सूर्य / सौर सूक्त सूर्य सूक्त (क) इस ऋग्वेदीय ‘सूर्य सूक्त ‘ ( १ / ११५ )— के ऋषि ‘कुत्स आङ्गिरस’ हैं, देवता सूर्य हैं और छन्द त्रिष्टुप् है । इस सूक्त के देवता सूर्य सम्पूर्ण विश्व के प्रकाशक ज्योतिर्मय नेत्र हैं, जगत् की आत्मा हैं और प्राणि-मात्र को सत्कर्मों में प्रेरित करनेवाले देव हैं, देवमण्डल में इनका अन्यतम… Read More
नवदुर्गोपनिषत् नवदुर्गोपनिषत् उक्तं चाथर्वणरहस्ये । विनियोगः- ॐ अस्य श्रीनवदुर्गामहामन्त्रस्य किरातरुपधर ईश्वर ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, अन्तर्यामी नारायणः किरातरुप धरेश्वरो नवदुर्गागायत्री देवता, ॐ बीजं, स्वाहा शक्तिः, क्लीं कीलकं, मम धर्मार्थकाममोक्षार्थे जपे विनियोगः ।… Read More
अग्नियों द्वारा उपदेश अग्नियों द्वारा उपदेश कमल का पुत्र उपकोसल सत्यकाम जाबाल के यहाँ ब्रह्मचर्य ग्रहण करके अध्ययन करता था । बारह वर्षों तक उसने आचार्य एवं अग्नियों की उपासना की । आचार्य ने अन्य सभी ब्रह्मचारियों का समावर्तन-संस्कार कर दिया और उन्हें घर जाने की आज्ञा दे दी । केवल उपकोसल को ऐसा नहीं किया । उपकोसल… Read More
अक्ष-मालिकोपनिषद् अक्ष-मालिकोपनिषद् ‘अक्ष-माला’ के भेद, लक्षण, सूत्र एवं प्रतिष्ठा विधिः शान्ति पाठः ॐ । ‘वाक्’ मेरे मन में प्रतिष्ठित हो। ‘मन’ मेरी वाणी में प्रतिष्ठित हो। हे स्वयं-प्रकाश ‘आत्मा’ ! मेरे सम्मुख तुम प्रकट हो। हे ‘वाक्’ और ‘मन’ तुम दोनों ही वेद-ज्ञान के लिए मेरे आधार बनो। तुम मेरे वेदाभ्यास का नाश न करो। मैं… Read More