July 21, 2015 | Leave a comment श्रीचण्डी-ध्वज स्तोत्रम् विनियोगः- अस्य श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्र मन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रां बीजं, श्रीं शक्तिः, श्रूं कीलकं मम वाञ्छितार्थ फल सिद्धयर्थे विनियोगः । अंगन्यासः- श्रां, श्रीं, श्रूं, श्रैं, श्रौं, श्रः से हृदयादिन्यास व करन्यास करें । ।। मूल-पाठ ।। ॐ श्रीं नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै भूत्त्यै नमो नमः । परमानन्दरुपिण्यै नित्यायै सततं नमः ।। १ ।। नमस्तेऽस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २ ।। रक्ष मां शरण्ये देवि धन-धान्य-प्रदायिनि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ३ ।। नमस्तेऽस्तु महाकाली पर-ब्रह्म-स्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ४ ।। नमस्तेऽस्तु महालक्ष्मी परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ५ ।। नमस्तेऽस्तु महासरस्वती परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ६ ।। नमस्तेऽस्तु ब्राह्मी परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ७ ।। नमस्तेऽस्तु माहेश्वरी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ८ ।। नमस्तेऽस्तु च कौमारी परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ९ ।। नमस्ते वैष्णवी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १० ।। नमस्तेऽस्तु च वाराही परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ११ ।। नारसिंही नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १२ ।। नमो नमस्ते इन्द्राणी परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १३ ।। नमो नमस्ते चामुण्डे परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १४ ।। नमो नमस्ते नन्दायै परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १५ ।। रक्तदन्ते नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १६ ।। नमस्तेऽस्तु महादुर्गे परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १७ ।। शाकम्भरी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १८ ।। शिवदूति नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १९ ।। नमस्ते भ्रामरी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २० ।। नमो नवग्रहरुपे परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २१ ।। नवकूट महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २२ ।। स्वर्णपूर्णे नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २३ ।। श्रीसुन्दरी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २४ ।। नमो भगवती देवि परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २५ ।। दिव्ययोगिनी नमस्ते परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २६ ।। नमस्तेऽस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २७ ।। नमो नमस्ते सावित्री परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २८ ।। जयलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २९ ।। मोक्षलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि । राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ३० ।। चण्डीध्वजमिदं स्तोत्रं सर्वकामफलप्रदम् । राजते सर्वजन्तूनां वशीकरण साधनम् ।। ३२ ।। ।। श्रीचण्डीध्वज स्तोत्रम् ।। Related