श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय ९ श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय ९ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॐ श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नवाँ अध्याय मार्कण्डेयजी का माया-दर्शन सूतजी कहते हैं — जब ज्ञान-सम्पन्न मार्कण्डेय मुनि ने इस प्रकार स्तुति की, तब भगवान् नर-नारायण ने प्रसन्न होकर मार्कण्डेयजी से कहा ॥ १ ॥ भगवान् नारायण ने कहा — सम्मान्य ब्रह्मषि-शिरोमणि !… Read More
श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय ८ श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय ८ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॐ श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय आठवाँ अध्याय मार्कण्डेयजी की तपस्या और वर-प्राप्ति शौनकजी ने कहा — साधुशिरोमणि सूतजी ! आप आयुष्मान् हो । सचमुच आप वक्ताओं के सिरमौर हैं । जो लोग संसार के अपार अन्धकार में भूल-भटक रहे हैं, उन्हें आप वहाँ… Read More
श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय ७ श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय ७ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॐ श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय सातवाँ अध्याय अथर्ववेद की शाखाएँ और पुराणों के लक्षण सूतजी कहते हैं — शौनकादि ऋषियो ! मैं कह चुका हूँ कि अथर्ववेद के ज्ञाता सुमन्तु मुनि थे । उन्होंने अपनी संहिता अपने प्रिय शिष्य कबन्ध को पढ़ायी ।… Read More
श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय ६ श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय ६ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॐ श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय छठा अध्याय परीक्षित की परमगति, जनमेजय को सर्पसत्र और वेदों के शाखाभेद सूतजी कहते हैं — शौनकादि ऋषियो ! व्यासनन्दन श्रीशुकदेव मुनि समस्त चराचर जगत् को अपनी आत्मा के रूप में अनुभव करते हैं और व्यवहार में सबके… Read More
श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय ५ श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय ५ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॐ श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय पाँचवाँ अध्याय श्रीशुकदेवजी का अन्तिम उपदेश श्रीशुकदेवजी कहते हैं — प्रिय परीक्षित् ! इस श्रीमद्भागवत महापुराण में बार-बार और सर्वत्र विश्वात्मा भगवान् श्रीहरि का ही संकीर्तन हुआ है । ब्रह्मा और रुद्र भी श्रीहरि से पृथक् नहीं हैं,… Read More
श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय ४ श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय ४ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॐ श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय चौथा अध्याय चार प्रकार के प्रलय श्रीशुकदेवजी कहते हैं — परीक्षित् ! (तीसरे स्कन्धमें) परमाणु से लेकर द्विपरार्धपर्यन्त काल का स्वरूप और एक-एक युग कितने-कितने वर्षों का होता है, यह मैं तुम्हें बतला चुका हूँ । अब तुम… Read More
श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय ३ श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय ३ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॐ श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय तीसरा अध्याय राज्य, युगधर्म और कलियुग के दोषों से बचने का उपाय — नामसङ्कीर्तन श्रीशुकदेवजी कहते हैं — परीक्षित् ! जब पृथ्वी देखती है कि राजा लोग मुझ पर विजय प्राप्त करने के लिये उतावले हो रहे हैं,… Read More
श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय २ श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय २ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॐ श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय दूसरा अध्याय कलियुग के धर्म श्रीशुकदेवजी कहते हैं — परीक्षित् ! समय बड़ा बलवान् है; ज्यों-ज्यों घोर कलियुग आता जायगा, त्यों-त्यों उत्तरोत्तर धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, बल और स्मरणशक्ति का लोप होता जायगा ॥ १ ॥… Read More
श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय १ श्रीमद्भागवतमहापुराण – द्वादशः स्कन्ध – अध्याय १ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॐ श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय पहला अध्याय कलियुग के राजवंशों का वर्णन राजा परीक्षित् ने पूछा — भगवन् ! यदुवंशशिरोमणि भगवान् श्रीकृष्ण जब अपने परमधाम पधार गये, तब पृथ्वी पर किस वंश का राज्य हुआ ? तथा अब किसका राज्य होगा ? आप… Read More
श्रीमद्भागवतमहापुराण – एकादशः स्कन्ध – अध्याय ३१ श्रीमद्भागवतमहापुराण – एकादशः स्कन्ध – अध्याय ३१ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॐ श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इकतीसवाँ अध्याय श्रीभगवान् का स्वधामगमन श्रीशुकदेवजी कहते हैं — परीक्षित् ! दारुक के चले जाने पर ब्रह्माजी, शिव-पार्वती, इन्द्रादि लोकपाल, मरीचि आदि प्रजापति, बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, पितर-सिद्ध, गन्धर्वविद्याधर, नाग-चारण, यक्ष-राक्षस, किन्नर-अप्सराएँ तथा गरुड़लोक के विभिन्न पक्षी अथवा मैत्रेय आदि… Read More