November 8, 2015 | aspundir | Leave a comment पञ्च-दशी यन्त्र से भगवती लक्ष्मी की कृपा-प्राप्ति “दीपावली” की सन्ध्या में सूर्यास्त के बाद उक्त यन्त्र लिखना प्रारम्भ करे। अगले दिन सूर्योदय तक यन्त्र लिखता रहे। सूर्योदय के समय अन्तिम यन्त्र एक बड़े कागज के ऊपर लिखकर ‘पूजा-स्थान में रखे। उसे धूप-दीप दिखाए। साथ ही, एक छोटा यन्त्र भी बनाकर उसे ‘ताबीज’ में भरकर गले में धारण करे। ‘दीपावली’ की रात्रि में जागरण करते हुए यन्त्र लिखे। यन्त्रों की गिनती की आवश्यकता नहीं है। अन्तिम दो यन्त्रों को, ऊपर बताये अनुसार उपयोग में लें, शेष यन्त्रों को बाद में आटे की अलग-अलग गोलियों में रखकर मछलियों को खिलाए या जल में विसर्जित करे। “यन्त्र” लिखते समय “श्रीं नमः” मन्त्र का स्मरण भी बिना गिनती के करे। बाद में, इस मन्त्र का जप नित्य कम-से-कम १०८ बार करे और यन्त्र का पूजन करे। यदि “दरिद्रता-नाशक-सूक्त” का नित्य ११ बार पाठ भी करे, तो अति उत्तम। ।।दरिद्रता-नाशक-सूक्त।। अरायि काणे विकटे, गिरिं गच्छ सदान्वे। शिरिन्विठस्य सत्त्वभिस्तेऽभिष्ट्वा।।१ हे दरिद्रते, तुम-दान-विरोधिनी, कु-शब्दवाली, विकट आकार-वाली और क्रोधिनी हो। मैं (शिरिन्वठ) ऐसा उपाय करता हूँ, जिससे तुम्हें दूर करुँगा। चत्तो इतश्चत्तामुतः, सर्वा भ्रणान्यारुषी। अराध्यं ब्रह्मणस्पते, तीक्ष्ण-श्रृंगोदषन्निहि।।२ दरिद्रता वृक्ष, लता, शस्य आदि का अंकुर नष्ट करके दुर्भिक्ष ले आती है। उसे मैं इस लोक और उस लोक से दूर करता हूँ। तेजः-शाली ब्रह्मणस्पति, दान-द्रोहिणी इस दरिद्रता को यहाँ से दूर कर आओ। अदो यद्दारु प्लवते, सिन्धो पारे अपूरुषम्। तदा रभस्व दुर्हणो, तेन गच्छ परद्तरम्।।३ यह जो काठ समुद्र के पास बहता है, उसका कर्त्ता (स्वामी) नहीं है। दुष्ट-आकृतिवाली अलक्ष्मी (दरिद्रता), इसी के ऊपर चढ़कर समुद्र के दूसरे पार चली जाओ। यद्ध प्राचीर-जगन्तोरो, मण्डूर-धाणिकीः। हत इन्द्रस्य शत्रवः, सर्वे बुद्-बुदयाशवः।।४ हिंससा-मयी और कुत्सित शब्दवाली अलक्ष्मितों, जिस समय तत्पर होकर तुम लोग शीघ्र गमन से चली गईं, उस समय इन्द्र (आर्य) के सब शत्रु जल-बुद्बुद् के समान विलीन हो गए। (ऋग्-वेद) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe