June 29, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 187 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ एक सौ सतासीवाँ अध्याय एकादशी तिथि के व्रत एकादशीव्रतं अग्निदेव कहते हैं — वसिष्ठ! अब मैं भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले एकादशी व्रत का वर्णन करूँगा । व्रत करनेवाला दशमी को मांस और मैथुन का परित्याग कर दे एवं भजन भी नियमित करे। दोनों पक्षों की एकादशी को भोजन न करे ॥ ११/२ ॥ ‘ द्वादशी- विद्धा एकादशी में स्वयं श्रीहरि स्थित होते हैं, इसलिये द्वादशी विद्धा एकादशी के व्रत का त्रयोदशी को पारण करने से मनुष्य सौ यज्ञों का पुण्यफल प्राप्त करता है। जिस दिन के पूर्वभाग में एकादशी कलामात्र अवशिष्ट हो और शेषभाग में द्वादशी व्याप्त हो, उस दिन एकादशी का व्रत करके त्रयोदशी में पारण करने से सौ यज्ञों का पुण्य प्राप्त होता है। दशमी-विद्धा एकादशी को कभी उपवास नहीं करना चाहिये; क्योंकि वह नरक की प्राप्ति कराने वाली है। एकादशी को निराहार रहकर, दूसरे दिन यह कहकर भोजन करे — ‘पुण्डरीकाक्ष ! मैं आपकी शरण ग्रहण करता हूँ। अच्युत ! अब मैं भोजन करूँगा।’ शुक्लपक्ष की एकादशी को जब पुष्यनक्षत्र का योग हो, उस दिन उपवास करना चाहिये। वह अक्षयफल प्रदान करनेवाली है और ‘पापनाशिनी’ कही जाती है । श्रवणनक्षत्र से युक्त द्वादशीविद्धा एकादशी ‘विजया’ नाम से प्रसिद्ध है और भक्तों को विजय देनेवाली है। फाल्गुन मास में पुष्यनक्षत्र से युक्त एकादशी को भी सत्पुरुषों ने ‘विजया’ कहा है। वह गुणों में कई करोड़ गुना अधिक मानी जाती है। एकादशी को सबका उपकार करनेवाली विष्णुपूजा अवश्य करनी चाहिये। इससे मनुष्य इस लोक में धन और पुत्रों से युक्त हो (मृत्यु के पश्चात्) विष्णुलोक में पूजित होता है ॥ २-९ ॥ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘एकादशी के व्रतों का वर्णन’ नामक एक सौ सतासीवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १८७ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe