ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 53 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ तिरपनवाँ अध्याय श्रीकृष्ण द्वारा श्रीराधा का शृङ्गार, गोपियों द्वारा उनकी सेवा नारदजी ने पूछा — पूर्णमासी बीत जाने पर जगदीश्वर श्रीकृष्ण ने क्या किया? उस समय उनकी कौन-सी रहस्यलीला हुई ? यह बताने की कृपा करें । श्रीनारायण ने कहा — रासमण्डल में… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 52 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ बावनवाँ अध्याय श्रीकृष्ण के अन्तर्धान होने से श्रीराधा और गोपियों का दुःख से रोदन, चन्दनवन में श्रीकृष्ण का उन्हें दर्शन देना, गोपियों के प्रणय- कोपजनित उद्गार, श्रीकृष्ण का उनके साथ विहार, श्रीराधा नाम के प्रथम उच्चारण का कारण श्रीकृष्ण ने कहा — प्रिये… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 51 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ इकावनवाँ अध्याय धन्वन्तरि के दर्प-भङ्ग की कथा, उनके द्वारा मनसादेवी का स्तवन भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा — भगवान् धन्वन्तरि स्वयं महान् पुरुष हैं और साक्षात् नारायण के अंशस्वरूप हैं । पूर्वकाल में जब समुद्र का मन्थन हो रहा था, उस समय महासागर से… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 50 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ पचासवाँ अध्याय दुर्वासा का दर्प-भंग श्रीकृष्ण बोले — प्रिये ! योगी, रुद्र के अंश से उत्पन्न, अत्यन्त तेजस्वी और महान् मुनि दुर्वासा का दर्पभङ्ग सुनो । एक बार राजा अम्बरीष ने द्वादशी व्रत करके अनेक ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात् स्वयं पारण… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 49 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ उनचासवाँ अध्याय अग्नि के दर्प-भङ्ग की कथा श्रीकृष्ण कहते हैं — तदनन्तर सूर्यदेव ब्रह्माजी को प्रणाम करके प्रसन्न हुए और उनकी आज्ञा से अभिमान छोड़ प्रेमपूर्वक विनयपूर्ण बर्ताव करने लगे । अब अग्नि के मान-भञ्जन का उपाख्यान सुनो। यह उत्तम प्रसङ्ग पुराणों में… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 48 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ अड़तालीसवाँ अध्याय सूर्य के दर्प-भङ्ग की कथा राधिका बोलीं — भगवन्! आपने इन्द्र के दर्प-भङ्ग का प्रसङ्ग मुझसे कहा। अब मैं सूर्यदेव के गर्व-गञ्जन की बात यथार्थ-रूप से सुनना चाहती हूँ । भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा — सुन्दरि ! सूर्य एक ही बार… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 47 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ सैंतालीसवाँ अध्याय इन्द्र के अभिमान-भङ्ग का प्रसङ्ग — प्रकृति और गुरु की अवहेलना से इन्द्र को शाप, गौतममुनि के शाप से इन्द्र के शरीर में सहस्त्र योनियों का प्राकट्य, अहल्या का उद्धार, विश्वरूप और वृत्र के वध से इन्द्र पर ब्रह्महत्या का आक्रमण,… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 46 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ छियालीसवाँ अध्याय पार्वती और शंकर का विलास राधिका बोलीं — प्रभो ! अतिचिरकाल से मृतक तथा शिव के द्वारा जीवित किये गये अपने प्रियतम (काम) को पुन: पाकर हर्षान्वित रति ने क्या किया ? । स्त्रियों को अपने पति से विच्छेद होना मरण… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 45 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ पैंतालीसवाँ अध्याय शिव-पार्वती के विवाह का होम, स्त्रियों का नव-दम्पति को कौतुकागार में ले जाना, देवाङ्गनाओं का उनके साथ हास – विनोद, शिव के द्वारा कामदेव को जीवन- दान, वर-वधू और बारात की बिदाई, शिवधाम में पति-पत्नी की एकान्त वार्ता, कैलास में अतिथियों… Read More


ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 44 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ चौंवालीसवाँ अध्याय पार्वती के विवाह की तैयारी, हिमवान् ‌के द्वार पर दूलह शिव के साथ बारात में विष्णु आदि देवताओं का आगमन, हिमालय द्वारा उनका सत्कार, वर को देखने के लिये स्त्रियों का आगमन, वर के अलौकिक रूप-सौन्दर्य को देख मेना का प्रसन्न… Read More