June 30, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 204 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ दो सौ चारवाँ अध्याय मासोपवास-व्रत का वर्णन मासोपवासव्रतं अग्निदेव कहते हैं — मुनिश्रेष्ठ वसिष्ठ ! अब मैं तुम्हारे सम्मुख सबसे उत्तम मासोपवास- व्रत का वर्णन करता हूँ। वैष्णव यज्ञ का अनुष्ठान करके, आचार्य की आज्ञा लेकर, कृच्छ्र आदि व्रतों से अपनी शक्ति का अनुमान करके मासोपवासव्रत करना चाहिये। वानप्रस्थ, संन्यासी एवं विधवा स्त्री- इनके लिये मासोपवास- व्रत का विधान है ॥ १-२ ॥ अद्यप्रभृत्यहं विष्णो यावदुत्थानकन्तव । अर्चये त्वामनश्नन् हि यावत्त्रिंशद्दिनानि तु ॥ कार्त्तिकाश्विनयोर्विष्णोर्यावदुत्थानकन्तव । म्रिये यद्यन्तरालेऽहं व्रतभङ्गो न मे भवेत् ॥ ‘ आश्विन शुक्ल पक्ष को एकादशी को उपवास रखकर तीस दिनों के लिये निम्नलिखित संकल्प करके मासोपवास- व्रत ग्रहण करे — श्रीविष्णो! मैं आज से लेकर तीस दिन तक आपके उत्थान कालपर्यन्त निराहार रहकर आपका पूजन करूँगा। सर्वव्यापी श्रीहरे! आश्विन शुक्ल एकादशी से आपके उत्थानकाल कार्तिक शुक्ल एकादशी के मध्य में यदि मेरी मृत्यु हो जाय तो (आपकी कृपा से) मेरा व्रत भङ्ग न हो ।’ व्रत करने वाला दिन में तीन बार स्नान करके सुगन्धित द्रव्य और पुष्पों द्वारा प्रातः, मध्याह्न एवं सायंकाल श्रीविष्णु का पूजन करे तथा विष्णु-सम्बन्धी गान, जप और ध्यान करे। व्रती पुरुष वकवाद का परित्याग करे और धन की इच्छा भी न करे। वह किसी भी व्रतहीन मनुष्य का स्पर्श न करे और शास्त्रनिषिद्ध कर्मों में लगे हुए लोगों का चालक- प्रेरक न बने। उसे तीस दिन तक देवमन्दिर में ही निवास करना चाहिये। व्रत करने वाला मनुष्य कार्तिक के शुक्लपक्ष की द्वादशी को भगवान् श्रीविष्णु की पूजा करके ब्राह्मणों को भोजन करावे तदनन्तर उन्हें दक्षिणा देकर और स्वयं पारण करके व्रत का विसर्जन करे। इस प्रकार तेरह पूर्ण मासोपवास- व्रतों का अनुष्ठान करने वाला भोग और मोक्ष- दोनों को प्राप्त कर लेता है ॥ ३-९ ॥ (उपर्युक्त विधि से तेरह मासोपवास-व्रतों का अनुष्ठान करने के बाद व्रत करने वाला व्रत का उद्यापन करे।) वह वैष्णवयज्ञ करावे, अर्थात् तेरह ब्राह्मणों का पूजन करे। तदनन्तर उनसे आज्ञा लेकर किसी ब्राह्मण को तेरह ऊर्ध्ववस्त्र, अधोवस्त्र, पात्र, आसन, छत्र, पवित्री, पादुका, योगपट्ट और यज्ञोपवीतों का दान करे ॥ १०-११ ॥ तत्पश्चात् शय्या पर अपनी और श्रीविष्णु की स्वर्णमयी प्रतिमा का पूजन करके उसे किसी दूसरे ब्राह्मण को दान करे एवं उस ब्राह्मण का वस्त्र आदि से सत्कार करे। तदनन्तर व्रत करनेवाला यह कहे — सर्वपापविनिर्मुक्तो विप्रो विष्णुप्रसादतः । विष्णुलोकं गमिष्यामि विष्णुरेव भवाम्यहं ॥ मैं सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर ब्राह्मणों और श्रीविष्णु भगवान् के कृपा प्रसाद से विष्णुलोक को जाऊँगा। अब मैं विष्णुस्वरूप होता हूँ।’ इसके उत्तर में ब्राह्मणों को कहना चाहिये — ‘देवात्मन्! तुम विष्णु के उस रोग-शोकरहित परमपद को जाओ जाओ और वहाँ विष्णु का स्वरूप धारण करके विमान में प्रकाशित होते हुए स्थित होओ।’ फिर व्रत करनेवाला द्विजों को प्रणाम करके वह शय्या आचार्य को दान करे। इस विधि से व्रत करने वाला अपने सौ कुलों का उद्धार करके उन्हें विष्णुलोक में ले जाता है। जिस देश में मासोपवास- व्रत करने वाला रहता है, वह देश पापरहित हो जाता है। फिर उस सम्पूर्ण कुल की तो बात ही क्या है, जिसमें मासोपवास- व्रत का अनुष्ठान करने वाला उत्पन्न हुआ होता है। व्रतयुक्त मनुष्य को मूर्च्छित देखकर उसे घृतमिश्रित दुग्ध को पान कराये। निम्नलिखित वस्तुएँ व्रत को नष्ट नहीं करती — ब्राह्मण की अनुमति से ग्रहण किया हुआ हविष्य, दुग्ध, आचार्य की आज्ञा से ली हुई ओषधि, जल, मूल और फल’ इस व्रत में भगवान् श्रीविष्णु ही महान् ओषधिरूप हैं’ — इसी विश्वास से व्रत करनेवाला इस व्रत से उद्धार पाता है ॥ १३-१८ ॥ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें ‘मासोपवास- व्रत का वर्णन’ नामक दो सौ चारवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २०४ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe