June 17, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 113 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ एक सौ तेरहवाँ अध्याय नर्मदा माहात्म्य नर्मदादिमाहात्म्यम् अग्निदेव कहते हैं — अब मैं नर्मदा आदि का माहात्म्य बताऊँगा । नर्मदा श्रेष्ठ तीर्थ है। गङ्गा का जल स्पर्श करने पर मनुष्य को तत्काल पवित्र करता है, किंतु नर्मदा का जल दर्शनमात्र से ही पवित्र कर देता है। नर्मदातीर्थ सौ योजन लंबा और दो योजन चौड़ा है। अमरकण्टक पर्वत के चारों ओर नर्मदा सम्बन्धी साठ करोड़, साठ हजार तीर्थ हैं। कावेरी संगमतीर्थ बहुत पवित्र है। अब श्रीपर्वत का वर्णन सुनो — ॥ १-३ ॥’ एक समय गौरी ने श्रीदेवी का रूप धारण करके भारी तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर श्रीहरि ने उन्हें वरदान देते हुए कहा — “देवि! तुम्हें अध्यात्म-ज्ञान प्राप्त होगा और तुम्हारा यह पर्वत ‘ श्रीपर्वत’ के नाम से विख्यात होगा। इसके चारों ओर सौ योजनतक का स्थान अत्यन्त पवित्र होगा।” यहाँ किया हुआ दान, तप, जप तथा श्राद्ध सब अक्षय होता है। यह उत्तम तीर्थ सब कुछ देनेवाला है। यहाँ की मृत्यु शिवलोक की प्राप्ति कराने वाली है। इस पर्वत पर भगवान् शिव सदा पार्वतीदेवी के साथ क्रीड़ा करते हैं तथा हिरण्यकशिपु यहीं तपस्या करके अत्यन्त बलवान् हुआ था। मुनियों ने भी यहाँ तपस्या से सिद्धि प्राप्त की है ॥ ४-७ ॥ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘नर्मदा-माहात्म्य वर्णन’ नामक एक सौ तेरहवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ११३ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe