शिवमहापुराण — उमासंहिता — अध्याय 43
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥
श्रीशिवमहापुराण
उमासंहिता
तैंतालीसवाँ अध्याय
आचार्यपूजन एवं पुराणश्रवणके अनन्तर कर्तव्य – कथन

शौनकजी बोले- हे सूतजी ! हे व्यासशिष्य ! अब आचार्यपूजनकी विधिको कहिये और पुराण सुननेके बाद क्या करना चाहिये, यह भी बताइये ? ॥ १ ॥

महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।
गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥


सूतजी बोले- इस सर्वोत्तम कथाको सुनकर भक्तिपूर्वक सविधि आचार्यका पूजन करना चाहिये और प्रसन्नतापूर्वक उन्हें दक्षिणा देनी चाहिये ॥ २ ॥ उसके अनन्तर बुद्धिमान्‌को चाहिये कि पुराणवक्ता को नमस्कारकर विधिपूर्वक हाथ एवं कानोंके आभूषण और रेशमी तथा सूती वस्त्रोंसे उनका पूजन करे । शिवपूजा समाप्त हो जानेपर सवत्सा गौका दान करे । उसके बाद वह सुधी एक पल सुवर्णसे आसन [सिंहासन] बनवाकर उसपर वस्त्र बिछाये और उस आसनपर सुन्दर अक्षरोंसे लिखे हुए शुभ ग्रन्थको स्थापितकर आचार्यको प्रदान करे, ऐसा करनेसे वह संसारके बन्धनोंसे मुक्त हो जाता है ॥ ३–५ ॥ हे महामुने! महात्मा कथावाचकको यथाशक्ति ग्राम, गज, घोड़ा एवं अन्य सभी वस्तुएँ भी देनी चाहिये। हे शौनक ! विधिपूर्वक भलीभाँति सुना हुआ यह पुराण फलदायी कहा गया है। यह मैं सत्य कह रहा हूँ ॥ ६-७ ॥

अतः हे मुने! वेदार्थसे युक्त, पुण्यप्रद तथा श्रुतिके हृदयरूप पुराणको भक्तिपूर्वक विधानके साथ सुनना चाहिये ॥ ८ ॥

॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत पाँचवीं उमासंहितामें व्यासपूजनप्रकार नामक तैंतालीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ४३॥

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