ऋण-परिहारक प्रदोष व्रत
‘प्रदोष व्रत’ के दिन प्रातः स्नानादि के भगवान् शंकर का यथाशक्ति पञ्चोपचार या षोडशोपचार से पूजन करें। फिर निम्नलिखित ‘विनियोग’ आदि कर निर्दिष्ट मन्त्र का यथा-शक्ति २१ या ११ माला जप करे। संभव न हो, तो एक ही माला या केवल ११ बार जप करे। जितना अधिक जप होगा, उतना ही प्रभावी एवं शीघ्र फल होगा।
विनियोगः- ॐ अस्य अनृणा-मन्त्रस्य श्रीऋण-मुक्तेश्वरः ऋषि। त्रिष्टुप् छन्दः। रुद्रो देवता। मम ऋण-परिहारार्थे जपे विनियोगः।
‘विनियोग’ से मन्त्र का परिचय पाकर मन्त्र के अंगों को अपने शरीर में स्थापित करे।
ऋष्यादि-न्यासः- श्रीऋण-मुक्तेश्वरः ऋषये नमः शिरसि। त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे। रुद्र देवतायै नमः हृदि। मम ऋण-परिहारार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
कर-न्यासः- ॐ अनृणा अस्मिन् अंगुष्ठाभ्या नमः। अनृणाः परस्मिन् तर्जनीभ्यां स्वाहा। तृथीये लोके अनृणास्याम मध्यमाभ्यां वषट्। ये देव-याना अनामिकाभ्यां हुम्। उत पितृ-याणा कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्। सर्वाण्यथो अनृणाऽऽक्षीयेम करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्।

अंग-न्यासः-ॐ अनृणा अस्मिन् हृदयाय नमः। अनृणाः परस्मिन् शिरसे स्वाहा। तृथीये लोके अनृणास्याम शिखायै वषट्। ये देव-याना कवचाय हुम्। उत पितृ-याणा नेत्र-त्रयाय वौषट्। सर्वाण्यथो अनृणाऽऽक्षीयेम अस्त्राय फट्।
इसके बाद भगवान् रुद्र-देव का ध्यान करे-
ध्यानः-
“ध्याये नित्यं महेशं रजत-गिरि-निभं चारु-चन्द्रावतंसम्,
रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशु-मृग-वराभीति-हस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममर-गणैर्व्याघ्र-कृत्तिं वसानम्,
विश्वाद्यं विश्व-बीजं निखिल-भय-हरं पञ्च-वक्त्रं त्रिनेत्रम्।।”

अर्थात् भगवान् रुद्र पञ्च-मुख और त्रिनेत्र हैं। चाँदी के पर्वत के समान उनकी उज्जवल कान्ति है। सुन्दर चन्द्रमा उनके मस्तक पर शोभायमान है। रत्न-जटित आभूषणों से उनका शरीर प्रकाशमान है। अपने चार हाथों में परशु, मृग, वर और अभय मुद्राएँ धारण किए हैं। मुख पर प्रसन्नता है। पद्मासन पर विराजमान हैं। चारों ओर से देव-गण उनकी वन्दना कर रहे हैं। बाघ की खाल वे पहने हैं। विश्व के आदि, जगत् के मूल-स्वरुप और समस्त प्रकार के भय नाशक- ऐसे महेश्वर का मैं नित्य ध्यान करता हूँ।
उक्त प्रकार ध्यान कर भगवान् रुद्र का पुनः पञ्चोपचार से या मानस उपचारों से पूजन कर हाथ जोड़कर निम्न प्रार्थना करे-
“अनन्त-लक्ष्मीर्मम सन्निधौ सदा स्थिरा भवत्वित्यभि-
वर्धनेन नानाऽऽदृतः शत्रु-निवारकोऽहं भवामि शम्भो!”

अर्थात् हे शम्भो! कभी समाप्त न होनेवाली लक्ष्मी मेरे पास सदा स्थिर होकर रहे और मैं काम-क्रोधादि सब प्रकार के शत्रुओं को दूर करने में समर्थ बनूँ।
मन्त्रः-
“अनृणा अस्मिन्, अनृणाः परस्मिन्, तृतीये लोके अनृणा स्याम। ये देव-याना उत पितृयाणा, सर्वाण्यथो अनृणा अक्षियेम।।”
रुद्राक्ष की माला या रक्त-चन्दन की माला से प्रातःकाल यथा-शक्ति जप करे। यदि समर्थ हो, तो किन्हीं वेद-पाठी ब्राह्मण से ‘षडंग-शत-रुद्रीय’ में उक्त मन्त्र का सम्पुट लगाकर भगवान् शंकर का अभिषेक करे और सम्पुटित ११ पाठ कराए। आवश्यकतानुसार ‘शिव-महिम्न-स्तोत्र’ में भी उक्त मन्त्र का सम्पुट लग सकता है। अभिषेक के बाद पुनः पूजन एवं मन्त्र-जप कर निम्न स्तोत्र का पाठ करे-
Content is available only for registered users. Please login or register उक्त स्तोत्र के २१ पाठ करने के बाद नीराजन करे। स्तोत्र के प्रति-पाठ के बाद एक बिल्व-पत्र गन्ध-पुष्प से युक्त कर भगवान् शिव को अर्पित करे। सांयकाल पुनः भगवान् शिव का पञ्चोपचार-पूजन कर मूल-मन्त्र का एक माला जप और ११ बार स्तोत्र का पाठ करे। इसके बाद आम के पत्ते को ‘त्रि-मधु’ (दूध+घी+शहद) में डुबोकर अग्नि में हवन करे।
हवन विधि इस प्रकार है-
सांय सन्ध्या करने के बाद प्राणायाम कर तिथि आदि का उल्लेख करते हुए संकल्प पढ़े-
‘मम ऋण-परिहारार्थ त्रयोदश्यधिपति-श्रीरुद्र-प्रीत्यर्थे प्रदोष-व्रतांग-भूतं आम्र-पत्र-होमं करिष्ये।’
तदन्तर अग्नि-स्थापन-पूर्वक प्रज्वलित अग्नि में हवन करे। पहले विनियोग पढ़े-
‘ॐ अस्य ऋण-मोचन-मन्त्रस्य कश्यप ऋषिः। विराट् छन्दः। त्रोदश्यधिपतिः रुद्रो देवता। मम ऋण-परिहारार्थे आम्र-पत्र-होमे विनियोगः।’
अब निम्न मन्त्र द्वारा ११ बार आहुतियाँ दे। कलियुग में चार गुणा अधिक का विधान है, अतः ५१ आहुतियाँ पूर्वोक्त विधि के अनुसार आम्र-पत्रों की देनी चाहिए-
आहुति मन्त्रः- “ॐ सहस्त्र ज्वलन् मृत्युं नाशय स्वाहा। त्रयोदश्यधिपति-रुद्रायेदं नमम्।”
हवन के बाद नैऋत्य-कोण की ओर मुख करके पूर्वोक्त ‘विनियोग’ का उच्चारण कर निम्न मन्त्र का ११ बार जप करे-
” ॐ नमो भगवते ताण्डव-प्रियाय त्रयोदश्यधिपति-नील-कण्ठाय स्वाहा।”
फिर वायव्य-कोण की ओर मुख करके पूर्वोक्त ‘विनियोग’ का उच्चारण कर निम्न मन्त्र का ११ बार जप करे-
” ॐ नमो भगवते ऋण-मोचन-रुद्राय अस्मद् ऋणं विमोचय हुं फट् स्वाहा।”
तदन्तर ‘ईशान-कोण’ की ओर मुख करके निम्न विनियोग पढ़े-
“ॐ अस्य श्री अंगारक-मन्त्रस्य कश्यप ऋषिः। अनुष्टुप् छन्दः। भौमो देवता। मम ऋण-परिहारार्थे जपे विनियोगः।”
‘विनियोग के बाद निम्न मन्त्र ११ बार जप करे-
“ॐ अंगारक, मही-पुत्र, भगवन्, भक्त-वत्सल! नमोऽस्तु ते। ममाशेष-ऋणमाशु विमोचय।”
जप को परमेश्वर कि प्रति अर्पित करे। इसके बाद मृत्तिका (मिट्टी) का पूजन करे। यह मिट्टी खेत के स्वच्छ स्थान से पहले ही मगाँकर रख ले या स्वयं जाकर ले आए। पहले मिट्टी की प्रार्थना करे-
“सर्वेश्वर-स्वरुपेण, त्वद्-रुपां मृत्तिकामिमाम्।
लिंगार्थ त्वां प्रति-गृग्ह्णामि, प्रसन्न भव शोभने!।।”

फिर नर्मदा या गंगा-जल मिलाकर उक्त मिट्टी का ‘शिव-लिंग’ बनाए। उसका पूजन षोडशोपचारों से करे। चने की दाल का नैवेद्य देकर पुज़्पाञ्जलि प्रदान करे। तदनन्तर पुनः पूर्वोक्त मन्त्र-“अनृणा अस्मिन्, अनृणाः परस्मिन्, तृतीये लोके अनृणा स्याम। ये देव-याना उत पितृयाणा, सर्वाण्यथो अनृणा अक्षियेम।।” इत्यादि का ११ माला जप कर, स्तोत्र के २१ पाठ करे। फिर पुनः भगवान् का उनके नामों द्वारा पूजन करे। यथा-
पूर्वे भवाय क्षिति-मूर्तये नमः। ईशान्ये शर्वाय जल-मूर्तये नमः।
उत्तरे रुद्राभि-मूर्तये नमः, वायव्ये उग्राय वायु-मूर्तये नमः।
पश्चिमे भीमायाकाश-मूर्तये नमः, नैऋत्ये पशु-पतये यजमान-मूर्तये नमः।
दक्षिणे महा-देवाय सोम-मूर्तये नमः। आग्नेये ईशाननाय सूर्य-मूर्तये नमः।।

अन्त में आरती कर, निम्न प्रकार प्रार्थना करे-
भवांस्तुत्यमानां एवं, पशूनां पाश-मोचकः।
तथा व्रतेन सन्तुष्टः, ऋण-विमोचनं कुरु।।
ऋण-रोग-दारिद्रयादि-पाप-क्षुत्-ताप-मृत्यवः।
भय-शोक-मनस्तापाः, नश्यन्तु मम सर्वदा।।

दूसरे दिन प्रातःकाल मिट्टी के उक्त शिवलिंग का पञ्चोपचार-पूजन कर जल (नदी) आदि में विसर्जन करे। इस प्रकार १२ प्रदोष के व्रत करे। नित्य केवल स्तोत्र-पाठ और “अनृणा अस्मिन्, अनृण॰” मन्त्र का जप एक माला करता रहे।
इस प्रकार अनुष्ठान करने से भगवान शिव की कृपा से निस्सन्देह ‘ऋण’ से छुटकारा मिलता है।

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