March 7, 2025 | aspundir | Leave a comment ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 82 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ (उत्तरार्द्ध) बयासीवाँ अध्याय दुःस्वप्न, उनके फल तथा उनकी शान्ति के उपाय का वर्णन तदनन्तर सूर्यग्रहण-चन्द्रग्रहणादि के विषय में कहकर नन्द बाबा के पूछने पर भगवान् कहने लगे । श्रीभगवान् बोले — नन्दजी! जो स्वप्न में हर्षातिरेक से अट्टहास करता है अथवा यदि विवाह और मनोऽनुकूल नाच-गान देखता है तो उसके लिये विपत्ति निश्चित है। स्वप्न में जिसके दाँत तोड़े जाते हैं और वह उन्हें गिरते हुए देखता है तो उसके धन की हानि होती है और उसे शारीरिक कष्ट भोगना पड़ता है। जो तेल से स्नान करके गदहे, ऊँट और भैंसे पर सवार हो दक्षिण दिशा की ओर जाता है; निःसंदेह उसकी मृत्यु हो जाती है। यदि स्वप्न में कान में लगे हुए अड़हुल, अशोक और करवीर के पुष्प को तथा तेल और नमक को देखता है तो उसे विपत्ति का सामना करना पड़ता है । नंगी, काली, नक-कटी, शूद्र-विधवा तथा जटा और ताड़ के फल को देखकर मनुष्य शोक को प्राप्त होता है। स्वप्न में कुपित हुए ब्राह्मण तथा क्रुद्ध हुई ब्राह्मणी को देखने वाले मनुष्य पर निश्चय ही विपत्ति आती है और लक्ष्मी उसके घर से चली जाती हैं। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय जंगली पुष्प, लाल फूल, भली-भाँति पुष्पों से लदा पलाश, कपास और सफेद वस्त्र को देखकर मनुष्य दुःख का भागी होता है । काला वस्त्र धारण करने वाली काले रंग की विधवा स्त्री को हँसती और गाती हुई देखकर मनुष्य मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। जिसे स्वप्न में देवगण नाचते, गाते, हँसते, ताल ठोंकते और दौड़ते हुए दीख पड़ते हैं; उसका शरीर मृत्यु का शिकार हो जायगा । जो स्वप्न में काले पुष्पों की माला और कृष्णाङ्गराग से सुशोभित एवं काला वस्त्र धारण करने वाली स्त्री का आलिङ्गन करता है; उसकी मृत्यु हो जायगी। जो स्वप्न में मृग का मरा हुआ छौना, मनुष्य का मस्तक और हड्डियों की माला पाता है; उसके लिये विपत्ति निश्चित है। जो ऐसे रथ पर, जिसमें गदहे और ऊँट जुते हुए हों, अकेले सवार होता है और उस पर बैठकर फिर जागता है तो निःसंदेह वह मौत का ग्रास बन जाता है। जो अपने को हवि, दूध, मधु, मट्ठा और गुड़ से सराबोर देखता है; वह निश्चय ही पीड़ित होता है। जो स्वप्न में लाल पुष्पों की माला एवं लाल अङ्गराग से युक्त तथा लाल वस्त्र धारण करने वाली स्त्री का आलिङ्गन करता है; वह रोग-ग्रस्त हो जाता है, यह निश्चित है। गिरे हुए नख और केश, बुझा हुआ अंगार और भस्मपूर्ण चिता को देखकर मनुष्य अवश्य ही मृत्यु का शिकार बन जाता है। श्मशान, काष्ठ, सूखा घास- फूस, लोहा, काली स्याही और कुछ-कुछ काले रंग वाले घोड़े को देखने से अवश्यमेव दुःख की प्राप्ति होती है । पादुका, ललाट की हड्डी, लाल पुष्पों की भयावनी माला, उड़द, मसूर और मूँग देखने से तुरंत शरीर में घाव या फोड़ा हो जाता है । सेना, गिरगिट, कौआ, भालू, वानर, नीलगाय, पीब और शरीर के मल का देखा जाना केवल व्याधि का कारण होता है। स्वप्न में फूटा बर्तन, घाव, शूद्र, गलत्कुष्ठी, रोगी, लाल वस्त्र, जटाधारी, सूअर, भैंसा, गदहा, महाघोर अन्धकार, मरा हुआ भयंकर जीव और योनि-चिह्न देखकर स्वप्न में मनुष्य निश्चय ही विपत्ति में फँस जाता है। कुवेषधारी म्लेच्छ और पाश ही जिसका शस्त्र है, ऐसे पाशधारी भयंकर यमदूत को देखकर मनुष्य मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । ब्राह्मण, ब्राह्मणी, छोटी कन्या और बालक-पुत्र क्रोधवश विलाप करते हों तो उन्हें देखकर दुःख की प्राप्ति होती है। काला फूल, काले फूलों की माला, शस्त्रास्त्रधारी सेना और विकृत आकार वाली म्लेच्छवर्ण की स्त्री को देखने से निस्संदेह मृत्यु गले लग जाती है। बाजा, नाच, गान, गवैया, लाल वस्त्र, बजाया जाता हुआ मृदङ्ग – इन्हें देखकर अवश्यमेव दुःख मिलता है। प्राणरहित (मुर्दे ) – को देखकर निश्चय ही मृत्यु होती है और जो मत्स्य आदि को धारण करता है, उसके भाई का मरण ध्रुव है। घायल अथवा बिना सिर का धड़ अथवा मुण्डित सिर वाले एवं शीघ्रतापूर्वक नाचते हुए बेडौल प्राणी को देखकर मनुष्य मौत का भागी हो जाता है। मरा हुआ पुरुष अथवा मरी हुई काले रंग की भयानक म्लेच्छ-नारी जिसका स्वप्न में आलिङ्गन करती है; उसका मर जाना निश्चित है। स्वप्न में जिनके दाँत टूट जायँ और बाल गिर रहे हों तो उसके धन की हानि होती है अथवा वह शारीरिक पीड़ा से दुःखी होता है । स्वप्न में जिसके ऊपर सींगधारी अथवा दंष्ट्रा वाले जीव तथा बालक और मनुष्य टूटे पड़ते हों; उसे राजा की ओर से भय प्राप्त होता है। गिरता हुआ कटा वृक्ष, शिलावृष्टि, भूसी, छूरा, लाल अङ्गारा और राख की वर्षा देखने से दुःख की प्राप्ति होती है । गिरते हुए ग्रह अथवा पर्वत, भयानक धूमकेतु अथवा टूटे हुए कंधे वाले मनुष्य को देखकर स्वप्न-द्रष्टा दुःख का भागी होता है। जो स्वप्न में रथ, घर, पर्वत, वृक्ष, गौ, हाथी और घोड़ा आकाश से भूतल पर गिरता देखता है; उसके लिये विपत्ति निश्चित है। जो भस्म और अङ्गारयुक्त गड्ढों में, क्षारकुण्डों में तथा धूलि की राशि पर ऊँचाई से गिरते हैं; निस्संदेह उनकी मृत्यु होती है। जिसके मस्तक पर से कोई दुष्ट बलपूर्वक छत्र खींच लेता है; उसके पिता, गुरु अथवा राजा का नाश हो चली है । जिस घर भयभीत हुई गौ बछड़े सहित जाती है; उस पापी की लक्ष्मी और पृथ्वी भी नष्ट हो जाती है । म्लेच्छ यमदूत जिसे पाश से बाँधकर ले जाते हैं; उसकी मृत्यु निश्चित है । जिसे ज्योतिषी ब्राह्मण, ब्राह्मणी तथा गुरु रुष्ट होकर शाप देते हैं; उसे निश्चय ही विपत्ति भोगनी पड़ती है। जिसके शरीर पर शत्रुदल, कौए, मुर्गे और रीछ आकर टूट पड़ते हैं; उसकी अवश्य मृत्यु हो जाती है और स्वप्न में जिसके ऊपर भैंसे, भालू, ऊँट, सूअर और गदहे क्रुद्ध होकर धावा करते हैं; वह निश्चय ही रोगी हो जाता है । जो लाल चन्दन की लकड़ी को घी में डुबोकर एक सहस्र गायत्री-मन्त्र द्वारा अग्नि में हवन करता है; उसका दुःस्वप्नजनित दोष शान्त हो जाता है । जो भक्तिपूर्वक इन मधुसूदन का एक हजार जप करता है; वह निष्पाप हो जाता है और उसका दुःस्वप्न भी सुखदायक हो जाता है । जो विद्वान् पवित्र हो पूर्व की ओर मुख करके अच्युत, केशव, विष्णु, हरि, सत्य, जनार्दन, हंस, नारायण — इन आठ शुभ नामों का दस बार जप करता है, उसका पाप नष्ट हो जाता है तथा दुःस्वप्न भी शुभकारक हो जाता है। जो भक्त भक्तिपूर्वक विष्णु, नारायण, कृष्ण, माधव, मधुसूदन, हरि, नरहरि, राम, गोविन्द, दधिवामन — इन दस माङ्गलिक नामों को जपता है; वह सौ बार जप करके नीरोग हो जाता है। जो एक लाख जप करता है; वह निश्चय ही बन्धन से मुक्त हो जाता है। दस लाख जप करके महावन्ध्या पुत्र को जन्म देती है। शुद्ध एवं हविष्य का भोजन करके जपने वाला दरिद्र इनके जप से धनी हो जाता है । एक करोड़ जप करके मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाता है । नारायणक्षेत्र में शुद्धतापूर्वक जप करने वाले मनुष्य को सारी सिद्धियाँ सुलभ हो जाती हैं’। अच्युतं केशवं विष्णुं हरिं सत्यं जनार्दनम् । हंसं नारायणं चैव ह्येतन्नामाष्टकं शुभम् ॥ ४४ ॥ शुचिः पूर्वमुखः प्राज्ञो दशकृत्वश्च यो जपेत् । निष्पापोऽपि भवेत्सोऽपि दुःस्वप्नः शुभवान्भवेत् ॥ ४५ ॥ विष्णुं नारायणं कृष्णं माधवं मधुमूदनम् । हरिं नरहरिं रामं गोविन्दं दधिवामनम् ॥ ४६ ॥ भक्त्या चेमानि नामानि दश भद्राणियो जपेत् । शतकृत्यो भक्तियुक्तो जप्त्वा नीरोगतां व्रजेत् ॥ ४७ ॥ लक्षधा हि जपेद्यो हि बन्धनान्मुच्यते ध्रुवम् । जप्त्वा च दशलक्षं च महावन्ध्या प्रसूयते ॥ ४८ ॥ हविष्याशी यतः शुद्धो दरिद्रो धनवान्भवेत् । शतलक्षं च जप्त्वा च जीवन्मुक्तो भवेन्नरः ॥ ४९ ॥ जो जल में स्नान करके ‘ॐ नमः’ के साथ शिव, दुर्गा, गणपति, कार्तिकेय, दिनेश्वर, धर्म, गङ्गा, तुलसी, राधा, लक्ष्मी, सरस्वती — इन मङ्गल- नामों का जप करता है; उसका मनोरथ सिद्ध हो जाता है और दुःस्वप्न भी शुभदायक हो जाता है । ‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गतिनाशिन्यै महामायायै स्वाहा’ – यह सप्तदशाक्षर मन्त्र लोगों के लिये कल्पवृक्ष के समान है। इसका पवित्रतापूर्वक दस बार जप करने से दुःस्वप्न सुखदायक हो जाता है। एक करोड़ जप करने से मनुष्यों को मन्त्र सिद्ध हो जाता है और सिद्ध-मन्त्र वाला मनुष्य अपनी सारी अभीष्ट सिद्धियों को पा लेता है । ॐ नमः शिवं दुर्गां गणपतिं कार्तिकेयं दिनेश्वनम् । धर्मं गङ्गां च तुलसीं राधां लक्ष्मीं सरस्वतीम् ॥ ५० ॥ नामान्येतानि भद्राणि जले स्नात्वा च यो जपेत् । वाञ्छितं च लभेत्सोऽपि दुःस्वप्नः शुभवान्भवेत् ॥ ५१ ॥ ॐ ह्रीं क्लीं पूर्वदूर्गतिनाशिन्यै महामायायै स्वाहा । कल्पवृक्षो हि लोकानां सन्त्रः सप्तदशाक्षरः ॥ ५२ ॥ जो मनुष्य ‘ॐ नमो मृत्युञ्जयाय स्वाहा’ — इस मन्त्र का एक लाख जप करता है, वह स्वप्न में मरण को देखकर भी सौ वर्ष की आयु वाला हो जाता है’। पूर्वोत्तरमुख होकर किसी विद्वान् से ही अपने स्वप्न को कहना चाहिये; किंतु जो शराबी, दुर्गति-प्राप्त, नीच, देवता और ब्राह्मण की निन्दा करने वाला, मूर्ख और ( स्वप्न के शुभाशुभ फल का) अनभिज्ञ हो; उसके सामने स्वप्न को नहीं प्रकट करना चाहिये। पीपल का वृक्ष, ज्योतिषी, ब्राह्मण, पितृस्थान, देवस्थान, आर्यपुरुष, वैष्णव और मित्र के सामने दिन में देखा हुआ स्वप्न प्रकाशित करना चाहिये । इस प्रकार मैंने आपसे इस पवित्र प्रसङ्ग का वर्णन कर दिया; यह पापनाशक, धन की वृद्धि करने वाला, यशोवर्धक और सुनना आयु बढ़ाने वाला है। अब और क्या चाहते हैं? (अध्याय ८२ ) ॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे उत्तरार्धे नारायणनारदसंवाद भगवन्नन्दसंवाद द्व्यशीतितमोऽध्यायः ॥ ८२ ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related