August 18, 2015 | aspundir | 3 Comments श्रीविचित्र-वीर-हनुमन्-माला-मन्त्र प्रस्तुत ‘विचित्र-वीर-हनुमन्-माला-मन्त्र’ दिव्य प्रभाव से परिपूर्ण है। इससे सभी प्रकार की बाधा, पीड़ा, दुःख का निवारण हो जाता है। शत्रु-विजय हेतु यह अनुपम अमोघ शस्त्र है। पहले प्रतिदिन इस माला मन्त्र के ११०० पाठ १० दिनों तक कर, दशांश गुग्गुल से ‘हवन’ करके सिद्ध कर ले। फिर आवश्यकतानुसार एक बार पाठ करने पर ‘श्रीहनुमानजी’ रक्षा करते हैं। सामान्य लोग प्रतिदिन केवल ११ बार पाठ करके ही अपनी कामना की पूर्ति कर सकते हैं। विनियोग, ऋष्यादि-न्यास, षडंग-न्यास, ध्यान का पाठ पहली और अन्तिम आवृत्ति में करे। विनियोगः- ॐ अस्य श्रीविचित्र-वीर-हनुमन्माला-मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्रो भगवान् ऋषिः। अनुष्टुप छन्दः। श्रीविचित्र-वीर-हनुमान्-देवता। ममाभीष्ट-सिद्धयर्थे माला-मन्त्र-जपे विनियोगः। ऋष्यादि-न्यासः- श्रीरामचन्द्रो भगवान् ऋषये नमः शिरसि। अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे। श्रीविचित्र-वीर-हनुमान्-देवतायै नमः हृदि। ममाभीष्ट-सिद्धयर्थे माला-मन्त्र-जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे। षडङ्ग-न्यासः- ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः (हृदयाय नमः)। ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः (शिरसे स्वाहा)। ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः (शिखायै वषट्)। ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः (कवचाय हुं)। ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः (नेत्र-त्रयाय वौषट्)। ॐ ह्रः करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः (अस्त्राय फट्)। ध्यानः- वामे करे वैर-वहं वहन्तम्, शैलं परे श्रृखला-मालयाढ्यम्। दधानमाध्मातमु्ग्र-वर्णम्, भजे ज्वलत्-कुण्डलमाञ्नेयम्।। माला-मन्त्रः- “ॐ नमो भगवते, विचित्र-वीर-हनुमते, प्रलय-कालानल-प्रभा-ज्वलत्-प्रताप-वज्र-देहाय, अञ्जनी-गर्भ-सम्भूताय, प्रकट-विक्रम-वीर-दैत्य-दानव-यक्ष-राक्षस-ग्रह-बन्धनाय, भूत-ग्रह, प्रेत-ग्रह, पिशाच-ग्रह, शाकिनी-ग्रह, डाकिनी-ग्रह ,काकिनी-ग्रह ,कामिनी-ग्रह ,ब्रह्म-ग्रह, ब्रह्मराक्षस-ग्रह, चोर-ग्रह बन्धनाय, एहि एहि, आगच्छागच्छ, आवेशयावेशय, मम हृदयं प्रवेशय प्रवेशय, स्फुट स्फुट, प्रस्फुट प्रस्फुट, सत्यं कथय कथय, व्याघ्र-मुखं बन्धय बन्धय, सर्प-मुखं बन्धय बन्धय, राज-मुखं बन्धय बन्धय, सभा-मुखं बन्धय बन्धय, शत्रु-मुखं बन्धय बन्धय, सर्व-मुखं बन्धय बन्धय, लंका-प्रासाद-भञ्जक। सर्व-जनं मे वशमानय, श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सर्वानाकर्षयाकर्षय, शत्रून् मर्दय मर्दय, मारय मारय, चूर्णय चूर्णय, खे खे श्रीरामचन्द्राज्ञया प्रज्ञया मम कार्य-सिद्धिं कुरु कुरु, मम शत्रून् भस्मी कुरु कुरु स्वाहा। ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः फट् श्रीविचित्र-वीर-हनुमते। मम सर्व-शत्रून् भस्मी-कुरु कुरु, हन हन, हुं फट् स्वाहा।।” (प्रति-दिनमेकादश-वारं जपेत्। पूर्व-न्यास-ध्यान-पूर्वकं निवेदयेत्) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe
मैं हनुमान जी के वीर की साधना करना चाहता हूं।इसके लिए क्या सावधानियां अपेक्षित है।।और हनुमान वीर क्या काम करते हैं।। Reply