शिवमहापुराण — उमासंहिता — अध्याय 25
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥
श्रीशिवमहापुराण
उमासंहिता
पच्चीसवाँ अध्याय
मृत्युकाल निकट आनेके लक्षण

व्यासजी बोले – हे सनत्कुमार! हे सर्वज्ञ ! हे मुने ! मैंने आपसे स्त्रियोंके स्वभावका वर्णन सुना, अब आप प्रेमपूर्वक मुझसे काल – ज्ञानका वर्णन कीजिये ॥ १ ॥

सनत्कुमार बोले— हे व्यास ! पूर्वकालमें अनेक प्रकारकी दिव्य कथाका श्रवण करके प्रसन्न हुई पार्वतीने भी शंकरको प्रणामकर उनसे यही पूछा था ॥ २ ॥

पार्वती बोलीं- हे भगवन्! हे देव ! विधि- विधानसे जिन मन्त्रोंके द्वारा आपकी पूजा होती है, वह सब आपकी कृपासे मैंने जान लिया, किंतु हे प्रभो ! मुझे कालज्ञानके प्रति आज भी एक संशय बना हुआ है, हे देव! मृत्युका चिह्न तथा आयुका प्रमाण क्या है ? हे नाथ! यदि मैं आपकी प्रिया हूँ तो यह सब मुझसे कहिये । तब उन देवीके ऐसा पूछनेपर महेश्वर कहने लगे ॥ ३–५ ॥

महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।
गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥


ईश्वर बोले – हे प्रिये! हे देवेशि ! मैं सर्वश्रेष्ठ शास्त्रको तुमसे सत्य – सत्य कहूँगा, जिस शास्त्र के द्वारा मनुष्योंको कालका ज्ञान हो जाता है । हे उमे ! भीतरी एवं बाहरी, स्थूल एवं सूक्ष्म चिह्नोंद्वारा जिस प्रकार उसकी शेष आयुके दिन, पक्ष, मास, ऋतु, अयन एवं वर्षका ज्ञान हो जाता है; वह सब मैं लोककल्याण एवं वैराग्यके लिये तुमसे तत्त्वपूर्वक कहूँगा । हे सुन्दरि ! अब तुम श्रवण करो ॥ ६–८ ॥ हे प्रिये! यदि मनुष्यका शरीर सभी ओरसे अचानक पीला पड़ जाय और ऊपरसे लाल दिखायी पड़ने लगे तो छः मासके भीतर मृत्युको जानना चाहिये ॥ ९ ॥ हे प्रिये ! जब मुख, कान, आँख एवं जिह्वाका [अचानक] स्तम्भन हो जाय तो भी छः मासके भीतर मृत्युको जान लेना चाहिये ॥ १० ॥ हे भद्रे ! यदि पीछेसे आती हुई भयावह ध्वनि शीघ्र न सुनायी पड़े, तो भी कालवेत्ताओंको छः मासके भीतर मृत्यु जान लेना चाहिये ॥ ११ ॥ सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्निके रहनेपर भी यदि प्रकाश न दिखायी पड़े और सब कुछ काला दिखायी पड़े तो उसका जीवन छः मासतक ही रहता है ॥ १२ ॥

हे देवि ! हे प्रिये ! जब बायाँ हाथ एक सप्ताहतक फड़कता रहे, तब उसका जीवन केवल एक महीनेभर रहता है, इसमें सन्देह नहीं है ॥ १३ ॥ जब देहमें टूटन हो एवं तालु सूख जाय, तब उसका जीवन एक मासतक रहता है, इसमें सन्देह नहीं है ॥ १४ ॥ त्रिदोष हो जानेपर जिसकी नासिका बहती रहे, उसका जीवन एक पक्षभर रहता है और जिसका कण्ठ एवं मुख सूखने लगे, वह छः मासमें मृत्युको प्राप्त हो जाता है ॥ १५ ॥ हे भामिनि ! जिसकी जीभ मोटी हो जाय और दाँतोंसे लार बहने लगे तो उन चिह्नोंसे जान लेना चाहिये कि छ: मासमें उसकी मृत्यु हो जायगी ॥ १६ ॥ हे वरवर्णिनि ! जब मनुष्य जल, तेल, घी तथा दर्पणमें अपनी छाया न देख सके अथवा विकृत छाया दिखायी पड़े तो कालचक्रके जाननेवालोंको उसे छः मासपर्यन्त आयुवाला जानना चाहिये । हे देवेशि ! अब अन्य चिह्नोंको सुनिये, जिससे मृत्युका ज्ञान हो जाता है। जब मनुष्य अपनी छायाको सिरविहीन देखे अथवा [ अपनेको] छायासे रहित देखे, तब वह एक मास भी जीवित नहीं रहता है ॥ १७–१९॥
हे पार्वति ! हे भद्रे! मैंने इन अंगसम्बन्धी मृत्युचिह्नोंका वर्णन किया । हे भद्रे ! अब मैं बाहरी चिह्नोंको कह रहा हूँ, तुम सुनो ॥ २० ॥

हे देवि ! जब सूर्यमण्डल अथवा चन्द्रमण्डल किरणोंसे रहित प्रतीत हो अथवा लाल वर्णवाला दिखायी पड़े, तब वह [ व्यक्ति] आधे महीनेमें मर जाता है ॥ २१ ॥ जो [प्राणी] अरुन्धती तारा, महायान तथा चन्द्रमाको लक्षणोंसे हीन देखे या कि इनको देख न सके और तारों को भी न देख सके तो वह एक मासपर्यन्त जीवित रहता है ॥ २२ ॥ ग्रहोंके दिखायी पड़नेपर भी यदि दिशाभ्रम हो जाय अथवा उतथ्य [नामक तारा], ध्रुव एवं सूर्यमण्डलको न देख सके तो उसकी मृत्यु छः महीनेके भीतर हो जाती है । यदि [व्यक्ति ] रात्रिमें इन्द्रधनुष एवं मध्याह्नमें उल्कापात देखे अथवा उसे काक और गीध घेरने लगें, तो छः महीनेके भीतर मर जायगा, इसमें सन्देह नहीं है ॥ २३-२४ ॥ यदि [व्यक्तिको] आकाशमण्डलमें स्वर्गमार्ग [छायापथ ] और सप्तर्षिगण न दिखायी पड़ें, तो कालवेत्ता पुरुष उसे छः मासकी आयुवाला समझें ॥ २५ ॥

यदि वह अचानक सूर्य अथवा चन्द्रमाको राहुके द्वारा ग्रस्त अथवा दिशाओंको घूमता हुआ देखे तो वह अवश्य ही छः मासके भीतर मर जाता है ॥ २६ ॥ यदि मनुष्यको अचानक नीले रंगकी मक्खियाँ घेर लें तो उसकी आयु निश्चितरूपसे एक मास जाननी चाहिये । यदि गीध, कौआ अथवा कबूतर सिरपर आकर बैठ जाय तो वह प्राणी शीघ्र ही एक मासके भीतर मर जाता है, इसमें सन्देह नहीं है ॥ २७ – २८ ॥ इस प्रकार मनुष्योंके हितके लिये बाहरी अरिष्ट- लक्षणों को कह दिया, अब अन्य लक्षण भी संक्षेपमें कहता हूँ । हे सुन्दरि ! जिस प्रकार मनुष्यको अपने बायें एवं दाहिने हाथमें प्रत्यक्ष आता हुआ काल दिखायी पड़ सके, वे सब लक्षण कहे जा रहे हैं ॥ २९-३० ॥ हे सुरसुन्दरि ! इस प्रकार वे दोनों पक्ष स्थित हैं, ऐसा संक्षेपमें जानना चाहिये। उस समय पवित्र होकर शिवनामस्मरण करते हुए जितेन्द्रिय व्यक्ति भलीभाँति स्नान करके दोनों हाथोंको दूधसे धोकर आलतासे रगड़े, पुनः हाथोंमें गन्ध एवं पुष्प लेकर शुभाशुभका विचार करे ॥ ३१-३२ ॥

हे प्रिये ! कनिष्ठिकासे लेकर अंगुष्ठपर्यन्त दोनों हाथोंके तीन पोरोंपर क्रमसे प्रतिपदा आदिका न्यास करके प्रतिपदा आदि तिथियोंसे दोनों हाथोंको सम्पुटितकर पूर्वाभिमुख हो एक सौ आठ बार नवाक्षर मन्त्रका जप करे । इसके बाद यत्नपूर्वक दोनों हाथोंके प्रत्येक पर्वको देखे । हे प्रिये ! जिस पर्वपर भौंरेके समान काली रेखा दिखायी पड़े, कृष्णपक्ष अथवा शुक्लपक्षमें उसी तिथिको मृत्यु जानना चाहिये ॥ ३३–३६ ॥ हे प्रिये ! अब मैं नादसे प्रकट होनेवाले काल- लक्षणको संक्षेपमें कहूँगा, उसका श्रवण करो, इसमें श्वासके गमन – आगमनको जानकर कर्म करना चाहिये ॥ ३७ ॥ हे सुश्रोणि ! उस नादके दैनन्दिन संचारको जानकर यत्नसे अपना भी ज्ञान कर लेना चाहिये । क्षण, त्रुटि, लव, निमेष, काष्ठा, मुहूर्त, दिन-रात, पक्ष, मास, ऋतु, वत्सर, अब्द, युग, कल्प एवं महाकल्प – यही काल कहा जाता है, कालस्वरूप सदाशिव इसी परिपाटीसे संहरण करते हैं । वाम, दक्षिण एवं मध्य – ये संचारके तीन मार्ग कहे गये हैं ॥ ३८–४० ॥

पाँच दिनसे लेकर पच्चीस दिनपर्यन्त वामाचार गतिमें नाद होता है। यह नादप्रमाण मैंने आपसे कह दिया । हे वरवर्णिनि! कालवेत्ताओंको भूत, रन्ध्र, दिशा, ध्वजारूप नादप्रमाण वामाचार गतिमें जानना चाहिये ॥ ४१-४२ ॥ हे भामिनि ! यदि उसमें ऋतुके विकारभूत गुण प्रतीत हों, तो उसे दक्षिण प्रमाणवाला नाद कहा गया है – ऐसा प्राणवेत्ताओंको जानना चाहिये और जब भूतसंख्यक इडादि नाड़ियाँ प्राणोंका वहन करती हैं, तो वर्षके भीतर मृत्यु हो जाती है, इसमें संशय नहीं है ॥ ४३-४४ ॥ नाड़ियोंके दस दिनपर्यन्त चलनेसे वह वर्षभर जीता है और पन्द्रह दिनोंतक चलने से वह एक वर्षके भीतर ही मर जाता है। बीस दिनतक प्रवाहित होते रहनेसे छ: महीनेतक जीवित समझना चाहिये । यदि बायीं नाड़ी पन्द्रह दिनोंतक चलती रहे तो उस मरणोन्मुख व्यक्तिका जीवन तीन महीनेतक शेष रहता है । छब्बीस दिनतक प्रवाहित रहनेसे उसकी आयु दो मास कही गयी है । यदि नाड़ी सत्ताईस दिनतक बायीं ओर अविश्रान्त चलती रहे तो उसका जीवन एक मास शेष कहा गया है ॥ ४५–४८ ॥

इस प्रकार वाम वायुके प्रमाणसे नादका प्रमाण जानना चाहिये। दाहिनी ओर लगातार चलते रहनेसे चार दिनतक जीवन शेष रहता है । हे देवि ! नाड़ियाँ चार स्थानोंमें स्थित रहती हैं, सब मिलाकर ये सोलह नाड़ियाँ कही गयी हैं । अब मैं उनका ठीक-ठीक प्रमाण कहूँगा ॥ ४९-५० ॥ छः दिनोंसे लेकर संख्याकी समाप्तितक अर्थात् नौ दिनतक वाम नासारन्ध्रमें प्राणवायुकी स्थितिका शास्त्रविधिसे विचार किया जाता है ॥ ५१ ॥ यदि छः दिनतक नाद प्राणवायुपर चढ़ा रहे तो वह मनुष्य दो वर्ष आठ महीने आठ दिन जीता है – ऐसा जानना चाहिये। यदि सत्रह दिनतक प्राण आरूढ़ रहे तो वह एक वर्ष सात महीने छः दिनतक जीता है, इसमें संशय नहीं है। आठ दिनतक निरन्तर प्राणवायुके चलनेसे वह दो वर्ष चार महीने चौबीस दिनतक जीता है – ऐसा जानना चाहिये ॥ ५२–५४ ॥

जब नौ दिन प्राणवायु चले तो सात महीने बारह दिनतक आयु कही गयी है । जो प्राण पहलेके समान कहे गये हैं, उनके अन्तर्गत उतने महीने और उतने दिनोंकी संख्या भी जान लेनी चाहिये ॥ ५५-५६ ॥ ग्यारह दिन लगातार प्राणवायु चलते रहनेपर वह एक वर्ष नौ महीने आठ दिनतक जीवित रहता है । बारह दिनतक प्रवाहित रहनेसे वह एक वर्ष सात महीने छः दिनतक जीता है – ऐसा जानना चाहिये ॥ ५७-५८ ॥ यदि तेरह दिनतक नाड़ी चले तो [ व्यक्तिकी आयु] एक वर्ष चार महीने चौबीस दिन [शेष ] जानना चाहिये, इसमें संशय नहीं है । यदि प्राणवाही नाड़ियाँ चौदह दिन लगातार बायीं ओरसे चलें तो उसका जीवन एक वर्ष छ: मास चौबीस दिनपर्यन्त शेष जानना चाहिये, इसमें संशय नहीं है ॥ ५९ – ६१ ॥

पन्द्रह दिनतक प्रवाहित रहनेसे वह नौ महीने चौबीस दिनतक जीवित रहता है – ऐसा कालवेत्ताओंने कहा है । सोलह दिनतक नाड़ीप्रवाहसे वह दस महीने चौबीस दिन जीवित रहता है – ऐसा कालविदोंने कहा है ॥ ६२-६३ ॥ हे साधकेश्वरि ! सत्रह दिनतक प्रवाहसे नौ महीने अठारह दिनतक जीवन शेष कहा गया है ॥ ६४ ॥ हे देवि! जब प्राणवायु बायीं ओर अठारह दिनोंतक चलता रहे तो आठ महीने बारह दिन अथवा चौबीस दिनतक जीवन शेष कहा गया है – ऐसा निश्चय समझिये ॥ ६५१/२ ॥ हे देवि! जब तेईस दिनतक प्राण प्रवाहित रहे तो चार महीने, छः दिनतक जीवन शेष कहा गया है। चौबीस दिनके प्रवाहसे वह तीन माह अठारह दिनतक जीवित रहता है। इस प्रकार मैंने प्राणवायुके संचारसे अवान्तर दिनके जीवनकालकी संख्या तुमसे कही ॥ ६६–६८ ॥

इस प्रकार मैंने वामसंचार कह दिया, अब दक्षिण प्राणसंचारका श्रवण करो । अट्ठाईस दिनके प्रवाहसे वह पन्द्रह दिनोंतक जीता है। दस दिनके प्रवाहसे वह उतने ही [दस] दिनोंमें मर जाता है और तीस दिनके प्रवाहसे पाँच दिनोंमें मर जाता है । हे देवि ! जब इकतीस दिन लगातार प्राणवायु प्रवाहित होता रहे, तब उस व्यक्तिका जीवन तीन दिन रहता है, इसमें सन्देह नहीं है। जब सूर्य बत्तीस प्राणसंख्याका वहन करता है, तब उसका जीवन दो दिनतक रहता है, इसमें सन्देह नहीं है ॥ ६९–७२ ॥ मैंने दक्षिण प्राणवायुका वर्णन किया, अब तुमसे मध्यस्थ प्राणका वर्णन करता हूँ । जब वायुका प्रवाह मुखमण्डलमें एक ओर हो, तब उस दौड़ते हुए प्रवाहसे वह एक दिन जीवित रहता है । इस प्रकार प्राचीन विद्वानोंने मरणोन्मुख व्यक्तिके कालचक्रका वर्णन किया है ॥ ७३-७४ ॥

हे देवि ! मैंने लोकहितके निमित्त तुमसे समाप्त आयुवाले व्यक्तिके कालचक्रका वर्णन कर दिया। अब और क्या सुनना चाहती हो ? ॥ ७५ ॥

॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत पाँचवीं उमासंहितामें कालज्ञानवर्णन नामक पच्चीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ २५ ॥

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