January 7, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ९३ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय ९३ आग्नेयी शिवचतुर्दशी-व्रत के प्रसंग में महर्षि अङ्गिरा का आख्यान श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! चतुर्दशी तिथि अग्नि की परम प्रेयसी है, क्योंकि नष्ट होते हुए भी अग्नि देव में इसी दिन पुनः अग्नित्व प्राप्त किया था । युधिष्ठिर ने कहा — देवेश ! पहले समय में एकबार देवकार्य में संलग्न रहने पर भी अग्नि देव सर्वथा विनष्ट हो चुके थे, तो किसके द्वारा उन्हें अग्नित्व प्राप्त हुआ और अनन्त नाम से उनकी ख्याति कैसे हुई । इसका रहस्य आप को भली भाँति मालूम है अतः मुझे बताने की कृपा करें । श्रीकृष्ण बोले — पहले समय में तारकासुर द्वारा पराजित होने पर देवों ने विश्वस्रष्टा ब्रह्मा के पास जाकर उनसे पूछा कि — तारकासुर का वध कौन करेगा । चिरकाल तक ध्यान करने के अनन्तर उन्होंने कहा — रुद्र-उमा के तेज से उत्पन्न पुत्र, जिसे गंगा, स्वाहा और अग्नि के तेज से उत्पन्न होना भी बताया जायेगा, उस दैत्य का वध करेगा । इसे सुनकर देवों ने उमा समेत शिव जी जिस स्थान में रहता था, वहाँ जाकर ब्रह्मा की कही हुई सभी बातें उनसे कहा । देवों के कथनानुसार रुद्र ने उमा समेत उस : प्रयत्न को प्रारम्भ किया । मैथुन करते हुए उनके दिव्य सौ वर्ष व्यतीत जाने पर भी उन दोनों का किसी प्रकार विराम नहीं हुआ । इसे देखकर देवों को अत्यन्त भय हुआ । उन्होंने सोचा — रुद्र से उत्पन्न होने वाला अवश्य महाबली होगा और दैत्य-दानव गणों का वध भी करने में समर्थ होगा, किन्तु इन दोनों के रति का विराम कब होगा ! यह सोचकर देवों ने विप्र और अग्नि को वहाँ भेजा । वे दोनों गये और वे विषम परिस्थित में फंस गये हैं — देवी को गर्भ नहीं हुआ था, इसी लिए रुष्ट होकर उन्होंने देवों को शाप दिया कि — देवों के निमित्त संतान उत्पन्न करने में तुम लोगों ने विघ्न उपस्थित किया है । (अतः तुम्हारी स्त्रियों को कोई सन्तान न होगी।) अनन्तर शंकरदेव ने समस्तदेव गणों से कहा कि — इस मेरे चिर संचित वीर्य को अग्नि ग्रहण करें । रुद्र के निकले हुए तेज वीर्य से अग्नि सर्वथा नष्ट हो गये आकाश, भूतल एवं सूर्य के यहां कहीं भी उनका पता न चला । वहाँ देवों ने भी अग्नि दर्शनार्थ उनके अन्वेषण में अत्यन्त प्रयत्न किया — दृमि, कीट, पतंग, आठ भाँति के देव, हंस, केका (मयूर) तथा शुक्र आदि के स्थानों मे खोजा । अग्नि नहीं मिले । अग्नि शरवण में पहुँच गये थे । युधिष्ठिर ने कहा — देवकार्यार्थ उपस्थित अग्नि को किस ने नष्ट किया, उन्हें किसके द्वारा अग्नित्व प्राप्त हुआ और पुनः अग्नि को किस समय अग्नित्व प्राप्त हुआ था । भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा — महाराज ! एक बार उतथ्य-मुनि और अङ्गिरा-मुनि का विद्या में और तप में परस्पर श्रेष्ठता के विषय में बहुत विवाद हुआ । इसका निश्चय करने के लिये दोनों ब्रह्मलोक गये और उन्होंने ब्रह्माजी को सारा वृत्तान्त बतलाया । ब्रह्माजी ने उनसे कहा कि ‘तुम दोनों जाकर सभी देवताओं और लोकपालों को यहाँ बुला लाओ, तब सभी के समक्ष इसका निर्णय किया जायगा ।’ ब्रह्माजी का यह वचन सुनकर दोनों जाकर सभी देवता, ऋषि, गन्धर्व, किन्नर, यक्ष, राक्षस, दैत्य, दानव आदि को बुला लाये। किंतु भगवान् सूर्य नहीं आये । ब्रह्माजी के पुनः कहने पर उतथ्यमुनि सूर्यनारायण के समीप जाकर बोले — ‘भगवन् ! आप शीघ्र ही हमारे साथ ब्रह्मलोक चलें ।’ भगवान सूर्य ने कहा — ‘मुने ! हमारे चले जाने पर जगत् में अन्धकार छा जायगा, इसलिये हमारा चलना किस प्रकार हो सकता है, हम नहीं चल सकेंगे ।’ यह सुनकर उतथ्यमुनि वहाँ से चले आये और ब्रह्माजी को सब वृत्तान्त सुना दिया । तब ब्रह्माजी ने अङ्गिरा मुनि से सूर्यभगवान् को बुलाने के लिये कहा । अङ्गिरा मुनि ब्रह्माजी की आज्ञा पाकर सूर्यनारायण के समीप गये और उनसे ब्रह्मलोक चलने को कहा । सूर्यनारायण ने वहीं उतर इनको भी दिया । तब अङ्गिरा ने कहा — ‘प्रभो ! आप ब्रह्मलोक जायँ, मैं आपके स्थान पर यहाँ रहकर प्रकाश करूंगा ।’ यह सुनकर सूर्यनारायण तो ब्रह्माजी के पास चले गये और अंगिरा प्रचण्ड तेज से तपने लगे । इधर भगवान् सूर्य ने ब्रह्माजी से पूछा — ‘ब्रह्मन् ! आपने किस निमित्त से मुझे यहाँ बुलाया है ?” ब्रह्माजी ने कहा — ‘देव ! आप शीघ्र ही अपने स्थान पर जायँ, नहीं तो अङ्गिरा मुनि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को दग्ध कर डालेंगे । देखिये उनके ताप से सभी लोग दग्ध हो रहे हैं । जब तक वे सब कुछ भस्म न कर डालें उससे पूर्व ही आप प्रतिष्ठित हो जायँ ।’ यह सुनते ही सूर्यभगवान् पुनः अपने स्थान पर लौट आये और उन्होंने अङ्गिरा मुनि की स्तुति कर उन्हें विदा किया । अङ्गिरा पुनः देवताओं के समीप आये । देवताओं ने अङ्गिरा मुनि की स्तुति की और कहा — ‘भगवन् ! जबतक हम अग्नि को ढूँढे, तबतक आप अग्नि के सभी कर्म कीजिये ।’ देवताओं का ऐसा वचन सुनकर महर्षि अङ्गिरा अग्निरूप में देवकार्यादि को सम्पन्न करने लगे । जब अग्निदेव आये तो उन्होंने देखा कि अङ्गिरामुनि अग्नि बनकर स्थित है । इस पर वे बोले — ‘मुने ! आप मेरा स्थान छोड़ दें । मैं आपकी शुभा नाम की स्त्री से ज्येष्ठ एवं प्रिय पुत्र के रूप में उत्पन्न होऊँगा और तब मेरा नाम होगा बृहस्पति । आपके और भी बहुत-से पुत्र-पौत्र होंगे ।’ यह वर पाकर प्रसन्न हो महर्षि अङ्गिरा ने अग्नि का स्थान छोड़ दिया । राजन् ! अग्निदेव को चतुर्दशी तिथि को ही अपना स्थान प्राप्त हुआ था, इसलिये यह तिथि अग्नि को अति प्रिय है और आग्नेयी चतुर्दशी तथा रौद्री चतुर्दशी के नाम से प्रसिद्ध है । स्वर्ग में देवता और भूमि पर मान्धाता, मनु, नहुष आदि बड़े-बड़े राजाओं ने इस तिथि को माना है । जो पुरुष युद्ध में मारे जायँ, सर्प आदि के काटने से मरे हों और जिसने आत्मघात किया हो, उनका इस चतुर्दशी तिथि में श्राद्ध करना चाहिये, जिससे वे सद्गति को प्राप्त हो जायँ । इस तिथि के व्रत का विधान इस प्रकार है —चतुर्दशी को उपवास करे और गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से त्रिलोचन श्रीसदाशिव का पूजन करे, रात्रि में जागरण करे । रात्रि में पञ्चगव्य का प्राशन कर भूमि पर ही शयन करे । तैल-क्षार से रहित श्यामाक (साँवा) का भोजन करे । अग्नि के नाम-मन्त्रों द्वारा काले तिलों से १०८ आहुतियाँ प्रदान करे । दूसरे दिन प्रातः स्नान कर पञ्चामृत से शिवजी को स्नान कराकर भक्तिपूर्वक उनका पूजन करे और पूर्वोक्त रीति से हवनकर उनकी प्रार्थना करे । पीछे आरती कर ब्राह्मण को भोजन कराये । उनको दक्षिणा दे और मौन हो स्वयं भी भोजन करे । इस प्रकार एक वर्ष व्रत कर सुवर्ण की त्रिलोचन भगवान् शंकर की प्रतिमा बनाये । प्रतिमा को चाँदी के वृषभ पर स्थितकर दो श्वेत वस्त्रों से आच्छादित कर ताम्रपत्र में स्थापित करे । तदनन्तर गन्ध, श्वेत पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से उसका पूजन कर ब्राह्मण को दे दे । जो एक वर्ष तक इस व्रत को करता है, वह लम्बी आयु प्राप्त कर अन्त में तीर्थ में प्राण परित्याग कर शिवलोक में देवताओं के साथ विहार करता है । वहाँ बहुत कालतक रहकर वह पृथ्वी में आकर ऐश्वर्य-सम्पन्न धार्मिक राजा होता है । पुत्र-पौत्रों से समन्वित होता है और चिरकालतक आनन्दित रहता है तथा अपने अभीष्ट मनोरथों को प्राप्त करता है । (अध्याय ९३) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. 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