December 22, 2018 | Leave a comment ॥ वैदिक गणेश-स्तवन ॥ गणानां त्वा गणपतिᳬ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति हवामहे निधीनां त्वा निधिपतिᳬ हवामहे वसो मम । आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ॥ (शु०यजु० २३ । १९) हे परमदेव गणेशजी ! समस्त गणों के अधिपति एवं प्रिय पदार्थों-प्राणियों के पालक और समस्त सुख-निधियों के निधिपति ! आपका हम आवाहन करते हैं । आप सृष्टि को उत्पन्न करनेवाले हैं, हिरण्य-गर्भ को धारण करनेवाले अर्थात् संसार को अपने-आप में धारण करनेवाली प्रकृति के भी स्वामी हैं, आपको हम प्राप्त हों । नि षु सीद गणपते गणेषु त्वामाहुर्विप्रतमं कवीनाम् । न ऋते त्वत्क्रियते किं चनारे महामर्कं मघवञ्चित्रमर्च ॥ (ऋक्० १० । ११२ । ९) हे गणपते ! आप स्तुति करनेवाले हमलोगों के मध्य में भली प्रकार स्थित होइये । आपको क्रान्तदर्शी कवियों में अतिशय बुद्धिमान्–सर्वज्ञ कहा जाता है । आपके बिना कोई भी शुभाशुभ कार्य आरम्भ नहीं किया जाता । (इसलिये) हे भगवन् (मघवन्) ! ऋद्धि-सिद्धि के अधिष्ठाता देव ! हमारी इस पूजनीय प्रार्थना को स्वीकार कीजिये । गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम् । ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम् ॥ (ऋक्० २ । २३ । १) हे अपने गणों में गणपति (देव), क्रान्तदर्शियों (कवियों)— में श्रेष्ठ कवि, शिवा-शिव के प्रिय ज्येष्ठ पुत्र, अतिशय भोग और सुख आदि के दाता ! हम आपका आवाहन करते हैं । हमारी स्तुतियों को सुनते हुए पालनकर्ता के रूप में आप इस सदन में आसीन हों । नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो नमो व्रातेभ्यो व्रातपतिभ्यश्च वो नमो नमो गृत्सेभ्यो गृत्सपतिभ्यश्च वो नमो नमो विरूपेभ्यो विश्वरूपेभ्यश्च वो नमः ॥ (शुक्लयजु० १६ । २५) देवानुचर गण-विशेषों को, विश्वनाथ महाकालेश्वर आदि की तरह पीठभेद से विभिन्न गणपतियों को, संघों को, संघपतियों को, बुद्धिशालियों को, बुद्धिशालियों के परिपालन करनेवाले उनके स्वामियों को, दिगम्बर-परमहंस-जटिलादि चतुर्थाश्रमियों को तथा सकलात्म-दर्शियों को नमस्कार है । ॐ तत्कराटाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि । तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥ (कृ० यजुर्वेदीय मैत्रायणी० २ । ९ । १ । ६) उन कराट (सूँड़ को घुमानेवाले) भगवान् गणपति को हम जानते हैं, गजवदन का हम ध्यान करते हैं, वे दन्ती सन्मार्ग पर चलने के लिये हमें प्रेरित करें । नमो व्रातपतये नमो गणपतये नमः प्रमथपतये नमस्तेऽस्तु लम्बोदरायैकदन्ताय विघ्ननाशिने शिवसुताय श्रीवरदमूर्तये नमः ॥ ( कृ० यजुर्वेदीय गणपत्यथर्वशीर्ष १०) व्रातपति को नमस्कार, गणपति को नमस्कार, प्रमथपति को नमस्कार; लम्बोदर, एकदन्त, विघ्ननाशक, शिवतनय श्रीवरदमूर्ति को नमस्कार है । See Also – 1. ब्रह्मणस्पती सूक्त 2. ब्रह्मणस्पती सूक् 3. ब्रह्मणस्पतिसूक्त Related