June 27, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 178 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ एक सौ अठहत्तरवाँ अध्याय तृतीया तिथि के व्रत तृतीयाव्रतानि अग्निदेव कहते हैं — वसिष्ठ! अब मैं आपके सम्मुख तृतीया तिथि को किये जाने वाले व्रतों का वर्णन करूँगा, जो भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले हैं। ललितातृतीया को किये जाने वाले मूलगौरी- सम्बन्धी ( सौभाग्यशयन ) व्रत को सुनिये ॥ १ ॥ चैत्र के शुक्लपक्ष की तृतीया को ही पार्वती का भगवान् शिव के साथ विवाह हुआ था। इसलिये इस दिन तिलमिश्रित जल से स्नान करके पार्वतीसहित भगवान् शंकर की स्वर्णाभूषण और फल आदि से पूजा करनी चाहिये ॥ २ ॥ ‘ ‘नमोऽस्तु पाटलायै’ (पाटला देवी को नमस्कार) — यह कहकर पार्वती देवी और भगवान् शंकर के चरणों का पूजन करे। ‘शिवाय नमः’ (भगवान् शिव को नमस्कार) — यह कहकर शिव की और ‘जयायै नमः’ (जया को नमस्कार) -यों कहकर गौरी देवी की अर्चना करे। ‘त्रिपुरघ्नाय रुद्राय नमः’ (त्रिपुरविनाशक रुद्रदेव को नमस्कार) तथा ‘भवान्यै नमः’ (भवानी को नमस्कार) — यह कहकर क्रमश: शिव-पार्वती की दोनों जङ्घाओं का और ‘रुद्रायेश्वराय नमः’ (सबके ईश्वर रुद्रदेव को नमस्कार है) एवं ‘विजयायै नमः’ (विजया को नमस्कार) — यह कहकर क्रमश: शंकर और पार्वती के घुटनों का पूजन करे। ‘ईशायै नमः’ (सर्वेश्वरी को नमस्कार) – यह कहकर देवी के और ‘शंकराय नमः’ ऐसा कहकर शंकर के कटिभाग की पूजा करे। ‘कोटव्यै नमः’ (कोटवीदेवी को नमस्कार) और ‘शूलपाणये नमः’ (त्रिशूलधारी को नमस्कार) — यों कहकर क्रमशः गौरीशंकर के कुक्षिदेश का पूजन करे। ‘मङ्गलायै नमः’ (मङ्गलादेवी को नमस्कार) कहकर भवानी के और ‘तुभ्यं नमः’ (आपको नमस्कार ) — यह कहकर शंकर के उदर का पूजन करे। ‘सर्वात्मने नमः’ (सम्पूर्ण प्राणियों के आत्मभूत शिव को नमस्कार) – यों कहकर रुद्र के और ‘ईशान्यै नमः’ (ईशानी को नमस्कार) कहकर पार्वती के स्तनयुगल का पूजन करे । ‘देवात्मने नमः’ (देवताओं के आत्मभूत शंकर को नमस्कार) – कहकर शिव के और उसी प्रकार ‘ह्लादिन्यै नमः’ (सबको आह्लाद प्रदान करनेवाली गौरी को नमस्कार) कहकर पार्वती के कण्ठप्रदेश की अर्चना करे। ‘महादेवाय नमः’ (महादेव को नमस्कार) और ‘अनन्तायै नमः’ (अनन्ता को नमस्कार) कहकर क्रमशः शिव-पार्वती के दोनों हाथों का पूजन करे। ‘त्रिलोचनाय नमः’ (त्रिलोचन को नमस्कार ) और ‘कालानलप्रियायै नमः’ (कालाग्निस्वरूप शिव की प्रियतमा को नमस्कार) कहकर भुजाओं का तथा ‘महेशाय नमः’ (महेश्वर को नमस्कार) एवं ‘सौभाग्यायै नमः’ (सौभाग्यवती को नमस्कार) कहकर शिव-पार्वती के आभूषणों की पूजा करे। तदनन्तर ‘अशोकमधुवासिन्यै नमः’ (अशोक- पुष्प के मधु से सुवासित पार्वती को नमस्कार) और ‘ईश्वराय नमः’ (ईश्वर को नमस्कार ) कहकर दोनों के ओष्ठभाग का तथा ‘चतुर्मुखप्रियायै नमः’ (चतुर्मुख ब्रह्मा की प्रिय पुत्रवधू को नमस्कार) और ‘हराय स्थाणवे नमः’ (पापहारी स्थाणुस्वरूप शिव को नमस्कार) कहकर क्रमश: गौरीशंकर के मुख का पूजन करे। ‘अर्धनारीशाय नमः’ (अर्धनारीश्वर को नमस्कार) कहकर शिव की और ‘अमिताङ्गायै नमः’ (अपरिमित अङ्गोंवाली देवी को नमस्कार) कहकर पार्वती की नासिका का पूजन करे । ‘उग्राय नमः’ (उग्रस्वरूप शिव को नमस्कार) कहकर लोकेश्वर शिव का और ‘ललितायै नमः’ (ललिता को नमस्कार) कहकर पार्वती की भौंहों का पूजन करे। ‘शर्वाय नमः’ (शर्व को नमस्कार) कहकर त्रिपुरारि शिव के और ‘वासन्त्यै नमः’ (वासन्तीदेवी को नमस्कार) कहकर पार्वती के तालुप्रदेश का पूजन करे। ‘श्रीकण्ठनाथायै नमः’ (श्रीकण्ठ शिव की पत्नी उमा को नमस्कार) और ‘शितिकण्ठाय नमः’ (नीलकण्ठ को नमस्कार) कहकर गौरी-शंकर के केशपाश का पूजन करे। ‘भीमोग्राय नमः’ (भयंकर एवं उग्रस्वरूप धारण करनेवाले शिव को नमस्कार ) कहकर शंकर के और ‘सुरूपिण्यै नमः’ (सुन्दर रूपवती को नमस्कार) कहकर भगवती उमा के शिरोभाग की अर्चना करे। ‘सर्वात्मने नमः’ (सर्वात्मा शिव को नमस्कार) कहकर पूजा का उपसंहार करे ॥ ३-१११/२ ॥ शिव की पूजा के लिये ये पुष्प क्रमशः चैत्रादि मासों में ग्रहण करने योग्य बताये गये हैं — मल्लिका,अशोक, कमल, कुन्द, तगर, मालती, कदम्ब, कनेर, नीले रंग का सदाबहार, अम्लान (आँबोली), कुकुम और सेंधुवार ॥ १२-१३ ॥ उमा-महेश्वर का पूजन करके उनके सम्मुख अष्ट सौभाग्य-द्रव्य रख दे। घृतमिश्रित निष्पाव (एक द्विदल), कुसुम्भ (केसर), दुग्ध, जीवक ( एक ओषधि विशेष), दूर्वा, ईख, नमक और कुस्तुम्बुरु (धनियाँ) — ये अष्ट सौभाग्य- द्रव्य हैं। चैत्रमास में पहाड़ों के शिखरों का (गङ्गा आदि का) जल पान करके रुद्रदेव और पार्वतीदेवी के आगे शयन करे। प्रात:काल स्नान करके गौरी- शंकर का पूजन कर ब्राह्मण-दम्पति की अर्चना करे और वह अष्ट सौभाग्य- द्रव्य ‘ललिता प्रीयतां मम।’ (ललिता मुझपर प्रसन्न हों ) — ऐसा कहकर ब्राह्मण को दे ॥ १४-१६ ॥ व्रत करने वाले को चैत्रादि मासों में व्रत के दिन क्रमशः यह आहार करना चाहिये — चैत्र में शृङ्गजल (झरने का जल), वैशाख में गोबर, ज्येष्ठ में मन्दार(आक) का पुष्प, आषाढ़ में बिल्वपत्र, श्रावण में कुशजल, भाद्रपद में दही, आश्विन में दुग्ध, कार्तिक में घृतमिश्रित दधि, मार्गशीर्ष में गोमूत्र, पौष में घृत, माघ में काले तिल और फाल्गुन में पञ्चगव्य । ललिता, विजया, भद्रा, भवानी, कुमुदा, शिवा, वासुदेवी, गौरी, मङ्गला, कमला और सती — चैत्रादि मासों में सौभाग्याष्टक के दान के समय उपर्युक्त नामों का ‘प्रीयतां मम’ से संयुक्त करके उच्चारण करे। व्रत के पूर्ण होने पर किसी एक फल का सदा के लिये त्याग कर दे तथा गुरुदेव को तकियों से युक्त शय्या, उमा-महेश्वर की स्वर्णनिर्मित प्रतिमा एवं गौ सहित वृषभ का दान करे। गुरु और ब्राह्मण-दम्पति का वस्त्र आदि से सत्कार करके साधक भोग और मोक्ष- दोनों को प्राप्त कर लेता है इस ‘सौभाग्यशयन’ नामक व्रत के अनुष्ठान से मनुष्य सौभाग्य, आरोग्य, रूप और दीर्घायु प्राप्त करता है ॥ १७-२१ ॥ यह व्रत भाद्रपद, वैशाख और मार्गशीर्ष के शुक्लपक्ष की तृतीया को भी किया जा सकता है। इसमें ‘ललितायै नमः’ (ललिता को नमस्कार ) – इस प्रकार कहकर पार्वती का पूजन करे। तदनन्तर व्रत की समाप्ति के समय प्रत्येक पक्ष में ब्राह्मण- दम्पति की पूजा करनी चाहिये। उनकी चौबीस वस्त्र आदि से अर्चना करके मनुष्य भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त कर लेता है। ‘सौभाग्यशयन’ की यह दूसरी विधि बतायी गयी। अब मैं ‘सौभाग्यव्रत’ के विषय में कहता हूँ। फाल्गुन आदि मासों में शुक्लपक्ष की तृतीया को व्रत करने वाला नमक का परित्याग करे। व्रत समाप्त होने पर ब्राह्मण-दम्पति का पूजन करके ‘भवानी प्रीयताम्।’ (भवानी प्रसन्न हों) कहकर शय्या और सम्पूर्ण सामग्रियों से युक्त गृह का दान करे। यह ‘सौभाग्य-तृतीया’ व्रत कहा गया, जो पार्वती आदि के लोकों को प्रदान करने वाला है। इसी प्रकार माघ, भाद्रपद और वैशाख को तृतीया को व्रत करना चाहिये ॥ २२-२६ ॥ चैत्र में ‘दमनक-तृतीया’ का व्रत करके पार्वती की ‘दमनक’ नामक पुष्पों से पूजन करनी चाहिये। मार्गशीर्ष में ‘आत्म- तृतीया’ का व्रत किया जाता है। इसमें पार्वती का पूजन करके ब्राह्मण को इच्छानुसार भोजन करावे। मार्गशीर्ष की तृतीया से आरम्भ करके, क्रमशः पौष आदि मासों में उपर्युक्त व्रत का अनुष्ठान करके निम्नलिखित नामों को ‘प्रीयताम्’ से संयुक्त करके, कहे — गौरी, काली, उमा, भद्रा, दुर्गा, कान्ति, सरस्वती, वैष्णवी, लक्ष्मी, प्रकृति, शिवा और नारायणी । इस प्रकार व्रत करने वाला सौभाग्य और स्वर्ग को प्राप्त करता है ॥ २७-२९ ॥ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘तृतीया के व्रतों का वर्णन’ नामक एक सौ अठहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १७८ ॥ Content is available only for registered users. 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