श्रीमद्देवीभागवत की पाठविधि

देवीभागवतं नाम पुराणं परमोत्तमम् ।
त्रैलोक्यजननी साक्षाद् गीयते यत्र शाश्वती ॥
श्रीमद्भागवतं यस्तु पठेद्वा शृणुयादपि ।
श्लोकार्थं श्लोकपादं वा स याति परमां गतिम् ॥

श्रीमद्देवीभागवत नामक पुराण सभी पुराणों में अतिश्रेष्ठ है, जिसमें तीनों लोकों की जननी साक्षात् सनातनी भगवती की महिमा गायी गयी है। जो श्रीमद्देवीभागवत के आधे श्लोक या चौथाई श्लोक को भी प्रतिदिन सुनता या पढ़ता है, वह परमगति को प्राप्त होता है।

श्रीमद्देवीभागवत के नवाह्न की विधि है। दोनों नवरात्रों में तथा आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, कार्तिक, मार्गशीर्ष, माघ एवं फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक इसके अनुष्ठान का विधान है। इसे ‘नवाहयज्ञ’ कहा जाता है । एतदर्थ कथा-स्थान की भूमि का संशोधन, मार्जन-लेपनादिकर कदली-स्तम्भादि से मण्डित मण्डप बनाना चाहिये। मण्डप का स्थान शुभ तथा बराबर होना चाहिये । उसका मान १६ हाथ लम्बा-चौड़ा हो तथा उसे तोरण, विमान एवं ध्वजा-पताका से मण्डित किया जाय। मण्डप के बीच में चार हाथ लम्बी-चौड़ी तथा एक हाथ ऊँची वेदी होनी चाहिये। फिर प्रतिपद् को प्रातः उठकर हृदय या शिरोदेश में उज्ज्वल-पद्म के अन्तर्गत गुरु का ध्यान करना चाहिये। फिर शिखा के बीच इस रूप में देवी का ध्यान करना चाहिये —

प्रकाशमानां प्रथमे प्रयाणे प्रतिप्रयाणेऽप्यमृतायमानाम्
अन्तः पदव्यामनुसंचरन्ती-मानन्दरूपामबलां प्रपद्ये ॥

(श्रीमद्देवीभा० ७ । ४० । ३)

‘प्रथम प्रयाण में अर्थात् ब्रह्मरन्ध्र में संचरण करने पर प्रकाश-पुंजरूपवाली, प्रतिप्रयाण में अर्थात् मूलाधार में संचरण करने पर अमृतमयस्वरूपवाली तथा अन्तः पद में अर्थात् सुषुम्णा नाड़ी में विराजने पर आनन्दमयी स्त्रीरूपिणी देवी कुण्डलिनी की मैं शरण ग्रहण करता हूँ ।’

तत्पश्चात् किसी नदी, तड़ाग, सरोवर या पहाड़ी झील, झरने आदि में स्नान कर नित्य-कृत्य करना चाहिये । फिर भूतशुद्धि, मातृकान्यास एवं हृल्लेखा-मातृकान्यास करना चाहिये। इसकी विधि यह है कि मूलाधार में ‘ह’ कार, हृदय में ‘र’कार, भ्रूमध्य में ‘ई’कार और मस्तक में ‘ह्रीं ‘ कार का न्यास करे । फिर उपयुक्त ब्राह्मणों का वरणकर वेदी पर सिंहासन रखकर उस पर क्षौम (रेशमी ) वस्त्र-युक्त चार हाथों वाली जगदम्बिका की प्रतिमा स्थापित करे। उन्हें रत्नाभूषण तथा मुक्ताहारादि से विभूषित करे । चार हाथों में शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण कराये या अठारह भुजावाली प्रतिमा स्थापित करे । प्रतिमा के अभाव में ‘नवार्ण मन्त्र’ का यन्त्र ही रख दे। फिर पंचपल्लवादिसंयुक्त एक कलश वेद-मन्त्रों से संस्कृत कर श्रेष्ठ तीर्थ के जल से भरकर पास ही स्थापित करे । तत्पश्चात् गणपति पूजन, बटुक, क्षेत्रपाल, योगिनी, मातृका, नवग्रह, तुलसी, ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, लोकपाल, दिक्पाल आदि की पूजाकर षोडशोपचार तथा श्रीसूक्त या नवार्णमन्त्र से भगवती महाशक्ति की पूजा करे । देवी-पूजन में चन्दन, अगर या अष्टगन्ध 1  तथा अशोक, चम्पा, करवीर, मालती, मन्दार आदि के पुष्पों, बिल्व तथा तुलसी आदि का प्रयोग श्रेष्ठ है। फलों में नारियल, नारंगी, अनार, केला, आम शुभ हैं । तत्पश्चात् १६ उपचारों से देवीभागवत-ग्रन्थ की भी पूजा करे । अन्त में फिर इस प्रकार स्तुति करनी चाहिये –

कात्यायनि महामाये भवानि भुवनेश्वरि ॥
संसारसागरे मग्नं मामुद्धर कृपामये ।
ब्रह्मविष्णुशिवाराध्ये प्रसीद जगदम्बिके ॥
मनोऽभिलषितं देवि वरं देहि नमोऽस्तु ते ।

( श्रीमद्देवीभा० माहात्म्य ५ । ३१-३३)

हे कात्यायनि ! हे महामाये ! हे भुवनेश्वरि ! हे कृपामये ! हे भवानि ! मैं संसार-सागर में डूब रहा हूँ; मेरा उद्धार कीजिये तथा हे ब्रह्मा, विष्णु, महेश से पूजनीया माता जगदम्बिके! मेरे ऊपर प्रसन्न होइये । हे देवि ! आप मुझे मनोवांछित वर प्रदान कीजिये; आपको बार-बार प्रणाम है।

तत्पश्चात् ऋष्यादिका न्यासकर पाठ आरम्भ करे ।

पाठ आरम्भ करने के बाद फिर अध्याय के बीच में नहीं रुकना चाहिये । रुक जाने पर पुनः उसी अध्याय को आरम्भ से पढ़ना चाहिये । मध्यम स्वर से श्रद्धापूर्वक धीरे-धीरे स्पष्ट पाठ करना चाहिये । गीत गाना, जल्दी करना, सिर कँपाना, अशुद्ध या अस्पष्ट उच्चारण करना, बिना अर्थ समझे ही पाठ करना – ये पाठ के दोष हैं यथासाध्य इन दोषों से बचे रहना चाहिये । क्रोध, मद, त्वरा बाधक हैं । मन की पवित्रता, शरीर की पवित्रता अधिक सहायक है। दोपहर के बाद एक घड़ी विश्रामकर तथा लघुशंका आदि से निवृत्त होकर पुनः पाठ करना चाहिये ।

कथारम्भ में सोम, बुध, गुरु, शुक्रवार, अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, अनुराधा, मूल तथा श्रवण नक्षत्र शुभ हैं । बृहस्पति जिस नक्षत्र में हों, वहाँ से चौथे नक्षत्र तक कथा आरम्भ करने से धर्मप्राप्ति, ५ से ८वें तक लक्ष्मीप्राप्ति, पुनः ९ में सिद्धि, १० से १४ तक सुख प्राप्त होता है। गुर्वधिष्ठित नक्षत्र से २० नक्षत्रों तक में कथारम्भ करने से पीड़ा, २४ वें तक राजभय तथा २७ वेंतक ज्ञान की प्राप्ति होती है । इस चक्र का ध्यान रखना आवश्यक है। (किंतु नवरात्रों में देवीभागवत कथा में चक्र-विचार अपेक्षित नहीं है ।)

अनुष्ठान के समय ब्रह्मचर्य, भूमिशयन, सत्यवचन तथा इन्द्रियसंयम अत्यन्त आवश्यक है । पत्तल में भोजन करना चाहिये। बैगन, दाल, बहेड़ा, मधु, तैल, बासी तथा दूषित अन्न नहीं खाना चाहिये । रजस्वला आदि से स्पृष्ट तथा मसूर, मूली, हींग, प्याज, गाजर, कुम्हड़ा तथा नलिका आदि का शाक भी नहीं खाना चाहिये । प्रतिदिन कुमारीपूजन करना चाहिये या प्रतिदिन क्रमशः दुगुनी, तिगुनी पूजा बढ़ाते जाय । एक वर्ष की कन्या की पूजा नहीं करनी चाहिये; क्योंकि उसे गन्धादि का कोई भी ज्ञान नहीं होता । दो से नौ वर्षों तक की कन्याएँ पूज्य हैं । अन्तिम दिन गायत्रीसहस्रनाम का पाठ करना चाहिये और सप्तशती के मन्त्रों से हवन करना चाहिये अथवा गायत्री या नवार्णमन्त्र से हवन किया जाय । यह संक्षेप में देवीभागवत की पाठविधि है ।

श्रीमद्देवीभागवतकथा ( पारायण) एवं अनुष्ठान – विधि

जो लोग विधि-विधान से श्रीमद्देवीभागवत की कथा अथवा पारायण-पाठ कराना चाहते हों, उनके लिये पूजन आदि की विस्तृत विधि और क्रम नीचे लिखा जा रहा है —

स्नान-सन्ध्योपासनादि कृत्य से निवृत्त होकर पवित्र आसन पर सपत्नीक पूर्वाभिमुख बैठ जाय और पत्नी को अपने दाहिनी ओर बैठाये । चन्दन आदि से तिलक कर लें। दोनों हाथों की अनामिका अँगुली में पवित्री धारण कर ले। आचमन, प्राणायाम कर ले, शिखा में ग्रन्थि लगा लें। तदनन्तर ग्रन्थिबन्धन कर ले और भगवान् विष्णु का ध्यान कर लें। रक्षादीप जलाकर हाथ धो ले। अधिकारप्राप्ति के लिये गोत्रयनिष्क्रयद्रव्य का संकल्प — श्रीमद्देवीभागवत श्रवण में अधिकारप्राप्ति के लिये प्रायश्वित के रूप में तीन गौओं के निष्क्रयद्रव्य का दान करे द्रव्य तथा त्रिकुश, अक्षत, पुष्प, जल लेकर निम्न संकल्प करे —

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्धे विष्णुपर्वे श्रीश्वेतवाराहनाम्नि प्रथमकल्पे वैवस्वत- मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगस्य प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भूर्लोके भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशे …… क्षेत्रे बौद्धावतार …… नाम्नि संवत्सरे श्रीसूर्ये …… अयने …… ऋतौ महामाङ्गल्यप्रदे मासोत्तमे …… मासे …… पक्षे …… तिथौ  …… वासर …… राशिस्थिते श्रीसूर्ये शेषेषु ग्रहेषु यथायथं राशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणगणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथ …… गोत्र …… शर्मा/वर्मा/गुप्तः सपत्नीकोऽहं मम कृच्छ्रत्रयात्मक- प्रायश्चित्तानुष्ठानसिद्ध्यर्थं गोत्रयनिष्क्रयद्रव्यं रजतं चन्द्रदैवतं …… गोत्राय …… शर्मणे ब्राह्मणाय भवते सम्प्रददे ।

संकल्प-जल तथा द्रव्य ब्राह्मण को दे दे । तदनन्तर गोप्रार्थना करे-

गोप्रार्थना
गवामङ्गेषु तिष्ठन्ति भुवनानि चतुर्दश ।
यस्मात्तस्माच्छिवं मे स्यादिहलोके परत्र च ॥

प्रार्थना के अनन्तर निम्न वाक्य बोले —
अनेन गोदानेन पापापहा महाविष्णुः प्रीयताम् ।
निम्न मन्त्र से पंचगव्यप्राशन कर ले —
यत्त्वगस्थिगतं पापं देहे तिष्ठति मामके ।
प्राशनात् पञ्चगव्यस्य दहत्यग्निरिवेन्धनम् ॥

तदनन्तर हाथ में अक्षत – पुष्प लेकर ‘आ नो भद्रा०’ आदि मंगलमन्त्रों का पाठ करे।

‘लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः’ आदि वाक्यों तथा ‘सुमुखश्चैकदन्तश्च’ इत्यादि गणपतिमन्त्रों का पाठ करे। हाथ अक्षतपुष्प भगवान्‌ को अर्पित कर दे इसके बाद देवीभागवत श्रवण का तथा पूजन का प्रधान संकल्प करे —
प्रधान संकल्प
हाथ में त्रिकुश, अक्षत, पुष्प, जल, फल तथा द्रव्य लेकर निम्न संकल्प करे —

‘ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्धे विष्णुपर्वे श्रीश्वेतवाराहनाम्नि प्रथमकल्पे वैवस्वत- मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगस्य प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भूर्लोके भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशे …… क्षेत्रे (यदि काशी हो तो अविमुक्तवाराणसी क्षेत्रे आनन्दवने महाश्मशाने गौरीमुखे त्रिकण्टकविराजिते भागीरथ्याः पश्चिमे तीरे बोले ) बौद्धावतारे ….. नाम्नि संवत्सरे श्रीसूर्ये …..अयने ….. ऋतौ महामाङ्गल्यप्रदे मासोत्तमे ….. मासे ….. पक्षे ….. तिथौ ….. वासरे ….. नक्षत्रे ….. योगे ….. करणे ….. राशिस्थिते श्रीसूर्ये ….. राशिस्थिते चन्द्रे ….. राशिस्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु यथायथं राशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणगणविशेषण- विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ ….. गोत्रः ….. शर्मा / वर्मा/ गुप्तः सपत्नीकोऽहं अतीतानेक जन्म सञ्चिताखिल – दुष्कृत निवृत्ति पुरस्सरैहिकामुष्मिकाध्यात्मिकादि ताप – त्रयोपशमन पूर्वक कायिकादि त्रिविध पापानां समूलोन्मूल- नार्थं मनोभिलषित फल प्राप्ति पूर्वक श्रीपराम्बाप्रीत्या- विर्भावकामः ….. गोत्रोत्पन्न ….. शर्माब्राह्मणवदनार- विन्दात् अनेकश्रोतृश्रावणपूर्वकं श्रीमद्देवीभागवतं नवाह्नविधिना श्रोष्यामि । तदङ्गतया विहितं स्वस्ति- पुण्याहवाचनं मातृकापूजनं वसोर्धारापूजनं आयुष्य- मन्त्रजपं साङ्कल्पिकेन विधिना नान्दीश्राद्धमाचार्यादि- वरणानि च करिष्ये । तत्रादौ प्रारीप्सितसम्पूर्तिप्रति- बन्धकविघ्नव्यूहध्वंसकामः गणेशाम्बिकयोः यथोपचारैः पूजनमहं करिष्ये ।’ संकल्पजल छोड़ दे ।

तदनन्तर संक्षेप में स्वस्तिवाचन, गणपतिपूजन, कलशस्थापन, पुण्याहवाचन, मातृकापूजन, वसोर्धारापूजन, आयुष्यमन्त्रजप तथा नान्दीमुख श्राद्ध करे। इसके बाद आचार्य आदि का वरण करे ।

तदनन्तर सर्वतोभद्र-मण्डल पर कलश स्थापित कर पराम्बा भगवती का षोडशोपचारपूजन करे। इसके बाद सूर्यादि नवग्रहों का स्थापन – पूजन, असंख्यात रुद्रकलश की स्थापना और पूजा, कुमारीपूजन, बटुकपूजन, पुस्तकपूजन आदि सम्पन्न कर कथा प्रारम्भ करनी चाहिये । कथा एवं पाठ के अन्त में अन्तिम दिन हवन करने की विधि है । (यदि विस्तृत पूजा न करनी हो तो केवल गणेशम्बिका का पूजनकर आचार्यादि ब्राह्मणों को वरण देकर कलश पर पराम्बा भगवती का पूजन कर ले तथा पुस्तक-पूजन एवं कथा-वाचक का पूजन कर पाठ अथवा कथा प्रारम्भ करनी चाहिये ।) यहाँ आचार्य आदि का वरण, पराम्बा भगवती दुर्गादेवी, कुमारी एवं बटुक आदि का पूजन संक्षेप में दिया जा रहा है —

आचार्यवरण
हाथ में कुशाक्षत, जल, वरण- द्रव्य एवं वरण सामग्री लेकर सर्वप्रथम आचार्य के वरण का संकल्प करे —

ॐ अद्य पूर्वोच्चारितग्रहगणगुणविशेषण- विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ ….. गोत्रः ….. शर्मा / वर्मा/ गुप्तोऽहं मम सर्वविधपापक्षयद्वारा ….. पूर्वोक्त- संकल्पितकार्यसिद्ध्यर्थं श्रीजगदम्बाप्रीत्यथञ्च श्रीम- देवीभागवतनवाह्मकथाश्रवणार्थं ….. गोत्रं ……शर्माणं नवाहकथा श्रावयितारं ब्राह्मणं एभिर्वरणद्रव्यैः भवन्तमहं वृणे । संकल्प जल छोड़ दे और वरण सामग्री आचार्य को प्रदान करे ।

आचार्य बोले – ॐ वृतोऽस्मि ।

उपवाचक का वरण
इसके बाद उपवाचक के वरण का निम्न संकल्प करे – ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य यथोक्तगुण- विशिष्टतिथ्यादौ ….. गोत्रः ….. शर्मा / वर्मा/ गुप्तोऽहं मम सकलपापक्षयद्वारा पूर्वोक्तसङ्कल्पितकार्यसिद्ध्यर्थं ….. गोत्रं ….. शर्माणं उपवाचयितारं ब्राह्मणं एभिर्वरणद्रव्यैः भवन्तमहं वृणे । संकल्प जल छोड़ दे तथा वरण सामग्री दे दे।

मन्त्रजप तथा दुर्गापाठ के लिये ब्राह्मणों का वरण
तदनन्तर गायत्री, गणेश आदि के मन्त्रजप तथा सप्तशतीपाठ के लिये निम्न संकल्प से ब्राह्मणों का वरण करे —
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य यथो क्तगुणविशिष्ट- तिथ्यादौ ……गोत्रः ….. शर्मा / वर्मा / गुप्तोऽहं मम सर्वविधपातकनिवृत्तिद्वारा श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं करिष्यमाण श्रीमद्देवी भागवतनवाहक थायज्ञकर्मणि एभिर्वरणद्रव्यैः नानागोत्रान् नानाशर्मणो ब्राह्मणान् गायत्रीगणेशादिमन्त्रजापकान् श्रीसूक्तसप्तशत्यादि- पाठकांश्च तत्तत्कर्मकर्तृत्वेन भवतोऽहं वृणे। संकल्प जल छोड़ दे । वरण-सामग्री ब्राह्मणों को दे दे ।

ऋत्विज बोलें – वृताः स्मः ।
ब्राह्मण निम्न मन्त्र का पाठ करे —
व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाप्नोति दक्षिणाम् ।
दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते ॥
प्रार्थना – निम्न मन्त्र से ब्राह्मणों की प्रार्थना करे —
अक्रोधनाः शौचपराः सततं ब्रह्मचारिणः ।
देवध्यानरता नित्यं प्रसन्नमनसः सदा ॥
अदुष्टभाषणाः सन्तु मा सन्तु परनिन्दकाः ।
ममापि नियमा ह्येते भवन्तु भवतामपि ॥
ऋत्विजश्च यथा पूर्वं शक्रादीनां मखेऽभवन् ।
यूयं तथा मे भवत ऋत्विजो द्विजसत्तमाः ॥
अस्मिन् कर्मणि ये विप्राः वृता गुरुमुखादयः ।
सावधानाः प्रकुर्वन्तु स्वं स्वं कर्म यथोदितम् ॥
अस्य यागस्य निष्पत्तौ भवन्तोऽभ्यर्थिता मया ।
सुप्रसन्नैः प्रकर्तव्यं कर्मेदं विधिपूर्वकम् ॥

तदन्तर दिग्रक्षण, पंचगव्य प्रोक्षण करके सर्वतोभद्रमण्डल में देवताओं का आवाहन-पूजन करे । कलश के ऊपर देवी की प्रतिमा का स्थापन सर्वतोभद्र मण्डल के मध्य में प्रधान कलश की स्थापना करे। कलश के ऊपर अग्न्युत्तारणपूर्वक स्वर्ण निर्मित देवी की प्रतिमा स्थापित करे । प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर ले और श्रीसूक्त से षोडशोपचार पूजन करे। प्रतिमा के ऊपर पंचरंगा वितान बाँधे ।

सपत्नीक यजमान श्रीभगवती दुर्गादेवी के समीप में बैठकर अपने दक्षिण भाग में पूजन की सामग्री स्थापित करे । तत्त्वशुद्धि के लिये निम्न रीति से आचमन करे —
ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।

प्राणायाम
पूरक – कुम्भक- रेचक के क्रम से प्राणायाम करे ।

पवित्रीकरण
निम्न मन्त्र से अपने ऊपर तथा पूजन-सामग्री पर जल छिड़के —
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु। ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।

आसन-पवित्रीकरण
पहले निम्न रीति से विनियोग करे —
पृथ्वीति मन्त्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मो देवता आसनपवित्रकरणे विनियोगः ।

तदनन्तर निम्न मन्त्र बोले —
ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥

शिखाबन्धन
निम्न मन्त्र से शिखा का स्पर्श करे —
ॐ ऊर्ध्वकेशि विरूपाक्ष मांसशोणितभोजने ।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये चामुण्डे चापराजिते ॥

भैरवनमस्कार
निम्न मन्त्रसे भैरवजी को नमस्कार करे—
ॐ तीक्ष्णष्ट्र महाकाय कल्पान्तदहनोपम।
भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुमर्हसि ॥

दुर्गापूज नका संकल्प हाथ में जल, अक्षत, पुष्प लेकर बोले —
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य यथोक्तगुण- विशिष्टतिथ्यादौ ….. गोत्रः ….. शर्मा / वर्मा/ गुप्तोऽहम् अस्मिन् श्रीमद्देवीभागवतनवाहकथायज्ञकर्मणि मम आत्मनः श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त-फल-प्राप्त्यर्थं श्रीभगवत्या जगदम्बिकायाः त्रिगुणात्मिकायाः श्रीदुर्गादेव्याः पूजनं करिष्ये । पूजनकर्मणि आत्मनोऽधिकारपूर्वकयोग्यता- सम्पादनार्थं नवार्णेन न्यासान् करिष्ये । संकल्प जल छोड़ दे।

नवार्ण मन्त्र के न्यास का संकल्प —
अस्य श्रीनवार्णमन्त्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांसि श्रीमहाकालीमहालक्ष्मी-महासरस्वत्यो देवताः ऐं बीजं ह्रीं शक्तिः क्लीं कीलकम् श्रीमहाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती प्रीत्यर्थे न्यासे पूजायां च विनियोगः । विनियोग पढ़कर जल गिराये।

नीचे लिखे न्यास वाक्यों में से एक-एक का उच्चारण करके दाहिने हाथ की अँगुलियों से क्रमशः सिर, मुख, हृदय, गुदा, दोनों चरण और नाभि — इन अंगों का स्पर्श करे ।

ऋष्यादिन्यास
ब्रह्मविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नमः शिरसि (सिर का स्पर्श करे) ।
गायत्र्युष्णिगनुष्टुप्छन्दोभ्यो नमः मुखे (मुख का स्पर्श करे) ।
महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमः हृदि (हृदय का स्पर्श करे) ।
ऐं बीजाय नमः गुह्ये (गुह्यस्थान का स्पर्श करे)।
ह्रीं शक्तये नमः पादयोः (दोनों पैरों को छुए) ।
क्लीं कीलकाय नमः नाभौ (नाभि का स्पर्श करे) ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे — इस मूल मन्त्र से हाथों की शुद्धि करके करन्यास करे ।

करन्यास
ॐ ऐं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः। (दोनों हाथों की तर्जनी अँगुलियों से दोनों अँगूठों का स्पर्श करे) ।
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः । (दोनों हाथों के अँगूठों से दोनों तर्जनी अँगुलियों का स्पर्श करे)
ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः । (दोनों अँगूठों से मध्यमा अँगुलियों का स्पर्श करे) ।
ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः । (दोनों अँगूठोंसे अनामिका अँगुलियोंका स्पर्श करे) ।
ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ( कनिष्ठिका अँगुलियों का स्पर्श करे) ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः । (हथेलियों और उनके पृष्ठभागों का परस्पर स्पर्श करे) ।

हृदयादिन्यास
ॐ ऐं हृदयाय नमः
(दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियोंसे हृदयका स्पर्श करे) ।
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा ( सिर का स्पर्श करे) ।
ॐ क्लीं शिखायै वषट् (शिखा का स्पर्श करे) ।
ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम् (दाहिने हाथ की अँगुलियों से बायें कंधे का और बायें हाथ की अँगुलियों से दाहिने कंधे का एक साथ स्पर्श करे) ।
ॐ विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट् ( दाहिने हाथ की अँगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और ललाट के मध्यभाग का स्पर्श करे) ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट् (दाहिने हाथ की तर्जनी तथा मध्यमा अँगुलियों से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजाये ) ।

दीपप्रज्वालन तथा प्रार्थना
न्यास के अनन्तर देवी के दक्षिणभाग में घी का दीपक तथा बायें भाग में तिल के तेल का दीपक जलाकर निम्न मन्त्र से दीपक की प्रार्थना करे —
भो दीप देवीरूपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्यविघ्नकृत् ।
यावत्कर्मसमाप्तिः स्यात् तावत्त्वं सुस्थिरो भव ॥

तदनन्तर अपने वामभाग में स्थापित पूजा-कलश में गन्धाक्षत, पुष्प आदि से वरुण की पूजा करे ।

प्रोक्षण
कलश के जल से अपना तथा सभी सामग्रियों का प्रोक्षण करे ।

शंखपूजन
कलश के जल से शंख को पूरित करके देवी के वामभाग में त्रिपादुकाधार में स्थापित कर निम्न मन्त्र से गन्धाक्षत से उसका पूजन करे —
ॐ अग्निऋषिः पवमानः पाञ्चजन्यः पुरोहितः । तमीमहे महागयम् ॥
तदनन्तर निम्न मन्त्र से प्रार्थना करे —
त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे ।
निर्मितः सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते ।

घण्टापूजन
घण्टा प्रक्षालित कर उसे अपने वामभाग में स्थापित करके निम्न मन्त्र से गन्धाक्षत से उसका पूजन करे —
ॐ सुपर्णोऽसि गरुत्माँस्त्रिवृत्ते शिरो गायत्रं चक्षु- बृहद्रथन्तरे पक्षौ । स्तोम आत्मा छन्दाः स्यङ्गानि यजूषि नाम । साम ते तनूर्वामदेव्यं यज्ञायज्ञियं पुच्छं धिष्ण्याः शफाः । सुपर्णोऽसि गरुत्मान्दिवं गच्छ स्वः पत ॥
तदनन्तर निम्न मन्त्र से प्रार्थना करे —
ॐ आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं तु रक्षसाम्। घण्टानादं प्रकुर्वीत सर्वकामार्थसिद्धये । घण्टाध्वनि करके उसे यथास्थान रख दे

॥ श्रीदुर्गादेवी-पूजनविधि ॥
॥ ध्यान ॥
हाथ में पुष्प लेकर निम्न मन्त्रों से दुर्गादेवी का ध्यानकरे—

खड्गं चक्रगदेषुचापपरिघाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः
शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम् ।
नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम् ॥
अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुः कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम् ।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ॥
घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं
हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम् ।
गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा-पूर्वामत्र
सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम् ॥
ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन ।
ससस्त्यश्वकः सुभद्रकां काम्पीलवासिनीम् ॥
ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पल्यावहोरात्रे पार्श्वे
नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम् ।
इष्णन्निषाणामुं म इषाण सर्वलोकं म इषाण ॥
ॐ पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती ।
यज्ञं वष्टु धियावसुः ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै
त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः श्रीदुर्गां ध्यायामि ।
ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि ।

हाथ के फूल चढ़ा दे ।

आवाहन
हाथ में पुष्प लेकर श्रीदुर्गादेवी का आवाहन करे —
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः श्रीदुर्गां आवाहयामि । आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि ।
पुष्प चढ़ाये।

आसन
हाथ में पुष्प लेकर श्रीदुर्गादेवी को आसन प्रदान करे —
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि ।
पुष्प चढ़ाये ।

पाद्य
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।
श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः पादयोः पाद्यं समर्पयामि ।
जल चढ़ाये।

अर्घ्य
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि ।
अर्घ्य का जल चढ़ाये।

आचमनीय
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
जल चढ़ाये ।

स्नान
आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः, स्नानीयं जलं समर्पयामि ।
जल चढ़ाये ।

पञ्चामृतस्नान
पञ्च नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः ।
सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत्सरित् ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः, पंचामृतस्नानं समर्पयामि ।
पंचामृत से स्नान कराये ।

शुद्धोदकस्नान
शुद्धवालः सर्वशुद्धवालो मणिवालस्त आश्विनाः श्येतः
श्येताक्षोऽरुणस्ते रुद्राय पशुपतये कर्णा यामा
अवलिप्ता रौद्रा नभोरूपाः पार्जन्याः ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः पञ्चामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
जल से स्नान कराये ।

महाभिषेकस्नान
श्रीसूक्त के मन्त्रों द्वारा जल से स्नान कराये ।
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणा- त्मिकायै दुर्गायै नमः, महाभिषेकस्नानं समर्पयामि ।

वस्त्रोपवस्त्र
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि । तदन्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
वस्त्र तथा उपवस्त्र चढ़ाये। एक आचमनी जल छोड़े ।

यज्ञोपवीत
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः यज्ञोपवीते समर्पयामि । तदन्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
यज्ञोपवीत चढ़ाये । एक आचमनी जल छोड़े ।

चन्दन
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः विलेपनार्थे चन्दनं समर्पयामि ।
भगवती दुर्गादेवी को चन्दन लगाये ।

अक्षत
अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत ।
अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती योजा न्विन्द्र ते हरी ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः चन्दनोपरि अक्षतान् समर्पयामि।
भगवती दुर्गादेवी को चन्दन के ऊपर अक्षत लगाये ।

पुष्प तथा पुष्पमाला
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः पुष्पमालां समर्पयामि ।
भगवती दुर्गादेवी को पुष्पमाला चढ़ाये ।

सौभाग्यद्रव्य
अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः ।
हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान् पुमान् पुमासं परि पातु विश्वतः ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः सौभाग्यद्रव्याणि समर्पयामि ।
भगवती दुर्गादेवी को हल्दी – रोरी आदि सौभाग्यद्रव्य चढ़ाये ।

सिन्दूर
सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वात प्रमियः पतयन्ति यह्वाः ।
घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः सिन्दूरं समर्पयामि ।
भगवती दुर्गादेवी को सिन्दूर चढ़ाये ।

धूप
कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः धूपमाघ्रापयामि ।
भगवती दुर्गादेवी को धूप निवेदित करे ।

दीप
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः दीपं दर्शयामि ।
भगवती दुर्गादेवीको दीप निवेदित करे ।

नैवेद्य
आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः नैवेद्यं निवेदयामि |
भगवती दुर्गादेवी को नैवेद्य निवेदित करे ।

करोद्वर्तन
शुनाते अशु पृच्यतां परुषा परुः ।
गन्धस्ते सोमव मदाय रसो अच्युतः ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः करोद्वर्तनकं समर्पयामि ।
भगवती दुर्गादेवी को इत्र निवेदित करे ।

ऋतुफल
याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः ।
बृहस्पति प्रसूतास्तानो मुञ्चन्त्व
हसः ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः ऋतुफलानि समर्पयामि ।
भगवती दुर्गादेवी को ऋतुफल निवेदित करे।

पूगीफल-ताम्बूल
आर्द्रा यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः पूगीफलताम्बूलं समर्पयामि ।
भगवती दुर्गादेवी को सुपारी तथा ताम्बूल निवेदित करे ।

दक्षिणा
हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः दक्षिणां समर्पयामि ।
भगवती दुर्गादेवी को दक्षिणा चढ़ाये ।

नीराजन
इदं हविः प्रजननं मे अस्तु दशवीर
सर्वगणस्वस्तये ।
आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभयसनि ।
अग्निः प्रजां बहुलां मे करोत्वन्नं पयो रेतो अस्मासु धत्त ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः नीराजनं दर्शयामि ।
भगवती दुर्गादेवी की आरती करे ।

प्रदक्षिणा
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः प्रदक्षिणां समर्पयामि ।
भगवती दुर्गादेवी की प्रदक्षिणा करे ।

पुष्पाञ्जलि
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥
राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।
स मे कामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ॥
ॐ कात्यायन्यै विद्महे कन्याकुमारि धीमहि । तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।
भगवती दुर्गादेवी को पुष्पांजलि समर्पित करे।

स्तुतिपाठ
निम्न स्तोत्र2  से प्रार्थना करे —
नमस्ते शरण्ये शिवे सानुकम्पे नमस्ते जगद्व्यापिके विश्वरूपे ।
नमस्ते जगद्वन्द्यपादारविन्दे नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥ १ ॥
नमस्ते जगच्चिन्त्यमानस्वरूपे नमस्ते महायोगि ज्ञानरूपे ।
नमस्ते नमस्ते सदानन्दरूपे नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥ २ ॥
अनाथस्य दीनस्य तृष्णातुरस्य भयार्तस्य भीतस्य बद्धस्य जन्तोः ।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारकर्त्री नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥ ३ ॥
अरण्ये रणे दारुणे शत्रुमध्ये-ऽनले सागरे प्रान्तरे राजगेहे ।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारनौका नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥ ४ ॥
अपारे महादुस्तरेऽत्यन्तघोरे विपत्सागरे मज्जतां देहभाजाम् ।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारहेतु-र्नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥ 5 ॥
नमश्चण्डिके चण्डदुर्दण्डलीला-समुत्खण्डिता खण्डिताऽशेषशत्रोः ।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारबीजं नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥ 6 ॥
त्वमेका सदाराधिता सत्यवादि-र्न र्न जाता जितक्रोधनात् क्रोधनिष्ठा ।
इडा पिङ्गला त्वं सुषुम्ना च नाडी नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥ 7 ॥
नमो देवि दुर्गे शिवे भीमनादे सरस्वत्यरुन्धत्यमोघस्वरूपे ।
विभूतिः शची कालरात्रिः सती त्वं नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥ 8 ॥
शरणमसि सुराणां सिद्धविद्याधराणां मुनिमनुजपशूनां दस्युभिस्त्रासितानां ।
नृपतिगृहगतानां व्याधिभिः पीडितानाम् त्वमसि शरणमेका देवि दुर्गे प्रसीद ॥ 9 ॥
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपायै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गायै नमः स्तुतिपाठं निवेदयामि । अनया पूजया त्रिगुणात्मिका दुर्गा प्रीयताम् न मम।
एक आचमनी जल छोड़े।

॥ सूर्यादि ग्रहोंका स्थापन एवं पूजन ॥
तदनन्तर ग्रहपीठ के समीप बैठकर नवग्रहों का स्थापन एवं पूजन करे। अपने दाहिने हाथ में जल, अक्षत तथा पुष्प लेकर पूजन का संकल्प करे —-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य यथोक्तगुण-विशिष्ट तिथ्यादौ शुभपुण्यतिथौ ….. गोत्रः ….. शर्मा / वर्मा/ गुप्तोऽहं ….. कर्मणि निर्विघ्नतासंसिद्ध्यर्थं तथा च सूर्यादिग्रहाणां प्रीतये आदित्यादिनवग्रहाणां स्थापनं पूजनञ्च करिष्ये । हाथ का जल आदि तष्टा3  में छोड़ दे तथा गन्धाक्षतपुष्प लेकर निम्न मन्त्रों से नवग्रहों का आवाहन तथा स्थापन करे —-

सूर्य
ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सूर्याय नमः सूर्यमावाहयामि स्थापयामि ।

चन्द्रमा
ॐ इमं देवा असपत्नꣳ सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय ।
इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमो ऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः चन्द्रमसे नमः चन्द्रमसमावाहयामि स्थापयामि ।

भौम (मंगल)
ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् । अपाꣳ‍ रेताꣳ सि जिन्वति ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः भौमाय नमः भौममावाहयामि स्थापयामि ।

बुध
ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सꣳसृजेथा मयं च ।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः बुधाय नमः बुधमावाहयामि स्थापयामि ।

बृहस्पति
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः बृहस्पतये नमः बृहस्पतिमावाहयामि स्थापयामि ।

शुक्र
ॐ अन्नात्परिस्स्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः ।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान‍ꣳ शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः शुक्राय नमः शुक्रमावाहयामि स्थापयामि ।

शनि
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये ।
शं योरभि स्रवन्तु नः ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः शनैश्चराय नमः शनैश्चर- मावाहयामि स्थापयामि ।

राहु
ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा ।
कया शचिष्ठया वृता ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः राहवे नमः राहुमावाहयामि स्थापयामि ।

केतु
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे ।
समुषद्भिरजायथाः॥
ॐ भूर्भुवः स्वः केतवे नमः केतुमावाहयामि स्थापयामि ।

निम्न मन्त्र से सभी पर अक्षत चढ़ाकर ग्रहों की प्रतिष्ठा करे ।
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञः समिमं दधातु । विश्वे देवास इह मादयन्तामो३म्प्रतिष्ठ ॥
सूर्यादिनवग्रहेभ्यो नमः
कहकर गन्धाक्षतपुष्प आदि उपचारों से पूजन करे । तदनन्तर निम्न प्रार्थना करे —
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु ॥

सूर्यादिनवग्रहेभ्यो नमः मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि । मन्त्रपुष्पांजलि अर्पित करे ।
अनया पूजया सूर्यादिनवग्रहाः प्रीयन्तां न मम । कहकर एक आचमनी जल छोड़े ।

॥ असंख्यात रुद्रकलशकी स्थापना ॥
तदनन्तर ग्रहपीठ के ईशानकोण में निम्न मन्त्र से रुद्रकलश की स्थापना करे —
ॐ असंख्याता सहस्राणि ये रुद्रा अधि भूम्याम् ।
तेषाꣳ सहस्त्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ॥

निम्न मन्त्र से कलश पर अक्षत छोड़कर प्रतिष्ठा करे —
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञꣳ समिमं दधातु ।
विश्वे देवास इह मादयन्तामो३म्प्रतिष्ठ ॥

प्रतिष्ठा के अनन्तर गन्धादि उपचारों से कलश एवं वरुण का पूजन करे।
प्रार्थना – निम्न मन्त्र से भगवान् रुद्र की प्रार्थना करे —
करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम् ।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥
अनेन पूजनाख्येन कर्मणा रुद्रवरुणौ प्रीयेताम् ।

कहकर एक आचमनी जल छोड़े।

कुमारीपूजन ( नवकन्यापूजन )4
जगत्पूज्यां जगद्वन्द्यां सर्वशक्तिस्वरूपिणीम् ।
नवदुर्गात्मिकां देवीं कुमारीं पूजयाम्यहम् ॥ १ ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः कुमार्यै नमः कुमारीमावाहयामि पूजयामि ।
कुमारी रूप कन्या का पूजन करे ।
त्रिपुरां त्रिपुराधारां त्रिवर्गज्ञानरूपिणीम् ।
त्रैलोक्यवन्दितां देवीं त्रिमूर्ति पूजयाम्यहम् ॥ २ ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः त्रिमूर्त्यै नमः त्रिमूर्तिमावाहयामि पूजयामि ।
त्रिमूर्तिरूप कन्या का पूजन करे ।
कलात्मिकां कलातीतां कारुण्यहृदयां शिवाम् ।
कल्याणजननीं देवीं कल्याणीं पूजयाम्यहम् ॥ ३ ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः कल्याण्यै नमः कल्याणीमावाहयामि पूजयामि ।
कल्याणीरूप कन्या का पूजन करे ।
अणिमादिगुणोपेतामकाराद्यक्षरात्मिकाम् ।
अनन्तां शक्तिसम्पन्नां रोहिणीं पूजयाम्यहम् ॥ ४ ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः रोहिण्यै नमः रोहिणीमावाहयामि पूजयामि ।
रोहिणीरूप कन्या का पूजन करे ।
कामचारां शुभां कान्तां कालचक्रस्वरूपिणीम् ।
कामदां करुणोपेतां कालिकां पूजयाम्यहम् ॥ ५ ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः कालिकायै नमः कालिकामावाहयामि पूजयामि ।
कालिकारूप कन्या का पूजन करे ।
चण्डवीरां चण्डमायां चण्डमुण्डप्रभञ्जिनीम् ।
पूजयामि सदा देवीं चण्डिकां चण्डविक्रमाम् ॥ ६ ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः चण्डिकायै नमः चण्डिकामावाहयामि पूजयामि।
चण्डिकारूप कन्या का पूजन करे ।
सदानन्दकरीं शान्तां सर्वदेवनमस्कृताम् ।
सर्वभूतात्मिकां देवीं शाम्भवीं पूजयाम्यहम् ॥ ७ ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः शाम्भव्यै नमः शाम्भवीमावाहयामि पूजयामि ।
शाम्भवीरूप कन्या का पूजन करे ।
दुर्गमे दुस्तरे कार्ये भवदुःखविनाशिनीम् ।
पूजयामि सदा भक्त्या दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम् ॥ ८ ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गायै नमः दुर्गामावाहयामि पूजयामि ।
दुर्गारूप कन्या का पूजन करे ।
सुन्दरीं स्वर्णवर्णाभां सुखसौभाग्यदायिनीम् ।
सुभद्रजननीं देवीं सुभद्रां पूजयाम्यहम् ॥ ९ ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सुभद्रायै नमः सुभद्रामावाहयामि पूजयामि ।
सुभद्रारूप कन्या का पूजन करे ।
इस प्रकार पाद्य, अर्घ्य, आचमन, वस्त्र, अलंकार, गन्ध, अक्षत, माला आदि से नौ कुमारियों का पूजन करे, भोजन कराये तथा दक्षिणा प्रदानकर निम्न मन्त्र से प्रार्थनापूर्वक प्रणाम करे-
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ॥
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥

बटुक पूजन
निम्न मन्त्र बटुक का ध्यान करे —
ॐ करकलितकपालः कुण्डली दण्डपाणि- स्तरुणतिमिरनीलव्यालयज्ञोपवीती ।
क्रतुसमयसपर्याविघ्नविच्छेदहेतु- र्जयति बटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम् ॥

‘ॐ बं बटुकाय नमः ‘ इस मन्त्रसे पाद्य, अर्घ्य, आचमन, वस्त्र, अलंकार, गन्ध, अक्षत, माला आदिसे पूजन करे, भोजन कराये तथा दक्षिणा प्रदानकर प्रणाम करे ।

पायसबलि
नर्वाणमन्त्र का उच्चारण करके ‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः ‘ पायसबलिं समर्पयामि । कहकर जल छोड़ दे ।

पुस्तकपूजन
निम्न मन्त्र से गन्धाक्षतपुष्प से श्रीमद्देवीभागवत- पुस्तक का ध्यान एवं पूजन करे —
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥
ॐ यदाकूतात्समुसुस्रोधृदो वा मनसो वा सम्भृतं चक्षुषो वा ।
तदनु प्रेत सुकृतामु लोक यत्र ऋषयो जग्मुः प्रथमजाः पुराणाः ॥

कथावाचक का पूजन
कथा-वाचक का पैर धोकर गन्ध, अक्षत, पुष्पमाला तथा वस्त्र देकर निम्न मन्त्र से उनकी प्रार्थना करे —
बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् ॥
व्यासरूपप्रबोधज्ञ सर्वशास्त्रविशारद ।
एतत्कथाप्रकाशेन मदज्ञानं विनाशय ॥

महाध्वज का पूजन
तदनन्तर ईशानकोण में आकर निम्न मन्त्र से महाध्वज का पूजन करे-
आ ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामा राष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्योऽतिव्याधी महारथो जायतां दोग्ध्री धेनुर्वोढा- नड्वानाशुः सप्तिः पुरन्धिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतां निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न ओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम् ॥
ॐ महाध्वजाय नमः सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ।
कहकर महाध्वज का पूजन करे तथा निम्न मन्त्र से प्रार्थना करे-
ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो वेन आवः ।
स बुध्निया उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनि मसतश्च वि वः ॥
अनया पूजया महाध्वजस्थब्रह्मा प्रीयताम् ।
एक आचमनी जल छोड़े।

आरती
सभी स्थापित देवों की आरती करे-
इदꣳ हविः प्रजननं मे अस्तु दशवीरꣳ सर्वगणꣳ स्वस्तये ।
आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभयसनि ।
अग्निः प्रजां बहुलां मे करोत्वन्नं पयो रेतो अस्मासु धत्त ॥
आ रात्रि पार्थिवꣳ रजः पितुरप्रायि धामभिः ।
दिवः सदाꣳसि बृहती वि तिष्ठस आ त्वेषं वर्तते तमः ॥
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ॥
गणपत्याद्यावाहितदेवताभ्यो नमः कर्पूरनीराजनम् समर्पयामि ।

जलेन शीतलीकरणम् । आरती के चारों ओर घुमाकर जल छोड़े। पुष्पैर्देवताभिवन्दनम् । देवताओं को पुष्प द्वारा प्रणाम करे। आत्माभिवन्दनम् । हस्तप्रक्षालनम् । हाथ धोकर पुष्प लेकर निम्न प्रार्थना करे-
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥
राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।
स मे कामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ॥
ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं
पारमेष्ठ्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं
समन्तपर्यायी स्यात् सार्वभौमः सार्वायुषान्तादापरार्धात् ।
पृथिव्यै समुद्र- पर्यन्ताया एकराडिति तदप्येष
श्लोकोऽभिगीतो मरुतः परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे ।
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ।
ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात् ।
सं बाहुभ्यां धमति संपतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन् देव एकः ॥
ॐ कात्यायन्यै विद्महे कन्याकुमारि धीमहि । तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ॥
नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च ।
पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वरि ॥

प्रधानपीठ स्थित भगवती के चरणकमलों में पुष्पांजलि निवेदितकर प्रदक्षिणा करे तथा निम्न मन्त्र से नमस्कार करे ।
नमः सर्वहितार्थायै जगदाधारहेतवे।
साष्टाङ्गोऽयं प्रणामस्ते प्रणयेन मया कृतः ॥

स्तुतिपाठ –
यदि समय हो तो निम्न स्तुतिपाठ करे — न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो०

श्रीमद्देवीभागवत पाठ का विनियोग
ॐ अस्य श्रीमद्देवीभागवताख्यस्तोत्रमन्त्रस्य श्रीकृष्णद्वैपायन ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमणिद्वीपाधि- वासिनी भगवती महाशक्तिः देवता, ब्रह्म बीजम्, गायत्री शक्तिः, भुक्तिमुक्तिके कीलकम्, पुरुषार्थ- चतुष्टयसिद्ध्यर्थं पाठे विनियोगः ।

फिर इस प्रकार भगवती का ध्यान करे-
बालार्कायुततेजसां त्रिनयनां रक्ताम्बरोल्लासिनीं
नानालङ्कृतिराजमानवपुषां बालोडुराट्शेखराम् ।
हस्तैरिक्षुधनुःसृणिं सुमशरं पाशं मुदा बिभ्रतीं
श्रीचक्रस्थितसुन्दरीं त्रिजगतामाधारभूतां स्मरेत् ॥

अथवा
सुधाकू पारान्तस्त्रिदशतरुवाटीविलसिते
मणिद्वीपे चिन्तामणिमयगृहे चित्ररुचिरे ।
विराजन्तीमम्बां परशिवहृदि स्मेरवदनां
नरो ध्यात्वा भोगं भजति खलु मोक्षञ्च लभते ॥
ब्रह्मेशाच्युतशक्राद्यैर्महर्षिभिरुपासिता ।
जगतां श्रेयसे सास्तु मणिद्वीपाधिदेवता ॥

(श्रीमद्देवीभा० माहात्म्य ५ । १०१-१०२ )
अमृतसागर के तट पर कल्पवृक्ष की वाटिका से सुशोभित मणिद्वीप में स्थित बहुवर्णचित्रित चिन्तामणिमय भवन में तथा परम शिव के हृदय में विराजमान रहने वाली और मन्द-मन्द मुसकानयुक्त मुखमण्डल वाली जगदम्बा का ध्यान करके मनुष्य सांसारिक सुखों का उपभोग करता है और अन्त में निश्चय ही मोक्ष प्राप्त करता है । इस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इन्द्र – आदि देवताओं एवं समस्त महर्षियों द्वारा पूजित मणिद्वीपनिवासिनी वे भगवती संसार का कल्याण करती रहें।
ध्यान के अनन्तर पाठ आरम्भ करे ।

नवाह्न पारायण के विश्रामस्थल
प्रतिदिन क्रमशः निम्नलिखित स्थलों पर विश्राम करना चाहिये —
प्रथम दिन तृतीय स्कन्ध के तृतीय अध्याय की समाप्ति पर (३५)
द्वितीय दिन चतुर्थ स्कन्ध के अष्टम अध्याय की समाप्ति पर (३५)
तृतीय दिन पंचम स्कन्ध के अष्टादश अध्याय की समाप्ति पर (३५)
चतुर्थ दिन षष्ठ स्कन्ध के अष्टादश अध्याय की समाप्ति पर (३५)
पंचम दिन सप्तम स्कन्ध के अष्टादश अध्याय की समाप्ति पर (३१)
षष्ठ दिन अष्टम स्कन्ध के सप्तदश अध्याय की समाप्ति पर (३९)
सप्तम नवम स्कन्ध के अट्ठाईसवें अध्याय की समाप्ति पर (३५)
अष्टम दिन दशम स्कन्ध के त्रयोदश अध्याय की समाप्ति पर (३५)
नवम दिन द्वादश स्कन्ध की समाप्ति पर (३८)

हवनविधान
श्रीमद्देवीभागवत के कथा-श्रवण के अनन्तर हवन का भी विधान है । सपत्नीक यजमान हवनकुण्ड या स्थण्डिल के समीप पूर्वाभिमुख बैठ जाय । कुशोदक के द्वारा अपना तथा हवन सामग्री का प्रोक्षण करके स्वस्तिवाचनपूर्वक श्रीगणपति आदि आवाहित देवों का संक्षेप में पूजन करके हवन का निम्न संकल्प करे —
संकल्प – हाथ में त्रिकुश, अक्षत, जल लेकर बोले —

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य पूर्वोच्चारित ग्रहगणगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ …. गोत्रः …. शर्मा/वर्मा/गुप्तोऽहं कृतस्य श्रीमद्देवीभागवत-कथाश्रवणस्य फलप्राप्त्यर्थं यज्ञाङ्गहोमकर्मणि नवग्रह- होमपूर्वकं प्रधानभूत श्रीदुर्गादेवतानिमित्तं पायसाज्येन तथा श्रीदेव्याः वैदिकमन्त्रेण नवार्णेन सप्तशतीमन्त्रैश्च यथासम्भवं सम्पादितैराज्यादिहवनद्रव्यैः यथासंख्येन होमं करिष्ये । इस प्रकार संकल्पकर जल छोड़ दे, हवन के लिये ब्राह्मणों का वरण कर ले।
तदनन्तर पंचभूसंस्कार करके अपने सम्मुख अग्नि स्थापित करके संक्षेप में ग्रहों का पूजन करे । तदनन्तर असंख्यातरुद्र का पूजन करके कुशकण्डिका करे । कुण्डस्थ देवताओं तथा अग्नि का पूजन करके अग्नि की प्रार्थना करे —
अग्ने त्वमैश्वरं तेजः पावनं परमं हितम् ।
तस्मात्त्वदीयहृद्पद्मे श्रीदुर्गां तर्पयाम्यहम् ॥
अग्निं प्रज्वलितं वन्दे जातवेदं हुताशनम् ।
हिरण्यवर्णममलं समृद्धं विश्वतोमुखम् ॥

तदनन्तर आघाराज्यहोम करते समय प्रत्येक आहुति के अनन्तर स्रुवा में स्थित हुतशेष घृत को प्रोक्षणीपात्र में डालता जाय । फिर हाथ में त्रिकुश, अक्षत, जल लेकर द्रव्य समर्पण के लिये बोले —  इमानि सम्पादितहवनीयद्रव्याणि या या यक्ष्यमाणदेवतास्ताभ्यस्ताभ्यो मया परित्यक्तानि न ममेति —  कहकर जल भूमिपर छोड़ दे और बोले —  यथा दैवतानि सन्तु ।
तदनन्तर गणेशाम्बिका के लिये आहुति देकर नवग्रहों का हवन करे । प्रधान देव के लिये आहुति दे ।
ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन ।
ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ॥
आयं गौः पृश्निरक्रमीदसदन्मातरं पुरः ।
पितरं च प्रयन्त्स्वः ॥

तथा नवार्णमन्त्र ( ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ) – से १००८ या १०८ बार हवन करके सप्तशती-मन्त्रों से आहुतियाँ दे । तदनन्तर आवाहित देवताओं का हवन करे, फिर अग्नि का पूजनकर स्विष्टकृत् होम करके भूरादि नवाहुति प्रदान करे । तदनन्तर दशदिक्पाल, नवग्रहों और क्षेत्रपाल के लिये बलि निवेदित करे । अन्त में पूर्णाहुति करे। वसोर्धारा के मन्त्रों से घृत से आहुति दे । तदनन्तर अग्नि की प्रदक्षिणा करे, हवनीय कुण्ड से भस्म धारण करे, फिर संस्रवप्राशन5  करके प्रणीतोदक से मार्जन कर ले और ब्रह्मा को पूर्णपात्र प्रदान करे । आचार्यादि को दक्षिणा प्रदान करे। आचार्य यजमान को श्रेयोदान प्रदान करे। इसके बाद उत्तर पूजन करके कर्पूरनीराजन करे और मन्त्र- पुष्पांजलि चढ़ाये ।
तदनन्तर आचार्य यजमान के वामभाग में पत्नी को बैठाकर रुद्रकलश के जल तथा प्रधान कलश के जल से अभिषेक करके भूयसी दक्षिणा तथा ब्राह्मण- भोजन का संकल्प करे और यजमान को तिलकाशीर्वाद दे। अन्त में क्षमा-प्रार्थना करे तथा आवाहित देवों का विसर्जन करे और निम्न मन्त्रों को पढ़ते हुए समस्त कर्म भगवान्को समर्पित कर दे —
प्रमादात् कुर्वतां कर्मप्रच्यवेताध्वरेषु यत् ।
स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णं स्यादिति श्रुतिः ॥
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु ।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ॥
यत्पादपङ्कजस्मरणाद् यस्य नामजपादपि ।
न्यूनं कर्म भवेत् पूर्णं तं वन्दे साम्बमीश्वरम् ॥

श्रीदेवीभागवत की आरती

आरति जग-पावन पुरान की ।
मातृ-चरित्र-विचित्र – खान की ॥
देवि – भागवत अतिशय सुन्दर ॥
परमहंस मुनि-जन- मन- सुखकर ।
विमल ज्ञान- रवि मोह – तिमिर हर ॥
परम मधुर सुषमा – वितानकी ॥ १ ॥
कलि-कल्मष – विष-विषम-निवारिणि
युगपत् भोग-सुयोग प्रसारिणि ।
परमानन्द-सुधा विस्तारिणि ॥
सुमहौषध अज्ञान -हानकी ॥ २ ॥
संतत सकल सुमङ्गलदायिनि ।
सन्मति सद्गति मुक्ति- प्रदायिनि ।
नूतन नित्य विभूति- विधायिनि ॥
परमप्रभा परतत्त्व – ज्ञान की ॥ ३ ॥
आर्ति- अशान्ति, भ्रान्ति-भय-भंजनि ।
पाप-ताप माया-मद-गंजनि ।
शुचि सेवक – मन-मानस – रंजनि ॥
लीला-रस मधुमय निधान की ॥ ४ ॥

1. चन्दनागुरुकर्पूरचौरकुङ्कुमरोचनाः । जटामांसी कपियुता शक्तेर्गन्धाष्टकं विदुः ॥ ( तन्त्रसार – कलावती दीक्षा ५ । १)
अर्थात् चन्दन, अगुरु, कपूर, कृष्णशुंठी, कुंकुम (केसर), गोरोचन, जटामांसी तथा गांटना (एक प्रकार का करंज) मिलाकर शक्तिका अष्टगन्ध बनता है ।

2. श्री सिद्धेश्वरीतन्त्रे परमशिवोक्त श्री दुर्गा आपदुद्धार स्तोत्रम्

3. तष्टा [सं-पु.] – 1. विश्वकर्मा 2. सुंदर ढंग से तराश या गढ़ कर ठीक करने वाला; काष्टकार; बढ़ई 3. रथकार 4. आदित्य (सूर्य) का नाम। [सं-पु.] – ताँबे की छोटी तश्तरी।

4. (क) कुमार्यश्च प्रतिदिनं अष्टोत्तरशतं नव एका वा यथासम्भवं पूज्याः ।
(ख) कुमारीपूजने द्विवर्षादारभ्य दशवर्षपर्यन्ता कन्या ग्राह्या ।
द्विवर्षाद्या दशाब्दाद्याः कुमारीः परिपूजयेत् ।
एकाब्दायाः प्रीत्यभावो रुद्राब्दा तु विवर्जिता ॥

5. संस्रवप्राशन की विधिः- हवन होने के बाद, प्रोक्षणी पात्र में घी लेकर दाहिने हाथ में लें । यत्किंचित पान करें । फिर आचमन करें । इसके बाद, मंत्रों के ज़रिए पात्र के जल से कुशों के द्वारा अपने सिर पर मार्जन करें ।

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