राहुकाल दुर्गापूजा विधानम्

राहुकाल की दक्षिण भारत में विशेष मान्यता है । राहुकाल में आसुरी शक्तियों का उदय होता है अतः अन्य शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं । आसुरी शक्तिरयों के दमन हेतु व्यक्ति को जप पाठ एवं स्वाध्याय करना श्रेयस्कर होता है । राहुकाल में दुर्गा उपासना श्रेष्ठ फलदायिनी हैं । राहु का शिर एवं केतु का धड़ अलग-अलग है । अतः प्रचण्ड चण्डिका अर्थात् छिन्नमस्ता इस काल की विशेष अधिष्ठात्री देवी है । इसकी उपासना बिना दीक्षा के नहीं हो सकती समर्थ साधक ही कर सकते हैं । अतः नवार्ण मन्त्र जप एवं दुर्गा सप्तशती स्तोत्र पाठ सर्व सुगम उपासना है । समर्थ साधक वनदुर्गा, शूलिनी जातवेदा, शाँति, शबरी, ज्वालादुर्गा, लवणदुर्गा, आसुरीदुर्गा एवं दीपदुर्गा की उपासना करते हैं ।
durga
राहुकाल समय निर्णय
राहुकाल की मान्यता दिन में ही है रात्रि में नहीं है । अतः दिनमान के आठ भाग करें उन आठ चौघड़ियों की गणना इस प्रकार करें । रविवार को ८वां भाग (१६.३० से १८ बजे) सोमवार को दूसरा भाग (७.३० से ९ बजे तक) मंगलवार को ७वां भाग (१५ से १६.३० बजे तक) बुधवार को ५वां भाग (१२ से १३.३० बजे तक) गुरुवार को छठा भाग (१३.३० से १५ बजे तक) शुक्रवार को चौथा भाग (१०.३० से १२ बजे तक) तथा शनिवार को तीसरा भाग (९ से १०.३० बजे तक) चौघड़िया राहुकाल होता है । यह समय ६ बजे सूर्योदय व सूर्यास्त के मध्य के अन्तर से बताया गया है । दिन छोटे-बड़े तथा स्थानीय अक्षांशों के कारण परिवर्तनीय है । अतः सूक्ष्मगणना पूरे दिनमान के अनुसार करें ।

साधना विधि
दुर्गापाठ रविवार को राहुकाल में प्रारम्भ कर सोमवार को प्रातः समाप्त किया जाता है । नवार्ण जप आदि तथा अन्त में अवश्य करें ।
जो साधक नित्य पाठ नहीं कर सकते हैं वे –
प्रथम दिन (रविवार) को संकल्प कर शापोद्धार आदि कर कवच, अर्गला तथा कीलक का पाठ करें । नवार्ण जप कर दुर्गासप्तशती को प्रथमाध्याय के श्लोक “सर्वमापोमयं जगत” तक पाठ करें ।
दूसरे दिन (सोमवार) को प्रथम अध्याय के शेष श्लोकद्वितीय तथा तृतीय अध्याय के श्लोक “तद् वधाय तदाऽकरोत्” तक पाठ करें ।
तीसरे दिन (मंगलवार) को तृतीय अध्याय के शेष श्लोक, पूरा चतुर्थ अध्याय तथा पांचवें अध्याय के श्लोक “या देवि सर्वभूतेषु जातिरुपेण……” वाले श्लोक तक पाठ करें ।
चतुर्थ दिन (बुधवार) को पांचवें अध्याय के शेष श्लोक तथा छठे अध्याय में श्लोक “चकराम्बिका ततः” तक पाठ करें ।
पाँचवें दिन (गुरुवार) को छठे अध्याय के शेष श्लोक, पूरा सप्तम अध्याय तथा अष्टम अध्याय का श्लोक “ततस्ते हर्षमतुलमवापुस्त्रि त्रिदशाः नृप” तक पाठ करें ।
छठे दिन (शुक्रवार) को अष्टम अध्याय के शेष श्लोक, नवम, दशम पूरे अध्याय तथा एकादश अध्याय के श्लोक “ज्वालाकराग्र ………….” तक पाठ करें ।
सप्तम दिन (शनिवार) को सप्तशती के शेष पाठ  कर रहस्यादि करें । इनके अलावा नित्य कवच, अर्गला, कीलक तथा नवार्ण मंत्र जप १०८ बार आदि अंत में करना श्रेयष्कर रहता है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.