महामृत्युञ्जयस्तोत्रम्
विनियोग- ॐ अस्य श्री महा-मृत्युञ्जय-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीमार्कण्डेय ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीमृत्युञ्जयो देवता, गौरी शक्तिः, मम सर्वारिष्ट-समस्त-मृत्यु-अपमृत्यु-शान्त्यर्थं च जपे विनियोगः।
ऋष्यादि-न्यास- श्रीमार्कण्डेय ऋषये नमः शिरसि। अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे। श्रीमृत्युञ्जयो देवतायै नमः हृदि। गौरी शक्तये नमः नाभौ। मम सर्वारिष्ट-समस्त-मृत्यु-अपमृत्यु-शान्त्यर्थं च जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
ध्यान-
चन्द्रार्काग्नि-विलोचनं स्मित-मुखं पद्म-द्वयान्तः-स्थितम्।
मुद्रा-पाश-मृगाक्ष-सूत्र-विलसत्पाणिं हिमांशु-प्रभम् |
कोटीन्दु-प्रगलत्सुधाऽऽप्लुत-तनुं हारादि-भूषोज्ज्वलं
कान्तं विश्व-विमोहनं पशुपतिं मृत्युञ्जयं भावयेत् ||
।।मूल-स्तोत्र।।
ॐ रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नील-कण्ठमुमापतिम् |
नमामि शिरसा देवं, किं नो मृत्युः करिष्यति || १||
नील-कन्ठं काल-मूर्त्तिं कालज्ञं काल-नाशनम् |
नमामि शिरसा देवं, किं नो मृत्युः करिष्यति || २||
नील-कण्ठं विरूपाक्षं निर्मलं निलय-प्रदम् |
नमामि शिरसा देवं, किं नो मृत्युः करिष्यति || ३||
वामदेवं महा-देवं लोक-नाथं जगद्गुरुम् |
नमामि शिरसा देवं, किं नो मृत्युः करिष्यति || ४||
देवदेवं जगन्नाथं देवेशं वृषभ-ध्वजम् |
नमामि शिरसा देवं, किं नो मृत्युः करिष्यति || ५||
त्र्यक्षं चतुर्भुजं शान्तं जटामकुटधारिणम् |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || ६||
भस्मोद्धूलितसर्वाङ्गं नागाभरणभूषितम् |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || ७||
अनन्तमव्ययं शान्तं अक्षमालाधरं हरम् |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || ८||
आनन्दं परमं नित्यं कैवल्यपददायिनम् |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || ९||
अर्द्धनारीश्वरं देवं पार्वतीप्राणनायकम् |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || १०||
प्रलयस्थितिकर्त्तारमादिकर्त्तारमीश्वरम् |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || ११||
व्योमकेशं विरूपाक्षं चन्द्रार्द्धकृतशेखरम् |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || १२||
गङ्गाधरं शशिधरं शङ्करं शूलपाणिनम् |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || १३||
अनाथः परमानन्तं कैवल्यपदगामिनि |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || १४||
स्वर्गापवर्ग-दातारं सृष्टिस्थित्यन्तकारणम् |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || १५||
कल्पायुर्द्देहि मे पुण्यं यावदायुररोगताम् |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || १६||
शिवेशानां महादेवं वामदेवं सदाशिवम् |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || १७||
उत्पत्ति-स्थिति-संहार-कर्तारमीश्वरं गुरुम् |
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति || १८||
।। फलश्रुति।।
मार्कण्डेयकृतं स्तोत्रं यः पठेच्छिवसन्निधौ |
तस्य मृत्युभयं नास्ति नाग्निचौरभयं क्वचित् || १९||
शतावर्त्तं प्रकर्तव्यं संकटे कष्टनाशनम् |
शुचिर्भूत्वा पथेत्स्तोत्रं सर्वसिद्धिप्रदायकम् || २०||
मृत्युञ्जय महादेव त्राहि मां शरणागतम् |
जन्ममृत्युजरारोगैः पीडितं कर्मबन्धनैः || २१||
तावकस्त्वद्गतः प्राणस्त्वच्चित्तोऽहं सदा मृड |
इति विज्ञाप्य देवेशं त्र्यम्बकाख्यमनुं जपेत् || २३||
नमः शिवाय साम्बाय हरये परमात्मने |
प्रणतक्लेशनाशाय योगिनां पतये नमः || २४||
|| इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे मार्कण्डेयकृत महामृत्युञ्जयस्तोत्रं संपूर्णम् ||

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