October 17, 2015 | aspundir | Leave a comment नवार्ण-यन्त्र-पूजन (१) स्नान आदि करके साधक ‘पूजा-स्थान’ में प्रवेश करे। पूजा-स्थान को सुसज्जित तथा सुगन्धित करे। (२) पूजा-स्थान में चार अंगुल ऊँची, डेढ़ हाथ चौड़ी मिट्टी की वेदी बनाए। (३) वेदी के ऊपर रक्त-चन्दन से अनार या बेल की कलम से द्वारा ‘अष्ट-दल-कमल’ बनाए। (४) ‘अष्ट-दल-कमल’ को हरिद्रा-मिश्रित अक्षत-चूर्ण एवं रक्त-चन्दन-मिश्रित अक्षत-चूर्ण से सजाए। (५) ‘अष्ट-दल-कमल’ के मध्य में भगवती दुर्गा की ‘नौ पीठ-शक्तियों का पूजन करे- १॰ ॐ जयायै नमः। २॰ ॐ विजयायै नमः। ३॰ ॐ अजितायै नमः। ४॰ ॐ अपराजितायै नमः। ५॰ ॐ नित्यायै नमः। ६॰ ॐ विलसन्यै नमः। ७॰ ॐ दौग्रह्यै नमः। ८॰ ॐ अघोरायै नमः। ९॰ ॐ मंगलायै नमः। (६) इसके बाद, ‘अष्ट-दल-कमल’ के ऊपर स्वर्ण, ताम्र आदि से निर्मित ‘यन्त्र-पत्र को शुद्ध घृत से लिप्त कर किसी ताम्र की थाली, तश्तरी या कटोरी में रखे और उस पर क्रमशः गो-दुग्ध और शुद्ध जल छोड़े, फिर स्वच्छ वस्त्र से उसे पोंछकर उस पर भगवती दुर्गा का पूजा-यन्त्र अष्ट-गन्ध या रक्त-चन्दन से स्वर्णादि लेखनी या अनार या बेल की लेखनी द्वारा बनाए। (७) पूजा-यन्त्र बनाने के लिए पहले ‘त्रिकोण’ बनाए। फिर त्रिकोण के बाहर ‘षट्-कोण’ बनाए। षट्कोण के बाहर अष्टदल, फिर चतुर्विंशति-दल, फिर चतुः-षष्टि-दल, फिर चतुर्द्वार-युक्त भू-पुर बनाए। सुविधा के लिए साधक स्वर्ण, रजत अथवा ताम्र पत्र पर कुशल कारीगर द्वारा उक्त यन्त्र उत्कीर्ण करा सकते हैं। केवल इतना ध्यान रहे की रेखाएँ उठी हुई होनी चाहिए। (८) पूजा-यन्त्र में भगवती दुर्गा के नौ आवरणों के देवताओं का पूजन-तर्पण किया जाता है। ये नौ आवरण निम्न प्रकार है- पहला आवरण- त्रिकोण के बिन्दु एवं उसके तीनों कोणों में दूसरा आवरण- त्रिकोण के मध्य में तीसरा आवरण- षट्-कोण के छः कोणों में चौथा आवरण- अष्ट-दल-कमल की आठ पंखुड़ियों में पाँचवाँ आवरण- चतुर्विंशति-दल-कमल की चौबीस पंखुड़ियों में छठा आवरण- चतुःषष्टि-दल-कमल की चौंसठ पंखुड़ियों में सातवाँ आवरण- भू-पुर के भीतर आग्नेयादि चार कोणों में आठवाँ आवरण- भू-पुर के भीतर पूर्वादि आठ दिशाओं में नवाँ आवरण- भू-पुर के बाहर पूर्वादि आठ दिशाओं में इनमें से प्रत्येक आवरण के अन्तर्गत जिन-जिन देवताओं की अवस्थिति है, उनका ज्ञान अग्र-लिखित आवरण-पूजन मन्त्रों से हो जाता है। (९) पूजन-यन्त्र में आवरण-पूजन प्रारम्भ करने के पूर्व, दाएँ हाथ में एक सुगन्धित रक्त-पुष्प लेकर, उसे बाँए हाथ से ढँके और भगवती के वाहन ‘महा-सिंह’ का ध्यान करे- ग्रीवायां मधु-सूदनोऽस्य शिरसि श्रीनील-कण्ठः स्थितः, श्रीदेवी गिरिजा ललाट-फलके वक्षः-स्थले शारदा। षड्-वक्त्रो मणि-बन्ध-सन्धिषु तथा नागास्तु पार्श्व-स्थिताः, कर्णी यस्य तु चाश्विनौ स भगवान् सिंहो ममास्त्विष्टदः।। तन्नेत्रे शशि-भास्करौ वसु-कुलं दन्तेषु यस्य स्थितम्, जिह्वायां वरुणस्तु हुं-कृतिरियं श्रीचर्चिका चण्डिका। गण्डौ यक्ष-यमौ तथौष्ठ-युगलं सन्ध्या-द्वयं पृष्ठके, वज्री यस्य विराजते स भगवान् सिंहो ममास्त्विष्टदः।। ग्रीवा-सन्धिषु सप्त-विंशति-मितानृयक्षाणि साध्या हृदि, प्रौढ़ा निर्घृणता तमोऽस्य तु महा-क्रौर्यैः समा पूतनाः। प्राणे यस्य तु मातरः पितृ-कुलं यस्यास्त्यपानात्मकम्, रुपे श्रीकमला कचेषु विमलास्ते केयूरे रश्मयः।। जिनकी ग्रीवा में मधु-सूदन (विष्णु), शिर पर श्री नील-कण्ठ (शिव) स्थित है। ललाट-फलक-मस्तक पर श्री देवी गिरिजा, वक्षःस्थल पर शारदा, मणिबन्ध की सन्धियों में षड्-वक्त्र (कार्तिकेय) और पार्श्व में नाग स्थित है। जिनके दोनों कानों में अश्विनीकुमार हैं, ऐसे वे भगवान् (पराक्रमी) सिंह मेरे अभीष्ट को प्रदान करें। जिनके नेत्रों में सूर्य और चन्द्रमा, दाँतों में आठों वसु, जिह्वा में वरुण और जिनके हुंकार में श्रीचर्चिका चण्डिका है, गण्डों (कन-पटियों) में यक्ष और यम, दोनों ओठों में दोनों सन्ध्याएँ और पीठ में वज्र धारण करने वाले (इन्द्र) विराजमान हैं, वे भगवान् सिंह मेरे अभीष्ट को प्रदान करें। जिनके गले की सन्धियों में सत्ताइस ऋक्ष और साध्या देवी हृदय में, प्रौढ़ता में तम, क्रूरता में पूतना, प्राण में माताएँ, अपान में पितृ-कुल, रुप में श्री कमला (लक्ष्मी), केशों में विमला और केयूर (आयल) में रश्मियां है। इस प्रकार भगवती के वाहन महा-सिंह का ध्यान कर, निम्न मन्त्र से उन्हें अपने हाथ के पुष्प में भावना द्वारा प्रतिष्ठित करें- “ॐ ह्रीं वज्र-नख-दंष्ट्रायुधाय महा-सिंहाय फट्।” फिर उस पुष्प को भक्ति-पूर्वक, उक्त पूजा-यन्त्र के मध्य-स्थित बिन्दु पर भगवती के आसन स्वरुप स्थापित करे। (१०) तदन्तर हाथ में पूर्व-वत् दूसरा रक्त-पुष्प लिकर भगवती दुर्गा का ध्यान करें- विद्युद्-दाम-सम-प्रभां मृग-पति-स्कन्ध-स्थितां भीषणाम्, कन्याभिः करवाल-खेट-विलसद्धस्ताभिरासेविताम्। हस्तैश्चक्र-गदाऽसि-खेट-विशिखांश्चापं गुणं तर्जनीम्, विभ्राणामनलात्मिकां शशि-धरां दुर्गां त्रि-नेत्रां भजे।। बिजली के सदृश वर्णवाली, मृगपति अर्थात् सिंह के स्कन्ध या ग्रीवा पर सनार, भीषणा आकृतिवाली, कन्याओं द्वारा सेविता जिनके हाथों में करवाल (खड्ग) और खेटक (ढाल) हैं, आठों भुजाओं में चक्र, गदा, खड्ग, ढाल, शर, धनुष, गुण और तर्जनी-मुद्रा (सावधान-मुद्रा) रखती हुई अनलात्मिका (तेजोराश्यात्मिका), चन्द्र-धारिणी, ती नेत्रोंवाली दुर्गा को भजता हूँ। इस प्रकार ध्यान कर इस को भी, उक्त पूजा-यन्त्र के मध्य में स्थापित पुष्प के समीप स्थापित करें और स-भक्ति भावना करे कि ‘भगवती दुर्गा महासिंह पर आसीन होकर प्रत्यक्ष विराजमान हो गई हैं।’ (११) तब भगवती दुर्गा का मानसिक पूजन करें- ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री जगदम्बा-दुर्गा-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री जगदम्बा-दुर्गा-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री जगदम्बा-दुर्गा-प्रीतये घ्रापयामि नमः। ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्री जगदम्बा-दुर्गा-प्रीतये दर्शयामि नमः। ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री जगदम्बा-दुर्गा-प्रीतये निवेदयामि नमः। ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्री जगदम्बा-दुर्गा-प्रीतये समर्पयामि नमः। (१२) पहले हाथों में पुष्प लेकर भगवती दुर्गा से आवरण-देवताओं का पूजन-तर्पण’ करने की अनुमति माँगे- “ॐ सम्विन्मये परे देवी! परामृत-रस-प्रिये! अनुज्ञां देहि मे दुर्गे! परिवारार्चनाय ते!” इस प्रकार प्रार्थना कर भगवती को पुष्पाञ्जलि अर्पित करे और भावना करे कि पूजन-तर्पण की अनुमति मिल गई है। पूज्य और पूजक का मध्य भाग ही पूर्व दिशा है। इसी के अनुसार अन्य दिशाओं की भावना करनी चाहिए। (१३) प्रथम आवरण-पूजन-तर्पण (त्रिकोण के तीन कोणों में) पूजा यन्त्र त्रिकोण के पूर्व कोण में- ॐ ऐं ब्रह्मा-सरस्वतीभ्यां नमः, ॐ ब्रह्मा-सरस्वती-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। यन्त्र के मध्य त्रिकोण के नैऋत्य-कोण में- ॐ ह्रीं विष्णु-लक्ष्मीभ्यां नमः, ॐ विष्णु-लक्ष्मी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। यन्त्र के मध्य त्रिकोण के वायव्य-कोण में- ॐ क्लीं पार्वती-शंकराभ्यां नमः, ॐ पार्वती-शंकर-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। इस प्रकार पूजन-तर्पण कर निम्न मन्त्र से पुष्पाञ्जलि अर्पित करे- अभीष्ट-सिद्धिं मे देहि शरणागत-वत्सले! भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम्।। तब निम्न मन्त्र से मधुपर्क-पात्र से भगवती के तृप्त्यर्थ ‘मधुपर्क’ अर्पित करे- सम्पूजिताः सन्तर्पिताः सन्तु। (१४) द्वितीय आवरण-पूजन-तर्पण (त्रिकोण के मध्य में) पूजा-यन्त्र के मध्ञ में ‘त्रिकोण’ के विन्दु में विराजमान भगवती दुर्गा के उत्तर, उनके वाहन ‘महा-सिंह’ का पूजन-तर्पण करे- ॐ महा-सिंहाय नमः, ॐ महा-सिंह-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। फिर देवी के दक्षिण ओर निम्न मन्त्र से महिष का पूजन-तर्पण करे- ॐ महिषाय नमः, ॐ महिष-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। तब पूर्व-वत् ‘पुष्पाञ्जलि’ और मधुपर्क समर्पित करे- अभीष्ट-सिद्धिं मे देहि शरणागत-वत्सले! भक्त्या समर्पये तुभ्यं द्वितीयावरणार्चनम्।। सम्पूजिताः सन्तर्पिताः सन्तु। (१५) तृतीय आवरण-पूजन-तर्पण (षट्-कोण में) अब पूजा-यन्त्र के षट्-कोण के छः कोणों में पूर्वादि-क्रम से पूजन-तर्पण करे- ॐ नन्दजायै नमः, ॐ नन्दजा-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ रक्त-दन्तिकायै नमः, ॐ रक्त-दन्तिका-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ शाकम्भर्यै नमः, ॐ शाकम्भरी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ दुर्गायै नमः, ॐ दुर्गा-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ भीमायै नमः, ॐ भीमा-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ भ्रामर्यै नमः, ॐ भ्रामरी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। इस प्रकार पूजन-तर्पण कर पुष्पाञ्जलि व मधुपर्क अर्पित करे- अभीष्ट-सिद्धिं मे देहि शरणागत-वत्सले! भक्त्या समर्पये तुभ्यं तृतीयावरणार्चनम्।। सम्पूजिताः सन्तर्पिताः सन्तु। (१६) चतुर्थ आवरण-पूजन-तर्पण (अष्ट-दल-कमल में) इसके बाद अष्ट-दल-कमल की आठ पंखुड़ियों में पूर्वादि क्रम से निम्न मन्त्रों से पूजन-तर्पण कर पुष्पाञ्जलि व मधुपर्क अर्पित करे- ॐ ब्राह्मयै नमः, ॐ ब्राह्मी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ माहेश्वर्यै नमः, ॐ माहेश्वरी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ कौमार्यै नमः, ॐ कौमारी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ वैष्णव्यै नमः, ॐ वैष्णवी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ वाराह्यै नमः, ॐ वाराही-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ नारसिंह्यै नमः, ॐ नारसिंही-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ ऐन्द्रयै नमः, ॐ ऐन्द्री-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ चामुण्डायै नमः, ॐ वामुण्डा-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। अभीष्ट-सिद्धिं मे देहि शरणागत-वत्सले! भक्त्या समर्पये तुभ्यं चतुर्थावरणार्चनम्।। सम्पूजिताः सन्तर्पिताः सन्तु। (१७) पञ्चम आवरण-पूजन-तर्पण (चतुर्विंशति-दल-कमल में) अब चतुर्विंशति-दल-कमल की चौबीस पंखुड़ियों में पूर्वादि-क्रम से निम्न मन्त्रों से पूजन-तर्पण कर पुष्पाञ्जलि व मधुपर्क अर्पित करे- ॐ विष्णु-मायायै नमः, ॐ विष्णु-माया-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ चेतनायै नमः, ॐ चेतना-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ बुद्धयै नमः, ॐ बुद्धि-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ निद्रायै नमः, ॐ निद्रा-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ क्षुधायै नमः, ॐ क्षुधा-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ छायायै नमः, ॐ छाया-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ शक्तयै नमः, ॐ शक्ति-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ तृष्णायै नमः, ॐ तृष्णा-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ क्षान्त्यै नमः, ॐ क्षान्ति-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ जात्यै नमः, ॐ जाति-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ लज्जायै नमः, ॐ लज्जा-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ शान्त्यै नमः, ॐ शान्ति-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ श्रद्धायै नमः, ॐ श्रद्धा-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ कान्त्यै नमः, ॐ कान्ति-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ लक्ष्म्यै नमः, ॐ लक्ष्मी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ धृत्यै नमः, ॐ धृति-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ वृत्त्यै नमः, ॐ वृत्ति-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ स्मृत्यै नमः, ॐ स्मृति-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ दयायै नमः, ॐ दया-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ तुष्टयै नमः, ॐ तुष्टि-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ पुष्टयै नमः, ॐ पुष्टि-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ मात्रे नमः, ॐ मातृ-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ भ्रान्त्यै नमः, ॐ भ्रान्ति-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ चिन्त्यै नमः, ॐ चिति-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। अभीष्ट-सिद्धिं मे देहि शरणागत-वत्सले! भक्त्या समर्पये तुभ्यं पञ्चमावरणार्चनम्।। सम्पूजिताः सन्तर्पिताः सन्तु। (१८) षष्ठ आवरण-पूजन-तर्पण (चतुःषष्टि-दल-कमल में) अब चतुःषष्टि-दल-कमल की चौंसठ पंखुड़ियों में पूर्वादि-क्रम से निम्न मन्त्रों से पूजन-तर्पण कर पुष्पाञ्जलि व मधुपर्क अर्पित करे- ॐ जयायै नमः, ॐ जया-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ विजयायै नमः, ॐ विजया-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ जयन्त्यै नमः, ॐ जयन्ती-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ अपराजितायै नमः, ॐ अपराजिता-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ दिव्य-योगिन्यै नमः, ॐ दिव्य-योगिनी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ महा-योगिन्यै नमः, ॐ महा-योगिनी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ सिद्ध-योगिन्यै नमः, ॐ सिद्ध-योगिनी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ माहेश्वर्यै नमः, ॐ माहेश्वरी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ प्रेताश्यै नमः, ॐ प्रेताशी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ डाकिन्यै नमः, ॐ डाकिनी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ काल्यै नमः, ॐ काली-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ काल-रात्र्यै नमः, ॐ काल-रात्रि-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ टंकाक्ष्यै नमः, ॐ टंकाक्षी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ रौद्रयै नमः, ॐ रौद्री-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ वैताल्यै नमः, ॐ वैताली-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ हुंकार्यै नमः, ॐ हुंकारी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ ऊर्ध्व-केश्यै नमः, ॐ ऊर्ध्व-केशी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ विरुपाक्ष्यै नमः, ॐ विरुपाक्षी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ शुष्कांग्यै नमः, ॐ शुष्कांगी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ नर-भोजिकायै नमः, ॐ नर-भोजिका-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ फट्-कार्यै नमः, ॐ फट्-कारी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ वीर-भद्रायै नमः, ॐ वीर-भद्रा-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ धूम्रांगयै नमः, ॐ धूम्रांगी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ कलह-प्रीयायै नमः, ॐ कलह-प्रिया-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ राक्षस्यै नमः, ॐ राक्षसी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ घोर-रक्ताक्ष्यै नमः, ॐ घोर-रक्ताक्षी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ विश्व-रुपायै नमः, ॐ विश्व-रुपा-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ भयंकर्यै नमः, ॐ भयंकरी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ चण्ड-मार्यै नमः, ॐ चण्ड-मारी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ चण्ड्यै नमः, ॐ चण्डी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ वाराह्यै नमः, ॐ वाराही-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ मुण्ड-धारिण्यै नमः, ॐ मुण्ड-धारिणी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ भैरव्यै नमः, ॐ भैरवी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ ऊर्ध्वक्ष्यै नमः, ॐ ऊर्ध्वाक्षी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ दुर्मुख्यै नमः, ॐ दुर्मुखी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ प्रेत-वाहिन्यै नमः, ॐ प्रेत-वाहिनी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ खट्वांग्यै नमः, ॐ खट्वांगी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ लम्बोष्ठयै नमः, ॐ लम्बोष्ठी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ मालिन्यै नमः, ॐ मालिनी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ मत्त-योगिन्यै नमः, ॐ मत्त-योगिनी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ काल्यै नमः, ॐ काली-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ रक्तायै नमः, ॐ रक्ता-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ कंकाल्यै नमः, ॐ कंकाली-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ भुवनेश्वर्यै नमः, ॐ भुवनेश्वरी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ त्रोटिक्यै नमः, ॐ त्रोटिकी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ महा-मायायै नमः, ॐ महा-माया-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ यम-दूत्यै नमः, ॐ यम-दूती-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ कराल्यै नमः, ॐ कराली-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ केशिन्यै नमः, ॐ केशिनी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ दमन्यै नमः, ॐ दमनी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ रोम-गंगा-प्रवाहिन्यै नमः, ॐ रोमगंगाप्रवाहिनी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ विडाल्यै नमः, ॐ विडाली-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ कामुकालाक्ष्यै नमः, ॐ कामुकालाक्षी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ जयायै नमः, ॐ जया-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ अधोमुख्यै नमः, ॐ अधोमुखी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ मुण्डाग्र-धारिण्यै नमः, ॐ मुण्डाग्र-धारिणी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ व्याघ्रयै नमः, ॐ व्याघ्री-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ कांक्षिण्यै नमः, ॐ कांक्षिणी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ प्रेत-भक्षिण्यै नमः, ॐ प्रेत-भक्षिणी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ धूर्जटयै नमः, ॐ धूर्जटी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ विकटयै नमः, ॐ विकटी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ घोर्यै नमः, ॐ घोरी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ कपाल्यै नमः, ॐ कपाली-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ विष-लम्बिन्यै नमः, ॐ विष-लम्बिनी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। अभीष्ट-सिद्धिं मे देहि शरणागत-वत्सले! भक्त्या समर्पये तुभ्यं षष्ठावरणार्चनम्।। सम्पूजिताः सन्तर्पिताः सन्तु। (१९) सप्तम आवरण-पूजन-तर्पण (भू-पुर के भीतरी कोणों में) भू-पुर के भीतर आग्नेयादि चारों कोणों में निम्न मन्त्रों से पूजन-तर्पण कर पुष्पाञ्जलि व मधुपर्क अर्पित करे- ॐ गं गणेशाय नमः, ॐ गणेश-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ क्षं क्षेत्र-पालाय नमः, ॐ क्षेत्र-पाल-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ वं वटुकाय नमः, ॐ वटुक-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ यां योगिन्यै नमः, ॐ योगिनी-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। अभीष्ट-सिद्धिं मे देहि शरणागत-वत्सले! भक्त्या समर्पये तुभ्यं सप्तमावरणार्चनम्।। सम्पूजिताः सन्तर्पिताः सन्तु। (२०) अष्टम आवरण-पूजन-तर्पण (भू-पुर के भीतर आठों दिशाओं में) भू-पुर की प्रथम वीथी के अन्तर्गत पूर्वादि-क्रम से दश दिक्पालों का पूजन-तर्पण कर पुष्पाञ्जलि व मधुपर्क अर्पित करे- ॐ लं इन्द्राय नमः, ॐ इन्द्र-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ रं अग्न्ये नमः, ॐ अग्नि-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ यं यमाय नमः, ॐ यम-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ क्षं निऋतये नमः, ॐ निऋति-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ वं वरुणाय नमः, ॐ वरुण-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ यं वायवे नमः, ॐ वायु-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ कुं कुबेराय नमः, ॐ कुबेर-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ हं ईशानाय नमः, ॐ ईशान-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ आं ब्रह्मणे नमः, ॐ ब्रह्मा-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ ह्रीं अनन्ताय नमः, ॐ अनन्त-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। अभीष्ट-सिद्धिं मे देहि शरणागत-वत्सले! भक्त्या समर्पये तुभ्यं अष्टमावरणार्चनम्।। सम्पूजिताः सन्तर्पिताः सन्तु। (२१) नवम आवरण-पूजन-तर्पण (भू-पुर के भीतर द्वितीय वीथी में) भू-पुर की द्वितीय वीथी में पूर्वादि-क्रम से उपर्युक्त दिक्पालों के समक्ष उनके शस्त्रों का पूजन-तर्पण कर पुष्पाञ्जलि व मधुपर्क अर्पित करे- ॐ वं वज्राय नमः, ॐ वज्र-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ शं शक्तये नमः, ॐ शक्ति-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ दं दण्डाय नमः, ॐ दण्ड-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ खं खड्गाय नमः, ॐ खड्ग-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ पां पाशाय नमः, ॐ पाश-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ अं अंकुशाय नमः, ॐ अंकुश-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ गं गदायै नमः, ॐ गदा-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ त्रिं त्रिशूलाय नमः, ॐ त्रिशूल-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ पं पद्माय नमः, ॐ पद्म-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ चं चक्राय नमः, ॐ चक्र-श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। अभीष्ट-सिद्धिं मे देहि शरणागत-वत्सले! भक्त्या समर्पये तुभ्यं नवमावरणार्चनम्।। सम्पूजिताः सन्तर्पिताः सन्तु। (२२) उक्त प्रकार आवरण-पूजन पूर्ण कर चुकने पर ‘नवार्ण मन्त्र’ का एक माला या कम से कम ११ बार जप कर पायस (खीर) से होम करे। नवार्ण मन्त्र का पुरश्चरण चार लाख जप करने से सम्पन्न होता है। पुरश्चरण का संकल्प हो, तो दशांश-संख्यक होम, तद्दशांश तर्पण, मार्जन, ब्राह्मण-भोजन आदि करें। वटुक, कुमारी-पूजन यथा-शक्ति अवश्य करें। विशेष- १॰ किसी साधक को यदि किसी कारणवश उपर्युक्त सम्पूर्ण पूजा करने का समय न मिले, तो निम्न श्लोक का श्रद्धा के साथ पाठ कर दण्डवत प्रणाम करना चाहिए और मूल-मन्त्र का जप करना चाहिए- “जया च विजया चैव, अजिता च अपरा तथा। नित्या च विलसन्ती च, दौर्ग्रह्यघोर-मण्डलाः।। २॰ पूजा में प्राकृतिक पदार्थों का निवेदन किया जाए, तो अभीष्ट फल शीघ्र मिलता है। जैसे दूध, घी, शुद्ध जल, फल आदि। ३॰ कम से कम एक मण्डल अर्थात् ४० दिन लगातार पूजा की जानी चाहिए। उस अवधि में किसी दूसरी देवता की पूजा करना बिल्कुल मना है। अच्छा यह है कि साधक अपने जन्म-नक्षत्र या राशि के दिन से पूजा प्रारम्भ करे तथा पूर्णिमा या अष्टमी के दिन पूजा का समापन करे। साधक यदि विवाहित हो, तो पत्नी के साथ पूजा करना बहुत ही श्रेयष्कर है। Related