August 6, 2019 | aspundir | Leave a comment ॥ सर्वरोगनाशक धर्मराज मन्त्र विधानम् ॥ (मन्त्रमहोदधि ग्रन्थ में इसका संक्षिप्त विधान है।) संकल्प – मम सकलापदां विनाशनाय सर्वरोगाणां प्रशमनार्थे श्रीधर्मराज मन्त्र जपमहं करिष्ये। करन्यास – हृदयादिन्यास की तरह करें । ॐ क्रों ह्रीं हृदयाय नमः । ॐ आं वैं शिरसे स्वाहा । ॐ वैवस्वताय श्खिायै वषट् । ॐ धर्मराजाय कवचाय हुँ । ॐ भक्तानुग्रहकृते नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ नमः अस्त्राय फट् । मन्त्र – “ॐ क्रों ह्रीं आं वै वैतवस्ताय धर्मराजाय भक्तानुग्रहकृते नमः ।” ध्यानम् – पाथः संयुतमेघसन्निभतनुः प्रद्योतनस्यात्मजो नृणां पुण्यकृतां शुभावहवपुः पापीयसां दुःखकृत् । श्रीमद्दक्षिणदिक्पति महिषगो भूषाभरालंकृतो ध्येयः संयमनीपतिः पितृगण स्वामी यमो दण्डभृत् ॥ ॥ इति धर्मराज प्रयोग ॥ ॥ अरिष्टनाशक यन्त्रादिभिषेक प्रयोगः ॥ रोगोपचार हेतु निम्नलिखित यन्त्र बनाये । मण्डल बनाये । मध्य में साध्यनाम (रोगी का नाम लिखे) । बाहर षट्कोण में षडङ्गों की पूजा करें । उसके बाहर पञ्चदल में ईशानादि देवों का नाम लिखें । उसके बाहर अष्टदल में त्र्यम्बक मन्त्र के आठ भाग लिखें । अ…….. अं अः । क वर्गादि आठवर्गों को लिखें, लिखना असंभव हो तो कल्पना करें । उसके बाहर भूपूर परिधि में इन्द्रादि देवों का आयुध सहित पूजन करें । मण्डल के मध्य में कलश रखें उसमें सतावरी व अन्य औषधियों डालें । शिवार्चन व यन्त्रार्चन करे एवं उस जल से रोगी का अभिषेक करें । उपरोक्त तरह के दो यन्त्र भोजपत्र पर लोहे की कलम से लिखें । जिस शत्रु का भय हो उस शत्रु का नाम मध्य में लिखें । यन्त्र का उत्तराभिमुख होकर अर्चन करें । एक यन्त्र ताबीज में भरकर स्वयं के बांध लेवें । एवं दूसरा यन्त्र एक शिला पर रखकर दूसरी भारी शिला से दबा देवें तो शत्रु अनुकूल होगा । अगर विशेष भय होवे तो स्वयं के पास रखने वाला यंत्र तो गंध व लोहे की कलम से लिखें परन्तु शिला के नीचे दबाने वाला यन्त्र गंध व भस्म से आक व धत्तूर के रस में कौवे के पंख की कलम से लिखें । ॥ रणदीक्षा और वीराभिषेक ॥ नरपतिजयचर्या के शान्त्याध्याय में अभिषेक विधि मृत्युञ्जय कवच न्यासादि दिये गये हैं । यथा – अभिषेकात् परं पूजा कर्तव्या पूर्व मण्डले । मृत्युञ्जयेन मन्त्रेण पूर्वोक्तविधिना ततः । “ॐ जूं सः” पश्चात् समर्पयेन्मन्त्रं रणदीक्षा भवेदियम् । तया समन्वितो वीरस्त्रिदशैरपि दुर्जयः ॥ इसके अनुसार युद्ध में विजय का इच्छुक मृत्युञ्जय दीक्षा लेवें । शुद्ध भूमि पर एक अष्टदल बनायें उसके बाहर ३ परिधी (तीन रंगों में – सत, रज, तम युक्त बनायें) बनायें । अष्टदल में मृत्युयन्त्र के अष्टदल में ६४ देवों का यन्त्रार्चन करें । एवं एक-एक पत्र में ८-८ देवों का अर्चन करें । पद्मपत्रे लिखेद् देवांश्चतुःषष्टिप्रमाणतः । एकैकपद्मपत्रेषु वसुसंख्या दले दले ॥ भैरवी भैरवा सिद्धिग्रहा नागा उपग्रहाः । पीठोपपीठ संयुक्ता दिक्पालैश्च समन्विता ॥ कर्णिकायां न्यसेद देवं साङ्गं सहस्रकम् । प्रणवादिनमोऽन्तैश्च नाममन्त्रैस्ततोऽर्चयेत् ॥ अर्थात् भैरवी-भैरव, सिद्धियां, ग्रह, नाग, उपग्रह, पीठ, उपपीठ का अर्चन करें । भूपूर में दिक्पाल व आयुधों का अर्चन करें, अथवा पूर्व में बताई गयी यन्त्र पूजा में भैरव, नाग, अष्टसिद्धि की पूजा वाला यन्त्र काम में लेवें । यन्त्र मध्य में कुम्भ स्थापित करे उसमें सर्वोषधी शतावरी दूर्वा अक्षत पल्लव युक्त करें । यन्त्रार्चन बाद कुछ दूरी पर अष्टदल के मण्डल युक्त आसन पर वीर पुरुष को बैठाकर उस कुम्भ के जल से मृत्युञ्जय कवचादि मन्त्रों से अभिषेक कर मृत्युञ्जय मन्त्र की दीक्षा प्रदान करें । Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe