January 12, 2019 | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १४४ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय १४४ विनायक-शान्ति महाराज युधिष्ठिर ने कहा — देवेश ! विभो ! अब आप विनायक-शान्ति की विधि मुझे बताये, जिसके करने से सभी मानव समस्त आपत्तियों से मुक्त हो जाते हैं । भगवान् श्रीकृष्ण बोले — राजेन्द्र ! विनायक के प्रिय श्रेष्ठ शान्ति का मैं वर्णन करता हूँ, इसके आचरण से सभी अरिष्ट नष्ट हो जाते हैं । यह विनायक-शान्ति सम्पूर्ण विघ्नों को दूर करने के लिये की जाती है । स्वप्न में जल में अवगाहन करना, मुण्डित सिरों तथा गेरुआ वस्त्र को देखना, मस्तकरहित शव, बिना किसी कारण के ही दुःख होना, कार्य में असफल हो जाना इत्यादि विनायक द्वारा गृहीत होनेपर ही दिखायी देते हैं । विनायक द्वारा गृहीत हो जाने पर राजपुत्र राज्य को प्राप्त नहीं कर सकता, कुमारी पति नहीं प्राप्त कर सकती, गर्भिणी पुत्र को और श्रोत्रिय आचार्यत्व को प्राप्त नहीं कर पाता । विद्यार्थी पढ़ नहीं पाता, व्यापारी व्यापार में लाभ नहीं पाता और कृषक कृषिकार्य में सफल नहीं होता । इसलिये इन विघ्नों को दूर करने के लिये पुण्य दिन में स्नपन-कार्य करना चाहिये । पीले सरसों की खली, घृत और सुगन्धित कुंकुम का उबटन लगाकर स्नान कर पवित्र हो जाय । ब्राह्मणों द्वारा स्वस्तिवाचन कराये । विधिपूर्वक कलश-स्थापन करे और ब्राह्मण अभिमन्त्रित जल के द्वारा यजमान का अभिषेक करे और इस प्रकार कहे — “सहस्राक्षं शतधारमृषिणा वचनं कृतम् । तेन त्वामभिषिञ्चामि पावमान्यः पुनन्तु ते ॥ भगं ते वरुणो राजा भगं सुर्यो वृहस्पतिः । भगमिन्द्रश्च वायुश्च भगं सप्तर्षयो ददुः ॥ यत्ते केशेषु दौर्भाग्यं सीमन्ते यच्च मूर्धनि । ललाटे कर्णयोरक्ष्णोरापस्तद्घ्रन्तु ते सदा ॥ (उत्तरपर्व १४४ । १२-२४) — मैं तुम्हें अभिषिक्त कर रहा हूँ, पावमानी ऋचाओं की अधिष्ठातृदेवता तुम्हें पवित्र करें । महाराजा वरुण, भगवान् सूर्य, बृहस्पति, इन्द्र, वायु तथा सप्तर्षिगण अपना-अपना तेज तुममें आधान करें । तुम्हारे केशों, सीमन्त, मस्तक, ललाट, कानों एवं आँखों में जो भी दौर्भाग्य हैं, उसको ये अप् देवता नष्ट करें । अनन्तर कुशा को दक्षिण हाथ में ग्रहण कर सरसों के तेल से हवन करे । मित, सम्मित, साल, कालकंटक, कूष्माण्ड तथा राजपुत्र के अन्त में स्वाहा समन्वित कर हवन करे । चतुष्पथ पर कुश बिछाकर सूप में इनके निमित्त बलि नैवेद्य अर्पण करे । खिले हुए फूल तथा दूर्वा अर्घ्य दें । मण्डल में अर्घ्य प्रदानकर विनायक की माता अम्बिका की पूजा करे और यह प्रार्थना करे — “रुपं देहि यशो देहि भगं भगवति दरहि मे । पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वकामांश्च देहि मे ॥” (उत्तरपर्व १४४ । २१) ‘मातः ! आप मुझे रूप, यश, ऐश्वर्य, पुत्र तथा धन प्रदान करें और मेरी समस्त कामनाओं को पूर्ण करें ।’ अनन्तर सफेद वस्त्र, सफेद माला और श्वेत चन्दन धारणकर ब्राह्मण को भोजन कराये और गुरु को दो वस्त्र प्रदान करे । इस प्रकार ग्रहों की और विनायक की विधिपूर्वक पूजा करने से सम्पूर्ण कर्मों के फल की प्राप्ति होती है और लक्ष्मी की भी प्राप्ति हो जाती है । भगवान् सूर्य, कार्तिकेय एवं महागणपति की पूजा करके मनुष्य सभी सिद्धियो को प्राप्त कर लेता है । (अध्याय १४४) Related