June 27, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 179 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ एक सौ उनासीवाँ अध्याय चतुर्थी तिथि के व्रत चतुर्थीव्रतानि अग्निदेव कहते हैं — वसिष्ठ! अब मैं आपके सम्मुख भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले चतुर्थी-सम्बन्धी व्रतों का वर्णन करता हूँ । माघ के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को उपवास करके गणेश का पूजन करे । तदनन्तर पञ्चमी को तिल का भोजन करे। ऐसा करने से मनुष्य बहुत वर्षोंतक विघ्नरहित होकर सुखी रहता है। ‘गं स्वाहा ।’ – यह मूलमन्त्र है। ‘गां नमः।’ आदि से हृदयादि का न्यास करे 1 ॥ १-२ ॥’ ‘आगच्छोल्काय’ कहकर गणेश का आवाहन और ‘गच्छोल्काय’ कहकर विसर्जन करे। इस प्रकार आदि में गकारयुक्त और अन्त में ‘उल्का’ शब्दयुक्त मन्त्र से उनके आवाहनादि कार्य करे । गन्धादि उपचारों एवं लड्डुओं आदि द्वारा गणपति का पूजन करे ॥ ३ ॥ (तदनन्तर निम्नलिखित गणेश-गायत्री का जप करे) — ॐ महोल्काय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥ भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को व्रत करने वाला शिवलोक को प्राप्त करता है। ‘अङ्गारक चतुर्थी’ (मङ्गलवार से युक्त चतुर्थी) को गणेश का पूजन करके मनुष्य सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओं को प्राप्त कर लेता है। फाल्गुन की चतुर्थी को रात्रि में ही भोजन करे। यह ‘अविघ्ना चतुर्थी’ के नाम से प्रसिद्ध है। चैत्र मास की चतुर्थी को ‘दमनक’ नामक पुष्पों से गणेश का पूजन करके मनुष्य सुख भोग प्राप्त करता है ॥ ४-६ ॥ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘चतुर्थी के व्रतों का कथन’ नामक एक सौ उनासीयाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १७९ ॥ 1. निम्नलिखित विधि से हृदयादि षडङ्गों का न्यास करे — “गां हृदयाय नमः। गीं शिरसे स्वाहा । गूं शिखायै वषट् । गैं नेत्रत्रयाय वौषट् । गौं कवचाय हुम्। गः अस्त्राय फट्।’ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe