।’ ‘बहुत अच्छा’ कहकर भगवान् ने उनके हाथ से अमृत ले लिया और उसे देवताओं को पिला दिया। उस समय राहु चन्द्रमा का रूप धारण करके अमृत पीने लगा। तब सूर्य और चन्द्रमा ने उसके कपट-वेष को प्रकट कर दिया ॥ ८-१४ ॥ यह देख भगवान् श्रीहरि ने चक्र से उसका मस्तक काट डाला। उसका सिर अलग हो गया और भुजाओंसहित धड़ अलग रह गया। फिर भगवान् को दया आयी और उन्होंने राहु को अमर बना दिया । तब ग्रहस्वरूप राहु ने भगवान् श्रीहरि से कहा — ‘ इन सूर्य और चन्द्रमा को मेरे द्वारा अनेकों बार ग्रहण लगेगा। उस समय संसार के लोग जो कुछ दान करें, वह सब अक्षय हो । भगवान् विष्णुने ‘तथास्तु’ कहकर सम्पूर्ण देवताओं के साथ राहु की बात का अनुमोदन किया। इसके बाद भगवान् ने स्त्री रूप त्याग दिया; किंतु महादेवजी को भगवान् के उस रूप का पुनर्दर्शन करने की इच्छा हुई। अतः उन्होंने अनुरोध किया — ‘भगवन् ! आप अपने स्त्रीरूपका मुझे दर्शन करावें । ‘ महादेवजी की प्रार्थना से भगवान् श्रीहरि ने उन्हें अपने स्त्री रूप का दर्शन कराया। वे भगवान् की माया से ऐसे मोहित हो गये कि पार्वतीजी को त्यागकर उस स्त्री के पीछे लग गये। उन्होंने नग्न और उन्मत्त होकर मोहिनी के केश पकड़ लिये । मोहिनी अपने केशों को छुड़ाकर वहाँ से चल दी। उसे जाती देख महादेवजी भी उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगे। उस समय पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ भगवान् शंकर का वीर्य गिरा, वहाँ-वहाँ शिवलिङ्गों का क्षेत्र एवं सुवर्ण की खानें हो गयीं। तत्पश्चात् ‘यह माया है’ — ऐसा जानकर भगवान् शंकर अपने स्वरूप में स्थित हुए । तब भगवान् श्रीहरि ने प्रकट होकर शिवजी से कहा — ‘रुद्र ! तुमने मेरी माया को जीत लिया। पृथ्वी पर तुम्हारे सिवा दूसरा कोई ऐसा पुरुष नहीं है, जो मेरी इस माया को जीत सके।’ भगवान् के प्रयत्न से दैत्यों को अमृत नहीं मिलने पाया; अतः देवताओं ने उन्हें युद्ध में मार गिराया। फिर देवता स्वर्ग में विराजमान हुए और दैत्यलोग पाताल में रहने लगे। जो मनुष्य देवताओं की इस विजयगाथा का पाठ करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है ॥ १५-२३ ॥ ॥ इस प्रकार विद्याओं के सारभूत आदि आग्नेय महापुराण में ‘कूर्मावतार वर्णन’ नामक तीसरा अध्याय पूरा हुआ ॥ ३ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe