January 27, 2025 | aspundir | Leave a comment ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 12 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ बारहवाँ अध्याय गङ्गा का प्रकट होना, देवताओं के प्रति श्रीकृष्ण का आदेश तथा गङ्गा के विष्णुपत्नी होने का प्रसङ्ग नारद ने कहा — भगवन्! लक्ष्मी, सरस्वती, गङ्गा और जगत् को पावन बनाने वाली तुलसी — ये चारों देवियाँ भगवान् नारायण की ही प्रिया हैं । यह प्रसङ्ग तथा गङ्गा के वैकुण्ठ को जाने की बात मैं आपसे सुन चुका; परंतु गङ्गा विष्णु की पत्नी कैसे हुई, यह वृत्तान्त सुनने का सुअवसर मुझे नहीं मिला। उसे कृपया सुनाइये । भगवान् नारायण बोले — नारद! जब गङ्गा वैकुण्ठ में चली गयी, तब थोड़ी देर के बाद जगत् की व्यवस्था करने वाले ब्रह्मा भी उसके साथ ही वैकुण्ठ पहुँचे और जगत्प्रभु भगवान् श्रीहरि को प्रणाम करके कहने लगे । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ब्रह्माजी ने कहा — भगवन्! श्रीराधा और श्रीकृष्ण के अङ्ग से प्रकट हुई ब्रह्मद्रवरूपिणी गङ्गा इस समय एक सुशीला देवी के रूप में विराजमान है। दिव्य यौवन से सम्पन्न होने के कारण उसका शरीर परम मनोहर जान पड़ता है। शुद्ध एवं सत्त्वस्वरूपिणी उस देवी में क्रोध और अहंकार लेशमात्र के लिये भी नहीं हैं। श्रीकृष्ण के अङ्ग से प्रकट हुई वह गङ्गा उन्हें छोड़ किसी दूसरे को पति नहीं बनाना चाहती। किंतु परम तेजस्विनी राधा ऐसा नहीं चाहती। वह मानिनी राधा इस गङ्गा को पी जाना चाहती थी, परंतु बड़ी बुद्धिमानी के साथ यह परमात्मा श्रीकृष्ण के चरणकमलों में प्रविष्ट हो गयी, इसी से रक्षा हुई। उस समय सर्वत्र सूखे हुए ब्रह्माण्ड-गोलक को देखकर मैं गोलोक में गया। सर्वान्तर्यामी भगवान् श्रीकृष्ण सम्पूर्ण वृत्तान्त जानने के लिये वहाँ विराजमान थे । उन्होंने सबका अभिप्राय समझकर अपने चरणकमल के नखाग्र से इसे बाहर निकाल दिया। तब मैंने इसे राधा की पूजा के मन्त्र याद कराये। इसके जल से ब्रह्माण्ड-गोलक को पूर्ण कराया । तदनन्तर राधा और श्रीकृष्ण के चरणों में मस्तक झुकाकर इसे साथ लेकर यहाँ आया । प्रभो! आपसे मेरी प्रार्थना है कि इस सुरेश्वरी गङ्गा को आप अपनी पत्नी बना लीजिये । देवेश ! आप पुरुषों में रत्न हैं । इस साध्वी देवी को स्त्रियों में रत्न माना जाता है। जिनमें सत्-असत् का पूर्ण ज्ञान है, वे पण्डित-पुरुष भी इस प्रकृति का अपमान नहीं करते। सभी पुरुष प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं और स्त्रियाँ भी उसी की कलाएँ हैं । केवल आप भगवान् श्रीहरि ही उस प्रकृति से परे निर्गुण प्रभु हैं । परिपूर्णतम श्रीकृष्ण स्वयं दो भागों में विभक्त हुए। आधे से तो दो भुजाधारी श्रीकृष्ण बने रहे और उनका आधा अङ्ग आप चतुर्भुज श्रीहरि के रूप में प्रकट हो गया। इसी प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण के वामाङ्ग से आविर्भूत श्रीराधा भी दो रूपों में परिणत हुईं। दाहिने अंश से तो वे स्वयं रहीं और उनके वामांश से लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ। अतएव यह गङ्गा आपको ही वरण करना चाहती है; क्योंकि आपके श्रीविग्रह से ही यह प्रकट है। प्रकृति और पुरुष की भाँति स्त्री-पुरुष दोनों एक ही अङ्ग हैं। मुने! इस प्रकार कहकर महाभाग ब्रह्मा ने भगवान् श्रीहरि के पास गङ्गा को बैठा दिया और वे वहाँ से चल पड़े। फिर तो स्वयं श्रीहरि ने विवाह नियमानुसार गङ्गा के पुष्प एवं चन्दन से चर्चित कर-कमल को ग्रहण कर लिया और वे उसके प्रियतम पति बन गये। जो गङ्गा पृथ्वी पर पधार चुकी थी, वह भी समयानुसार अपने उस स्थान पर पुनः आ गयी । यों भगवान् के चरणकमल से प्रकट होने के कारण इस गङ्गा की ‘विष्णुपदी’ नाम से प्रसिद्धि हुई । गङ्गा प्रति सरस्वती के मन में जो डाह था, वह निरन्तर बना रहा । गङ्गा सरस्वती से कुछ द्वेष नहीं रखती थी । अन्त में ऊबकर विष्णुप्रिया गङ्गा ने सरस्वती को भारतवर्ष में जाने का शाप दे दिया था। मुने! इस प्रकार लक्ष्मीपति भगवान् श्रीहरि की गङ्गा सहित तीन पत्नियाँ हैं । बाद में तुलसी को भी प्रिय पत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त हो गया। अतएव तुलसी सहित ये चार प्रेयसी पत्नियाँ कही गयी हैं । (अध्याय १२) ॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्त्ते महापुराणे द्वितीये प्रकृतिखण्डे नारदनारायणसंवादे गङ्गोपाख्यानं नाम द्वादशोऽध्यायः ॥ १२ ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Related