March 8, 2025 | aspundir | Leave a comment ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 89 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ (उत्तरार्द्ध) नवासीवाँ अध्याय श्रीकृष्ण द्वारा नन्द प्रार्थना तथा वर प्रदान [ तत्पश्चात् नन्द से श्रीकृष्ण ने कहा- ] ‘नन्दजी ! अब आप दुर्लभ ज्ञान से संयुक्त होने के कारण मोह का त्याग करके प्रसन्न मन से व्रजवासियों सहित व्रज को लौट जाइये । व्रजराज ! जाइये, जाइये, घर जाइये, व्रज को पधारिये । अब आपको सम्पूर्ण तत्त्वों का ज्ञान हो गया। आपने मुनियों तथा देवताओं के दर्शन कर लिये और मेरे द्वारा अत्यन्त दुर्लभ नाना प्रकार के इतिहास, धनवर्धक आख्यान और जन्म एवं पाप का विनाश करने वाला दुर्गा का स्तोत्रराज भी सुन लिया। जो कुछ सामने उपस्थित था, उसका मैंने आपसे हर्ष और सुखपूर्वक वर्णन कर दिया। मैंने बाल-चपलतावश जो कुछ अपराध किया हो, उसे क्षमा कीजिये । तात ! जो सुख मैंने माता-पिता के राजमहल में नहीं किया, उससे बढ़कर तथा स्वर्ग से भी परम दुर्लभ सुख आपके यहाँ किया है। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मेरे प्रिय वचन, नम्रता, विनय, भय, बहुसंख्यक परिहास, यशोदा, गोपिकागण, बालसमूह और विशेषतया राधा – ये सभी एकत्र स्थित । उन बन्धुवर्गों के साथ कर्मानुसार यहीं सुख भोगकर उत्तम गोलोक को जाओ । तात ! यशोदा, रोहिणी, गोपिकागण, गोपबालक, वृषभानु, गोपसमूह, राधा की माता कलावती और राधा के साथ आप पार्थिव देह को त्यागकर और दिव्य देह धारण करके गोलोक जायँगे। राधा और राधा की माता कलावती की उत्पत्ति योनि से नहीं हुई है; अतः वह निश्चय ही अपने उसी नित्यदेह से गोलोक में जायगी । कलावती पितरों की मानसी कन्या है; अतः धन्य और माननीय है। इसी प्रकार सीतामाता, दुर्गामाता, मेनका, दुर्गा, तारा और सुन्दरी सीता – ये सभी अयोनिजा तथा धन्य हैं। वे तथा मेना और कलावती योनि से न उत्पन्न होने के कारण धन्यवाद की पात्र हैं। तात ! इस प्रकार मैंने परम दुर्लभ गोपनीय आख्यान का वर्णन कर दिया तथा मैंने और दुर्गा ने आपको यह वरदान भी दे दिया । ‘ श्रीकृष्ण का वचन सुनकर श्रीकृष्णभक्त व्रजेश्वर उन भक्तवत्सल जगदीश्वर से पुनः बोले । नन्द ने कहा — प्रभो ! श्रीकृष्ण ! चारों युगों के जो-जो सनातन धर्म होते हैं, उनका तथा कलियुग की समाप्ति में कलि के जो-जो गुण-दोष होते हों और पृथ्वी, धर्म तथा प्राणियों की क्या गति होती है – इन सबका क्रमशः विस्तारपूर्वक मुझसे वर्णन कीजिये । नन्द की बात सुनकर कमलनयन श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गये, फिर उन्होंने मधुरताभरी विचित्र कथा कहना आरम्भ किया । (अध्याय ८९ ) ॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे उत्तरार्धे नारायणनारदसंवाद भगवन्नन्दसंवाद एकोननवतितमोऽध्यायः ॥ ८९ ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related