October 6, 2024 | aspundir | Leave a comment शिवमहापुराण — उमासंहिता — अध्याय 43 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण उमासंहिता तैंतालीसवाँ अध्याय आचार्यपूजन एवं पुराणश्रवणके अनन्तर कर्तव्य – कथन शौनकजी बोले- हे सूतजी ! हे व्यासशिष्य ! अब आचार्यपूजनकी विधिको कहिये और पुराण सुननेके बाद क्या करना चाहिये, यह भी बताइये ? ॥ १ ॥ महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥ सूतजी बोले- इस सर्वोत्तम कथाको सुनकर भक्तिपूर्वक सविधि आचार्यका पूजन करना चाहिये और प्रसन्नतापूर्वक उन्हें दक्षिणा देनी चाहिये ॥ २ ॥ उसके अनन्तर बुद्धिमान्को चाहिये कि पुराणवक्ता को नमस्कारकर विधिपूर्वक हाथ एवं कानोंके आभूषण और रेशमी तथा सूती वस्त्रोंसे उनका पूजन करे । शिवपूजा समाप्त हो जानेपर सवत्सा गौका दान करे । उसके बाद वह सुधी एक पल सुवर्णसे आसन [सिंहासन] बनवाकर उसपर वस्त्र बिछाये और उस आसनपर सुन्दर अक्षरोंसे लिखे हुए शुभ ग्रन्थको स्थापितकर आचार्यको प्रदान करे, ऐसा करनेसे वह संसारके बन्धनोंसे मुक्त हो जाता है ॥ ३–५ ॥ हे महामुने! महात्मा कथावाचकको यथाशक्ति ग्राम, गज, घोड़ा एवं अन्य सभी वस्तुएँ भी देनी चाहिये। हे शौनक ! विधिपूर्वक भलीभाँति सुना हुआ यह पुराण फलदायी कहा गया है। यह मैं सत्य कह रहा हूँ ॥ ६-७ ॥ अतः हे मुने! वेदार्थसे युक्त, पुण्यप्रद तथा श्रुतिके हृदयरूप पुराणको भक्तिपूर्वक विधानके साथ सुनना चाहिये ॥ ८ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत पाँचवीं उमासंहितामें व्यासपूजनप्रकार नामक तैंतालीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ४३॥ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe