श्रीगणेशोपासनाः-पुत्र-प्राप्ति हेतु
(१) श्रीसुधा-गणेश-साधनाः-

यह एक निश्चित फल-प्रद साधना है। इसके लिए पहले दूर्वा (दूब) ले आए। दूर्वा तोड़ते समय निम्न मन्त्र पढ़ें-
“दूर्वे अमृत-सम्पन्ने, शत-मूले शतांकुरे ! क्षमस्वोत्पाटनं देवि ! महद्दोषोऽत्र विद्यते।।”
पूजन-सामग्री एकत्र करने के बाद स्वच्छ होकर भगवान् श्रीगणेश का यथा-शक्ति पूजन करे। पूजन के बाद निम्न-लिखित मन्त्र का जप करे। यथा- “नमोऽस्तु वरदाय सुधा-गणेशाय नमः।”
जप के बाद ‘दूर्वा’ अर्पित करे। दूर्वा अर्पित करने के बाद भगवान श्रीगणेश को प्रणाम कर आसन से उठ जाए।
“नमोऽस्तु वरदाय सुधा-गणेशाय नमः’– मन्त्र का कुल एक लाख जप करना है। एक लाख दूर्वा भी अर्पित करे। यदि अधिक ‘दूर्वा’ की प्राप्ति सम्भव न हो, तो उसके स्थान पर रक्त-अक्षत या मोदक का भी प्रयोग किया जा सकता है।
सम्पूर्ण साधना –
क॰ किसी भी ‘विनायकी-चतुर्थी’ को प्रारम्भ कर अगली ‘विनायकी-चतुर्थी’ तक एक मास में पूर्ण करे। यह ध्यान रखे कि इस बीच गुरु-शुक्रादि अस्त न हो। या,
ख॰ किसी भी मास की ‘शुक्ल प्रतिपदा’ से ‘पूर्णिमा’ तक-१५ दिनों तक करे। अथवा,
ग॰ ‘शुक्ल प्रतिपदा’ से ‘शुक्ल दशमी’ तक- १० दिन करे। अथवा,
घ॰ ‘शुक्ल प्रतिपदा’ से ‘शुक्ल चतुर्थी’ तक- ४ दिन करे। इन चारों में से किसी एक प्रकार से ‘अनुष्ठान’ पूर्ण करे।

(२) श्रीस्कन्द-पुराणोक्त साधना-
जिनकी जन्म-पत्रिका (कुण्डली) में मंगल का प्रभाव अधिक होता है, उनके लिए यह साधना कल्प-वृक्ष के समान है। इसके अनुसार कुल लगातार ४२ मंगलवार साधना करनी होती है। विधान इस प्रकार है-
पहले भगवान् गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने ‘संकल्प’ पढकर जल छोडे। संकल्प करते समय यह भावना करे कि “हे भगवन् ! आपकी प्रेरणा से मैं ४२ मंगलवारों की उपासना करने जा रहा हूँ। आपकी कृपा से मेरी उपासना निर्विघ्नता से पूर्ण हो।”
‘संकल्प’ के बाद भगवान् गणेश का पूजन करे। दिन भर उपवास रखे और सूर्यास्त से १ घण्टा पहले उपवास छोड़े।
पहले व अन्तिम मंगलवार को पूजा में लाल-पुष्प, लाल-फल, गुड़, ताम्बे का सिक्का, मसूर-दाल, नारियल, सुपारी, ताम्बूल आदि चढ़ाए। ४२ मंगलवार पूर्ण होने के बाद ‘श्रीसत्य-विनायक’ की पूजा करे। यथा- किसी भी चतुर्थी (संकष्टी या विनायकी) को पूर्णिमा, मंगलवार या किसी भी शुभ दिन पर तिल, आँवले का चूर्ण लगाकर स्नान करें। फिर ‘श्रीसत्य-विनायक’ की पूजा करे। पूजा में खोया, शक्कर, रवा, पञ्च-खाद्य, दूध आदि के द्वारा निर्मित २१ मोदक अर्पित करे। बाद में ‘श्रीसत्य-विनायक-कथा’ पढ़े या श्रवण करे।

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