April 22, 2025 | aspundir | Leave a comment श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-पंचम स्कन्धः-अध्याय-13 ॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ पूर्वार्द्ध-पंचम स्कन्धः-त्रयोदशोऽध्यायः तेरहवाँ अध्याय बाष्कल और दुर्मुख का रणभूमि में आना, देवी से उनका वार्तालाप और युद्ध तथा देवी द्वारा उनका वध महिषसेनाधिपबाष्कलदुर्मुखनिपातनवर्णनम् व्यासजी बोले — हे राजन् ! ऐसा कहकर अभिमान से चूर अंगों वाले तथा सभी शस्त्रास्त्रों के विशारद वे दोनों महाबाहु दैत्य बाष्कल तथा दुर्मुख समरांगण की ओर चल पड़े ॥ १ ॥ इसके बाद वे दोनों मदोन्मत्त दानव समरभूमि में पहुँचकर मेघ गर्जन के समान गम्भीर वाणी में देवी से कहने लगे — ॥ २ ॥ हे देवि ! हे सुन्दरि ! जिन महान् महिषासुर ने सभी देवताओं पर विजय प्राप्त कर ली है; सभी दैत्यों के अधिष्ठाता उन नरेश महिषासुर का आप वरण कर लें ॥ ३ ॥ वे सभी लक्षणों से सम्पन्न मनुष्य रूप धारण करके तथा दिव्य आभूषणों से अलंकृत होकर एकान्त में आपसे मिलने के लिये आयेंगे ॥ ४ ॥ हे सुन्दर मुसकानवाली देवि ! [ उन्हें पति के रूप में स्वीकार कर लेने पर] आपको तीनों लोकों का वैभव निश्चय ही प्राप्त हो जायगा । अतः हे कान्ते! उन महिषासुर के प्रति आप अपने मन में परम प्रेमभाव रखिये ॥ ५ ॥ हे कोकिलभाषिणि ! महान् पराक्रमी महिषासुर को अपना पति बनाकर आप स्त्रियों के लिये अभीष्ट अद्भुत सांसारिक सुख प्राप्त करेंगी ॥ ६ ॥ देवी बोलीं — अरे दुष्ट ! क्या तुम यह समझ रहे हो कि यह कोई काममोहित, बुद्धिहीन तथा बलरहित नारी है ? मैं उस मूर्ख महिषासुर की सेवा कैसे कर सकती हूँ ? ॥ ७ ॥ कुलीन स्त्रियाँ कुल, चरित्र तथा गुण में समानता रखने वाले एवं रूप, चतुरता, बुद्धि, व्यवहार, क्षमा आदि से विशेषरूप से सम्पन्न पुरुष को ही स्वीकार करती हैं ॥ ८ ॥ ऐसी कौन देवरूपिणी नारी होगी, जो कामातुर होकर पशुरूपधारी तथा पशुओं में भी अधम महिष को अपना पति बनाना चाहेगी ? ॥ ९ ॥ हे बाष्कल और दुर्मुख ! तुम लोग तत्काल अपने राजा महिषासुर के पास जाओ और हाथी के समान विशाल शरीर वाले तथा शृङ्गधारी उस दानव से मेरा सन्देश कह दो — ‘तुम पाताललोक चले जाओ अथवा यहाँ आकर मेरे साथ युद्ध करो। संग्राम होने पर ही इन्द्र निर्भय हो सकते हैं —यह निश्चित है । मैं तुम्हारा वध करके ही जाऊँगी, बिना तुम्हें मारे मैं नहीं जा सकती। हे महामूर्ख ! यह समझकर अब तुम जो चाहते हो वैसा करो। हे चतुष्पाद ! बिना मुझको पराजित किये पृथ्वी के किसी भी भाग में, अन्तरिक्ष या पर्वत की गुफामें कहीं भी अब तुम्हें शरण नहीं मिलेगी ‘ ॥ १०-१३ ॥ व्यासजी बोले — देवी के ऐसा कहने पर क्रोध से तमतमाये नेत्रोंवाले वे दोनों दैत्य धनुष-बाण लेकर युद्ध करने के लिये तैयार हो गये ॥ १४ ॥ वे भगवती जगदम्बा भी गम्भीर गर्जना करके निर्भीक भाव से विराजमान थीं। हे कुरुनन्दन ! वे दोनों दैत्य घनघोर बाण- वृष्टि करने लगे ॥ १५ ॥ भगवती जगदम्बा भी देवताओं की कार्य सिद्धि के निमित्त अत्यन्त मधुर नाद करती हुई उन दोनों दानवों पर बाण – समूह बरसाने लगीं ॥ १६ ॥ उन दोनों में से बाष्कल शीघ्रतापूर्वक समरभूमि में देवी के सामने आ गया। उस समय दुर्मुख केवल दर्शक बनकर देवी की ओर मुख करके खड़ा रहा ॥ १७ ॥ अब भगवती तथा बाष्कल के बीच बाणों, तलवार तथा परिघ के प्रहार से भीषण युद्ध होने लगा, जो उत्साहहीन चित्तवाले लोगों के लिये भयदायक था ॥ १८ ॥ तत्पश्चात् युद्ध के लिये उन्मत्त उस बाष्कल को देखकर जगदम्बिका कुपित हो गयीं और उन्होंने पत्थर की सान पर चढ़ाकर तीखे बनाये गये तथा कानों तक खींचे गये पाँच बाणों से उसपर प्रहार किया ॥ १९ ॥ उस दानव ने भी अपने तीक्ष्ण बाणों से देवी के बाणों को काट दिया और पुनः सिंह पर विराजमान भगवती पर सात बाणों से प्रहार किया ॥ २० ॥ देवी भगवती ने उसके बाणों को काटकर पानी चढ़ाकर तीक्ष्ण किये हुए दस बाणों से उस दुष्टपर प्रहार किया और वे बार-बार जोर-जोर से हँसने लगीं ॥ २१ ॥ जगदम्बा ने अपने अर्धचन्द्राकार बाण से उसका धनुष काट डाला। तब बाष्कल भी गदा लेकर देवी को मारने के लिये उनकी ओर दौड़ा ॥ २२ ॥ अभिमान में चूर उस दानव को हाथ में गदा लिये आता हुआ देखकर देवी चण्डिका ने अपनी गदा के प्रहार से उसे धराशायी कर दिया ॥ २३ ॥ बाष्कल मुहूर्तभर पृथ्वी पर पड़ा रहा, इसके बाद वह फिर उठ खड़ा हुआ और प्रचण्ड, पराक्रमी उस वीर ने भी भगवती पर गदा चला दी ॥ २४ ॥ उस दैत्य को सामने आते देखकर भगवती ने कुपित होकर बाष्कल के वक्षःस्थल पर त्रिशूल से प्रहार किया, जिससे वह गिर पड़ा और मर गया ॥ २५ ॥ बाष्कल के गिरते ही उस दुरात्मा की सेना भाग गयी और आकाश-मण्डल में विद्यमान देवता प्रसन्नतापूर्वक भगवती की जय-जयकार करने लगे ॥ २६ ॥ उस दैत्य के मार दिये जाने पर महाबली दुर्मुख क्रोध से आँखें लाल किये रणभूमि में देवी के समक्ष आया ॥ २७ ॥ उस समय वह वैभवशाली दैत्य ‘अरी अबले ! ठहरो, ठहरो’ – ऐसा बार-बार कहते हुए धनुष-बाण धारण करके कवच पहने हुए रथ पर सवार था ॥ २८ ॥ उस दानव को अपनी ओर आते देखकर देवी ने शंखध्वनि की और उसे कुपित करती हुई वे अपने धनुष की टंकार करने लगीं ॥ २९ ॥ दुर्मुख भी बड़ी तेजी से सर्प के समान विषैले तीक्ष्ण बाण छोड़ने लगा। तब महामाया ने अपने बाणों से उन बाणोंको काट डाला और वे गर्जन करने लगीं ॥ ३० ॥ हे राजन् ! बाण, शक्ति, गदा, मुसल और तोमर आदि के प्रहार से उन दोनों में परस्पर भयंकर युद्ध होने लगा ॥ ३१ ॥ उस समय रणभूमि में रुधिर की नदी बह चली। उसके तट पर गिरे हुए मस्तक इस प्रकार सुशोभित हो रहे थे, मानो वैतरणी पार करने के लिये तैरना सीखने वाले यमदूतों के द्वारा प्रसन्नतापूर्वक तुम्बीफल लाकर रख दिये गये हों ॥ ३२-३३ ॥ भूमिपर कटकर गिरे शवों तथा उन्हें खानेवाले भेड़िये आदि जन्तुओं से वह रणभूमि अत्यन्त भयंकर तथा दुर्गम हो गयी थी ॥ ३४ ॥ सियार, कुत्ते, कौए, कंक, अयोमुख नामक पक्षी, गिद्ध और बाज उन दुष्ट दानवों के शरीर को [नोच- नोचकर खा रहे थे ॥ ३५ ॥ मृतकों के शरीर के संसर्ग से दुर्गन्धित हवा चल रही थी और मांसाहारी पक्षियों की किलकिला ध्वनि हो रही थी ॥ ३६ ॥ तब काल से मोहित वह दुरात्मा दुर्मुख अत्यन्त क्रुद्ध हो उठा और गर्व के साथ अपनी सुन्दर भुजा उठाकर देवी से कहने लगा — ॥ ३७ ॥ हे चण्डिके ! हे मूर्ख बाले! भाग जाओ, नहीं तो मैं तुम्हें अभी मार डालूँगा अथवा हे वामोरु ! मद से मत्त महिषासुर को स्वीकार कर लो ॥ ३८ ॥ देवी बोलीं — अब तुम्हारी मृत्यु समीप है, तभी तुम मोहित होकर ऐसा प्रलाप कर रहे हो। अभी मैं तुम्हें भी उसी प्रकार मार डालूंगी, जैसे मैंने इस बाष्कल को मारा है ॥ ३९ ॥ हे मूर्ख ! भाग जाओ और यदि तुम्हें मृत्यु अच्छी लगती हो तो रुके रहे । तुम्हें मारने के बाद मैं मूर्ख महिषासुर का भी संहार कर दूँगी ॥ ४० ॥ देवी का वह वचन सुनकर मरणोन्मुख दुर्मुख भगवती चण्डिका के ऊपर भीषण बाण – वृष्टि करने लगा ॥ ४१ ॥ भगवती ने भी कुपित होकर अपने तीक्ष्ण बाणों से उस बाण -वृष्टि को तत्काल व्यर्थ करके उस दैत्य पर उसी प्रकार आघात किया, जैसे इन्द्र ने वृत्रासुर पर किया था ॥ ४२ ॥ अब उन दोनों में बड़ा भीषण युद्ध आरम्भ हो गया, जो कायरों के लिये भयदायक तथा वीरों के लिये उत्साहवर्धक था ॥ ४३ ॥ देवी ने बड़ी फुर्ती के साथ उसके हाथ में स्थित धनुष को काट डाला और उसी तरह अपने पाँच बाणों से उसके उत्तम रथ को छिन्न-भिन्न कर दिया ॥ ४४ ॥ रथ के नष्ट हो जाने पर महाबाहु दुर्मुख अपनी भयानक गदा लेकर पैदल ही भगवती चण्डिका की ओर दौड़ा ॥ ४५ ॥ [उनके पास पहुँचकर ] उस महाबली दैत्य ने सिंह के मस्तक पर गदा से प्रहार कर दिया, किंतु महाशक्तिशाली सिंह गदा से मारे जाने पर भी अपने स्थान से विचलित नहीं हुआ ॥ ४६ ॥ उसी समय जगदम्बा ने हाथ में गदा लिये हुए उस दुर्मुख को सम्मुख उपस्थित देखकर अपनी तीक्ष्ण धारवाली तलवारसे उसके किरीटयुक्त मस्तक को काट दिया ॥ ४७ ॥ मस्तक कट जानेपर दुर्मुख जमीन पर गिर पड़ा और मर गया। तब देवता परम प्रसन्न होकर देवी की जय-जयकार करने लगे ॥ ४८ ॥ दुर्मुख के मर जाने पर आकाश में विद्यमान देवता भगवती की स्तुति करने लगे। उनपर पुष्प बरसाने लगे तथा उनकी जयकार करने लगे ॥ ४९ ॥ रणभूमि में उस महान् दानव को मरा हुआ देखकर ऋषि, सिद्ध, गन्धर्व, विद्याधर और किन्नर आनन्दित हो उठे ॥ ५० ॥ ॥ इस प्रकार अठारह हजार श्लोकों वाली श्रीमद्देवीभागवत महापुराण संहिता के अन्तर्गत पंचम स्कन्ध का ‘महिषासुर के सेनापति बाष्कल एवं दुर्मुख के वध का वर्णन’ नामक तेरहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ १३ ॥ Content is available only for registered users. 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