September 30, 2024 | aspundir | Leave a comment शिवमहापुराण — कोटिरुद्रसंहिता — अध्याय 35 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण कोटिरुद्रसंहिता पैंतीसवाँ अध्याय विष्णुप्रोक्त शिवसहस्त्रनामस्तोत्र * सूतजी बोले- हे मुनिवरो ! आपलोग सुनें, जिससे महेश्वर सन्तुष्ट हुए थे, उस शिवसहस्रनामस्तोत्रको मैं कह रहा हूँ ॥ १ ॥ भगवान् विष्णुने कहा – १. शिवः- कल्याण-स्वरूप, २. हरः – भक्तोंके पाप-ताप हर लेनेवाले, ३. मृडः — सुखदाता, ४. रुद्रः – दुःख दूर करनेवाले, ५. पुष्करः–आकाशस्वरूप, ६. पुष्पलोचनः – पुष्पके समान खिले हुए नेत्रवाले, ७. अर्थिगम्यः – प्रार्थियोंको-प्राप्त होनेवाले, ८. सदाचारः – श्रेष्ठ आचरणवाले, ९. शर्वः – संहारकारी, १०. शम्भुः – कल्याणनिकेतन, ११. महेश्वरः – महान् ईश्वर ॥ २ ॥ १२. चन्द्रापीडः– चन्द्रमाको शिरोभूषणके रूपमें धारण करनेवाले, १३. चन्द्रमौलिः – सिरपर चन्द्रमाका मुकुट धारण करनेवाले, १४. विश्वम् – सर्वस्वरूप, १५. विश्वम्भरेश्वरः – विश्वका भरण-पोषण करनेवाले श्रीविष्णुके भी ईश्वर, १६. वेदान्तसारसंदोहः – वेदान्तके सारतत्त्व सच्चिदानन्दमय ब्रह्मकी साकार मूर्ति, १७. कपाली—हाथमें कपाल धारण करनेवाले, १८. नीललोहितः – ( गलेमें) नील और ( शेष अंगोंमें) लोहित वर्णवाले ॥ ३ ॥ महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥ १९. ध्यानाधारः — ध्यानके आधार, २०. अपरिच्छेद्यः – देश, काल और वस्तुकी सीमासे अविभाज्य, २१. गौरीभर्ता – गौरी अर्थात् पार्वतीजीके पति, २२. गणेश्वरः– प्रमथगणोंके स्वामी, २३. अष्टमूर्तिः- जल, अग्नि, वायु, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी और यजमान—इन आठ रूपोंवाले, २४. विश्वमूर्तिः– अखिल ब्रह्माण्डमय विराट् पुरुष, २५. त्रिवर्गस्वर्गसाधनः- धर्म, अर्थ, काम तथा स्वर्गकी प्राप्ति करानेवाले ॥ ४ ॥ २६. ज्ञानगम्यः – ज्ञानसे ही अनुभवमें आनेके योग्य, २७. दृढप्रज्ञः – सुस्थिर बुद्धिवाले, २८. देव-देवः — देवताओंके भी आराध्य, २९. त्रिलोचन:- सूर्य, चन्द्रमा और अग्निरूप तीन नेत्रोंवाले, ३०. वाम- देव: – लोकके विपरीत स्वभाववाले देवता, ३१. महा- देवः — महान् देवता ब्रह्मादिकोंके भी पूजनीय, ३२. पटुः – सब कुछ करनेमें समर्थ एवं कुशल, ३३. परिवृढः – स्वामी, ३४. दृढः—कभी विचलित न होनेवाले ॥ ५ ॥ ३५. विश्वरूपः – जगत् स्वरूप, ३६. विरूपाक्षः — विकट नेत्रवाले, ३७. वागीशः – वाणीके अधिपति, ३८. शुचिसत्तमः – पवित्र पुरुषोंमें भी सबसे श्रेष्ठ,३९. सर्वप्रमाणसंवादी – सम्पूर्ण प्रमाणोंमें सामंजस्य स्थापित करनेवाले, ४०. वृषाङ्कः – अपनी ध्वजामें वृषभका चिह्न धारण करनेवाले, ४१. वृषवाहनः – वृषभ या धर्मको वाहन बनानेवाले ॥ ६ ॥ ४२. ईशः – स्वामी या शासक, ४३. पिनाकी- पिनाक नामक धनुष धारण करनेवाले, ४४. खट्वाङ्गी- खाटके पायेकी आकृतिका एक आयुध धारण करनेवाले, ४५. चित्रवेषः – विचित्र वेषधारी, ४६. चिरंतन:- पुराण (अनादि) पुरुषोत्तम, ४७. तमोहरः – अज्ञानान्ध- कारको दूर करनेवाले, ४८. महायोगी – महान् योगसे सम्पन्न, ४९. गोप्ता — रक्षक, ५०. ब्रह्मा – सृष्टिकर्ता, ५१. धूर्जटि : – जटाके भारसे युक्त ॥ ७ ॥ ५२. कालकालः– कालके भी काल, ५३. कृत्तिवासाः – [ गजासुरके] चर्मको वस्त्रके रूपमें धारण करनेवाले, ५४. सुभगः – सौभाग्यशाली, ५५. प्रणवात्मकः—ओंकारस्वरूप अथवा प्रणवके वाच्यार्थ, ५६. उन्नध्रः—बन्धनरहित, ५७. पुरुषः – अन्तर्यामी आत्मा, ५८. जुष्यः – सेवन करनेयोग्य, ५९. दुर्वासा :- ‘दुर्वासा’ नामक मुनिके रूपमें अवतीर्ण, ६०. पुरशासनः – तीन मायामय असुरपुरोंका दमन करनेवाले ॥ ८ ॥ ६१. दिव्यायुधः – ‘ पाशुपत’ आदि दिव्य अस्त्र धारण करनेवाले, ६२. स्कन्दगुरुः – कार्तिकेयजीके पिता, ६३. परमेष्ठी – अपनी प्रकृष्ट महिमामें स्थित रहनेवाले, ६४. परात्परः – कारणके भी कारण, ६५. अनादिमध्यनिधनः – आदि, मध्य और अन्तसे रहित, ६६. गिरीश : – कैलासके अधिपति, ६७. गिरिजाधवः- पार्वतीके पति ॥ ९ ॥ ६८. कुबेरबन्धुः – कुबेरको अपना बन्धु (मित्र) माननेवाले, ६९. श्रीकण्ठः – श्यामसुषमासे सुशोभित कण्ठवाले, ७०. लोकवर्णोत्तमः – समस्त लोकों और वर्णोंसे श्रेष्ठ, ७१. मृदुः – कोमल स्वभाववाले, ७२. समाधिवेद्यः– समाधि अथवा चित्तवृत्तियोंके निरोधसे अनुभवमें आनेयोग्य, ७३. कोदण्डी – धनुर्धर, ७४. नीलकण्ठः – कण्ठमें हालाहल विषका नील चिह्न धारण करनेवाले, ७५. परश्वधी – परशुधारी ॥ १० ॥ ७६. विशालाक्षः — बड़े – बड़े नेत्रोंवाले, ७७. मृग- व्याधः—वनमें व्याध या किरातके रूपमें प्रकट हो शूकरके ऊपर बाण चलानेवाले, ७८. सुरेशः – देवताओंके स्वामी, ७९. सूर्यतापनः – सूर्यको भी दण्ड देनेवाले, ८०. धर्म- धाम—धर्मके आश्रय, ८१. क्षमाक्षेत्रम् – क्षमाके उत्पत्ति- स्थान, ८२. भगवान् — सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान तथा वैराग्यके आश्रय, ८३. भगनेत्रभित्— भगदेवताके नेत्रका भेदन करनेवाले ॥ ११ ॥ ८४. उग्रः – संहारकालमें भयंकर रूप धारण करनेवाले, ८५. पशुपतिः–मायारूपमें बँधे हुए पाशबद्ध पशुओं (जीवों) – को तत्त्वज्ञानके द्वारा मुक्त करके यथार्थरूपसे उनका पालन करनेवाले, ८६. तार्क्ष्यः – गरुड़रूप, ८७. प्रियभक्तः — भक्तोंसे प्रेम करनेवाले, ८८. परंतपः- शत्रुता रखनेवालोंको संताप देनेवाले, ८९. दाता — दानी, ९०. दयाकरः—दयानिधान अथवा कृपा करनेवाले, ९१. दक्षः—कुशल, ९२. कपर्दी – जटाजूटधारी, ९३. काम- शासनः– कामदेवका दमन करनेवाले ॥ १२ ॥ ९४. श्मशाननिलयः – श्मशानवासी, ९५. सूक्ष्मः- इन्द्रियातीत एवं सर्वव्यापी, ९६. श्मशानस्थः श्मशानभूमिमें विश्राम करनेवाले, ९७. महेश्वरः —महान् ईश्वर या परमेश्वर, ९८. लोककर्ता – जगत्की सृष्टि करनेवाले, ९९. मृगपतिः – मृगके पालक या पशुपति, १००. महाकर्ता — विराट् ब्रह्माण्डकी सृष्टि करनेके समय महान् कर्तृत्वसे सम्पन्न, १०१. महौषधिः – भवरोगका निवारण करनेके लिये महान् ओषधिरूप ॥ १३ ॥ १०२. उत्तरः – संसार – सागर से पार उतारनेवाले, १०३. गोपतिः – स्वर्ग, पृथ्वी, पशु, वाणी, किरण, इन्द्रिय और जलके स्वामी, १०४. गोप्ता — रक्षक, १०५. ज्ञानगम्यः – तत्त्वज्ञानके द्वारा ज्ञानस्वरूपसे ही जाननेयोग्य, १०६. पुरातनः – सबसे पुराने, १०७. नीतिः – न्यायस्वरूप, १०८. सुनीतिः – उत्तम नीतिवाले, १०९. शुद्धात्मा – विशुद्ध आत्मस्वरूप, ११०. सोमः -उमासहित, १११. सोमरतः – चन्द्रमापर प्रेम रखनेवाले, ११२. सुखी — आत्मानन्दसे परिपूर्ण ॥ १४ ॥ ११३. सोमपः – सोमपान करनेवाले अथवा सोमनाथरूपसे चन्द्रमाके पालक, ११४. अमृतपः- समाधिके द्वारा स्वरूपभूत अमृतका आस्वादन करनेवाले, ११५. सौम्यः — भक्तोंके लिये सौम्यरूपधारी, ११६. महा- तेजाः – महान् तेजसे सम्पन्न, ११७. महाद्युतिः- परमकान्तिमान्, ११८. तेजोमयः – प्रकाशस्वरूप, ११९. अमृतमयः – अमृतरूप, १२०. अन्नमयः – अन्नरूप, १२१. सुधापतिः — अमृतके पालक ॥ १५ ॥ १२२. अजातशत्रुः – जिनके मनमें कभी किसीके प्रति शत्रुभाव नहीं पैदा हुआ, ऐसे समदर्शी, १२३. आलोकः– प्रकाशस्वरूप, १२४. सम्भाव्यः – सम्माननीय, १२५. हव्यवाहनः – अग्निस्वरूप, १२६. लोककरः- जगत्के स्रष्टा, १२७. वेदकरः – वेदोंको प्रकट करनेवाले, १२८. सूत्रकारः–ढक्कानादके रूपमें चतुर्दश माहेश्वर सूत्रों के प्रणेता, १२९. सनातनः – नित्यस्वरूप ॥ १६ ॥ १३०. महर्षिकपिलाचार्यः – सांख्यशास्त्रके प्रणेता भगवान् कपिलाचार्य, १३१. विश्वदीप्तिः — अपनी प्रभासे सबको प्रकाशित करनेवाले, १३२. त्रिलोचनः – तीनों लोकोंके द्रष्टा, १३३. पिनाकपाणिः — हाथमें पिनाक नामक धनुष धारण करनेवाले, १३४. भूदेवः पृथ्वीके देवता – ब्राह्मण अथवा पार्थिवलिंगरूप, १३५. स्वस्तिदः– कल्याणदाता, १३६. स्वस्तिकृत्- कल्याणकारी, १३७. सुधीः – विशुद्ध बुद्धिवाले ॥ १७ ॥ १३८. धातृधामा — विश्वका धारण-पोषण करनेमें समर्थ तेजवाले, १३९. धामकरः – तेजकी सृष्टि करनेवाले, १४०. सर्वगः – सर्वव्यापी, १४१. सर्वगोचरः – सबमें व्याप्त, १४२. ब्रह्मसृक् — ब्रह्माजीके उत्पादक, १४३. विश्वसृक् — जगत्के स्रष्टा, १४४. सर्गः – सृष्टिस्वरूप, १४५. कर्णिकारप्रियः – कर्णिकारके फूलको पसन्द करनेवाले, १४६. कविः – त्रिकालदर्शी ॥ १८ ॥ १४७. शाखः–कार्तिकेयके छोटे भाई शाखस्वरूप, १४८. विशाखः – स्कन्दके छोटे भाई विशाखस्वरूप अथवा विशाख नामक ऋषि, १४९. गोशाखः वेदवाणीकी शाखाओंका विस्तार करनेवाले, १५०. शिवः – मंगलमय, १५१. भिषगनुत्तमः – भवरोगका निवारण करनेवाले वैद्यों (ज्ञानियों) – में सर्वश्रेष्ठ, १५२. गङ्गाप्लवोदकः— गंगाके प्रवाहरूप जलको सिरपर धारण करनेवाले, १५३. भव्यः – कल्याणस्वरूप, १५४. पुष्कलः – पूर्णतम अथवा व्यापक, १५५. स्थपतिः – ब्रह्माण्डरूपी भवनके निर्माता ( थवई), १५६. स्थिरः – अचंचल अथवा स्थाणुरूप ॥ १९ ॥ १५७. विजितात्मा – मनको वशमें रखनेवाले, १५८. विधेयात्मा – शरीर, मन और इन्द्रियोंसे अपनी इच्छाके अनुसार काम लेनेवाले, १५९. भूतवाहन- सारथिः – पांचभौतिक रथ (शरीर ) – का संचालन करनेवाले बुद्धिरूप सारथि, १६०. सगणः – प्रमथगणोंके साथ रहनेवाले,१६२. गणकायः- गणस्वरूप, १६१. – सुकीर्तिः — उत्तम कीर्तिवाले, १६३. छिन्नसंशयः- संशयोंको काट देनेवाले ॥ २० ॥ १६४. कामदेवः – मनुष्योंद्वारा अभिलषित समस्त कामनाओंके अधिष्ठाता परमदेव, १६५. कामपालः – सकाम भक्तोंकी कामनाओंको पूर्ण करनेवाले, १६६. भस्मोद्धूलितविग्रहः – अपने श्रीअंगोंमें भस्म रमानेवाले, १६७. भस्मप्रियः – भस्मके प्रेमी, १६८. भस्मशायी- भस्मपर शयन करनेवाले, १६९. कामी – अपने प्रिय भक्तोंको चाहनेवाले, १७०. कान्तः – परम कमनीय प्राणवल्लभरूप, १७१. कृतागमः – समस्त तन्त्रशास्त्रोंके रचयिता ॥ २१ ॥ १७२. समावर्तः– संसारचक्रको भलीभाँति घुमाने – वाले, १७३. अनिवृत्तात्मा — सर्वत्र विद्यमान होनेके कारण जिनका आत्मा कहींसे भी हटा नहीं है, ऐसे, १७४. धर्मपुञ्जः – धर्म या पुण्यकी राशि, १७५. सदाशिवः – निरन्तर कल्याणकारी, १७६. अकल्मषः – पापरहित, १७७. चतुर्बाहुः – चार भुजाधारी, १७८. दुरावासः जिन्हें योगीजन भी बड़ी कठिनाईसे अपने हृदयमन्दिरमें बसा पाते हैं, ऐसे, १७९. दुरासदः – परम दुर्जय ॥ २२ ॥ १८०. दुर्लभः – भक्तिहीन पुरुषोंको कठिनतासे प्राप्त होनेवाले, १८१. दुर्गमः – जिनके निकट पहुँचना किसीके लिये भी कठिन है, ऐसे, १८२. दुर्ग: – पाप- तापसे रक्षा करनेके लिये दुर्गरूप अथवा दुर्ज्ञेय, १८३. सर्वायुधविशारदः – सम्पूर्ण अस्त्रोंके प्रयोगकी कला में कुशल, १८४. अध्यात्मयोगनिलयः – अध्यात्मयोगमें स्थित, १८५. सुतन्तुः – सुन्दर विस्तृत जगत्-रूप तन्तुवाले, १८६. तन्तुवर्धनः – जगत्-रूप तन्तुको बढ़ानेवाले ॥ २३ ॥ १८७. शुभाङ्गः – सुन्दर अंगोंवाले, १८८. लोकसारङ्गः– लोकसारग्राही, १८९. जगदीश :- जगत्के स्वामी, १९०. जनार्दनः – भक्तजनोंकी याचनाके आलम्बन, १९९. भस्मशुद्धिकरः – भस्मसे शुद्धिका सम्पादन करनेवाले, १९२. मेरुः – सुमेरुपर्वतके समान केन्द्ररूप, १९३. ओजस्वी – तेज और बलसे सम्पन्न, १९४. शुद्धविग्रहः – निर्मल शरीरवाले ॥ २४ ॥ १९५. असाध्यः— साधन – भजनसे दूर रहनेवाले लोगोंके लिये अलभ्य, १९६. साधुसाध्यः — साधन- भजनपरायण सत्पुरुषोंके लिये सुलभ, १९७. भृत्य – मर्कटरूपधृक् — श्रीरामके सेवक वानर हनुमान्का रूप धारण करनेवाले, १९८. हिरण्यरेताः – अग्निस्वरूप अथवा सुवर्णमय वीर्यवाले, १९९. पौराणः – पुराणोंद्वारा प्रतिपादित, २००. रिपुजीवहर: – शत्रुओंके प्राण हर लेनेवाले, २०१. बली – बलशाली ॥ २५ ॥ २०२. महाह्रदः — परमानन्दके महान् सरोवर, २०३. महागर्तः– महान् आकाशरूप, २०४. सिद्धवृन्दार- वन्दितः — सिद्धों और देवताओं द्वारा वन्दित, २०५. व्याघ्रचर्माम्बरः – व्याघ्रचर्मको वस्त्रके समान धारण करनेवाले, २०६. व्याली – सर्पोंको आभूषणकी भाँति धारण करनेवाले, २०७. महाभूतः – त्रिकालमें भी कभी नष्ट न होनेवाले महाभूतस्वरूप, २०८. महानिधिः- सबके महान् निवासस्थान ॥ २६ ॥ २०९. अमृताशः – जिनकी आशा कभी विफल न हो, ऐसे अमोघसंकल्प २१०. अमृतवपुः – जिनका कलेवर कभी नष्ट न हो, ऐसे – नित्यविग्रह, २११. पाञ्च- जन्यः — पांचजन्य नामक शंखस्वरूप, २१२. प्रभ- ञ्जनः—वायुस्वरूप अथवा संहारकारी, २१३. पञ्च- विंशतितत्त्वस्थः – प्रकृति, महत्तत्त्व (बुद्धि), अहंकार, चक्षु, श्रोत्र, घ्राण, रसना, त्वक्, वाक्, पाणि, पायु, पाद, उपस्थ, मन, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध, पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश – इन चौबीस जड तत्त्वोंसहित पचीसवें चेतनतत्त्व पुरुषमें व्याप्त, २१४. पारिजातः – याचकोंकी इच्छा पूर्ण करनेमें कल्पवृक्षरूप, २१५. परावरः—कारण-कार्यरूप ॥ २७ ॥ २१६. सुलभः — नित्य – निरन्तर चिन्तन करनेवाले एकनिष्ठ श्रद्धालु भक्तको सुगमतासे प्राप्त होनेवाले, २१७. सुव्रतः—उत्तम व्रतधारी, २१८. शूरः – शौर्य – सम्पन्न, २१९. ब्रह्मवेदनिधिः – ब्रह्मा और वेदके प्रादुर्भावके स्थान, २२०. निधिः – जगत् – रूपी रत्नके उत्पत्तिस्थान, २२१ वर्णाश्रमगुरुः – वर्णों और आश्रमोंके गुरु ( उपदेष्टा), २२२. वर्णी – ब्रह्मचारी, २२३. शत्रुजित् — अन्धकासुर आदि शत्रुओंको जीतनेवाले, २२४. शत्रुतापनः – शत्रुओंको संताप देनेवाले ॥ २८ ॥ २२५. आश्रमः—सबके विश्रामस्थान, २२६. क्षपणः—जन्म-मरणके कष्टका मूलोच्छेद करनेवाले, २२७. क्षामः—प्रलयकालमें प्रजाको क्षीण करनेवाले, २२८. ज्ञानवान् — ज्ञानी, २२९. अचलेश्वरः – पर्वतों अथवा स्थावर पदार्थोंके स्वामी, २३०. प्रमाणभूतः – नित्यसिद्ध प्रमाणरूप, २३१. दुर्ज्ञेयः – कठिनतासे जाननेयोग्य, २३२. सुपर्णः – वेदमय सुन्दर पंखवाले, गरुड़रूप, २३३.वायुवाहनः – अपने भयसे वायुको प्रवाहित करनेवाले॥ २९ ॥ २३४. धनुर्धरः – पिनाकधारी, २३५. धनुर्वेदः धनुर्वेदके ज्ञाता, २३६. गुणराशिः – अनन्त कल्याणमय गुणोंकी राशि, २३७. गुणाकरः – सद्गुणोंकी खान, २३८. सत्यः – सत्यस्वरूप, २३९. सत्यपरः – सत्य- परायण, २४०. अदीनः — दीनतासे रहित — उदार, २४१. धर्माङ्गः — धर्ममय विग्रहवाले, २४२. धर्मसाधनः- धर्मका अनुष्ठान करनेवाले ॥ ३० ॥ २४३. अनन्तदृष्टिः – असीमित दृष्टिवाले, २४४. आनन्दः—परमानन्दमय, २४५. दण्डः – दुष्टोंको दण्ड देनेवाले अथवा दण्डस्वरूप, २४६. दमयिता — दुर्दान्त दानवोंका दमन करनेवाले, २४७. दमः – दमनस्वरूप, २४८. अभिवाद्यः— प्रणाम करनेयोग्य, २४९. महा- मायः – मायावियोंको भी मोहनेवाले महामायावी, २५०. विश्वकर्मविशारदः – संसारकी सृष्टि करनेमें कुशल ॥ ३१ ॥ २५१. वीतरागः– पूर्णतया विरक्त, २५२. विनीता- त्मा – मनसे विनयशील अथवा मनको वशमें रखनेवाले, २५३. तपस्वी – तपस्यापरायण, २५४. भूतभावनः- सम्पूर्ण भूतोंके उत्पादक एवं रक्षक, २५५. उन्मत्तवेषः – पागलोंके समान वेष धारण करनेवाले, २५६. प्रच्छन्नः- मायाके पर्देमें छिपे हुए, २५७. जितकामः – कामविजयी, २५८. अजितप्रियः – भगवान् विष्णुके प्रेमी ॥ ३२ ॥ २५९. कल्याणप्रकृतिः – कल्याणकारी स्वभाव- वाले, २६०. कल्पः – समर्थ, २६१. सर्वलोकप्रजा- पतिः – सम्पूर्ण लोकोंकी प्रजाके पालक, २६२. तरस्वी- वेगशाली, २६३. तारकः – उद्धारक, २६४. धीमान्- विशुद्ध बुद्धिसे युक्त, २६५. प्रधान: – सबसे श्रेष्ठ, २६६. प्रभुः – सर्वसमर्थ, २६७. अव्ययः अविनाशी ॥ ३३ ॥ २६८. लोकपालः – समस्त लोकोंकी रक्षा करनेवाले, २६९. अन्तर्हितात्मा – अन्तर्यामी आत्मा अथवा अदृश्य स्वरूपवाले, २७०. कल्पादिः – कल्पके आदि – कारण, २७१. कमलेक्षणः— कमलके समान नेत्रवाले, २७२. वेदशास्त्रार्थतत्त्वज्ञः – वेदों और शास्त्रोंके अर्थ एवं तत्त्वको जाननेवाले, २७३. अनियमः – नियन्त्रणरहित, २७४. नियताश्रयः – सबके सुनिश्चित आश्रयस्थान ॥ ३४ ॥ २७५. चन्द्रः–चन्द्रमारूपसे आह्लादकारी, २७६. सूर्य:- सबकी उत्पत्तिके हेतुभूत सूर्य, २७७. शनिः – शनैश्चररूप, २७८. केतुः – केतु नामक ग्रहस्वरूप, २७९. वराङ्गः– सुन्दर शरीरवाले, २८०. विद्रुमच्छविः – मूँगेकी-सी लाल कान्तिवाले, २८१. भक्तिवश्यः भक्तिके द्वारा भक्तके वशमें होनेवाले, २८२. परब्रह्म – परमात्मा, २८३. मृगबाणार्पणः – मृगरूपधारी यज्ञपर बाण चलानेवाले, २८४. अनघः – पापरहित ॥ ३५ ॥ २८५. अद्रिः – कैलास आदि पर्वतस्वरूप, २८६. अद्र्यालयः–कैलास और मन्दर आदि पर्वतोंपर निवास करनेवाले, २८७. कान्तः – सबके प्रियतम, २८८. परमात्मा — परब्रह्म परमेश्वर, २८९. जगद्गुरुः- समस्त संसारके गुरु, २९०. सर्वकर्मालयः – सम्पूर्ण कर्मोंके आश्रयस्थान, २९१. तुष्टः – सदा प्रसन्न, २९२. मङ्गल्यः– मंगलकारी, २९३. मङ्गलावृतः – मंगल- कारिणी शक्तिसे संयुक्त ॥ ३६ ॥ २९४. महातपाः—महान् तपस्वी, २९५. दीर्घ- तपाः—दीर्घकालतक तप करनेवाले, २९६. स्थविष्ठः अत्यन्त स्थूल, २९७. स्थविरो ध्रुवः – अति प्राचीन एवं अत्यन्त स्थिर, २९८. अहः संवत्सरः – दिन एवं संवत्सर आदि कालरूपसे स्थित, अंश – कालस्वरूप, २९९. व्याप्तिः — व्यापकतास्वरूप, ३००. प्रमाणम् – प्रत्यक्षादि प्रमाणस्वरूप, ३०१ परमं तपः — उत्कृष्ट तपस्यास्वरूप ॥ ३७ ॥ ३०२. संवत्सरकरः – संवत्सर आदि कालविभागके उत्पादक, ३०३. मन्त्रप्रत्ययः–वेद आदि मन्त्रोंसे प्रतीत ( प्रत्यक्ष ) होनेयोग्य, ३०४. सर्वदर्शनः – सबके साक्षी, ३०५. अजः – अजन्मा, ३०६. सर्वेश्वरः – सबके शासक, ३०७. सिद्ध: – सिद्धियोंके आश्रय, ३०८. महारेताः – श्रेष्ठ वीर्यवाले, ३०९. महाबलः – प्रमथ- गणोंकी महती सेनासे सम्पन्न ॥ ३८ ॥ ३१०. योगी योग्य: – सुयोग्य योगी, ३११. महातेजाः – महान् तेजसे सम्पन्न, ३१२. सिद्धिः – समस्त साधनोंके फल, ३१३. सर्वादिः – सब भूतोंके आदिकारण, ३१४. अग्रहः – इन्द्रियोंकी ग्रहणशक्तिके अविषय, ३१५. वसुः – सब भूतोंके वासस्थान, ३१६. वसुमनाः – उदार मनवाले, ३१७. सत्यः – सत्यस्वरूप, ३१८. सर्वपापहरो हरः – समस्त पापोंका अपहरण करनेके कारण हर नामसे प्रसिद्ध ॥ ३९ ॥ ३१९. सुकीर्तिशोभनः— उत्तम कीर्तिसे सुशोभित होनेवाले, ३२०. श्रीमान् — विभूतिस्वरूपा उमासे सम्पन्न, ३२१. वेदाङ्गः – वेदरूप अंगोंवाले, ३२२. वेद- विन्मुनिः – वेदोंका विचार करनेवाले मननशील मुनि, ३२३. भ्राजिष्णुः – एकरस प्रकाशस्वरूप, ३२४. भोजनम् — ज्ञानियोंद्वारा भोगनेयोग्य अमृतस्वरूप, ३२५. भोक्ता – पुरुषरूपसे उपभोग करनेवाले, ३२६. लोक- नाथः- भगवान् विश्वनाथ, ३२७. दुराधरः – अजितेन्द्रिय पुरुषोंद्वारा जिनकी आराधना अत्यन्त कठिन है, ऐसे ॥ ४० ॥ ३२८. अमृतः शाश्वतः – सनातन अमृतस्वरूप, ३२९. शान्तः– शान्तिमय, ३३०. बाणहस्तः प्रताप- वान्—हाथमें बाण धारण करनेवाले प्रतापी वीर, ३३१. कमण्डलुधरः – कमण्डलु धारण करनेवाले, ३३२. धन्वी —– पिनाकधारी, ३३३. अवाङ्मनसगोचरः मन और वाणीके अविषय ॥ ४१ ॥ ३३४. अतीन्द्रियो महामायः – इन्द्रियातीत एवं महामायावी, ३३५. सर्वावासः – सबके वासस्थान, ३३६. चतुष्पथः – चारों पुरुषार्थोंकी सिद्धिके एकमात्र मार्ग, ३३७. कालयोगी – प्रलयके समय सबको कालसे संयुक्त करनेवाले, ३३८. महानादः – गम्भीर शब्द करनेवाले अथवा अनाहत नादरूप, ३३९. महोत्साहो महाबलः–महान् उत्साह और बलसे सम्पन्न ॥ ४२ ॥ ३४०. महाबुद्धिः – श्रेष्ठ बुद्धिवाले, ३४१. महा- वीर्यः :- अनन्त पराक्रमी, ३४२. भूतचारी – भूतगणोंके साथ विचरनेवाले, ३४३. पुरंदरः – त्रिपुरसंहारक, ३४४. निशाचरः – रात्रिमें विचरण करनेवाले, ३४५. प्रेतचारी- प्रेतोंके साथ भ्रमण करनेवाले, ३४६. महाशक्तिर्महा- द्युतिः – अनन्तशक्ति एवं श्रेष्ठ कान्तिसे सम्पन्न ॥ ४३ ॥ ३४७. अनिर्देश्यवपुः – अनिर्वचनीय स्वरूपवाले, ३४८. श्रीमान् — ऐश्वर्यवान्, ३४९. सर्वाचार्यमनो- गतिः – सबके लिये अविचार्य मनोगतिवाले, ३५०. बहुश्रुतः – बहुज्ञ अथवा सर्वज्ञ, ३५१. अमहामायः – बड़ी-से-बड़ी माया भी जिनपर प्रभाव नहीं डाल सकती ऐसे, ३५२. नियतात्मा – मनको वशमें रखनेवाले, ३५३. ध्रुवोऽध्रुवः – ध्रुव (नित्य कारण) और अध्रुव (अनित्य- कार्य)-रूप ॥ ४४ ॥ ३५४. ओजस्तेजोद्युतिधरः – ओज (प्राण और बल), तेज (शौर्य आदि गुण) तथा ज्ञानकी दीप्तिको धारण करनेवाले, ३५५. जनकः – सबके उत्पादक, ३५६. सर्वशासन: – सबके शासक, ३५७. नृत्यप्रियः- नृत्यके प्रेमी, ३५८. नित्यनृत्यः – प्रतिदिन ताण्डव नृत्य करनेवाले, ३५९. प्रकाशात्मा – प्रकाशस्वरूप, ३६०. प्रकाशकः– सूर्य आदिको भी प्रकाश देनेवाले ॥ ४५ ॥ ३६१. स्पष्टाक्षरः—ओंकाररूप स्पष्ट अक्षरवाले, ३६२. बुधः – ज्ञानवान्, ३६३. मन्त्रः—ऋक्, साम और यजुर्वेदके मन्त्रस्वरूप, ३६४. समानः – सबके प्रति समान भाव रखनेवाले, ३६५. सारसम्प्लवः संसारसागरसे पार होनेके लिये नौकारूप, ३६६. युगादि- कृद्युगावर्तः– युगादिका आरम्भ करनेवाले तथा चारों युगोंको चक्रकी तरह घुमानेवाले, ३६७. गम्भीरः गाम्भीर्यसे युक्त, ३६८. वृषवाहनः – नन्दी नामक वृषभपर सवार होनेवाले ॥ ४६ ॥ ३६९. इष्टः–परमानन्दस्वरूप होनेसे सर्वप्रिय, ३७०. अविशिष्ट : – सम्पूर्ण विशेषणोंसे रहित, ३७१. शिष्टेष्टः – शिष्ट पुरुषोंके इष्टदेव, ३७२. सुलभः – अनन्यचित्तसे निरन्तर स्मरण करनेवाले भक्तोंके लिये सुगमतासे प्राप्त होनेयोग्य, ३७३. सारशोधनः – सार – तत्त्वकी खोज करनेवाले, ३७४. तीर्थरूपः – तीर्थस्वरूप, ३७५. तीर्थनामा — तीर्थनामधारी अथवा जिनका नाम भवसागरसे पार लगानेवाला है, ऐसे, ३७६. तीर्थदृश्यः तीर्थसेवनसे अपने स्वरूपका दर्शन करानेवाले अथवा गुरु-कृपासे प्रत्यक्ष होनेवाले, ३७७. तीर्थदः – चरणोदक स्वरूप तीर्थको देनेवाले ॥ ४७ ॥ ३७८. अपांनिधिः – जलके निधान समुद्ररूप, ३७९. अधिष्ठानम्—उपादान – कारणरूपसे सब भूतोंके आश्रय अथवा जगत् – रूप प्रपंचके अधिष्ठान, ३८०. दुर्जयः – जिनको जीतना कठिन है, ऐसे, ३८१. जय- कालवित् — विजयके अवसरको समझनेवाले, ३८२. प्रतिष्ठितः — अपनी महिमामें स्थित, ३८३. प्रमाणज्ञः – प्रमाणोंके ज्ञाता, ३८४. हिरण्यकवचः – सुवर्णमय कवच धारण करनेवाले, ३८५. हरिः — श्रीहरिस्वरूप ॥ ४८ ॥ ३८६. विमोचनः – संसारबन्धनसे सदाके लिये छुड़ा देनेवाले, ३८७. सुरगणः – देवसमुदायरूप, ३८८. विद्येश: – सम्पूर्ण विद्याओंके स्वामी, ३८९. विन्दु- संश्रयः — बिन्दुरूप प्रणवके आश्रय, ३९०. बालरूपः- बालकका रूप धारण करनेवाले, ३९९. अबलोन्मत्तः – बलसे उन्मत्त न होनेवाले, ३९२. अविकर्ता — विकाररहित, ३९३. गहनः– दुर्बोधस्वरूप या अगम्य, ३९४. गुहः मायासे अपने यथार्थ स्वरूपको छिपाये रखनेवाले ॥ ४९ ॥ ३९५. करणम् – संसारकी उत्पत्तिके सबसे बड़े साधन, ३९६. कारणम् – जगत्के उपादान और निमित्त कारण, ३९७. कर्ता- सबके रचयिता, ३९८. सर्वबन्ध- विमोचन: – सम्पूर्ण बन्धनोंसे छुड़ानेवाले, ३९९. व्यव- सायः — निश्चयात्मक ज्ञानस्वरूप, ४००. व्यवस्थानः- सम्पूर्ण जगत् की व्यवस्था करनेवाले, ४०१. स्थानदः- ध्रुव आदि भक्तोंको अविचल स्थिति प्रदान कर देनेवाले, ४०२. जगदादिजः – हिरण्यगर्भरूपसे जगत् के आदिमें प्रकट होनेवाले ॥ ५० ॥ ४०३. गुरुदः — श्रेष्ठ वस्तु प्रदान करनेवाले अथवा जिज्ञासुओंको गुरुकी प्राप्ति करानेवाले, ४०४. ललितः सुन्दर स्वरूपवाले, ४०५. अभेदः – भेदरहित, ४०६. भावात्मात्मनि संस्थितः – सत्स्वरूप, आत्मामें प्रतिष्ठित, ४०७. वीरेश्वरः–वीरशिरोमणि, ४०८. वीरभद्र:- वीरभद्र नामक गणाध्यक्ष, ४०९. वीरासनविधिः वीरासनसे बैठनेवाले, ४१०. विराट् – अखिल ब्रह्माण्ड- स्वरूप ॥ ५१ ॥ ४११ वीरचूडामणिः – वीरोंमें श्रेष्ठ, ४१२. वेत्ता–विद्वान्, ४१३. चिदानन्दः – विज्ञानानन्दस्वरूप, ४१४. नदीधरः —– मस्तकपर गंगाजीको धारण करनेवाले, ४१५. आज्ञाधारः—- आज्ञाका पालन करनेवाले, ४१६. त्रिशूली – त्रिशूलधारी, ४१७. शिपिविष्टः – तेजोमयी किरणोंसे व्याप्त, ४१८. शिवालयः – भगवती शिवाके आश्रय ॥ ५२ ॥ ४१९. वालखिल्यः – वालखिल्य ऋषिरूप, ४२०. महाचापः- महान् धनुर्धर, ४२१. तिग्मांशुः – सूर्यरूप, ४२२. बधिरः—लौकिक विषयोंकी चर्चा न सुननेवाले, ४२३. खगः– आकाशचारी, ४२४. अभिरामः — परम सुन्दर, ४२५. सुशरणः – सबके लिये सुन्दर आश्रयरूप, ४२६. सुब्रह्मण्यः — ब्राह्मणोंके परम हितैषी, ४२७. सुधापतिः– अमृतकलशके रक्षक ॥ ५३ ॥ ४२८. मघवान् कौशिकः – कुशिकवंशीय इन्द्र- स्वरूप, ४२९. गोमान् – प्रकाशकिरणोंसे युक्त, ४३०. विरामः – समस्त प्राणियोंके लयके स्थान, ४३१ सर्व- साधनः—समस्त कामनाओंको सिद्ध करनेवाले, ४३२. ललाटाक्षः—ललाटमें तीसरा नेत्र धारण करनेवाले, ४३३. विश्वदेहः – जगत्स्वरूप, ४३४. सारः – सार – तत्त्वरूप, ४३५. संसारचक्रभृत् – संसारचक्रको धारण करनेवाले ॥ ५४ ॥ ४३६. अमोघदण्डः – जिनका दण्ड कभी व्यर्थ नहीं जाता है, ऐसे, ४३७. मध्यस्थः – उदासीन, ४३८. हिरण्यः – सुवर्ण अथवा तेज: स्वरूप, ४३९. ब्रह्म- वर्चसी — ब्रह्मतेजसे सम्पन्न, ४४०. परमार्थः – मोक्षरूप उत्कृष्ट अर्थकी प्राप्ति करानेवाले, ४४१ परो मायी- महामायावी, ४४२. शम्बरः – कल्याणप्रद, ४४३. व्याघ्र- लोचनः – व्याघ्रके समान भयानक नेत्रोंवाले ॥ ५५ ॥ ४४४. रुचिः – दीप्तिरूप, ४४५. विरञ्चिः ब्रह्मस्वरूप, ४४६. स्वर्बन्धुः – स्वर्लोकमें बन्धुके समान सुखद, ४४७. वाचस्पतिः – वाणीके अधिपति, ४४८. अहर्पतिः—दिनके स्वामी सूर्यरूप, ४४९. रविः – समस्त रसोंका शोषण करनेवाले, ४५०. विरोचनः – विविध प्रकारसे प्रकाश फैलानेवाले, ४५१. स्कन्दः- स्वामी कार्तिकेयरूप, ४५२. शास्ता वैवस्वतो यमः – सबपर शासन करनेवाले सूर्यकुमार यम ॥ ५६ ॥ ४५३. युक्तिरुन्नतकीर्तिः–अष्टांगयोगस्वरूप तथा ऊर्ध्वलोकमें फैली हुई कीर्तिसे युक्त, ४५४. सानुराग:- भक्तजनोंपर प्रेम रखनेवाले, ४५५. परञ्जयः – दूसरोंपर विजय पानेवाले, ४५६. कैलासाधिपतिः — कैलासके स्वामी, ४५७. कान्तः – कमनीय अथवा कान्तिमान्, ४५८. सविता – समस्त जगत्को उत्पन्न करनेवाले, ४५९. रविलोचनः – सूर्यरूप नेवाले ॥ ५७ ॥ ४६०. विद्वत्तमः – विद्वानोंमें सर्वश्रेष्ठ, परम विद्वान्, ४६१. वीतभयः — सब प्रकारके भयसे रहित, ४६२. विश्वभर्ता — जगत्का भरण-पोषण करनेवाले, ४६३. अनिवारितः — जिन्हें कोई रोक नहीं सकता, ऐसे, ४६४. नित्यः – सत्यस्वरूप, ४६५. नियतकल्याणः- सुनिश्चितरूपसे कल्याणकारी, ४६६. पुण्यश्रवण- कीर्तनः — जिनके नाम, गुण, महिमा और स्वरूपके श्रवण तथा कीर्तन परम पावन हैं, ऐसे ॥ ५८॥ ४६७. दूरश्रवाः – सर्वव्यापी होनेके कारण दूरकी बात भी सुन लेनेवाले, ४६८. विश्वसहः – भक्तजनोंके सब अपराधोंको कृपापूर्वक सह लेनेवाले, ४६९. ध्येयः – ध्यान करनेयोग्य, ४७०. दुःस्वप्ननाशनः – चिन्तन करनेमात्रसे बुरे स्वप्नोंका नाश करनेवाले, ४७१. उत्तारणः– संसारसागरसे पार उतारनेवाले, ४७२. दुष्कृतिहा— पापोंका नाश करनेवाले, ४७३. विज्ञेयः – जाननेके योग्य, ४७४. दुस्सहः – जिनके वेगको सहन करना दूसरोंके लिये अत्यन्त कठिन है, ऐसे, ४७५. अभवः – संसारबन्धनसे रहित अथवा अजन्मा ॥ ५९ ॥ ४७६. अनादिः — जिनका कोई आदि नहीं है, ऐसे सबके कारणस्वरूप, ४७७. भूर्भुवो लक्ष्मीः- भूर्लोक और भुवर्लोककी शोभा, ४७८. किरीटी- मुकुटधारी, ४७९. त्रिदशाधिपः – देवताओंके स्वामी, ४८०. विश्वगोप्ता — जगत्के रक्षक, ४८१. विश्व- कर्ता – संसारकी सृष्टि करनेवाले, ४८२. सुवीरः श्रेष्ठ वीर, ४८३. रुचिराङ्गदः – सुन्दर बाजूबन्द धारण करनेवाले ॥ ६० ॥ ४८४. जननः — प्राणिमात्रको जन्म देनेवाले, ४८५. जनजन्मादिः—जन्म लेनेवालोंके जन्मके मूल कारण, ४८६. प्रीतिमान् – प्रसन्न, ४८७. नीतिमान्- सदा नीतिपरायण, ४८८. धवः – सबके स्वामी, ४८९. वसिष्ठः – मन और इन्द्रियोंको अत्यन्त वशमें रखनेवाले अथवा वसिष्ठ ऋषिरूप, ४९०. कश्यपः — द्रष्टा अथवा कश्यप मुनिरूप, ४९१. भानुः – प्रकाशमान अथवा सूर्यरूप, ४९२. भीमः– दुष्टोंको भय देनेवाले, ४९३. भीम- पराक्रमः अतिशय भयदायक पराक्रमसे युक्त ॥ ६१ ॥ ४९४. प्रणवः—ओंकारस्वरूप, ४९५. सत्पथा- चार:- सत्पुरुषोंके मार्गपर चलनेवाले, ४९६. महा- कोशः – अन्नमयादि पाँचों कोशोंको अपने भीतर धारण करनेके कारण महाकोशरूप, ४९७. महाधनः — अपरिमित ऐश्वर्यवाले अथवा कुबेरको भी धन देनेके कारण महाधनवान्, ४९८. जन्माधिपः – जन्म (उत्पादन)- रूपी कार्यके अध्यक्ष ब्रह्मा, ४९९. महादेवः – सर्वोत्कृष्ट देवता, ५००. सकलागमपारगः – समस्त शास्त्रोंके पारंगत विद्वान् ॥ ६२ ॥ ५०१ तत्त्वम् — यथार्थ तत्त्वरूप, ५०२. तत्त्व- वित्—यथार्थ तत्त्वको पूर्णतया जाननेवाले, ५०३. एकात्मा – अद्वितीय आत्मरूप ५०४. विभुः – सर्वत्र व्यापक, ५०५. विश्वभूषणः – सम्पूर्ण जगत्को उत्तम गुणोंसे विभूषित करनेवाले, ५०६. ऋषिः – मन्त्रद्रष्टा, ५०७. ब्राह्मणः–ब्रह्मवेत्ता, ५०८. ऐश्वर्यजन्ममृत्यु- जरातिगः – ऐश्वर्य, जन्म, मृत्यु और जरासे अतीत ॥ ६३ ॥ ५०९. पञ्चयज्ञसमुत्पत्तिः—पंच महायज्ञोंकी उत्पत्तिके हेतु, ५१०. विश्वेशः – विश्वनाथ, ५११. विमलोदयः – निर्मल अभ्युदयकी प्राप्ति करानेवाले धर्मरूप, ५१२. आत्मयोनिः – स्वयम्भू, ५१३. अनाद्यन्तः आदि-अन्तसे रहित, ५१४. वत्सलः – भक्तोंके प्रति वात्सल्य – स्नेहसे युक्त, ५१५. भक्तलोकधृक् — भक्तजनोंके आश्रय ॥ ६४ ॥ ५१६. गायत्रीवल्लभः – गायत्रीमन्त्रके प्रेमी, ५१७. प्रांशुः – ऊँचे शरीरवाले, ५१८. विश्वावासः – सम्पूर्ण जगत्के आवासस्थान, ५१९. प्रभाकरः – सूर्यरूप, ५२०. शिशुः – बालकरूप, ५२१. गिरिरतः — कैलासपर्वतपर रमण करनेवाले, ५२२. सम्राट् – देवेश्वरोंके भी ईश्वर, ५२३. सुषेणः सुरशत्रुहा – प्रमथगणोंकी सुन्दर सेनासे युक्त तथा देवशत्रुओंका संहार करनेवाले ॥ ६५ ॥ ५२४. अमोघोऽरिष्टनेमिः — अमोघ संकल्पवाले महर्षि कश्यपरूप, ५२५. कुमुदः – भूतलको आह्लाद प्रदान करनेवाले चन्द्रमारूप, ५२६. विगतज्वरः – चिन्तारहित, ५२७. स्वयंज्योतिस्तनुज्योतिः – अपने ही प्रकाशसे प्रकाशित होनेवाले सूक्ष्मज्योतिःस्वरूप, ५२८. आत्मज्योतिः – अपने स्वरूपभूत ज्ञानकी प्रभासे प्रकाशित, ५२९. अचञ्चलः – चंचलतासे रहित ॥ ६६ ॥ ५३०. पिङ्गलः – पिंगलवर्णवाले, ५३१. कपिलश्मश्रुः – कपिल वर्णकी दाढ़ी-मूंछ रखनेवाले दुर्वासा मुनिके रूपमें अवतीर्ण, ५३२. भालनेत्रः – ललाटमें तृतीय नेत्र धारण करनेवाले, ५३३. त्रयीतनुः – तीनों लोक या तीनों वेद जिनके स्वरूप हैं, ऐसे, ५३४. ज्ञानस्कन्दो महानीतिः — ज्ञानप्रद और श्रेष्ठ नीतिवाले, ५३५. विश्वोत्पत्तिः – जगत्के उत्पादक, ५३६. उपप्लवः—संहारकारी ॥ ६७ ॥ ५३७. भगो विवस्वानादित्यः – अदितिनन्दन भग एवं विवस्वान्, ५३८. योगपारः – योगविद्यामें पारंगत, ५३९. दिवस्पतिः – स्वर्गलोकके स्वामी, ५४०. कल्याणगुणनामा – कल्याणकारी गुण और नामवाले, ५४१. पापहा—पापनाशक, ५४२. पुण्यदर्शनः पुण्यजनक दर्शनवाले अथवा पुण्यसे ही जिनका दर्शन होता है, ऐसे ॥ ६८ ॥ ५४३. उदारकीर्तिः– उत्तम कीर्तिवाले, ५४४. उद्योगी – उद्योगशील, ५४५. सद्योगी – श्रेष्ठ योगी, ५४६. सदसन्मयः—सदसत्स्वरूप, ५४७. नक्षत्र – माली – नक्षत्रोंकी मालासे अलंकृत आकाशरूप, ५४८. नाकेशः – स्वर्गके स्वामी, ५४९. स्वाधिष्ठान- पदाश्रयः—स्वाधिष्ठान चक्रके आश्रय ॥ ६९ ॥ ५५०. पवित्रः पापहारी – नित्य शुद्ध एवं पाप- नाशक, ५५१. मणिपूरः – मणिपूर नामक चक्रस्वरूप, ५५२. नभोगतिः– आकाशचारी, ५५३. हृत्पुण्डरीक- मासीनः—हृदयकमलमें स्थित, ५५४. शक्रः – इन्द्ररूप, ५५५. शान्तः – शान्तस्वरूप, ५५६. वृषाकपिः हरिहर ॥ ७० ॥ ५५७. उष्णः—हालाहल विषकी गर्मी से उष्णतायुक्त, ५५८. गृहपतिः – समस्त ब्रह्माण्डरूपी गृहके स्वामी, ५५९. कृष्णः– सच्चिदानन्दस्वरूप, ५६०. समर्थः सामर्थ्यशाली, ५६१. अनर्थनाशनः – अनर्थका नाश करनेवाले, ५६२. अधर्मशत्रुः – अधर्मनाशक, ५६३. अज्ञेयः – बुद्धिकी पहुँचसे परे अथवा जाननेमें न आने- वाले,५६४. पुरुहूतः पुरुश्रुतः – बहुत-से नामोंद्वारा पुकारे और सुने जानेवाले ॥ ७१ ॥ ६५. ब्रह्मगर्भः — ब्रह्मा जिनके गर्भस्थ शिशुके समान हैं, ऐसे, ५६६. बृहद्गर्भः – विश्वब्रह्माण्ड प्रलय- कालमें जिनके गर्भमें रहता है, ऐसे, ५६७. धर्मधेनुः – धर्मरूपी वृषभको उत्पन्न करनेके लिये धेनुस्वरूप, ५६८. धनागमः धनकी प्राप्ति करानेवाले, ५६९. जगद्धितैषी – समस्त संसारका हित चाहनेवाले, ५७०. सुगतः उत्तम ज्ञानसे सम्पन्न अथवा बुद्धस्वरूप, ५७१. कुमारः कार्तिकेयरूप, ५७२. कुशलागमः – कल्याणदाता ॥ ७२ ॥ ५७३. हिरण्यवर्णो ज्योतिष्मान् – सुवर्णके समान गौरवर्णवाले तथा तेजस्वी, ५७४. नानाभूतरतः – नाना प्रकारके भूतोंके साथ क्रीडा करनेवाले, ५७५. ध्वनिः – नादस्वरूप, ५७६. अरागः – आसक्तिशून्य, ५७७. नयनाध्यक्षः — नेत्रोंमें द्रष्टारूपसे विद्यमान, ५७८. विश्वामित्रः – सम्पूर्ण जगत्के प्रति मैत्री – भावना रखनेवाले मुनिस्वरूप, ५७९. धनेश्वरः – धनके स्वामी कुबेर ॥ ७३ ॥ ५८०. ब्रह्मज्योतिः – ज्योतिःस्वरूप ब्रह्म, ५८१. वसुधामा – सुवर्ण और रत्नोंके तेजसे प्रकाशित अथवा वसुधास्वरूप, ५८२. महाज्योतिरनुत्तमः – सूर्य आदि ज्योतियोंके प्रकाशक सर्वोत्तम महाज्योतिःस्वरूप, ५८३. मातामहः—मातृकाओंके जन्मदाता होनेके कारण मातामह, ५८४. मातरिश्वा नभस्वान् – आकाशमें विचरनेवाले वायुदेव, ५८५. नागहारधृक् — सर्पमय हार धारण करनेवाले ॥ ७४ ॥ ५८६. पुलस्त्यः – पुलस्त्य नामक मुनि, ५८७. पुलहः – पुलह नामक ऋषि, ५८८. अगस्त्यः—कुम्भ- जन्मा अगस्त्य ऋषि, ५८९. जातूकर्ण्यः – इसी नामसे प्रसिद्ध मुनि, ५९०. पराशरः – शक्तिके पुत्र तथा व्यासजीके पिता मुनिवर पराशर, ५९१. निरावरण- निर्वारः – आवरणशून्य तथा अवरोधरहित, ५९२. वैरञ्चयः – ब्रह्माजीके पुत्र नीललोहित रुद्र, ५९३. विष्टर- श्रवाः – विस्तृत यशवाले विष्णुस्वरूप, ५९४. आत्मभूः–स्वयम्भू ब्रह्मा, ५९५. अनिरुद्धः – अकुण्ठित गतिवाले, ५९६. अत्रिः – अत्रि नामक ऋषि अथवा त्रिगुणातीत, ५९७. ज्ञानमूर्तिः– ज्ञानस्वरूप, ५९८. महायशाः – महायशस्वी, ५९९. लोकवीराग्रणीः- विश्वविख्यात वीरोंमें अग्रगण्य, ६००. वीरः – शूरवीर, ६०१. चण्डः – प्रलयके समय अत्यन्त क्रोध करनेवाले, ६०२. सत्यपराक्रमः – सच्चे पराक्रमी ॥ ७५-७६ ॥ ६०३. व्यालाकल्पः– सर्पोंके आभूषणसे शृङ्गार करनेवाले, ६०४. महाकल्पः – महाकल्पसंज्ञक काल- स्वरूपवाले, ६०५. कल्पवृक्षः – शरणागतोंकी इच्छा पूर्ण करनेके लिये कल्पवृक्षके समान उदार, ६०६. कलाधरः—चन्द्रकलाधारी, ६०७. अलंकरिष्णुः – अलंकार धारण करने या करानेवाले, ६०८. अचलः- विचलित न होनेवाले, ६०९. रोचिष्णुः – प्रकाशमान, ६१०. विक्रमोन्नतः —– पराक्रममें बढ़े – चढ़े ॥ ७७ ॥ ६११. आयुः शब्दपतिः – आयु तथा वाणीके स्वामी, ६१२. वेगी प्लवनः – वेगशाली तथा कूदने या तैरनेवाले, ६१३. शिखिसारथिः – अग्निरूप सहायकवाले, ६१४. असंसृष्टः– निर्लेप, ६१५. अतिथि: – प्रेमी भक्तोंके घरपर अतिथिकी भाँति उपस्थित हो उनका सत्कार ग्रहण करनेवाले, ६१६. शक्रप्रमाथी – इन्द्रका मान-मर्दन करनेवाले, ६१७. पादपासनः – वृक्षोंपर या वृक्षोंके नीचे आसन लगानेवाले ॥ ७८ ॥ ६१८. वसुश्रवाः– यशरूपी धनसे सम्पन्न, ६१९. हव्यवाहः—अग्निस्वरूप, ६२०. प्रतप्तः – सूर्यरूपसे प्रचण्ड ताप देनेवाले, ६२१. विश्वभोजन: – प्रलयकालमें विश्व-ब्रह्माण्डको अपना ग्रास बना लेनेवाले, ६२२. जप्यः—जपनेयोग्य नामवाले, ६२३. जरादिशमनः- बुढ़ापा आदि दोषोंका निवारण करनेवाले, ६२४. लोहितात्मा तनूनपात् — लोहितवर्णवाले अग्निरूप ॥ ७९ ॥ ६२५. बृहदश्वः–विशाल अश्ववाले, ६२६. नभो- योनिः — आकाशकी उत्पत्तिके स्थान, ६२७. सुप्रतीकः – सुन्दर शरीरवाले, ६२८. तमिस्रहा – अज्ञानान्धकारनाशक, ६२९. निदाघस्तपनः – तपनेवाले ग्रीष्मरूप, ६३०. मेघः—बादलोंसे उपलक्षित वर्षारूप, ६३१. स्वक्षः – सुन्दर नेत्रोंवाले, ६३२. परपुरञ्जयः – त्रिपुररूप शत्रुनगरीपर विजय पानेवाले ॥ ८० ॥ ६३३. सुखानिलः – सुखदायक वायुको प्रकट करनेवाले शरत्कालरूप, ६३४. सुनिष्पन्नः – जिसमें अन्नका सुन्दररूपसे परिपाक होता है, वह हेमन्तकालरूप, ६३५. सुरभिः शिशिरात्मकः – सुगन्धित मलयानिलसे युक्त शिशिर ऋतुरूप, ६३६. वसन्तो माधवः — चैत्र – वैशाख- इन दो मासोंसे युक्त वसन्तरूप, ६३७. ग्रीष्मः — ग्रीष्म- ऋतुरूप, ६३८. नभस्यः – भाद्रपदमासरूप, ६३९. बीज- वाहनः- धान आदिके बीजोंकी प्राप्ति करानेवाला शरत्काल ॥ ८१ ॥ ६४०. अङ्गिरा गुरु : – अंगिरा नामक ऋषि तथा उनके पुत्र देवगुरु बृहस्पति, ६४१. आत्रेयः – अत्रिकुमार दुर्वासा, ६४२. विमलः – निर्मल, ६४३. विश्ववाहनः- सम्पूर्ण जगत् का निर्वाह करानेवाले, ६४४. पावनः – पवित्र करनेवाले, ६४५. सुमतिर्विद्वान् — उत्तम बुद्धिवाले विद्वान्, ६४६. त्रैविद्यः – तीनों वेदोंके विद्वान् अथवा तीनों वेदोंके द्वारा प्रतिपादित, ६४७. वरवाहनः – वृषभरूप श्रेष्ठ वाहनवाले ॥ ८२ ॥ ६४८. मनोबुद्धिरहंकारः – मन, बुद्धि और अहंकारस्वरूप, ६४९. क्षेत्रज्ञः – आत्मा, ६५०. क्षेत्र- पालकः – शरीररूपी क्षेत्रका पालन करनेवाले परमात्मा, ६५१. जमदग्नि : – जमदग्नि नामक ऋषिरूप, ६५२. बलनिधिः – अनन्त बलके सागर, ६५३. विगाल: अपनी जटासे गंगाजीके जलको टपकानेवाले, ६५४. विश्वगालवः – विश्वविख्यात गालव मुनि अथवा प्रलय- कालमें कालाग्निस्वरूपसे जगत्को निगल जानेवाले ॥ ८३ ॥ ६५५. अघोरः – सौम्यरूपवाले, ६५६. अनुत्तरः- सर्वश्रेष्ठ, ६५७. यज्ञः श्रेष्ठः – श्रेष्ठ यज्ञरूप, ६५८. निःश्रेयसप्रदः – कल्याणदाता, ६५९. शैलः – शिलामय लिंगरूप, ६६०. गगनकुन्दाभः – आकाशकुन्द – चन्द्रमाके समान गौर कान्तिवाले, ६६१. दानवारि:- दानव- शत्रु, ६६२. अरिंदमः – शत्रुओंका दमन करनेवाले ॥ ८४ ॥ ६६३. रजनीजनकश्चारुः – सुन्दर निशाकर- रूप, ६६४. निःशल्यः – निष्कण्टक, ६६५. लोक-शल्यधृक् — शरणागतजनोंके शोक- शल्यको निकालकर स्वयं धारण करनेवाले, ६६६. चतुर्वेदः – चारों वेदोंके द्वारा जाननेयोग्य, ६६७. चतुर्भावः – चारों पुरुषार्थोंकी प्राप्ति करानेवाले, ६६८. चतुरश्चतुरप्रियः – चतुर एवं चतुर पुरुषोंके प्रिय ॥ ८५ ॥ ६६९.आम्नायः—वेदस्वरूप, ६७०. समाम्नायः- अक्षरसमाम्नाय – शिवसूत्ररूप, ६७१. तीर्थदेव-शिवालयः — तीर्थोंके देवता और शिवालयरूप, ६७२. बहुरूपः – अनेक रूपवाले, ६७३. महारूप: – विराट्- रूपधारी, ६७४. सर्वरूपश्चराचरः – चर और अचर सम्पूर्ण रूपवाले ॥ ८६ ॥ ६७५. न्यायनिर्मायको न्यायी – न्यायकर्ता तथा न्यायशील, ६७६. न्यायगम्यः – न्याययुक्त आचरणसे प्राप्त होनेयोग्य, ६७७. निरञ्जनः – निर्मल, ६७८. सहस्त्रमूर्द्धा – सहस्रों सिरवाले, ६७९. देवेन्द्रः- देवताओंके स्वामी, ६८०. सर्वशस्त्रप्रभञ्जनः – विपक्षी योद्धाओंके सम्पूर्ण शस्त्रोंको नष्ट कर देनेवाले ॥ ८७ ॥ ६८१. मुण्डः – मुँड़े हुए सिरवाले संन्यासी, ६८२. विरूपः—विविध रूपवाले, ६८३. विक्रान्तः —विक्रम- शील, ६८४. दण्डी – दण्डधारी, ६८५. दान्तः – मन और इन्द्रियोंका दमन करनेवाले, ६८६. गुणोत्तमः – गुणोंमें सबसे श्रेष्ठ, ६८७. पिङ्गलाक्षः – पिंगल नेत्र- वाले, ६८८. जनाध्यक्षः – जीवमात्रके साक्षी, ६८९. नीलग्रीवः – नीलकण्ठ, ६९०. निरामयः – नीरोग ॥ ८८ ॥ ६९१. सहस्रबाहुः– सहस्रों भुजाओंसे युक्त, ६९२. सर्वेश: – सबके स्वामी, ६९३. शरण्यः— शरणागत- हितैषी, ६९४. सर्वलोकधृक् — सम्पूर्ण लोकोंको धारण करनेवाले, ६९५. पद्मासनः – कमलके आसनपर विराजमान, ६९६ परं ज्योतिः – परम प्रकाशस्वरूप, ६९७. पारम्पर्यफलप्रदः – परम्परागत फलकी प्राप्ति करानेवाले ॥ ८९ ॥ ६९८. पद्मगर्भः — अपनी नाभिसे कमलको प्रकट करनेवाले विष्णुरूप, ६९९. महागर्भः – विराट् ब्रह्माण्डको गर्भमें धारण करनेके कारण महान् गर्भवाले, ७००. विश्वगर्भः – सम्पूर्ण जगत् को अपने उदरमें धारण करनेवाले, ७०१. विचक्षणः – चतुर, ७०२. परावरज्ञः- कारण और कार्यके ज्ञाता, ७०३. वरदः – अभीष्ट वर देनेवाले, ७०४. वरेण्यः – वरणीय अथवा श्रेष्ठ, ७०५. महास्वनः – डमरूका गम्भीर नाद करनेवाले ॥ ९० ॥ ७०६. देवासुरगुरुर्देवः – देवताओं तथा असुरोंके गुरुदेव एवं आराध्य, ७०७. देवासुरनमस्कृतः – देवताओं तथा असुरोंसे वन्दित, ७०८. देवासुरमहामित्रः – देवता तथा असुर दोनोंके बड़े मित्र, ७०९. देवासुर – महेश्वरः देवताओं और असुरोंके महान् ईश्वर ॥ ९१ ॥ ७१०. देवासुरेश्वरः —– देवताओं और असुरोंके शासक, ७११. दिव्यः – अलौकिक स्वरूपवाले, ७१२. देवासुरमहाश्रयः–देवताओं और असुरोंके महान् आश्रय, ७१३. देवदेवमयः – देवताओंके लिये भी देवतारूप, ७१४. अचिन्त्यः – चित्तकी सीमासे परे विद्यमान, ७१५. देवदेवात्मसम्भवः—देवाधिदेव ब्रह्माजीसे रुद्ररूपमें उत्पन्न ॥ ९२ ॥ ७१६. सद्योनिः — सत्पदार्थोंकी उत्पत्तिके हेतु, ७१७. असुरव्याघ्रः— असुरोंका विनाश करनेके लिये व्याघ्ररूप, ७१८. देवसिंहः – देवताओंमें श्रेष्ठ, ७१९. दिवाकरः – सूर्यरूप, ७२०. विबुधाग्रचर श्रेष्ठः- देवताओंके नायकोंमें सर्वश्रेष्ठ, ७२१. सर्वदेवोत्तमोत्तमः सम्पूर्ण श्रेष्ठ देवताओंके भी शिरोमणि ॥ ९३ ॥ ७२२. शिवज्ञानरतः – कल्याणमय शिवतत्त्वके विचारमें तत्पर, ७२३. श्रीमान् — अणिमा आदि विभूतियोंसे सम्पन्न, ७२४. शिखिश्रीपर्वतप्रियः – कुमार कार्तिकेयके निवासभूत श्रीशैल नामक पर्वतसे प्रेम करनेवाले, ७२५. वज्रहस्तः–वज्रधारी इन्द्ररूप, ७२६. सिद्धखड्गः शत्रुओंको मार गिरानेमें जिनकी तलवार कभी असफल नहीं होती, ऐसे, ७२७. नरसिंहनिपातनः – शरभरूपसे नृसिंहको धराशायी करनेवाले ॥ ९४ ॥ ७२८. ब्रह्मचारी — भगवती उमाके प्रेमकी परीक्षा लेनेके लिये ब्रह्मचारीरूपसे प्रकट, ७२९. लोकचारी- समस्त लोकोंमें विचरनेवाले, ७३०. धर्मचारी – धर्मका आचरण करनेवाले, ७३१. धनाधिपः – धनके अधिपति कुबेर, ७३२. नन्दी – नन्दी नामक गण, ७३३. नन्दीश्वरः – इसी नामसे प्रसिद्ध वृषभ, ७३४. अनन्तः – अन्तरहित, ७३५. नग्नव्रतधरः – दिगम्बर रहनेका व्रत धारण करनेवाले, ७३६. शुचिः – नित्यशुद्ध ॥ ९५॥ ७३७. लिङ्गाध्यक्षः – लिंगदेहके द्रष्टा, ७३८. सुराध्यक्षः – देवताओंके अधिपति, ७३९. योगाध्यक्षः – योगेश्वर, ७४०. युगावहः – युगके निर्वाहक, ७४१. स्वधर्मा— आत्मविचाररूप धर्ममें स्थित अथवा स्वधर्म- परायण, ७४२. स्वर्गतः – स्वर्गलोकमें स्थित, ७४३. स्वर्गस्वरः – स्वर्गलोकमें जिनके यशका गान किया जाता है, ऐसे, ७४४. स्वरमयस्वनः – सात प्रकारके स्वरोंसे युक्त ध्वनिवाले ॥ ९६ ॥ ७४५. बाणाध्यक्षः — बाणासुरके स्वामी अथवा बाणलिंग नर्मदेश्वर में अधिदेवतारूपसे स्थित, ७४६. बीजकर्ता – बीजके उत्पादक, ७४७. धर्मकृद्धर्म- सम्भवः — धर्मके पालक और उत्पादक, ७४८. दम्भ:- मायामयरूपधारी, ७४९. अलोभः – लोभरहित, ७५०. अर्थविच्छाभुः – सबके प्रयोजनको जाननेवाले कल्याण- निकेतन शिव, ७५१. सर्वभूतमहेश्वरः – सम्पूर्ण प्राणियोंके परमेश्वर ॥ ९७ ॥ ७५२. श्मशाननिलयः – श्मशानवासी, ७५३. त्र्यक्षः— त्रिनेत्रधारी, ७५४. सेतुः – धर्ममर्यादाके पालक, ७५५. अप्रतिमाकृतिः – अनुपम रूपवाले, ७५६. लोको- त्तरस्फुटालोकः–अलौकिक एवं सुस्पष्ट प्रकाशसे युक्त, ७५७. त्र्यम्बकः – त्रिनेत्रधारी अथवा त्र्यम्बक नामक ज्योतिर्लिंग, ७५८. नागभूषणः – नागहारसे विभूषित ॥ ९८ ॥ ७५९. अन्धकारिः—अन्धकासुरका वध करनेवाले, ७६०. मखद्वेषी – दक्षके यज्ञका विध्वंस करनेवाले, ७६१. विष्णुकन्धरपातनः – यज्ञमय विष्णुका गला काटनेवाले, ७६२. हीनदोषः – दोषरहित, ७६३. अक्षय- गुणः – अविनाशी गुणोंसे सम्पन्न, ७६४. दक्षारिः – दक्षद्रोही, ७६५. पूषदन्तभित्— पूषा देवताके दाँत तोड़ने- वाले ॥ ९९ ॥ ७६६. धूर्जटि : – जटाके भारसे विभूषित, ७६७. खण्डपरशुः – खण्डित परशुवाले, ७६८. सकलो निष्कल: – साकार एवं निराकार परमात्मा, ७६९. अनघः – पापके स्पर्शसे शून्य, ७७०. अकालः कालके प्रभावसे रहित, ७७१. सकलाधारः – सबके आधार, ७७२. पाण्डुराभः – श्वेत कान्तिवाले, ७७३. मृडो नटः– सुखदायक एवं ताण्डवनृत्यकारी ॥ १०० ॥ ७७४. पूर्णः – सर्वव्यापी परब्रह्म परमात्मा, ७७५. पूरयिता – भक्तोंकी अभिलाषा पूर्ण करनेवाले, ७७६. पुण्यः- — परम पवित्र, ७७७. सुकुमारः – सुन्दर कुमार हैं जिनके, ऐसे अथवा मृदुतासे युक्त, ७७८. सुलोचनः सुन्दर नेत्रवाले, ७७९. सामगेयप्रियः – सामगानके प्रेमी, ७८०.अक्रूरः— क्रूरतारहित, ७८१. पुण्यकीर्तिः– पवित्र कीर्तिवाले, ७८२. अनामयः – रोग-शोकसे रहित ॥ १०१ ॥ ७८३. मनोजवः – मनके समान वेगशाली, ७८४. तीर्थकरः – तीर्थोंके निर्माता, ७८५. जटिलः – जटाधारी, ७८६. जीवितेश्वरः – सबके प्राणेश्वर, ७८७. जीविता- न्तकरः – प्रलयकालमें सबके जीवनका अन्त करनेवाले, ७८८. नित्यः – सनातन, ७८९. वसुरेताः – सुवर्णमय वीर्यवाले, ७९०. वसुप्रदः – धनदाता ॥ १०२ ॥ ७९१. सद्गतिः – सत्पुरुषोंके आश्रय, ७९२. सत्कृतिः – शुभ कर्म करनेवाले, ७९३. सिद्धिः सिद्धिस्वरूप, ७९४. सज्जातिः – सत्पुरुषोंके जन्मदाता, ७९५. खलकण्टकः– दुष्टोंके लिये कण्टकरूप, ७९६. कलाधरः—कलाधारी, ७९७. महाकालभूतः – महाकाल नामक ज्योतिर्लिंगस्वरूप अथवा कालके भी काल होनेसे महाकाल, ७९८. सत्यपरायणः – सत्यनिष्ठ ॥ १०३ ॥ ७९९. लोकलावण्यकर्ता — सब लोगोंको सौन्दर्य प्रदान करनेवाले, ८००. लोकोत्तरसुखालयः – लोकोत्तर सुखके आश्रय, ८०१ चन्द्रसंजीवनः शास्ता – सोम- नाथरूपसे चन्द्रमाको जीवन प्रदान करनेवाले सर्वशासक शिव, ८०२. लोकगूढः – समस्त संसारमें अव्यक्तरूपसे व्यापक, ८०३. महाधिपः – महेश्वर ॥ १०४ ॥ ८०४. लोकबन्धुर्लोकनाथः – सम्पूर्ण लोकोंके बन्धु एवं रक्षक, ८०५. कृतज्ञः – उपकारको माननेवाले, ८०६. कीर्तिभूषणः – उत्तम यशसे विभूषित, ८०७. अन- पायोऽक्षरः – विनाशरहित – अविनाशी, ८०८. कान्तः – प्रजापति दक्षका अन्त करनेवाले अथवा कान्तिमय, ८०९. सर्वशस्त्रभृतां वरः – सम्पूर्ण शस्त्रधारियोंमें श्रेष्ठ ॥ १०५ ॥ ८१०. तेजोमयो द्युतिधरः – तेजस्वी और कान्ति- मान्, ८११. लोकानामग्रणीः- सम्पूर्ण जगत् के लिये अग्रगण्य देवता अथवा जगत् को आगे बढ़ानेवाले, ८१२. अणुः — अत्यन्त सूक्ष्म, ८१३. शुचिस्मितः — पवित्र मुसकानवाले, ८१४. प्रसन्नात्मा – हर्षभरे हृदयवाले, ८१५. दुर्जेय : – जिनपर विजय पाना अत्यन्त कठिन है, ऐसे, ८१६. दुरतिक्रमः – दुर्लंघ्य ॥ १०६ ॥ ८१७. ज्योतिर्मयः – तेजोमय, ८१८. जगन्नाथः- विश्वनाथ, ८९९. निराकारः – आकाररहित परमात्मा, ८२०. जलेश्वरः – जलके स्वामी, ८२१. तुम्बवीणः तँबीकी वीणा बजानेवाले, ८२२. महाकोपः – संहारके समय महान् क्रोध करनेवाले, ८२३. विशोक:- शोकरहित, ८२४. शोकनाशनः– शोकका नाश करने- वाले ॥ १०७ ॥ ८२५. त्रिलोकपः – तीनों लोकोंका पालन करनेवाले, ८२६. त्रिलोकेशः — त्रिभुवनके स्वामी, ८२७. सर्व- शुद्धिः – सबकी शुद्धि करनेवाले, ८२८. अधोक्षजः – इन्द्रियों और उनके विषयोंसे अतीत, ८२९. अव्यक्तलक्षणो देवः—अव्यक्त लक्षणवाले देवता, ८३०. व्यक्ता- व्यक्तः— -स्थूलसूक्ष्मरूप, ८३१ विशाम्पतिः – प्रजाओंके पालक ॥ १०८ ॥ ८३२. वरशीलः — श्रेष्ठ स्वभाववाले, ८३३. वरगुणः – उत्तम गुणोंवाले, ८३४. सारः – सारतत्त्व, ८३५. मानधनः—स्वाभिमानके धनी, ८३६. मयः – सुखस्वरूप, ८३७. ब्रह्मा – सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, ८३८. विष्णुः प्रजापालः- प्रजापालक विष्णु, ८३९. हंसः – सूर्यस्वरूप, ८४०. हंसगतिः – हंसके समान चालवाले, ८४१. वयः– गरुड़ पक्षी ॥ १०९ ॥ ८४२. वेधा विधाता धाता – ब्रह्मा, धाता और विधाता नामक देवतास्वरूप, ८४३. स्रष्टा – सृष्टिकर्ता, ८४४. हर्ता—संहारकारी, ८४५. चतुर्मुखः – चार मुखवाले ब्रह्मा, ८४६. कैलासशिखरावासी – कैलासके शिखरपर निवास करनेवाले, ८४७. सर्वावासी – सर्वव्यापी, ८४८. सदागतिः – निरन्तर गतिशील वायुदेवता ॥ ११० ॥ ८४९. हिरण्यगर्भः — ब्रह्मा, ८५०. द्रुहिणः ब्रह्मा, ८५१. भूतपालः – प्राणियोंका पालन करनेवाले, ८५२. भूपतिः – पृथ्वीके स्वामी, ८५३. सद्योगी- श्रेष्ठ योगी, ८५४. योगविद्योगी – योगविद्याके ज्ञाता योगी, ८५५. वरदः – वर देनेवाले, ८५६. ब्राह्मण-प्रियः — ब्राह्मणोंके प्रेमी ॥ १११ ॥ ८५७. देवप्रियो देवनाथः – देवताओंके प्रिय तथा रक्षक, ८५८. देवज्ञः – देवतत्त्वके ज्ञाता, ८५९. देव- चिन्तकः – देवताओंका विचार करनेवाले, ८६०. विष- माक्षः – विषम नेत्रवाले, ८६१. विशालाक्षः – बड़े- बड़े नेत्रवाले, ८६२. वृषदो वृषवर्धनः – धर्मका दान और वृद्धि करनेवाले ॥ ११२ ॥ ८६३. निर्मम: – ममतारहित, ८६४. निरहङ्कारः- अहंकारशून्य, ८६५. निर्मोहः – मोहशून्य, ८६६. निरुप- द्रवः—उपद्रव या उत्पातसे दूर, ८६७. दर्पहा दर्पदः- दर्पका हनन और खण्डन करनेवाले, ८६८. दृप्तः- स्वाभिमानी, ८६९. सर्वर्तुपरिवर्तकः – समस्त ऋतुओंको बदलते रहनेवाले ॥ ११३ ॥ ८७०. सहस्रजित् — सहस्रोंपर विजय पानेवाले, ८७१. सहस्त्रार्चिः – सहस्त्रों किरणोंसे प्रकाशमान सूर्यरूप, ८७२. स्निग्धप्रकृतिदक्षिणः – स्नेहयुक्त स्वभाववाले तथा उदार, ८७३. भूतभव्यभवन्नाथः – भूत, भविष्य और वर्तमानके स्वामी, ८७४. प्रभवः – सबकी उत्पत्तिके कारण, ८७५. भूतिनाशनः – दुष्टोंके ऐश्वर्यका नाश करनेवाले ॥ ११४ ॥ ८७६. अर्थः — परमपुरुषार्थरूप, ८७७. अनर्थ:- प्रयोजनरहित, ८७८. महाकोशः – अनन्त धनराशिके स्वामी, ८७९. परकार्यैकपण्डितः – पराये कार्यको सिद्ध करनेकी कलाके एकमात्र विद्वान्, ८८०. निष्कण्टकः कण्टकरहित, ८८१. कृतानन्दः – नित्यसिद्ध आनन्दस्वरूप, ८८२. निर्व्याजो व्याजमर्दनः – स्वयं कपटरहित होकर दूसरेके कपटको नष्ट करनेवाले ॥ ११५ ॥ ८८३. सत्त्ववान् — सत्त्वगुणसे युक्त, ८८४. सात्त्विकः — सत्त्वनिष्ठ, ८८५. सत्यकीर्तिः–सत्य- कीर्तिवाले, ८८६. स्नेहकृतागमः – जीवोंके प्रति स्नेहके कारण विभिन्न आगमोंको प्रकाशमें लानेवाले, ८८७. अकम्पितः – सुस्थिर, ८८८. गुणग्राही – गुणोंका आदर करनेवाले, ८८९. नैकात्मा नैककर्मकृत् — अनेकरूप होकर अनेक प्रकारके कर्म करनेवाले ॥ ११६ ॥ ८९०. सुप्रीतः – अत्यन्त प्रसन्न, ८९१. सुमुखः – सुन्दर मुखवाले, ८९२. सूक्ष्मः-स्थूलभावसे रहित, ८९३. सुकरः – सुन्दर हाथवाले, ८९४. दक्षिणानिलः – मलयानिलके समान सुखद, ८९५. नन्दिस्कन्धधरः- नन्दीकी पीठपर सवार होनेवाले, ८९६. धुर्य:- उत्तरदायित्वका भार वहन करनेमें समर्थ, ८९७. प्रकट:- भक्तोंके सामने प्रकट होनेवाले अथवा ज्ञानियोंके सामने नित्य प्रकट, ८९८. प्रीतिवर्धनः – प्रेम बढ़ानेवाले ॥ ११७ ॥ ८९९. अपराजितः — किसीसे परास्त न होनेवाले, ९००. सर्वसत्त्वः – सम्पूर्ण सत्त्वगुणके आश्रय अथवा समस्त प्राणियोंकी उत्पत्तिके हेतु, ९०१. गोविन्दः- गोलोककी प्राप्ति करानेवाले, ९०२. सत्त्ववाहनः सत्त्वस्वरूप धर्ममय वृषभसे वाहनका काम लेनेवाले, ९०३. अधृतः — आधाररहित, ९०४. स्वधृतः – अपने- आपमें ही स्थित, ९०५. सिद्धः – नित्यसिद्ध, ९०६. पूतमूर्तिः – पवित्र शरीरवाले, ९०७. यशोधनः – सुयशके धनी ॥ ११८ ॥ ९०८. वाराहशृङ्गधृक्छृङ्गी – वाराहको मारकर उसके दाढ़रूपी श्रृंगोंको धारण करनेके कारण श्रृंगी नामसे प्रसिद्ध, ९०९. बलवान्–शक्तिशाली, ९१०. एकनायकः- अद्वितीय नेता, ९११ श्रुतिप्रकाशः – वेदोंको प्रकाशित करनेवाले, ९१२. श्रुतिमान् – वेदज्ञानसे सम्पन्न, ९१३. एकबन्धुः – सबके एकमात्र सहायक, ९१४. अनेक- कृत्— अनेक प्रकारके पदार्थोंकी सृष्टि करनेवाले ॥ ११९ ॥ ९१५. श्रीवत्सलशिवारम्भः — श्रीवत्सधारी विष्णुके लिये मंगलकारी, ९१६. शान्तभद्रः – शान्त एवं मंगलरूप, ९१७. समः– सर्वत्र समभाव रखनेवाले, ९१८. यशः- यशस्वरूप, ९१९. भूशयः – पृथ्वीपर शयन करने- वाले, ९२०. भूषणः – सबको विभूषित करनेवाले, ९२१. भूतिः – कल्याणस्वरूप, ९२२. भृतकृत्— प्राणियोंकी सृष्टि करनेवाले, ९२३. भूतभावनः – भूतोंके उत्पादक ॥ १२० ॥ ९२४. अकम्पः—कम्पित न होनेवाले, ९२५. भक्तिकायः – भक्तिस्वरूप, ९२६. कालहा – काल- नाशक, ९२७. नीललोहितः – नील और लोहितवर्णवाले, ९२८.सत्यव्रतमहात्यागी — सत्यव्रतधारी एवं महान् त्यागी, ९२९. नित्यशान्तिपरायणः – निरन्तर शान्त ॥ १२१ ॥ ९३०. परार्थवृत्तिर्वरदः – परोपकारव्रती एवं अभीष्ट वरदाता, ९३१. विरक्तः – वैराग्यवान्, ९३२. विशारदः- विज्ञानवान्, ९३३. शुभदः शुभकर्ता — शुभ देने और करनेवाले, ९३४. शुभनामा शुभः स्वयम् — स्वयं शुभस्वरूप होनेके कारण शुभ नामधारी ॥ १२२ ॥ ९३५. अनर्थितः—याचनारहित, ९३६. अगुणः निर्गुण, ९३७. साक्षी अकर्ता – द्रष्टा एवं कर्तृत्व- रहित, ९३८. कनकप्रभः – सुवर्णके समान कान्ति- मान्, ९३९. स्वभावभद्रः – स्वभावतः कल्याणकारी, ९४०. मध्य-स्थः— उदासीन, ९४१. शत्रुघ्नः – शत्रुनाशक, ९४२. विघ्ननाशनः– विघ्नोंका निवारण करनेवाले ॥ १२३ ॥ ९४३. शिखण्डी कवची शूली— मोरपंख, कवच और त्रिशूल धारण करनेवाले, ९४४. जटी मुण्डी च कुण्डली – जटा, मुण्डमाला और कवच धारण करनेवाले, ९४५. अमृत्युः – मृत्युरहित, ९४६. सर्वदृक्सिंहः सर्वज्ञोंमें श्रेष्ठ, ९४७. तेजोराशिर्महामणिः – तेज:पुंज महामणि कौस्तुभादिरूप ॥ १२४ ॥ ९४८. असंख्येयोऽप्रमेयात्मा – असंख्य नाम, रूप और गुणोंसे युक्त होनेके कारण किसीके द्वारा मापे न जा सकनेवाले, ९४९. वीर्यवान् वीर्यकोविदः – पराक्रमी एवं पराक्रमके ज्ञाता, ९५०. वेद्यः – जाननेयोग्य, ९५१. वियोगात्मा — दीर्घकालतक सतीके वियोगमें अथवा विशिष्ट योगकी साधनामें संलग्न हुए मनवाले, ९५२. परावरमुनीश्वरः – भूत और भविष्यके ज्ञाता मुनीश्वर-रूप ॥ १२५ ॥ ९५३. अनुत्तमो दुराधर्षः – सर्वोत्तम एवं दुर्जय, ९५४. मधुरप्रियदर्शनः – जिनका दर्शन मनोहर एवं प्रिय लगता है, ऐसे, ९५५. सुरेशः – देवताओंके ईश्वर, ९५६. शरणम् — आश्रयदाता, ९५७. सर्वः – सर्वस्वरूप, ९५८. शब्दब्रह्म सतां गतिः – प्रणवरूप तथा सत्पुरुषोंके आश्रय ॥ १२६ ॥ ९५९. कालपक्षः- काल जिनका सहायक है, ऐसे, ९६०. कालकालः – कालके भी काल, ९६१. कङ्कणीकृतवासुकिः – वासुकि नागको अपने हाथमें कंगनके समान धारण करनेवाले, ९६२. महेष्वासः – महाधनुर्धर, ९६३. महीभर्ता – पृथ्वीपालक, ९६४. निष्कलङ्कः–कलंकशून्य, ९६५. विशृङ्खलः – बन्धन- रहित ॥ १२७ ॥ ९६६. द्युमणिस्तरणिः – आकाशमें मणिके समान प्रकाशमान तथा भक्तोंको भवसागरसे तारनेके लिये नौकारूप सूर्य, ९६७. धन्यः – कृतकृत्य, ९६८. सिद्धिदः सिद्धिसाधनः – सिद्धिदाता और सिद्धिके साधक, ९६९. विश्वतः संवृतः – सब ओरसे मायाद्वारा आवृत, ९७०. स्तुत्यः – स्तुतिके योग्य, ९७१. व्यूढोरस्कः – चौड़ी छातीवाले, ९७२. महाभुजः – बड़ी बाँहवाले ॥ १२८ ॥ ९७३. सर्वयोनिः – सबकी उत्पत्तिके स्थान, ९७४. निरातङ्कः – निर्भय, ९७५. नरनारायणप्रियः—नर- नारायणके प्रेमी अथवा प्रियतम, ९७६. निर्लेपो निष्प्रपञ्चात्मा— दोषसम्पर्कसे रहित तथा जगत्प्रपंचसे अतीत स्वरूपवाले, ९७७. निर्व्यङ्गः – विशिष्ट अंगवाले प्राणियोंके प्राकट्यमें हेतु, ९७८. व्यङ्गनाशनः – यज्ञादि कर्मोंमें होनेवाले अंग – वैगुण्यका नाश करनेवाले ॥ १२९ ॥ ९७९. स्तव्यः – स्तुतिके योग्य, ९८०. स्तव- प्रियः – स्तुतिके प्रेमी, ९८१. स्तोता – स्तुति करनेवाले, ९८२. व्यासमूर्तिः– व्यासस्वरूप, ९८३. निरङ्कुशः- अंकुशरहित स्वतन्त्र, ९८४. निरवद्यमयोपायः —मोक्ष- प्राप्तिके निर्दोष उपायरूप, ९८५. विद्याराशिः – विद्याओंके सागर, ९८६. रसप्रियः – ब्रह्मानन्दरसके प्रेमी ॥ १३० ॥ ९८७. प्रशान्तबुद्धिः – शान्त बुद्धिवाले, ९८८. अक्षुण्णः – क्षोभ या नाशसे रहित, ९८९. संग्रही – भक्तोंका संग्रह करनेवाले, ९९०. नित्यसुन्दरः -सतत मनोहर, ९९९. वैयाघ्रधुर्यः – व्याघ्रचर्मधारी, ९९२. धात्रीशः — ब्रह्माजीके स्वामी, ९९३. शाकल्यः- शाकल्य ऋषिरूप, ९९४. शर्वरीपतिः – रात्रिके स्वामी चन्द्रमारूप ॥ १३१ ॥ ९५५. परमार्थगुरुर्दत्तः सूरिः – परमार्थ – तत्त्वका उपदेश देनेवाले ज्ञानी गुरु दत्तात्रेयरूप, ९९६. आश्रित- वत्सलः– शरणागतोंपर दया करनेवाले, ९९७. सोमः – उमासहित, ९९८. रसज्ञः – भक्तिरसके ज्ञाता, ९९९. रसदः—प्रेमरस प्रदान करनेवाले, १०००. सर्वसत्त्वाव- लम्बनः—समस्त प्राणियोंको सहारा देनेवाले ॥ १३२ ॥ इस प्रकार विष्णुजीने सहस्र नामोंसे शिवजीकी स्तुति और प्रार्थना की तथा हजार कमलोंसे उनकी पूजा की ॥ १३३ ॥ हे द्विजो ! उसके बाद लीला करनेवाले उन शिवजीने जो अत्यन्त अद्भुत तथा सुखदायक चरित्र किया, उसे आदरसे सुनिये ॥ १३४ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत चतुर्थ कोटिरुद्रसंहितामें शिवसहस्रनामवर्णन नामक पैंतीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ३५ ॥ Content is available only for registered users. 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