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पीरों के पीर गौस ए आजम पीरों के पीर शेख सैय्यद अबू मोहम्मद अब्दुल कादिर जीलनी रहमतुल्लाह अलैह से निस्बत रखता है। जिन्हें गौस ए आजम के नाम से जाना जाता है। आपका नाम ” अब्दुल कादिर जिलानी ” है ! आप ” शेख अबू सईद मरमक दूमी ” के पुत्र थे ! आपका जन्म… Read More


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शनि की दृष्टि पार्वती जी जब भी अपने पति शिवजी के साथ विभिन्न देवताओं के निवास स्थान पर जाती और वहाँ उनके सजे-धजे बड़े-बड़े महल देखतीं, तो उन्हें बड़ी हीनता का बोध होता । वे यह महसूस करतीं कि उनसे छोटे-छोटे देवताओं के पास भी बड़े-बड़े आलीशान महल है, परन्तु स्वयं उनके पास कुछ भी… Read More


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गणेशजी ने तोड़ा कुबेर का घमंड देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेरदेव को इस बात का घमंड हो गया था कि वे देवताओं के धन के अधिपति हैं । वो देवताओं का धन खुद के कामों में उपयोग करने लगे । एक दिन वे शिवजी के पास गए और कहा कि मैं आपको अपने घर खाने पर… Read More


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अर्जुन बने अर्जुनी- निकुञ्ज लीला एक समय यमुनाजी के तट पर किसी वृक्ष के नीचे भगवान् देवकीनन्दन के पार्षद अर्जुन बैठे थे, उन्होंने कथाप्रसंग में ही भगवान् से प्रश्न किया — हे दयासागर प्रभो ! श्रीशिव तथा ब्रह्माजी आदि ने भी आपके जिस रहस्य का दर्शन अथवा श्रवण न किया हो, उसी का मुझसे वर्णन… Read More


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शिवजी का राधावतार एक बार परमकौतुकी लीलामय भगवान् श्रीशिवजी ने पार्वतीजी से कहा — ‘देवि ! यदि मुझपर तुम प्रसन्न हो तो तुम पृथिवीतल पर कहीं पुरुषरूप से अवतार लो और मैं स्त्रीरूप धारण करूँगा । यहाँ जैसे मैं तुम्हारा प्रियतम स्वामी और तुम मेरी प्राणप्यारी भार्या हो, उसी प्रकार वहाँ तुम मेरे स्वामी तथा… Read More


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महापुरुषों के अपमान से विपत्ति प्राचीनकाल की बात है, दम्भोद्भव नाम का एक सार्वभौम राजा था। वह महारथी सम्राट् नित्यप्रति प्रात:काल उठकर ब्राह्मण और क्षत्रियों से पूछा करता था कि ‘क्या ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों में कोई ऐसा शस्त्रधारी है, जो युद्ध में मेरे समान अथवा मुझसे बढ़कर हो ?’ इस प्रकार कहते हुए… Read More


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दारुब्रह्म (भगवान् जगन्नाथ )-का प्राकट्य-रहस्य एक समय श्रीधाम द्वारका में भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र रात्रिकाल में श्रीरुक्मिणी, सत्यभामा प्रभृति प्रधान अष्ट-राजमहिषियों के मध्य शयन कर रहे थे । स्वप्नावस्था में आप अकस्मात् ‘हा राधे! हा राधे !’ उच्चारण करते हुए क्रन्दन करने लगे । जब अन्य किसी प्रकार प्रभु का क्रन्दन नहीं रुका, तब बाध्य होकर महारानी… Read More


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चित्रध्वज से चित्रकला प्राचीनकाल में चन्द्रप्रभ नाम के एक राजर्षि थे । भगवान् श्रीकृष्ण की कृपा से उन्हें चित्रध्वज नामक सुन्दर पुत्र प्राप्त था । वह बचपन से ही भगवान् का भक्त था । जब वह बारह वर्ष का हुआ, तब राजा ने किसी ब्राह्मण के द्वारा उसे अष्टादशाक्षर (ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा)… Read More


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देवर्षि नारद मङ्ल-मूर्ति नारदजी श्रीभगवान् ‌के मन के अवतार हैं । कृपा-मय प्रभु जो कुछ करना चाहते हैं, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी वीणा-पाणि नारदजी के द्वारा वैसी ही चेष्टा होती है । श्रीमद्भागवतमें कहा गया है – तृतीयमृषिसर्गं च देवर्षित्वमुपेत्य स: । तन्त्रं सात्वतमाचष्ट नैष्कर्म्यं कर्मणां यत: ।। (१ । ३ । ८)… Read More


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भगवान् वराह स्रुक्-तुण्ड सामस्वरधीरनाद, प्राग्वंशकायाखिलसत्रसन्धे । पूर्तेष्टधर्मश्रवणोऽसि देव सनातनात्मन् भगवन् प्रसीद ।। (विष्णुपुराण १ । ४ । ३४) ‘प्रभो ! स्रुक् आपका तुण्ड (थूथनी) है, सामस्वर धीर-गम्भीर शब्द है, प्राग्वंश (यजमानगृह) शरीर है तथा सम्पूर्ण सत्र (सोमयाग) शरीर की संधियाँ हैं । देव ! इष्ट (यज्ञ-यागादि) और पूर्त (कुआँ, बावली, तालाब आदि खुदवाना, बगीचा लगाना… Read More