June 17, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 109 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ एक सौ नौवाँ अध्याय तीर्थ माहात्म्य तीर्थमाहात्म्यम् अग्निदेव कहते हैं — अब मैं सब तीर्थों का माहात्म्य बताऊँगा, जो भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला है। जिसके हाथ, पैर और मन भली-भाँति संयम में रहें तथा जिसमें विद्या, तपस्या और उत्तम कीर्ति हो, वही तीर्थ के पूर्ण फल का भागी होता है। जो प्रतिग्रह छोड़ चुका है, नियमित भोजन करता और इन्द्रियों को काबू में रखता है, वह पापरहित तीर्थयात्री सब यज्ञों का फल पाता है। जिसने कभी तीन रात तक उपवास नहीं किया; तीर्थों की यात्रा नहीं की और सुवर्ण एवं गौ का दान नहीं किया, वह दरिद्र होता है। यज्ञ से जिस फल की प्राप्ति होती है, वही तीर्थ- सेवन से भी मिलता है ॥ १-४ ॥ ‘ ब्रह्मन् ! पुष्कर श्रेष्ठ तीर्थ है। वहाँ तीनों संध्याओं के समय दस हजार कोटि तीर्थों का निवास रहता है। पुष्कर में सम्पूर्ण देवताओं के साथ ब्रह्माजी निवास करते हैं। सब कुछ चाहनेवाले मुनि और देवता वहाँ स्नान करके सिद्धि प्राप्त कर चुके हैं। पुष्कर में देवताओं और पितरों की पूजा करनेवाले मनुष्य अश्वमेधयज्ञ का फल प्राप्त करके ब्रह्मलोक में जाते हैं। जो कार्तिक की पूर्णिमा को वहाँ अन्नदान करता है, वह शुद्धचित्त होकर ब्रह्मलोक का भागी होता है। पुष्कर में जाना दुष्कर है, पुष्कर में तपस्या का सुयोग मिलना दुष्कर है, पुष्कर में दान का अवसर प्राप्त होना भी दुष्कर है और वहाँ निवास का सौभाग्य होना तो अत्यन्त ही दुष्कर है। वहाँ निवास, जप और श्राद्ध करने से मनुष्य अपनी सौ पीढ़ियों का उद्धार करता है। वहीं जम्बूमार्ग तथा तण्डुलिकाश्रम तीर्थ भी हैं ॥ ५-९ ॥ ( अब अन्य तीर्थों के विषय में सुनो —) कण्वाश्रम, कोटितीर्थ, नर्मदा और अर्बुद (आबू) भी उत्तम तीर्थ हैं। चर्मण्वती (चम्बल), सिन्धु, सोमनाथ, प्रभास, सरस्वती समुद्र-संगम तथा सागर भी श्रेष्ठ तीर्थ हैं। पिण्डारक क्षेत्र, द्वारका और गोमती — ये सब प्रकार की सिद्धि देनेवाले तीर्थ हैं। भूमितीर्थ, ब्रह्मतुङ्गतीर्थ और पञ्चनद (सतलज आदि पाँचों नदियाँ) भी उत्तम हैं। भीमतीर्थ, गिरीन्द्रतीर्थ, पापनाशिनी देविका नदी, पवित्र विनशनतीर्थ (कुरुक्षेत्र), नागोद्भेद, अघार्दन तथा कुमारकोटि तीर्थ-ये सब कुछ देनेवाले बताये गये हैं। ‘मैं कुरुक्षेत्र जाऊँगा, कुरुक्षेत्र में निवास करूँगा’ जो सदा ऐसा कहता है, वह शुद्ध हो जाता है और उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। वहाँ विष्णु आदि देवता रहते हैं। वहाँ निवास करने से मनुष्य श्रीहरि के धाम में जाता है। कुरुक्षेत्र में समीप ही सरस्वती बहती हैं। उसमें स्नान करनेवाला मनुष्य ब्रह्मलोक का भागी होता है। कुरुक्षेत्र की धूलि भी परम गति की प्राप्ति कराती है। धर्मतीर्थ, सुवर्णतीर्थ, परम उत्तम गङ्गाद्वार (हरिद्वार), पवित्र तीर्थ कनखल, भद्रकर्ण-हद, गङ्गा-सरस्वती-संगम और ब्रह्मावर्त — ये पापनाशक तीर्थ हैं ॥ १०-१७ ॥ भृगुतुङ्ग, कुब्जाम्र तथा गङ्गोद्भेद — ये भी पापों को दूर करनेवाले हैं। वाराणसी (काशी) सर्वोत्तम तीर्थ है। उसे श्रेष्ठ अविमुक्त क्षेत्र भी कहते हैं । कपाल मोचनतीर्थ भी उत्तम है, प्रयाग तो सब तीर्थों का राजा ही है। गोमती और गङ्गा का संगम भी पावन तीर्थ है। गङ्गाजी कहीं भी क्यों न हों, सर्वत्र स्वर्गलोक की प्राप्ति करानेवाली हैं। राजगृह पवित्र तीर्थ है। शालग्राम तीर्थ पापों का नाश करनेवाला है। वटेश, वामन तथा कालिका संगम तीर्थ भी उत्तम हैं ॥ १८-२० ॥ लौहित्य – तीर्थ, करतोया नदी, शोणभद्र तथा ऋषभतीर्थ भी श्रेष्ठ हैं। श्रीपर्वत, कोलाचल, सह्यगिरि, मलयगिरि, गोदावरी, तुङ्गभद्रा, वरदायिनी कावेरी नदी, तापी, पयोष्णी, रेवा (नर्मदा) और दण्डकारण्य भी उत्तम तीर्थ हैं। कालंजर, मुञ्जवट, शूर्पारक, मन्दाकिनी, चित्रकूट और शृङ्गवेरपुर श्रेष्ठ तीर्थ हैं। अवन्ती भी उत्तम तीर्थ है। अयोध्या सब पापों का नाश करनेवाली है। नैमिषारण्य परम पवित्र तीर्थ है। वह भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला है ॥ २१-२४ ॥ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘तीर्थमाहात्म्य वर्णन’ नामक एक सौ नौवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १०९ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe