ब्रह्मवैवर्तपुराण – ब्रह्मखण्ड – अध्याय 22
ॐ श्रीगणेशाय नमः
ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः
बाईसवाँ अध्याय
ब्रह्मा जी के पुत्रों के नामों की व्युत्पत्ति

सौति कहते हैं — शौनक जी! तदनन्तर कुछ कल्प व्यतीत होने पर जब ब्रह्मा जी पुनः सृष्टि-कार्य में संलग्न हुए, तब उनके ‘नरद’ नामक कण्ठ देश से मरीचि आदि मुनियों के साथ वे शापमुक्त मुनि प्रकट हुए। इसी कारण से उन मुनीन्द्र की ‘नारद’ नाम से ख्याति हुई। ब्रह्मा जी का जो पुत्र उनके चेतस (चित्त) से प्रकट हुआ, उसका नाम उन्होंने ‘प्रचेता’ रखा। जो उनके दक्षिण पार्श्व से सहसा उत्पन्न हुआ, वह सब कर्मों में दक्ष होने के कारण ‘दक्ष’ कहलाया। वेदों में कर्दम शब्द छाया के अर्थ में विद्यमान है। जो बालक ब्रह्मा जी के कर्दम अर्थात छाया से प्रकट हुआ, उसका नाम ‘कर्दम’ रखा गया। इसी तरह मरीचि शब्द वेदों में तेजो भेद के अर्थ में आता है। अतः जो बालक तत्काल अत्यन्त तेजस्वी रूप में प्रकट हुआ, वह ‘मरीचि’ कहलाया। जिस बालक के जन्मान्तर में क्रतुसंघ (यज्ञ समूह) का सम्पादन किया था, वह वर्तमान जन्म में ब्रह्मा जी का पुत्र होने पर भी उसी क्रतु के नाम पर ‘क्रतु’ कहलाया।

गणेशब्रह्मेशसुरेशशेषाः सुराश्च सर्वे मनवो मुनीन्द्राः । सरस्वतीश्रीगिरिजादिकाश्च नमन्ति देव्यः प्रणमामि तं विभुम् ॥

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

ब्रह्मा जी का मुख प्रधान अंग है। उस अंग से उत्पन्न हुआ बालक इर अर्थात तेजस्वी था, इसलिये ‘अंगिरा’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। शौनक! भृगु शब्द अत्यन्त तेजस्वी के अर्थ में विद्यमान है। ब्रह्मा जी से उत्पन्न जो बालक अत्यन्त तेजस्वी हुआ, उसका नाम ‘भृगु’ हुआ। जो बालक होने पर भी तत्काल अत्यन्त तेज के कारण अरुण वर्ण का हो गया और उच्च कोटि की तपस्या के कारण तेज से प्रज्वलित होने लगा, वह ‘आरुणि’ नाम से विख्यात हुआ। जिस योगी के योगबल से हंस उसके अधीन रहते थे, वह परम योगीन्द्र बालक ‘हंसी’ नाम से विख्यात हुआ। तत्काल प्रकट हुआ जो बालक वशीभूत और शिष्य होकर विधाता का अत्यन्त प्रीतिपात्र हुआ, उसका नाम ‘वसिष्ठ’ रखा गया। जिस बालक का तप में सदा प्रयत्न देखा गया तथा जो सम्पूर्ण कर्मों में संयत रहा, वह अपने उसी गुण के कारण ‘यति’ कहलाया।

वेदों में ‘पुल’ शब्द तपस्या के अर्थ में आता है और ‘ह’ स्फुट – अर्थ में। जिस बालक में स्फुट रूप से तपस्या का समूह लक्षित हुआ, वह उसी लक्षण से ‘पुलह’ पुल का अर्थ है–तपः-समूह और ‘स्त्य’ शब्द अस्ति — ‘है’ के अर्थ में आया हैकहलाया। जिसके पूर्वजन्मों के तपःसमूह विद्यमान हैं; इसी कारण जो तपः-संघ स्वरूप है; वह इस व्युत्पत्ति के द्वारा ‘पुलस्त्य’ के नाम से विख्यात हुआ। ‘त्रि’ शब्द त्रिगुणमयी प्रकृति के अर्थ में आता है और ‘अ’ विष्णु के अर्थ में। जिसकी उन दोनों के प्रति समान भक्ति है, उस बालक को ‘अत्रि’ कहा गया। जिसके मस्तक पर तपस्या के तेज से प्रकट हुई अग्निशिखा स्वरूपिणी पाँच जटाएँ थीं, उसका नाम ‘पञ्चशिख’ हुआ।

जिसने दूसरे जन्म में आन्तरिक अन्धकार से रहित प्रदेश में तप किया था, उस शिशु का नाम ‘अपान्तरतमा’ हुआ। जो स्वयं तपस्या करता और दूसरों को भी उसकी प्राप्ति करा सकता था तथा जो तपस्या का भार वहन करने में पूर्ण समर्थ था, वह अपनी इसी योग्यता के कारण ‘वोढु’ कहलाया। मुने! जो बालक तपस्या के सदा दीप्तमान रहता था तथा तपस्या में जिसके चित्त की स्वाभाविक रुचि थी, वह ‘रुचि’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। जो ब्रह्मा जी के क्रोध के समय ग्यारह की संख्या में प्रकट हुए और रोने लगे, वे रोदन के ही कारण ‘रुद्र’ कहलाये।

सौति फिर बोले — जिनमें सत्त्वगुण की प्रधानता है, वे भगवान् विष्णु पालक हैं। रजोगुण प्रधान ब्रह्मा सृष्टि कर्ता हैं तथा जिनमें तमोगुण की प्रधानता है, वे ‘रुद्र’ कहे गये हैं। उनके वेग को रोकना कठिन है। वे बड़े भयंकर हैं। उन रुद्रों में से एक का नाम कालाग्नि रुद्र है, जो भगवान् शंकर के अंश हैं। वे ही जगत् का संहार करने वाले हैं। शुद्ध सत्त्वस्वरूप जो शिव हैं, वे सत्पुरुषों को कल्याण प्रदान करने वाले हैं। अन्य रुद्र श्रीकृष्ण की कला मात्र हैं। केवल भगवान् विष्णु और शंकर उन परिपूर्णतम भगवान् श्रीकृष्ण के दो अंश हैं। वे दोनों ही समान सत्त्वस्वरूप हैं।

ब्रह्मन! यह बात मैंने रुद्र की उत्पत्ति के प्रसंग में बतायी है। आप उसे भूल क्यों रहे हैं। सच है, सभी लोग भगवान् की माया से मोहित हो जाते हैं। मुनियों को भी मतिभ्रम हो जाया करता है। ‘सनक’ ब्रह्मा के प्रथम, ‘सनन्दन’ द्वितीय, ‘सनातन’ तृतीय और भगवान् ‘सनत्कुमार’ चतुर्थ पुत्र हैं। मुने! ब्रह्मा जी ने उन प्रथम चार पुत्रों से सृष्टि करने के लिये कहा। परंतु उनके लिये यह कार्य असह्य हो गया। इससे ब्रह्मा जी को बड़ा क्रोध हुआ। उसी क्रोध से रुद्रों की उत्पत्ति हुई। सनक और सनन्दन – ये दोनों शब्द आनन्द के वाचक हैं। वे दोनों बालक भक्तिभाव से परिपूर्ण होने के कारण सदा आनन्दित रहते हैं, इसलिये सनक और सनन्दन नाम से विख्यात हुए। नित्य परिपूर्णतम साक्षात भगवान् श्रीकृष्ण ही सनातन पुरुष हैं। जो उनका भक्त है, वह भी वास्तव में उन्हीं के समान है। इसीलिये यह तीसरा कृष्ण-भक्त बालक सनातन नाम से विख्यात हुआ। ‘सनत्’ का अर्थ है नित्य और ‘कुमार’ का अर्थ है शिशु। नित्य शैशवावस्था से सम्पन्न होने के कारण इस बालक को ब्रह्मा जी ने सनत्कुमार नाम दिया। मुने! इस प्रकार मैंने ब्रह्मा जी के पुत्रों के नामों की व्युत्पत्ति बतायी। अब आप क्रमशः नारद जी के आख्यान को सुनिये। (अध्याय २२)

॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्त्ते महापुराणे ब्रह्मखण्डे सौतिशौनकसंवादे ब्रह्मपुत्रव्युत्पत्तिकथनं नाम द्वाविंशतितमोऽध्यायः ॥ २२ ॥
॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

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