March 1, 2025 | aspundir | Leave a comment ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 55 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ (उत्तरार्द्ध) पचपनवाँ अध्याय श्रीकृष्ण की महत्ता एवं प्रभाव का वर्णन श्रीनारायण कहते हैं — नारद! वे ही भगवान् श्रीकृष्ण सर्वात्मा परम पुरुष हैं । वे दुराराध्य होते हुए भी अत्यन्त साध्य हैं अर्थात् आराधना के बल से उन्हें रिझा पाना अत्यन्त कठिन है तो भी वे भक्त पर कृपा करके स्वयं ही उसके अधीन हो जाते हैं । भगवान् श्रीकृष्ण सबके आराध्य और सुखदायक हैं। अपने भक्तों के लिये तो वे अत्यन्त सुलभ हैं। भक्त ही उन्हें आराधना द्वारा वश में कर सकता है। वे अपने भक्त को सदा ही दर्शन देते हैं और दे सकते हैं; किंतु अभक्त के लिये उनका दर्शन पाना सर्वथा असम्भव है । उनके लीलाचरित्रों का रहस्य समझ पाना अत्यन्त कठिन है। केवल उन चरित्रों का अपने हृदय में चिन्तन करना चाहिये । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय संसार के सब लोग श्रीकृष्ण की दुरन्त माया से बद्ध एवं मोहित हैं। उन्हीं के भय से यह वायु निरन्तर बहती रहती है, कच्छप बिना आधार के ही स्थिर रहता है और यही कच्छप उन्हीं के भय से सदा अनन्त ( शेषनाग ) – को अपनी पीठ पर धारण किये रहता है तथा शेषनाग अपने मस्तक पर अखिल विश्व का भार उठाये रहते हैं । शेषनाग के सहस्र सिर हैं। उनके सिर के एक देश में सात समुद्रों, सात द्वीपों, पर्वतों और काननों से युक्त पृथ्वी विद्यमान है। सात पाताल, भूर्भुवः स्वः आदि विभिन्न सात स्वर्ग, जिनमें ब्रह्मलोक भी शामिल है, विश्व कहे गये हैं । इस विश्व को ‘त्रिभुवन’ कहते हैं । इसी को कृत्रिम अनित्यजगत् कहा गया है। विधाता प्रत्येक कल्प में श्रीकृष्ण के भय से ही इस कृत्रिम जगत् की सृष्टि करते हैं । इस तरह के असंख्य विश्व हैं, जिन्हें महाविराट् (महाविष्णु) अपने रोम – कूपों में धारण करते हैं। ये श्रीकृष्ण के ही अंश हैं। उन्हीं के भय से समस्त ब्रह्माण्डों को धारण करते हैं और उन्हीं का निरन्तर ध्यान किया करते हैं। कृपानिधान विष्णु (लघु विराट्) भी श्रीकृष्ण के ही भय से संसार का पालन करते हैं। उन्हीं का भय मानकर कालाग्नि रुद्रस्वरूप काल प्रजा का संहार करता है तथा छहों गुणों और ऐश्वर्यों से विरागी एवं विरक्त मृत्युञ्जय महादेव युक्त उन्हीं के भय से अनुरागपूर्वक उनका निरन्तर ध्यान करते रहते हैं। उन्हीं के भय से आग जलती और सूर्य तपते हैं। उनका ही भय मानकर इन्द्र वर्षा करते और मृत्यु समस्त प्राणियों पर धावा बोलती है। उन्हीं के भय से यम एवं धर्म पापियों को दण्ड देते हैं। उनका ही भय मानकर पृथ्वी चराचर लोकों को धारण करती और प्रकृति सृष्टिकाल में महत्तत्त्व आदि को जन्म देती है। बेटा ! उन भगवान् श्रीकृष्ण का अभिप्राय क्या है ? इसे जानना बहुत कठिन है । कौन ऐसा पुरुष है, जो उसे जानने का दावा कर सके । वत्स ! ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी जिनके प्रभाव को नहीं जानते हैं; उन्हीं भगवान् की लीला का रहस्य मुझ जैसा मन्दबुद्धि कैसे जान सकता है ? वे नन्दनन्दन वृन्दावन को छोड़कर मथुरा क्यों चले गये ? उन्होंने गोपियों तथा प्राणाधिका प्रिया राधा को क्यों त्याग दिया ? माता यशोदा और नन्द को तथा अन्यान्य बान्धव आदि को क्यों छोड़ा ? इस बात को उनके सिवा दूसरा कौन जान सकता है ? वे ही दर्प देते हैं और वे ही उस दर्प का दलन करते हैं। सबको सदा सब कुछ देने वाले श्रीकृष्ण ही हैं। सबके दर्प का नाश करके उन्होंने उन सब पर कृपा ही की। वे ही जगत् की सृष्टि, पालन और संहार करने वाले हैं। वे स्रष्टा के भी स्रष्टा हैं । भगवान् शंकर अपने पाँच मुखों द्वारा भी उनकी स्तुति करने में समर्थ नहीं हैं। चार मुखों वाले जगत्-विधाता ब्रह्माजी भी उनका स्तवन नहीं कर सकते । शेषनाग सहस्र मुखों से भी उनकी स्तुति करने की शक्ति नहीं रखते। साक्षात् विश्वव्यापी जनार्दन विष्णु भी उनकी स्तुति करने में असमर्थ हैं। महाविराट् नारायण भी उन परमेश्वर की स्तुति नहीं कर सके। प्रकृति उन परमात्मा के सामने काँप उठती है । सरस्वती उन परमेश्वर का स्तवन करने में जडवत् हो जाती है नारद ! सम्पूर्ण वेद भी उनकी महिमा को नहीं जानते। ब्रह्मन् ! इस प्रकार निर्गुण परमात्मा श्रीकृष्ण के प्रभाव का वर्णन किया गया। अब और क्या सुनना चाहते हो ? (अध्याय ५५) ॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे उत्तरार्धे नारायणनारदसंवादे श्रीकृष्णप्रभाव-वर्णनं नाम पञ्चपञ्चशात्तमोऽध्यायः ॥ ५५ ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related