December 15, 2018 | Leave a comment भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०५ से १०६ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (ब्राह्मपर्व) अध्याय – १०५ से १०६ कामदा एवं पापनाशिनी-सप्तमी-व्रत-वर्णन ब्रह्माजी बोले — विष्णो ! फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी को उपवास करके भगवान् सूर्यनारायण की विधिवत् पूजा करनी चाहिये । तत्पश्चात् दूसरे दिन अष्टमी को प्रातः उठकर स्नानादि से निवृत्त हो भक्तिपूर्वक सूर्यदेव का सम्यक् पूजन करके ब्राह्मणों को दक्षिणा देनी चाहिये । श्रद्धापूर्वक भगवान् सूर्य के निमित्त आहुतियाँ प्रदान कर भगवान् भास्कर को प्रणाम कर इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिये — “यमाराथ्य पुरा देवी सावित्री काममाय वै । स में ददातु देवेशः सर्वान् कामान् विभावसुः ॥ यमाराध्यादितिः प्राप्ता सर्वान् कामान् यथेप्सितान् । स ददात्वखिलान् कामान् प्रसन्नो में दिवस्पतिः ॥ भ्रष्टराज्यश्च देवेन्द्रो यमभ्यर्थ्य दिवस्पतिः । कामान् सम्प्राप्तवान् राज्यं स मे कामं प्रयच्छतु ॥” (बाह्यपर्व १०५ । ५-७) ‘प्राचीन समय में देवी सावित्री ने अपनी अभीष्ट-सिद्धि के लिये जिन आराध्यदेव की आराधना की थी, वही मेरे आराध्य भगवान् सूर्य मेरी सभी कामनाओं को प्रदान करें । देवी अदिति ने जिनकी आराधना करके अपने सभी अभीष्ट मनोरथ को प्राप्त कर लिया था, वही दिवस्पति भगवान् भास्कर प्रसन्न होकर मेरी सभी अभिलाषाओं को पूर्ण करें । (दुर्वासा मुनिके शापके कारण) राजपद से च्युत देवराज इन्द्र ने जिनकी अर्चना करके अपनी सभी कामनाओं को प्राप्त कर लिया था, वही दिवस्पति मेरी कामना पूर्ण करें ।’ हे गरुडध्वज ! इस प्रकार भगवान् सूर्य को प्रार्थना कर पूजा सम्पन्न करे । अनन्तर संयत होकर हविष्यान्न का भोजन करे । फाल्गुन, चैत्र, वैशाख और ज्येष्ठ-इन चार मासों में इस प्रकार से व्रत की पारणा करने का विधान है । भक्तिपूर्वक करवीर के पुष्पों से चारों महीने सूर्य की पूजा करनी चाहिये । कृष्ण अगरु की धूप जलानी चाहिये और गो-शृङ्ग का जल प्राशन करना चाहिये तथा खाँड़-मिश्रित पक्वान्न का नैवेद्य देकर ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये । आषाढ़ आदि चातुर्मास में पारण की क्रिया इस प्रकार है — इन महीनों में चमेली के पुष्प, गुग्गुल का धूप, कुएँ का जल और पायस के नैवेद्य का विधान है । स्वयं भी उसी पायस के नैवेद्य को ग्रहण करना चाहिये । कार्तिक आदि चातुर्मास में गोमूत्र से शारीर-शोधन करना चाहिये। दशाङ्ग-धूप कर्पूरं चन्दनं मुस्तामगरू तगर तथा । ऊषणं शर्करा कृष्णं सुगन्धं सिह्लकं तथा ॥ दशाङ्गोऽयं स्मृतो धूपः प्रियो देवस्य सर्वदा ॥ (ब्राह्मपर्व १०५ । १५-१६) ‘कर्पूर, चन्दन, नागरमोथा, अगरु, तगर, ऊषण, शर्करा, दालचीनी, कस्तूरी तथा सुगन्ध- समभाग भिलाकर दशाङ्ग नामक धूप बनाया जाता है । यह धूप भगवान् सूर्यदेव को सर्वदा प्रिय है ।, रक्त कमल तथा कसार का नैवेद्य भगवान् सूर्यको निवेदित करना चाहिये । प्रत्येक महीने में ब्राह्मणों को दक्षिणा देनी चाहिये । प्रत्येक पारणा में भक्तिपूर्वक सूर्यनारायण को प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिये और यथाशक्ति संचित धन का दान करना चाहिये । वितशाठ्यता (कंजूसी) न करे । क्योंकि सद्भाव से पूजा करने पर तथा दान आदि से सात घोड़ों से युक्त रथपर आरूढ़ होनेवाले भगवान् सूर्य प्रसन्न होते हैं । पारणा के अन्त में यथाशक्ति जल आदि से स्नान कराकर पूजा करनेपर भगवान् सूर्य प्रसन्न हो निर्बाधरूप से मनोवाञ्छित फल प्रदान करते हैं । यह सप्तमी पुण्यदायिनी, पापविनाशिनी तथा सभी फलोंको देनेवाली है । मनुष्य की जैसी अभिलाषाएँ होती हैं, वैसे ही फल प्राप्त होते हैं । इस व्रत को करनेवाला व्यक्ति सूर्य के समान ही तेजस्वी बनकर स्वर्णमय विमान पर आरूढ़ हो सूर्यलोक को प्राप्त करता है तथा यहाँ शाश्वती शान्ति को प्राप्त करता है। वहाँ से पुनः पृथ्वी पर जन्म लेकर उन गोपति सूर्यभगवान् की ही कृपासे प्रतापी राजा होता है । इसी प्रकार उत्तरायण के सूर्य में शुक्ल पक्ष में भग, अर्यमा. सूर्य आदि के नक्षत्रों के पड़ने पर दान-मान से भगवान् सूर्यकी पूजा कर उन्हें प्रसन्न करना चाहिये । इससे सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं । इसे पापनाशिनी सप्तमी कह्म जाता है । (अध्याय १०५-१०६) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२ 2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3 3. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४ 4. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५ 5. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६ 6. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७ 7. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८-९ 8. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०-१५ 9. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६ 10. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १७ 11. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १८ 12. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १९ 13. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २० 14. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१ 15. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २२ 16. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २३ 17. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २४ से २६ 18. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २७ 19. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २८ 20. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २९ से ३० 21. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३१ 22. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३२ 23. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३३ 24. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३४ 25. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३५ 26. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३६ से ३८ 27. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३९ 28. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४० से ४५ 29. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४६ 30. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४७ 31. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४८ 32. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४९ 33. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५० से ५१ 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