श्रीपर-देवी-सूक्तम् विनियोगः- ॐ अस्य श्रीपर-देवी-सूक्त-माला-मन्त्रस्य मार्कण्डेय-मेधा-ऋषी । गायत्र्यादि-नाना-विधानि छन्दांसि । त्रि-शक्ति-रुपिणी चण्डिका देवता । ऐं वीजं । ह्रीं शक्तिः । क्लीं कीलकं । मम-चिन्तित-सकल-मनोरथ-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- मार्कण्डेय-मेधा-ऋषिभ्यां नमः शिरसि । गायत्र्यादि-नाना-विधानि छन्दोभ्यो नमः मुखे । त्रि-शक्ति-रुपिणी चण्डिका देवतायै नमः हृदि । ऐं वीजाय नमः गुह्ये । ह्रीं शक्तये नमः पादयोः । क्लीं कीलकाय… Read More


श्रीदुर्गा-कर्पूर-स्तवम् ‘ऐं’ जपन्ति तव देवि ! ये मनुं भक्ति-नम्र-मनुजा विचक्षणाः। गद्य-पद्य-प्रभवः सुविलाशो भासते हि वचसा खलु तेषाम्।।१ ‘ह्रीं-ह्रीमि’त्येव मन्त्रं जपति यदि जनो भक्ति-नम्रो नितान्तम्, तद्-गेहे नैव लक्ष्मीस्त्यजति गिरि-सुते ! ते प्रसादात् कदापि। दासो-भूताश्च सर्वे भगवति ! मनुजाऽधीश्वरास्तस्य को वा, वक्तुं भूयात् समर्थः तव शिव-दयिते ! ह्रीं-मनोर्वै प्रभावम्।।२… Read More


नवार्ण-यन्त्र-पूजन (१) स्नान आदि करके साधक ‘पूजा-स्थान’ में प्रवेश करे। पूजा-स्थान को सुसज्जित तथा सुगन्धित करे। (२) पूजा-स्थान में चार अंगुल ऊँची, डेढ़ हाथ चौड़ी मिट्टी की वेदी बनाए। (३) वेदी के ऊपर रक्त-चन्दन से अनार या बेल की कलम से द्वारा ‘अष्ट-दल-कमल’ बनाए। (४) ‘अष्ट-दल-कमल’ को हरिद्रा-मिश्रित अक्षत-चूर्ण एवं रक्त-चन्दन-मिश्रित अक्षत-चूर्ण से सजाए।… Read More


भगवती मंगल-चण्डिका ‘चण्डी’ शब्द का प्रयोग ‘दक्षा’ (चतुरा) के अर्थ में होता है और ‘मंगल’ शब्द कल्याण का वाचक है। जो मंगल-कल्याण करने में दक्ष हो, वही “मंगल-चण्डिका” कही जाती है। ‘दुर्गा’ के अर्थ में भी चण्डी शब्द का प्रयोग होता है और मंगल शब्द भूमि-पुत्र मंगल के अर्थ में भी आता है। अतः जो… Read More


श्री अर्जुन-कृत ‘श्रीदुर्गा-स्तवन’ ।। संजय उवाच ।। धार्तराष्ट्र-बलं दृष्ट्वा, युद्धाय समुपस्थितम । अर्जुनस्य हितार्थाय, कृष्णो वचनमब्रवीत् ।। 1 ।। ।। श्रीभगवानुवाच ।। शुचिर्भूत्वा महा-बाहि, संग्रामाभिमुखे स्थितः । पराजयाय शत्रूणां, दुर्गा-स्तोत्रमुदीरय ।। 2 ।।… Read More


श्रीदुर्गा-अष्टोत्तर-शत-नाम-साधना संकल्पः- ॐ तत्सत् अद्यैतस्य ब्रह्मणोऽह्नि-द्वितीय-प्रहरार्द्धे श्वेत-वराह-कल्पे जम्बू-द्वीपे भरत-खण्डे आर्यावर्त-देशे अमुक-पुण्य-क्षेत्रे-कलियुगे कलि-प्रथम-चरणे अमुक-सम्वत्सरे अमुक-मासे अमुक-पक्षे अमुक-तिथौ अमुक-वासरे अमुक-गोत्रो अमुक-(शर्मा, वर्मा, गुप्तो, दासो वा) अहं श्रीदुर्गा-प्रीत्यर्थं अष्टोत्तर-शत-नाम-मन्त्रैः यथा-शक्ति यजनं करिष्ये। विशेषः- अष्टोत्तर-शत-नामावली के नाम-मन्त्रों से पूजन करते समय विनियोग करना चाहिए। यदि नाम-मन्त्रों के द्वारा जप करना हो, तो ‘पूजने विनियोगः’ के स्थान पर ‘जपे विनियोगः’… Read More


श्री दुर्गा कवचम् (रुद्रयामलोक्त) पाठान्तर के साथ ।। श्रीदुर्गा-कवचेश्वरम् ।। ।। पूर्व-पीठिका – श्रीभैरव उवाच ।। अधुना देवि ! वक्ष्येऽहं कवचं मन्त्र-गर्भकम् । दुर्गायाः सार-सर्वस्वं कवचेश्वरसञ्ज्ञकम् ।।१ परमार्थ-प्रदं नित्यं महा-पातक-नाशनम् । योगि-प्रियं योगी-गम्यं देवानामपि दुर्लभम् ।।२ विना दानेन मन्त्रस्य सिद्धिर्देवि ! कलौ भवेत् । धारणादस्य देवेशि शिवस्त्रैलोक्य-नायकः ।।३… Read More


श्री दुर्गा कवचम् (रुद्रयामलोक्त) ।।श्री भैरव उवाच।। अधुना देवि वक्ष्येऽहं कवचं मन्त्रगर्भकम् । दुर्गायाः सारसर्वस्वं कवचेश्वरसञ्ज्ञकम् ।।१ परमार्थप्रदं नित्यं महापातकनाशनम् । योगिप्रियं योगीगम्यं देवानामपि दुर्लभम् ।।२ विना दानेन मन्त्रस्य सिद्धिर्देवि कलौ भवेत् । धारणादस्य देवेशि शिवस्त्रैलोक्यनायकः ।।३… Read More


चैत्रादि मासों, प्रतिपदादि-तिथियों एवं रवि-वारादि दिनों में देवी-नैवेद्य किस तिथि में, किस वार में, कौन-सा नैवेद्य लगाना चाहिए, इसका विवरण यहाँ दिया जा रहा है, जो ‘श्रीमद्-देवी-भागवत’ के आधार पर है। श्रद्धालु-जन इनके अनुसार यथा-सम्भव पूजन कर विशेष लाभ प्राप्त कर सकते हैं।… Read More


श्रीचण्डिका-हृदय-स्तोत्र प्रस्तुत मन्त्रात्मक-श्रीचण्डिका-हृदय-स्तोत्र का सविधि तीनों सन्ध्याओं में पाठ करने से पाठ करने वाले व्यक्ति की सभी कामनाएँ पूर्ण होती है । प्रति सन्ध्या-काल में इस स्तोत्र का पाठ २१-२१ बार करना चाहिए । केवल पहले पाठ में विनियोग से ध्यान तक की प्रारम्भिक क्रिया और अन्तिम पाठ में फल-श्रुति का पाठ करना चाहिए ।… Read More