July 30, 2015 | aspundir | Leave a comment 1. चक्षुष्मती विद्या ॐ अस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बुध्न्य ऋषिः, गायत्री छन्दः, सूर्यो देवता, ॐ बीजम्, नमः शक्तिः, स्वाहा कीलकम्, चक्षूरोगनिवृत्तये जपे विनियोगः। ॐ चक्षुः चक्षुः चक्षुः तेजः स्थिरो भव। मां पाहि पाहि। त्वरितं चक्षुरोगान् शमय शमय। मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय। यथाहम् अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय। कल्याणं कुरू कुरू। यानि मम पूर्वजन्मोपरर्जितानि चक्षुःप्रतिरोधकदुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय। ॐ नमः चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय। ॐ नमः करूणाकरायामृताय। ॐ नमः सूर्याय। ॐ नमः भगवते सूर्यायाक्षितेजसे नमः। ॐ खेचराय नमः। ॐ महते नमः। ॐ रजसे नमः। ॐ तमसे नमः। ॐ असतो मा सद्गम्य। ॐ तमसो मा ज्योतिर्गमय। ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय। उष्णो भगवांछुचिरूपः। हंसो भगवान् शुचिरप्रतिरूपः। ॐ विश्वरूपं घृणिनं जातवेदसं हिरण्मयं ज्योतिरूपं तपन्तम्। सहस्ररश्मिः शतधा वर्तमानः पुरः प्रजानामुदयत्येष सूर्यः।। ॐ नमो भगवते श्रीसूर्यायादित्यायाऽक्षितेजसेऽहोवाहिनिवाहिनि स्वाहा।। ॐ वयः सुपर्णा उपसेदुरिन्द्रं प्रियमेधा ऋषयो नाधमानाः। अप ध्वान्तमूर्णुहि पूर्धि- चक्षुर्मुग्ध्यस्मान्निधयेव बद्धान्।। ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः। ॐ पुष्करेक्षणाय नमः। ॐ कमलेक्षणाय नमः। ॐ विश्वरूपाय नमः। ॐ श्रीमहाविष्णवे नमः। ॐ सूर्यनारायणाय नमः।। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।। य इमां चक्षुष्मतीविद्यां ब्राह्मणो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अन्धो भवति। अष्टौ ब्राह्मणान् ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिर्भवति।। हे सूर्य भगवान् ! हे चक्षु के अभिमानी सूर्यदेव ! आप चक्षु में चक्षु के तेजरूप् से स्थिर हो जायँ। मेरी रक्षा करें, रक्षा करें। मेरी आँख के रोगों का शीघ्र शमन करें, शमन करें। मुझो अपना सुवर्ण जैसा तेज दिखला दें, दिखला दें। जिससे मैं अन्धा न होऊँ, कृपया वैसे ही उपाय करें, उपाय करें। मेरा कल्याण करें, कल्याण करें। दर्शन शक्ति का अवरोध करने वाले मेरे पूर्वजन्मार्जित जितने भी पाप हैं, सबको जड़ से उखाड़ दें, जड़ से उखाड़ दें। ॐ नेत्रों के प्रकाश भगवान् सूर्यदेव को नमस्कार है। ॐ आकाशविहारी को नमस्कार है। ॐ परम श्रेष्ठ स्वरूप को नमस्कार है। ॐ (सबमें क्रिया शक्ति उत्पन्न करने वाले) रजोगुणरूप भगवान् सूर्य को नमस्कार है। (अन्धकार को सर्वथा अपने भीतर लीन करने वाल) तमोगुण के आश्रयभूत भगवान् सूर्य को नमस्कार है। हे भगवान् ! आप मुझे असत् से सत् की ओर ले चलिये। मृत्यु से अमृत की ओर ले चलिये। उष्ण स्वरूप भगवान् शुचिरूप हैं। हंस स्वरूप भगवान् सूर्य शुचि तथा अप्रतिरूप हैं – उनके तेजोमय स्वरूप की समता करने वाला कोई भी नहीं है। ॐ जो सच्चिदानन्दस्वरूप हैं, सम्पूर्ण विश्व जिनका रूप है, जो किरणों में सुशोभित एवं जातवेदा (भूत आदि तीनों कालों की बात जानने वाला) हैं, जो ज्योतिःस्वरूप, हिरण्मय (स्वर्ण के समान कान्तिवान्) पुरूष के रूप में तप रहे हैं, इस सम्पूर्ण विश्व के जो एकमात्र उत्पत्ति स्थान हैं, उन प्रचण्ड प्रतापवाले भगवान् सूर्य को हम नमस्कार करते हैं। वे सूर्यदेव समस्त प्रजाओं के समक्ष उदित हो रहे हैं। ॐ षड्विध ऐश्वर्यसम्पन्न भगवान् आदित्य को नमस्कार है। उनकी प्रभा दिन का भार वहन करने वाली है, हम उन भगवान् के लिये उत्तम आहुति देते हैं। जिन्हें मेधा अत्यन्त प्रिय है, वे ऋषिगण उत्तम पंखों वाले पक्षी के रूप में भगवान् सूर्य के पास गये और इस प्रकार प्रार्थना करने लगे – ‘भगवन् ! इस अन्धकार को छिपा दीजिये, हमारे नेत्रों को प्रकाश से पूर्ण कीजिये तथा अपना दिव्य प्रकाश देकर मुक्त कीजिये। ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः। ॐ पुष्करेक्षणाय नमः। ॐ कमलेक्षणाय नमः। ॐ विश्वरूपाय नमः। ॐ श्रीमहाविष्णवे नमः। ॐ सूर्यनारायणाय नमः।।’ जो ब्राह्मण इस चक्षुष्मतीविद्या का नित्य पाठ करता है, उसे नेत्र सम्बन्धी कोई रोग नहीं होता। उसके कुल में कोई अंधा नहीं होता। आठ ब्राह्मणों को इस विद्या का दान करने पर – इसका ग्रहण करा देने पर इस विद्या की सिद्धि होती है। ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः 2. चाक्षुषी उपनिषद् की शीघ्र फल देने वाली विधि प्रतिदिन प्रातःकाल हल्दी घोल से अनार की शाखा की कलम से काँसे के पात्र में निम्नलिखित बत्तीसा यन्त्र को लिखे – फिर उसी यन्त्र पर ताँबे की कटोरी में चतुर्मुख (चारों ओर चार बत्तियों का) घी का दीपक जलाकर रख दें। तदन्तर गन्ध-पुष्पादि से यन्त्र का पूजन करें। फिर पूर्व की ओर मुख करके हरिद्रा (हल्दी) की माला से ‘‘ॐ ह्रीं हंसः’’ इस बीज मन्त्र की छः मालाएँ जपकर चाक्षुषोपनिषद् के कम से कम बारह पाठ करें। पाठोपरान्त उपर्युक्त बीज मन्त्र की पाँच मालाएँ जपे। इसके बाद भगवान् सूर्य को श्रद्धापूर्वक अर्घ्य देकर प्रणाम करें और मन में यह निश्चय करें कि मेरा रोग शीघ्र नष्ट हो जायेगा। ऐसा करते रहने से इस उपनिषद् का नेत्ररोगनाश में अद्भुत प्रभाव बहुत शीघ्र देखने में आता है। यदि इस पाठ के बाद हवन की इच्छा हो तो ‘‘ॐ नमो भगवते आदित्याय अहोवाहिनी अहोवाहिनी स्वाहा’’ इस मन्त्र की 108 आहुतियां दें। ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः 3. श्रीविष्णु सहस्रनाम में वर्णित निम्न चार नामावलि को दिन में अनेकों बार या जितना अधिक सम्भव हो उतनी बार जपें – “सहस्रमूर्धा विश्वात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात्” ।। २४ ।। ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः 4. सौन्दर्य-लहरी का निम्न श्लोक प्रतिदिन १२ बार जपना चाहिए – “गते कर्णाभ्यर्णं गरुत इव पक्ष्माणि दधती पुरां भेत्तुशचित्तप्रशमरसविद्रावणफले । इमे नेत्रे गोत्राधरपतिकुलोत्तंसकलिके तवाकर्णाकृष्टस्मरशरविलासं कलयतः” ।। ५२।। Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe