॥ श्रीराम कृत कात्यायनी स्तुति ॥ ॥ श्रीराम उवाच ॥ नमस्ते त्रिजगद्वन्द्ये संग्रामे जयदायिनि । प्रसीद विजयं देहि कात्यायनि नमोऽस्तु ते ॥ १ ॥ सर्वशक्तिमये दुष्टरिपुनिग्रहकारिणि । दुष्टजृम्भिणि संग्रामे जयं देहि नमोऽस्तु ते ॥ २ ॥ त्वमेका परमा शक्तिः सर्वभूतेष्ववस्थिता । दुष्टं संहर संग्रामे जयं देहि नमोऽस्तु ते ॥ ३ ॥… Read More


॥ पाण्डवाः कृत कात्यायनी स्तुति ॥ ॥ पाण्डवा ऊचुः ॥ कात्यायनि त्रिदशवन्दितपादपो, विश्वोद्भवस्थितिलयैकनिदानरूपे । देवि प्रचण्डदलिनि त्रिपुरारिपनि, दुर्गे प्रसीद जगतां परमार्तिहन्त्रि ॥ त्वं दुष्टदैत्यविनिपातकरी सदैव, दुष्टप्रमोहनकरी किल दुःखहन्त्री । त्वां यो भजेदिह जगन्मयि तं कदापि, नो बाधते भवसु दुःखमचिन्त्यरूपे ॥… Read More


॥ कात्यायनी ॥ कात्यायनी दशभुजा देवी ही महिषासुर मर्दिनी है। प्रथम कल्प में उग्रचण्डा रूप में, द्वितीय कल्प में १६ भुजा भद्रकाली रूप में तथा तृतीय कल्प में कात्यायनी ने दश भुजा रूप धारण करके महिषासुर का वध किया। कात्यायनी मुनि के द्वारा स्तुति करने पर बिल्व वृक्ष के पास देवी प्रकट हुई थी। आश्विन… Read More