शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] — अध्याय 01 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [उत्तरखण्ड] पहला अध्याय ऋषियोंके पूछनेपर वायुदेवका श्रीकृष्ण और उपमन्युके मिलनका प्रसंग सुनाना, श्रीकृष्णको उपमन्युसे ज्ञानका और भगवान् शंकरसे पुत्रका लाभ समस्तसंसारचक्रभ्रमणहेतवे ॥ गौरीकुचतटद्वन्द्वकुङ्कुमाङ्कितवक्षसे जो समस्त संसार-चक्रके परिभ्रमणमें कारणरूप हैं तथा गौरीके युगल उरोजोंमें लगे हुए केसरसे जिनका वक्षःस्थल… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] — अध्याय 35 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] पैंतीसवाँ अध्याय भगवान् शंकरका इन्द्ररूप धारण करके उपमन्युके भक्तिभावकी परीक्षा लेना, उन्हें क्षीरसागर आदि देकर बहुत से वर देना और अपना पुत्र मानकर पार्वतीके हाथमें सौंपना, कृतार्थ हुए उपमन्युका अपनी माताके स्थानपर लौटना वायुदेव बोले—… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] — अध्याय 34 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] चौंतीसवाँ अध्याय उपमन्युका गोदुग्धके लिये हठ तथा माताकी आज्ञासे शिवोपासनामें संलग्न होना ऋषियोंने पूछा – प्रभो ! धौम्यके बड़े भाई उपमन्यु जब छोटे बालक थे, तब उन्होंने दूधके लिये तपस्या की थी और भगवान् शिवने… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] — अध्याय 33 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] तैंतीसवाँ अध्याय पाशुपत – व्रतकी विधि और महिमा तथा भस्मधारणकी महत्ता ऋषि बोले – भगवन् ! हम परम उत्तम पाशुपत- व्रतको सुनना चाहते हैं, जिसका अनुष्ठान करके ब्रह्मा आदि सब देवता पाशुपत माने गये हैं… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] — अध्याय 32 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] बत्तीसवाँ अध्याय परम धर्मका प्रतिपादन, शैवागमके अनुसार पाशुपत ज्ञान तथा उसके साधनोंका वर्णन ऋषियोंने पूछा- वायुदेव ! वह कौन- – श्रेष्ठ अनुष्ठान है, जो मोक्षस्वरूप ज्ञानको अपरोक्ष कर देता है ? उसको और उसके साधनोंको… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] — अध्याय 31 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] इकतीसवाँ अध्याय शिवजीकी सर्वेश्वरता, सर्वनियामकता तथा मोक्षप्रदताका निरूपण वायुदेवताने कहा – ब्राह्मणो ! आपलोगोंने युक्तियोंसे प्रेरित होकर जो संशय उपस्थित किया है, वह उचित ही है; क्योंकि किसी बातको जाननेकी इच्छा अथवा तत्त्वज्ञानके लिये उठाया… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] — अध्याय 30 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] तीसवाँ अध्याय ऋषियोंका शिवतत्त्वविषयक प्रश्न ऋषिगण बोले— शिवजीके चरित्र अद्भुत, गोपनीय, गहन तथा देवताओंद्वारा भी दुर्विज्ञेय हैं, वे हम सभीके मनको मोहित कर देते हैं ॥ १ ॥ शिव और शिवाके [ विचित्र ] चरित्रोंके… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] — अध्याय 29 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] उनतीसवाँ अध्याय जगत् ‘वाणी और अर्थरूप’ है – इसका प्रतिपादन वायुदेवता कहते हैं— महर्षियो! अब यह बता रहा हूँ कि जगत् की वागर्थात्मकताकी सिद्धि कैसे की गयी है। छः अध्वाओं ( मार्गों ) का सम्यक्… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] — अध्याय 28 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] अट्ठाईसवाँ अध्याय अग्नि और सोमके स्वरूपका विवेचन तथा जगत् की अग्नीषोमात्मकताका प्रतिपादन ऋषियोंने पूछा – प्रभो ! पार्वती देवीका समाधान करते हुए महादेवजीने यह बात क्यों कही कि ‘सम्पूर्ण विश्व अग्नीषोमात्मक एवं वागर्थात्मक है ।… Read More


शिवमहापुराण — वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] — अध्याय 27 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण वायवीयसंहिता [ पूर्वखण्ड] सत्ताईसवाँ अध्याय मन्दराचलपर गौरीदेवीका स्वागत, महादेवजीके द्वारा उनके और अपने उत्कृष्ट स्वरूप एवं अविच्छेद्य सम्बन्धका प्रकाशन तथा देवीके साथ आये हुए व्याघ्रको उनका गणाध्यक्ष बनाकर अन्तः पुरके द्वारपर सोमनन्दी नामसे प्रतिष्ठित करना ऋषियोंने पूछा- अपने… Read More