October 18, 2015 | aspundir | Leave a comment सर्प-भय-नाशक मनसा-स्तोत्र ध्यानः- चारु-चम्पक-वर्णाभां, सर्वांग-सु-मनोहराम् । नागेन्द्र-वाहिनीं देवीं, सर्व-विद्या-विशारदाम् ।। ।। मूल-स्तोत्र ।। ।। श्रीनारायण उवाच ।। vaficjagat नमः सिद्धि-स्वरुपायै, वरदायै नमो नमः । नमः कश्यप-कन्यायै, शंकरायै नमो नमः ।। बालानां रक्षण-कर्त्र्यै, नाग-देव्यै नमो नमः । नमः आस्तीक-मात्रे ते, जरत्-कार्व्यै नमो नमः ।। तपस्विन्यै च योगिन्यै, नाग-स्वस्रे नमो नमः । साध्व्यै तपस्या-रुपायै, शम्भु-शिष्ये च ते नमः ।। ।। फल-श्रुति ।। इति ते कथितं लक्ष्मि ! मनसाया स्तवं महत् । यः पठति नित्यमिदं, श्रावयेद् वापि भक्तितः ।। न तस्य सर्प-भीतिर्वै, विषोऽप्यमृतं भवति । वंशजानां नाग-भयं, नास्ति श्रवण-मात्रतः ।। हे लक्ष्मी ! यह मनसा देवी का महान् स्तोत्र कहा है । जो नित्य भक्ति-पूर्वक इसे पढ़ता या सुनता है – उसे साँपों का भय नहीं होता और विष भी अमृत हो जाता है । उसके वंश में जन्म लेनेवालों को इसके श्रवण मात्र से साँपों का भय नहीं होता । Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe