ऋणहर्ता गणेश – मन्त्र का विधान कैलासपर्वते रम्ये शम्भुं चन्द्रार्धशेखरम् । षडाम्नायसमायुक्तं पप्रच्छ नगकन्यका ॥ रमणीय कैलास पर्वत पर छः आम्नायों से युक्त चन्द्रार्धशेखर भगवान् शिव बैठे थे, उस समय गिरिराजनन्दिनी पार्वतीजी ने उनसे पूछा — पार्वत्युवाच देवेश परमेशान सर्वशास्त्रार्थपारग । उपायमृणनाशस्य कृपया वद साम्प्रतम् ॥ पार्वती बोलीं — सम्पूर्ण शास्त्रों के अर्थ-ज्ञान में पारंगत… Read More


एकाक्षरगणपति-मन्त्र के जप का विधान         स्नान-संध्या-वन्दन आदि से निवृत्त हो, शुद्ध आसन पर आसीन साधक जप प्रारम्भ करने से पूर्व आचमन और प्राणायाम करके निम्नांकितरूप से संकल्प करे — संकल्प — ओमद्यैतस्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे अमुकजनपदे नगरे ग्रामे वा कलियुगे प्रथमचरणे अमुकसंवत्सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथावमुक- वासरान्वितायाममुकामुकराशिस्थितेषु सूर्यादिषु नवग्रहेषु सत्सु — एवं विधग्रहगुणविशेषण… Read More


श्रीगणेश के विविध मन्त्र १ – श्रीमहागणपतिस्वरूप प्रणव- मन्त्र — ‘ॐ’। २- श्रीमहागणपति का प्रणव- सम्पुटित बीज-मन्त्र — ‘ॐ गं ॐ ।’ ३- सबीज गणपति-मन्त्र — ‘ गं गणपतये नमः ।’ ४- प्रणवादि सबीज गणपति-मन्त्र — ‘ॐ गं गणपतये नमः ।’… Read More


॥ अथ अश्व गज पूजन प्रयोगः ॥ प्रतिपदा से लेकर नवरात्र पर्यन्त गजाश्वों का पूजन करे । वस्त्रादि अलंकारों से सुसज्जित कर गंधादि से पूजन करे । एक पिण्ड प्रतिदिन पायसान्न, घृत, गुड़, शहद एवं सुरायुक्त बनाकर गजाश्वों को खिलावें । स्वाति नक्षत्र में उच्चैःश्रवा हय आया हैं । त्वाष्ट्र (चित्रा नक्षत्र)में गजाश्वों की पूजा… Read More


॥ नवदुर्गा प्रार्थना व ध्यान ॥ वंदे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् । वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥ १ ॥ दधाना करपद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू । देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥ २ ॥… Read More


॥ सिद्धिदात्री ॥ यह देवी त्रिपुरसुन्दरी का ही स्वरूप है । यह कमलासना भी है एवं सिंहारूढा भी है । इसी की कृपा से शिव ने अन्यान्य सिद्धियों को प्राप्त किया था । यह देवि अणिमादि अष्टसिद्धियों से परिवेष्टित एवं सेवित है । ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्री कृष्ण जन्म खण्ड में १८ सिद्धियों का वर्णन… Read More


॥ त्रैलोक्यमोहन गौरी प्रयोगः ॥ त्रैलोक्यमोहन गौरी मन्त्र – माया (हीं), उसके अन्त में ‘नमः’ पद, फिर ‘ब्रह्म श्री राजिते राजपूजिते जय’, फिर ‘विजये गौरि गान्धारि’, फिर ‘त्रिभु’, इसके बाद तोय (व), मेष (न), फिर ‘वशङ्करि’, फिर ‘सर्व’ पद, फिर ससद्यल (लो), फिर ‘क वशङ्करि’, फिर ‘सर्वस्त्री पुरुष के बाद ‘वशङ्करि’, फिर ‘सु द्वय’ (सु… Read More


॥ हरगौरी मंत्र ॥ मंत्र :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं हरिहर विरञ्च्याद्याराधिते शिवशक्ति स्वरूपे स्वाहा । यह मंत्र आय एवं शक्तिवर्द्धक है ॥ ॥ गौरी ध्यानम् ॥ गौराङ्गीं धृतपङ्कजां त्रिनयनां श्वेताम्बरां सिंहगां, चन्द्रोद्भासितशेखरां स्मितमुखीं दोर्भ्या वहन्तीं गदाम् । विष्ण्विन्द्राम्बुजयोनि शंभुत्रिदशैः संपूजिताङ्घ्रिद्वयां, गौरी मानसपङ्कजे भगवतीं भक्तेष्टदां तां भजे ॥… Read More


॥ महागौरी ॥ अग्निपुराण के अनुसार गौरी पूजन तृतीया, अष्टमी या चतुर्दशी को करना चाहिये । सिंह सिद्धान्त सिन्धु में चार भुजा देवी का ध्यान दिया है एवं अग्नि पुराण में सिंहस्थ या वृकस्थ देवी का आठ या अठारह भुजा स्वरूप में पूजन करने को कहा है।… Read More


॥ कालरात्रि ॥ ॥ कालरात्रि प्रयोग विधानम् ॥ कालरात्रि का प्रयोग अचूक हैं । यह संहार व सम्मोहन दोनों की अधिष्ठात्री हैं । ब्रह्मा, विष्णु, महेश इन्हीं के प्रभाव से योगनिद्रा में रहते हुये आराधना व तपस्या में लीन रहते हैं । जब शत्रु बाधा, प्रेतादिकबाधा प्रबल हो बगला, प्रत्यंगिरा, शरभराजादि के प्रयोग शिथिल हो… Read More